" नोबेल " शांति पुरस्कार का इंतजार पूरी दुनिया करती है, क्योंकि शांति एक ऐसी उपलब्धि है, जिसका लाभ पूरी दुनिया को होता है।

The whole world waits for the "Nobel" peace prize,

" नोबेल " शांति पुरस्कार का इंतजार पूरी दुनिया करती है, क्योंकि शांति एक ऐसी उपलब्धि है, जिसका लाभ पूरी दुनिया को होता है।

NBL, 10/10/2022, Lokeshwer Prasad Verma,. The whole world waits for the "Nobel" peace prize, because peace is such an achievement, which benefits the whole world.

नोबेल शांति पुरस्कार का इंतजार पूरी दुनिया करती है, क्योंकि शांति एक ऐसी उपलब्धि है, जिसका लाभ पूरी दुनिया को होता है, पढ़े आगे विस्तार से... 

दुनिया के किसी एक क्षेत्र में जब शांति के लिए कोई प्रयास होता है, तो उससे दुनिया के दूसरे इलाके भी प्रत्यक्ष या परोक्ष लाभान्वित होते हैं। युद्ध और छद्म युद्धों से जूझ रही दुनिया में नोबेल समिति ने संयुक्त रूप से तीन शांति अभियानों को पुरस्कृत किया है। 

बेलारूस के मानवाधिकार अधिवक्ता एलेस बालियात्स्की, रूसी मानवाधिकार संगठन ‘मेमोरियल’ और यूक्रेन के मानवाधिकार संगठन ‘सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज’ ने इस साल का नोबेल शांति पुरस्कार जीतकर दुनिया भर के शांति दूतों व कार्यकर्ताओं को प्रेरित किया है।

आज के समय में दुनिया में शांति की इच्छा रखने वाले और शांति के लिए प्रयासरत लोगों तथा संस्थाओं की जितनी तारीफ की जाए, कम है। 

साठ वर्षीय बियालियात्स्की 1980 के दशक के मध्य से बेलारूस में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं। साल 1996 में उन्होंने अपने शांति प्रयासों को तेज किया था और तत्कालीन शासन के विवादास्पद फैसलों के विरोध में पूरे साहस के साथ खडे़ हो गए थे। उसी साल उन्होंने अपने देश के सबसे बड़े मानवाधिकार संगठन की स्थापना की थी। वह सच्चे संघर्ष के लिए जेलों में बंद कार्यकर्ताओं व उनके परिवार की यथासंभव सेवा करते आए हैं। चोरी के आरोप में उन्हें साढ़े चार साल कैद की सजा भी सुनाई गई थी। 

साल 2020 में भी जब शासन का कहर टूटा, तो बियालियात्स्की पीड़ितों और उनके परिजनों की सेवा के लिए समर्पित हो गए। नोबेल समिति द्वारा किया गया यह चयन अभिनंदनीय है। बेलारूस के लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए हर वक्त खडे़ होकर उन्होंने अत्याचार के खिलाफ वैश्विक लड़ाई को बहुत बल दिया है। अब शांति के लिए नोबेल मिलने के बाद वह अपने देश ही नहीं, बल्कि दुनिया के लिए एक प्रेरक व सम्मानित व्यक्तित्व बन गए हैं। वह अच्छी तरह जानते हैं कि आज के समय में लोकतंत्र, मानवाधिकार और न्याय के लिए खड़े होने में क्या जोखिम हैं।

रूसी मानवाधिकार संगठन ‘मेमोरियल’ को मिले नोबेल शांति सम्मान का भी बहुत मुखर संदेश है। नोबेल शांति पुरस्कार विजेता आंद्रेई सखारोव सहित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के एक समूह ने कम्युनिस्ट शासन के पीड़ितों को सहायता प्रदान करने के लिए तत्कालीन सोवियत संघ में 1987 में ‘मेमोरियल’ की स्थापना की थी। इस संगठन के शांति समर्थक अभियान ने एक लंबा सफर तय किया है। यह संगठन रूस के सबसे बड़े मानवाधिकार संगठन के रूप में पहचाना जाता है। 

यह संगठन सोवियत रूस के तमाम अपराधों का कच्चा चिट्ठा रखता है। शायद वर्तमान रूसी सत्ता प्रतिष्ठान को यह पुरस्कार चुभेगा, लेकिन इसका असर रूसी समाज पर पड़ना तय है। इस बार का तीसरा नोबेल विजेता यूक्रेन का मानवाधिकार संगठन ‘सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज’ है। 

बदलाव से गुजर रहे यूक्रेन में मानवाधिकारों और लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिए 2007 में ‘सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज’ की स्थापना की गई थी। यह संगठन भ्रष्टाचार के खिलाफ भी लड़ता रहा है। अभी यह संगठन यूक्रेन में रूस के अपराध दर्ज करने में लगा है, अत: उसे मिले नोबेल को विशेष अक्षरों में रेखांकित किया जा सकता है। आज समग्रता में एक ही संदेश है, मानव समाज शांति के महत्व को समझे और उस ओर बढ़े।