अधिक मास और श्रावण मास के 8 सप्ताह,18 साल बाद हो रही दुर्लभ खगोलीय घटना!
इस वर्ष श्रावण मास और पुरूषोत्तम मास एक साथ आ रहे हैं, जिससे हरिहर (विष्णु (=हरि) तथा शिव (=हर) का सम्मिलित रूप हरिहर कहलाता है।) की अपार ऊर्जा का निर्माण हो रहा है। हमें भगवान शिव की पूजा करने के लिए 8 सोमवार मिलेंगे जो एक दुर्लभ घटना है, आमतौर पर हमें सामान्य श्रावण माह में 4 सोमवार ही मिलते हैं।




डेस्क : इस वर्ष श्रावण मास और पुरूषोत्तम मास एक साथ आ रहे हैं, जिससे हरिहर (विष्णु (=हरि) तथा शिव (=हर) का सम्मिलित रूप हरिहर कहलाता है।) की अपार ऊर्जा का निर्माण हो रहा है। हमें भगवान शिव की पूजा करने के लिए 8 सोमवार मिलेंगे जो एक दुर्लभ घटना है, आमतौर पर हमें सामान्य श्रावण माह में 4 सोमवार ही मिलते हैं।
साथ ही लायंस गेट खुलने से ये ऊर्जा कई गुना बढ़ गयी!
प्रत्येक वर्ष सूर्य 4 जुलाई के करीब कर्क राशि में 14 डिग्री पर सीरियस के साथ युति करता है और इसका प्रभाव 8 अगस्त (08/08) को चरम पर पहुँच जाता है। यह वह समय है जब ऊर्जा का एक पवित्र प्रवेश द्वार सक्रिय होता है जिससे उच्च कंपन पृथ्वी तक पहुँचते हैं और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
राशि चक्र के अनुसार इस समय सूर्य सिंह राशि में प्रवेश करता है। सिंह को सूर्य की संतान के रूप में दर्शाया जाता है, जो गर्व, उद्देश्य की भावना, उदारता और एक स्थायी जुनून से भरा होता है, इसलिए इस समय को लायन गेट पोर्टल कहा जाता है।
आइए हम इन शक्तियों को समझें!
क्या है श्रावण मास?
हिंदू महीनों का नामकरण चंद्र कैलेंडर प्रणाली के आधार पर किया जाता है, जिसे "पूर्णिमंत" कैलेंडर के रूप में जाना जाता है। हिंदू कैलेंडर चंद्र-सौर प्रणाली का अनुसरण करता है, जिसका अर्थ है कि महीने चंद्रमा के चरणों के साथ-साथ सूर्य की स्थिति पर भी आधारित होते हैं।
इनका नाम विशेष माह में पड़ने वाले चंद्रमा के नक्षत्र के आधार पर रखा गया है, उदाहरण के लिए यदि चंद्रमा चित्रा नक्षत्र में है, तो इसे चैत्र माह कहा जाता है। जब चंद्रमा श्रवण नक्षत्र में आता है तो उसे श्रावण मास के नाम से जाना जाता है। यहां ध्यान देने वाली महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रत्येक माह में उस नक्षत्र की विशेषताएं होती हैं। और प्रत्येक नक्षत्र का एक इष्टदेव होता हैं।
श्रावण मास के दौरान परिवर्तन की ऊर्जाएं जाग्रत होती हैं। इस दौरान भगवान् शिव की पूजा करना अत्यंत शुभ होता है। भगवान् शिव सबसे बड़े परोपकारी हैं! वह अपने भक्तों को बिना ज्यादा प्रयास के सब कुछ दे देते हैं। वह सबसे दयालु हैं!
शिव समान दाता नहीं, विपत निवारण हार, लज्जा सबकी राखियो, ओ नंदी के असवार।
आइये जानते हैं रोचक तथ्य:
इस अवधि के दौरान लोग शिव की पूजा क्यों करते हैं:
हम शिव का अभिषेक क्यों करते हैं:
उपवास का आध्यात्मिक महत्व:

अधिक मास क्या है?
अधिक मास, जिसे पुरूषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता है, एक अतिरिक्त चंद्र माह है जो हिंदू कैलेंडर में लगभग तीन साल में एक बार आता है। नियमित महीनों के विपरीत, अधिक मास किसी विशिष्ट राशि के अनुरूप नहीं होता है और इसमें कोई विशिष्ट देवता निर्दिष्ट नहीं होते हैं।
इस महीने पर भगवान विष्णु का शासन है, इसलिए इसमें नारायण की ऊर्जा और कृपा है। इसे अत्यधिक आध्यात्मिक महत्व का समय माना जाता है, जो भक्तों को भक्ति, दान और आत्म-सुधार के कार्यों में संलग्न होने का अवसर प्रदान करता है।
असंक्रान्तिमासोअधिमासाः स्फुटः स्याद द्विसंक्रान्तिमासः क्ष्याख्यः कदाचित||
अर्थात जिस महीने में सूर्य संक्रांति नहीं होती वह अधिक मास कहलाता है और जिस महीने में दो संक्रांति होती है वह क्षयमास कहलाता है।