न्याय: राजीव गाँधी हत्या कांड के दोषीयो पर अदालत की उदारता से दोषियों मे सुधार और पश्चाताप, दोनों ही दिखाई दिया.
Justice: Due to the generosity of the court on




NBL, 13.11.2022,Justice: Due to the generosity of the court on the convicts of Rajiv Gandhi assassination, both reform and repentance were visible in the guilty.
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या में शामिल छह अपराधियों को तीस साल से ज्यादा जेल में रखने के बाद अंतत: रिहा कर दिया गया है, पढ़े विस्तार से....
रिहाई की कवायद लंबे समय से चल रही थी, क्योंकि तमिल राजनीति में भी रिहाई के पक्ष में कमोबेश माहौल लगातार बना हुआ था। अपराधी भी वर्षों से सजा भुगतने के बाद लगातार माफी मांगते आ रहे थे। खास बात यह है कि इन अपराधियों ने जेल में अपनी जिंदगी को बिगड़ने नहीं दिया, बल्कि सकारात्मक रूप से अपने विकास में लगे रहे। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी भी उनसे मिले थे, माफी के पक्ष में अपनी भावना प्रकट की थी।
जघन्य अपराध के बावजूद अनुकूलता ऐसे बनी कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी उम्रकैद की सजा काट रहे नलिनी श्रीहरन और आर पी रविचंद्रन समेत छह दोषियों को रिहा करने का आदेश सुना दिया।
तमिलनाडु सरकार ने भी अपनी ओर से कोई देरी नहीं की। बड़ी राहत मिलने के बाद जेल से बाहर आते ही नलिनी श्रीहरन ने कहा, मैं जानती हूं, मैं आतंकवादी नहीं हूं।
इस रिहाई के बाद लोगों की पुरानी यादें ताजा हो आईं। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरुंबदूर में एक चुनावी सभा के दौरान हत्या कर दी गई थी। लोकप्रिय प्रधानमंत्री रह चुके राजीव गांधी की हत्या के लिए धनु नाम की आत्मघाती हमलावर का इस्तेमाल किया गया था। विस्फोट में राजीव गांधी समेत 15 लोगों की जान गई थी। उस घटना ने देश को रुला दिया था, लेकिन वक्त ऐसा मरहम है कि बहुत गहरे घावों को भी भर जाता है। इस हमले की जांच के बाद सात लोगों को दोषी पाया गया था।
जिसमें एक पेरारिवलन को मौत की सजा सुनाई गई थी, लेकिन मई महीने में सुप्रीम कोर्ट ने उसकी रिहाई के आदेश दिए थे। इसके बाद बाकी दोषियों की रिहाई की बुनियाद मजबूत हुई थी। न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ ने स्पष्ट कर दिया कि एक साजायाफ्ता पेरारिवलन के मामले में किया गया फैसला बाकी दोषियों पर भी लागू होता है। संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत शक्ति का इस्तेमाल करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला पूरी तरह से विधिसम्मत ही नहीं, बल्कि उदार न्याय व्यवस्था का एक नया अध्याय बन गया है।
यह फैसला एक तरह से प्रयोग भी है। जो लोग अच्छे आचरण के आधार पर छूटे हैं, उन्हें आगे भी अपने आचरण को भारतीय कानून-व्यवस्था के अनुरूप रखना होगा। यह भारतीय व्यवस्था की उदारता है कि बहुत जघन्य अपराध में शामिल दोषियों को भी रिहा कर दिया गया है। बाकी देशों में भी लोग भारत में हुए इस फैसले पर गौर करेंगे। आमतौर पर जहां ऐसे जघन्य अपराध होते हैं, वहां दोषियों को आजीवन जेल से बाहर नहीं आने दिया जाता है। बहरहाल, यह भी गौर किया गया होगा कि तमिल आतंकी संगठन लिट्टे भी अपनी जमीन से उखड़ चुका है।
लिट्टे अगर आज सक्रिय रहता, तो शायद भारत में यह रिहाई मुमकिन नहीं होती। लिट्टे निरपराध लोगों का खून नहीं बहा रहा है, इसलिए नलिनी इत्यादि के प्रति सहानुभूति को जगह मिल गई है। हालांकि, अदालतों को सावधान रहना होगा कि यह फैसला अपवाद ही रहे, नजीर न बन जाए। किसी भी पूर्व अपराधी को जेल से छोड़ते समय यह आश्वासन सोलह आना जरूरी है कि अपराध को फिर दोहराया नहीं जाएगा और न समाज के लिए संकट पैदा किया जाएगा। न्याय उदारता से हो, पर उदारता का कभी दुरुपयोग न हो।