वक्त गुरु को खोजना, उनकी भक्ति करनी चाहिए
नाम दान देना और महात्मा गिरी बहुत कठिन काम है
प्रभु के रूप में गुरु रहते हैं
सूरत (गुजरात)। निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, परम पिता परमात्मा के साक्षात अवतार, इस वक़्त के गुरु, जीते जी प्रभु से मिलाने का रास्ता नामदान देने वाले एकमात्र प्रकट सन्त, जिनके शरीर में प्रभु की ताकत भरी है, जो अंतर साधना में दया करके शब्द को सुनाते हैं, ऐसे इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त महाराज ने 6 जनवरी 2023 दोपहर सूरत (गुजरात) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि आज तक अगर किसी को कुछ मिला तो भक्ति के द्वारा ही मिला। गुरु के आदेश की पालन को गुरु भक्ति कहते हैं। भक्ति जब पूरी हो जाती है, उनकी आत्मा ऊपर जब पहुंचती है और प्रभु के रूप में जो गुरु रहते हैं तो आदेश मिलता है कि अब तुम जीवों का काम करो तो जीवों का काम करने लगते हैं। शांति का रास्ता यहां तो दिलाते ही हैं और हमेशा के लिए शांति हो जाए, रोना-धोना खत्म हो जाए, हमेशा उजाला ही रहे ऐसे उजाले में पहुंचा जाओ, उसका रास्ता बताते हैं और यह काम करते हैं। जब तक शरीर रहता है तब तक काम करते हैं। जब शरीर कमजोर हो जाता है या (निज धाम) जाने की मौज हो जाती है तो वह जो काम करते हैं, दूसरे को बता कर देकर जाते हैं। जिसको समझते हैं कि यह कर ले जाएगा, जिसको सिखा-बता देते हैं, लोगों को उसके बारे में बता कर के जाते हैं कि यह काम अब यह करेंगे, यह देखेंगे। तो वह ( उत्तराधिकारी) उस काम को बढ़ाते हैं। मुख्य बात समझो, वो नाम दान देते हैं। जिनको गुरु नाम दान दे करके जाते हैं वो जो जीव भजन ध्यान नहीं कर पाते हैं, जिनका काम पूरा नहीं हो पाता है, जिनकी आत्मा, परमात्मा तक नहीं पहुंच पाती है उनकी संभाल की भी जिम्मेदारी उनको (अपने जानशीं को) देकर जाते हैं। ये हमेशा रहा है। सब धार्मिक किताबों में ये मिलता है।
प्रभु की पावर (शक्ति) शरीर में ही आती है
बाबा उमाकान्त ने 3 जनवरी 2023 प्रातः उज्जैन आश्रम में बताया कि गुरु एक पावर शक्ति होती है। शरीर का नाम गुरु नहीं होता है। तो उस पावर शक्ति को लेने के लिए गुरु से प्रेम करना पड़ता है। इतिहास बता रहा है कि शरीर में ही पावर आती है। किसके? जो नाम दान देने की, जीवों के संभाल करने की जिम्मेदारी पाते हैं। प्रभु समरथ गुरु इनके शरीर में ही ताकत देते हैं। तो समझो शरीर से प्रेम करना पड़ता है। गुरु महाराज को देख कर छोटे-छोटे बच्चे उछल पड़ते थे, लोग कूदने लगते थे, आ गए, आ गए, आ गए, आप जो पुराने लोग हो जानते हो। तो किससे प्रेम होता था? उनके गुरु के शरीर से प्रेम होता था। फिर जब गुरु के बताए हुए रास्ते पर चले तब गुरु के अंदर उनकी आत्मा से प्रेम हुआ। तो प्रेम जरूरी होता है। जैसा कुटुंब से प्रेम है वैसा भी अगर गुरु से कर लो तो काम बन जायेगा।
नाम दान देना और महात्मा गिरी बहुत कठिन काम है
बाबा उमाकान्त ने 4 जनवरी 2023 दोपहर थाने मुंबई में बताया कि नाम दान देना कोई आसान काम नहीं, बहुत कठिन काम है। यह महात्मा गिरी बहुत कठिन है। शुरू में (मैं) इस चीज को नहीं समझता था। कहते हैं- ओखली में जब सिर पड़ जाए तो कितने मूसल पड़ेंगे, कोई भरोसा नहीं। खटाखट खटाखट पड़ता चला जाता है। कोई गिनता है कि कितना पड़ा? लेकिन गुरु के आदेश का पालन ही गुरु भक्ति कहलाती है। गुरु का आदेश चाहे रैन में हो, चाहे बैन में हो, चाहे सैन में हो, पालन करना चाहिए। जब गुरु महाराज शरीर छोड़कर चले गए फिर आदेश मिला कि अब नाम दान देना शुरू कर दो (तो कर दिया)।
वक्त गुरु की भक्ति करनी चाहिए
बाबा उमाकान्त ने 31 दिसम्बर 2022 दोपहर उज्जैन आश्रम में बताया कि गुरु जो वक्त के होते हैं, उनकी भक्ति करनी चाहिए। सन्त हमेशा इस धरती पर रहते हैं। प्रभु को तो इन बाहरी आंखों से देख नहीं सकते, इन बाहरी कानों से उनकी आवाज नहीं सुन सकते हो। वहां की आवाज इतनी तेज होती है कि अगर कान में पड़ जाए तो पर्दा फट जाएगा। कुछ लोग तो साधना में घबरा भी जाते हैं जब अचानक इतनी तेज आवाज आती है। इसीलिए धीरे-धीरे जब सहनशक्ति आती है तब वह आवाज सुनाई पड़ती है। कान में ऊँगली लगाते हैं, अंदर के कान से सुनते तो है लेकिन जब एकदम से आवाज आ गई तब घबरा कर उठ पड़ते हैं। ऐसा धीरे-धीरे होता है। इसलिए कहा गया, धीरे धीरे रे मना धीरे ही सब होय, माली सींचे पेड़ को ऋतु आए फल होय। समय आने पर फल लगता है। तो बगीचा सींचते रहो। थोड़ा-थोड़ा करते रहो, बैठते रहो। सहनशक्ति लाओ, बैठने की आदत डालो, शब्द को पकड़ो। अंदर के कान से वह सुनाई पड़ेगा। क्योंकि प्रभु स्वयं मनुष्य शरीर में आते नहीं हैं, अपनी शक्ति देकर के मनुष्य से ही काम कराते हैं इसीलिए ऐसे वक़्त के गुरु की भक्ति करनी चाहिए, खोजना चाहिए।