राष्ट्रवाद यानि राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना का विकास किसी भी देश के नागरिकों की एकजुटता के लिए आवश्यक है।
The development of nationalism i.e.




NBL, 30/05/2023, Lokeshwer Prasad Verma Raipur CG: The development of nationalism i.e. the feeling of devotion towards the nation is necessary for the solidarity of the citizens of any country.
भारत एक सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई विविधता वाला देश है। राष्ट्रवाद ही वह धागा है जो लोगों को उनके विभिन्न सांस्कृतिक-जातीय पृष्ठभूमि से संबंधित होने के बावजूद एकता के सूत्र में एक साथ बांधता है। यह कश्मीर से कन्याकुमारी तक सभी भारतीयों को एकजुट करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
राष्ट्रवाद एक ऐसी अवधारणा है जिसमें राष्ट्र सर्वोपरि होता है अर्थात राष्ट्र को सबसे अधिक प्राथमिकता दी जाती है। यह एक ऐसी विचारधारा है जो किसी भी देश के नागरिकों के साझा पहचान को बढ़ावा देती है। किसी भी राष्ट्र की उन्नति एवं संपन्नता के लिए नागरिकों में सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई विविधता से ऊपर उठकर राष्ट्र के प्रति गौरव की भावना को मजबूती प्रदान करना आवश्यक है और इसमें राष्ट्रवाद एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।* राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना..
राष्ट्रवाद यानि राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना का विकास किसी भी देश के नागरिकों की एकजुटता के लिए आवश्यक है। यही वजह है कि बचपन से ही स्कूलों में राष्ट्रगान का नियमित अभ्यास कराया जाता है और आजकल तो सिनेमाघरों में भी फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान चलाया जाता है, और साथ ही पाठ्यक्रमों में देश के महान सपूतों, वीरों एवं स्वतंत्रता सेनानियों की गाथाओं का समावेश किया जाता है।
राष्ट्रवाद ही वह भावना है जो सैनिकों को देश की सीमा पर डटे रहने की ताकत देती है। राष्ट्रवाद की वजह से ही देश के नागरिक अपने देश के लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने से पीछे नहीं हटते। वह राष्ट्रवाद ही है जो किसी भी देश के नागरिकों को उनके धर्म, भाषा, जाति इत्यादि सभी संकीर्ण मनोवृत्तियों को पीछे छोड़कर देशहित में एक साथ खड़े होने की प्रेरणा देता है।
भारत समेत ऐसे कई ऐसे देश हैं जो सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई विविधता से सम्पन्न हैं और इन देशों में राष्ट्रवाद की भावना जनता के बीच आम सहमति बनाने में मदद करती है। देश के विकास के लिए प्रत्येक नागरिक को एकजुट होकर कार्य करना पड़ता है और उन्हें एक सूत्र में पिरोने का कार्य राष्ट्रवाद की भावना ही करती है।
बाल्मीकि रामायण का कथन है कि ‘जननी और जन्म भूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होती है।’ वेद में राष्ट्र के लिये पृथ्वी शब्द का प्रयोग किया गया है। वेद की बात को इस प्रकार से भी कह सकते हैं कि मेरा देश मेरी माता है और मैं इसका पुत्र हूं। इस आधार पर हमें एक पुत्र की भांति अपने देश की रक्षा, पालन, उसके यश में वृद्धि, देश के नागरिकों को अपना बन्धु व प्रिय मानना, आवश्यकता होने पर देश के लिये प्राणों का उत्सर्ग करना, किसी के प्रति पक्षपात व अन्याय न करना, पृथ्वी व भूमि को स्वच्छ रखना, भूमि, इसके जल व वायु आदि को प्रदुषित न करना आदि सब हमारे कर्तव्य होते हैं।
क्या हम एक पुत्र की भांति अपनी जन्मभूमि वा देश की सेवा व इसके गौरव में वृद्धि के लिये सचेष्ट रहते हैं। हो सकता है कि हम रहते हों, परन्तु देश के सभी नागरिक ऐसा नहीं करते। यहां अनेक विचारधारायें एवं मानसिकतायें वाले लोग रहते हैं। वह देश के सभी लोगों को येन प्रकारेण अपनी विचारधारा में ढालना चाहते हैं। इतिहास में इसके अनेक प्रमाण मिलते हैं। यह लोग अपनी योजना को गुप्त रखकर उसे अंजाम देते हैं परन्तु इनके कार्यों व व्यवहार से इनके बुरे इरादों का ज्ञान हो जाता है। अतः ऐसे लोग राष्ट्रधर्म सर्वोपरि के सिद्धान्त का हनन करते हैं। इन्हें कुछ सीमा तक राष्ट्र द्रोह कहा जा सकता है। वोट बैंक की राजनीति व अनेक प्रकार के नियमों के कारण इन पर अंकुश नहीं लग पाता जिससे राष्ट्रधर्म सर्वोपरि का सिद्धान्त देश में व्यवहार में प्रयोग होता दिखाई नहीं देता है।
एक मां जिस प्रकार से अपने बच्चे पर प्यार, स्नेह एवं आशीर्वाद से सींचते हुए उसका लालन-पालन करती है ठीक उसी प्रकार हमारी मातृभूमि भी हमें पालती है। जिस प्रकार एक माँ अपने बच्चों की भलाई करती है और बदले में कोई अपेक्षा नहीं करती, उसी प्रकार हमारी मातृभूमि भी हम पर ममता की बारिश करते हुए बदले में कुछ भी नहीं चाहती। लेकिन हरेक भारतीय के लिए यह जरूरी है कि वे अपने राष्ट्र के प्रति गर्व एवं कृतज्ञता की भावना प्रदर्शित करें। दूसरे शब्दों में कहें तो, हमें अपने वचन एवं कार्य दोनो ही के द्वारा हम राष्ट्रवाद की भावना को अपने जीवन में उतारें।
कुछ ऐसी ताकतें हैं जो अलगाववादी भावनाओं के साथ आजादी के लिए आवाज उठा रहे हैं (जैसा कि कश्मीर और उत्तर-पूर्व भारत के अशांत इलाकों में देखा जा रहा है) एवं अपनी गतिविधियों द्वारा देश को कमजोर करना चाहते हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में कुछ शैक्षिक संस्थान भी भारत विरोधी नारेबाजी और विरोध प्रदर्शन द्वारा भारत को दो हिस्सों में बाँटने की घिनौनी विचारधारा फैलाते हुए नजर आए हैं। केवल राष्ट्रवाद की एक अटूट भावना द्वारा ही भारत को राष्ट्र-विरोधी ताकतों की चपेट में आने से बचाया जा सकता है।