हम इंसान का जन्म देने के लिए ही हुआ है, जिसे हम परोपकार कहते हैं, चाहे आप कितना भी लोभ, मोह कर लो लेकिन आपको देना ही पड़ेगा.

We humans were born to give birth, which we call charity

हम इंसान का जन्म देने के लिए ही हुआ है, जिसे हम परोपकार कहते हैं, चाहे आप कितना भी लोभ, मोह कर लो लेकिन आपको देना ही पड़ेगा.
हम इंसान का जन्म देने के लिए ही हुआ है, जिसे हम परोपकार कहते हैं, चाहे आप कितना भी लोभ, मोह कर लो लेकिन आपको देना ही पड़ेगा.

NBL, 30/08/2022, Lokeshwer Prasad Verma,. We humans were born to give birth, which we call charity, no matter how much you covet, be tempted, but you will have to give.

आप ध्यान दीजिए आप कितना भी कंजूस प्रवित्ति के इंसान क्यु ना हो लेकिन आपको लेन देन करना ही पड़ेगा इस संसार में आप कुछ भी संचय करके परमानेंट नहीं रख सकते यही हम इंसान का स्वभाव है, जन्म ही हमारे देने के लिए हुआ है, पढ़े विस्तार से... आज लोग निजी स्वार्थ के साथ सबका साथ अपने  सुंदर स्वरूप को बिगाड़ लेते है, और साथ साथ अपना स्वभाव को भी बिगाड़ लेते है, और लोभ, मोह, कपट और जरूरत से ज्यादा क्रोध के भावना को पाल लेते हैं, जो हम इंसान के अधिकार क्षेत्र में नहीं है, लेकिन जबरदस्ती हम इंसान इस अवगुण को जीवन भर ढोते रहते हैं,जो हमारे शत्रु हैं, जो अपने को अन्य इंसानो से दूर करती है। 

आप अपने सुंदर स्वरूप स्वभाव मे एक गुण को पाल कर रखते है, जैसे ममता, दया दान व मानवीय जन हित कल्याण के भावना वाले शुभ धर्म को पालन करने से आपके चहु ओर खुशियाँ इक़ट्ठी होती है, और आपके इस सुंदर स्वभाव के कारण आप जन नायक कहलाते हैं, और आपके इस स्वभाव के कारण भय चिंता मोह माया व अत्यअधिक क्रोध आपके इर्द गिर्द भटकने से डरता है, और आप जनहित मित्र कहलाते है, और आपके साथ सभी प्रकार के इंसान जुड़ जाते हैं आपके इंसानियत को देखकर। और आपके तन मन ये कहती है मानव मात्र सब एक समान। 

व्यक्ति जब जन्म लेता है तो अपने साथ तीन चीजें लाता है, 1.संचित कर्म, 2.स्मृति और 3.जागृति। हां एक चौथी चीज भी है और वह है सूक्ष्म शरीर। ये कोरे कागज के समान होती है, और हम लोग अपने आगे के जीवन काल मे आगे बढ़ते हुए कर्म के स्याही से अच्छा या बुरा कर्म स्वभाव गुण लिख कर इस दुनिया को छोड़कर चले जाते है। जब आप अपने जीवन को ही दे दोगे वापस जंहा से आये थे उसी को तो बेफिजूल के अपने कर्म खराब क्यों करते हो सर्व शुभकारी योजनाओ मे काम क्यों नहीं करते सब आप उल्टे पुल्टे कर्म करके चले जाते हो, इस दुनिया छोड़कर, आपके बुरी आदत समाज व देश के लोगों को आघात पहुँचा जाती है, जो आपको अपना शत्रु मानकर जीवन भर कोसते रहते हैं, तो ऐसा जीवन जन्म किस काम का जो आपके मरने के बाद भी आपके बुरे कर्म आपके नाम व जन्म को नही छोड़ता, और अच्छे खासे सुंदर स्वरूप में जन्म लिया और बुरे इंसान बनकर चले गए कुरूप अवस्था व स्वभाव मे ढलकर। 

ये संस्कार मनुष्य के पूर्वजन्मों से ही नहीं आते, अपितु माता-पिता के संस्कार भी रज और वीर्य के माध्यम से उसमें (सूक्ष्म शरीर में) प्रविष्ट होते हैं, जिससे मनुष्य का व्यक्तित्व इन दोनों से ही प्रभावित होता है। बालक के गर्भधारण की परिस्थितियां भी इन पर प्रभाव डालती हैं। ये कर्म 'संस्कार' ही प्रत्येक जन्म में संगृहीत (एकत्र) होते चले जाते हैं, जिससे कर्मों (अच्छे-बुरे दोनों) का एक विशाल भंडार बनता जाता है। इसे 'संचित कर्म' कहते हैं।

आप इसे इस तरह समझें की आपमें और पशुओं में क्या खास फर्क है? आप कपड़े पहनते हैं और थोड़ा बहुत सोचते हैं लेकिन आपमें वहीं सारी प्रवृत्तियां हैं जो कि एक पशु में होती है। जैसे ईर्ष्या, क्रोध, काम, भूख, लालच, मद आदि सभी तरह की प्राथमिक प्रवृत्तियां। प्राणियों को प्राणी इसलिए कहते हैं कि वह प्राण के स्तर पर भी जीते और मर जाते हैं। उनमें मन ज्यादा सक्रिय नहीं रहता है। मनुष्य में मन ज्यादा सक्रिय रहता है इसलिए वे मन की भावना और विचारों में ही ज्यादा रमते हैं। वे मानसिक हैं। मन से उपर उठने से जाग्रति शुरू होती है। जाग्रति की प्रथम स्टेज बुद्धि और द्वितिय स्टेज विवेक और तृ‍तीय स्टेज आत्मावान होने में है। प्रार्थना और ध्यान से जागृति बढ़ती है।

मृतं शरीरमुत्सृज्य काष्टलोष्टसमं जना:।

मुहूर्तमिव रोदित्वा ततोयान्ति पराङ्मुखा:।।

तैस्तच्छरीमुत्सृष्टं धर्म एकोनुगच्छति।

तस्माद्धर्म: सहायश्च सेवितव्य: सदा नृभि:।।

इसका सरल और व्यावहारिक अर्थ यही है कि मृत्यु होने पर व्यक्ति के सगे-संबंधी भी उसकी मृत देह से कुछ समय में ही मोह या भावना छोड़ देते हैं और अंतिम संस्कार कर चले जाते हैं। किंतु इस समय भी मात्र धर्म ही ऐसा साथी होता है, जो उसके साथ जाता है।