Strawberry Farming: स्ट्रॉबेरी की खेती-कम लागत में होगी बंपर कमाई, जानें पूरी जानकारी....
Strawberry Farming: Strawberry farming - will earn bumper in low cost, know full details.... Strawberry Farming: स्ट्रॉबेरी की खेती-कम लागत में होगी बंपर कमाई, जानें पूरी जानकारी....
Strawberry Farming :
नया भारत डेस्क : स्ट्रॉबेरी (Strawberry) अपनी एक अलग ही रंग और विशेष स्वाद के लिए पहचानी जाती हैं। इसके फल बङे लुभावने, रसीले एवं पौष्टिक होते हैं। इसका पौधा छोटा, कोमल तथा बहुवर्षीय होता हैं। बिहार के किसान पारंपरिक फसलों की खेती के साथ साथ बागवानी फसलों की खेती भी कर सकते हैं। इससे उन्हें अच्छा मुनाफा हो सकता है। बागवानी फसलों की सबसे बड़ी खासियत ये हैं कि इनका बाजार में दाम अच्छा मिलता है। एक बार यदि सही तरीके से इसकी खेती पर ध्यान दिया जाए तो कई सालों तक इससे लाभ कमाया जा सकता है। आम, अनार, केला, नाशपाती सहित स्ट्राबैरी की खेती किसानों के लिए काफी लाभकारी साबित हो रही है। इसके अलावा बागवानी फसलों की खेती के लिए बिहार सरकार द्वारा सहायता भी दी जाती है। जिससे किसानों को ज्यादा लाभ होता है। इसी कड़ी में स्ट्राबैरी की खेती किसानों के लिए काफी लाभकारी साबित हो सकती है। इस फल के दाम बाजार मेें अच्छे मिल जाते हैं। यदि सही तरीके से इसकी खेती की जाए तो इससे काफी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। आज हम आपको स्ट्राबैरी की आधुनिक पद्धिति से की जाने वाली खेती की जानकारी दे रहे हैं ताकि आप बिना नुकसान के इससे अच्छा लाभ प्राप्त कर सकें। (Strawberry Farming)
क्या है स्ट्रॉबेरी :
स्ट्रॉबेरी फ्ऱागार्या जाति का एक पेड़ होता है। इस फल की खेती पूरे विश्व में की जाती है। इसके फल को भी इसी नाम से जाना जाता है। ये चटक लाल रंग की होती है। इसे ताजा फल के रूप में खाया जाता है। इसके अलावा इसका प्रयोग जैम, रस, पाइ, आइसक्रीम, मिल्क-शेक आदि बनाने में किया जाता है। स्ट्रॉबेरी में कई आवश्यक पोषक तत्व पाए जाते हैं जो हमारी सेहत के लिए जरूरी होते हैं। स्ट्रॉबेरी की बढ़ती कीमत और मांग के कारण किसानों की रूचि स्ट्रॉबेरी की खेती की ओर होने लगी है। (Strawberry Farming)
स्ट्रॉबेरी में पाए जाने वाले पोषक तत्व/स्ट्रॉबेरी खाने से लाभ :
स्ट्रॉबेरी एंटीऑक्सिडेंट, विटामिन सी, विटामिन-बी 1, बी 2, नियासिन, प्रोटीन और खनिजों का एक अच्छा प्राकृतिक स्रोत है। इसमें मिनरल्स भरपूर मात्रा में होते हैं। स्ट्रॉबेरी में विटामिन सी, एंटीऑक्सीडेंट, एंटीइंफ्लेमेटरी, फोलेट, मैग्नीशियम और पोटैशियम जैसे पोषक तत्व भरपूर रूप से होते हैं, जो शरीर की कई समस्याओं को दूर करने में लाभकारी हैं। यह वजन कम करने से लेकर कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से बचाव करने में मददगार होता है। लेकिन याद रहे इसका अधिक प्रयोग कई प्रकार से शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए इसका सेवन सीमित मात्रा में ही करना चाहिए। (Strawberry Farming)
खेत और पॉलीहाउस दोनों जगह की जा सकती है स्ट्रॉबेरी की खेती
स्ट्रॉबेरी को विभिन्न प्रकार की भूमि तथा जलवायु में उगाया जा सकता है। यह पॉलीहाउस के अंदर और खुले खेत दोनों जगह उगाया जा सकता है। इसका पौधा कुछ ही महीनों में फल देना शुरू कर देता है। इस फल का उत्पादन कई लोगों को रोजगार दे सकता है। स्ट्रॉबेरी दूसरे फलों के मुकाबले जल्दी आमदनी देने वाला फल है। यह कम लागत में अच्छी-खासी आय दे सकता है। (Strawberry Farming)
बिहार में कहां-कहां होती है स्ट्रॉबेरी की खेती :
आमतौर पर स्ट्रॉबेरी की खेती भारत के ठंडे इलाकों में की जाती है।लेकिन अब बिहार जैसे प्रदेशों में भी स्ट्रॉबेरी की खेती खूब हो रही है। बिहार का औरंगाबाद
जिला तो इसका हब बन गया है। यहां के चिन्हकी बिगहा गांव के किसान स्ट्रॉबेरी की खेती कर कम जमीन से लाखों की आमदनी ले रहे हैं। इसके अलावा भागलपुर, बांका और गया जिले के किसान भी स्ट्रॉबेरी की खेती को अपना रहे हैं। बता दें कि स्ट्रॉबेरी की खेती भारत में नैनीताल, देहरादून, हिमाचल प्रदेश, महाबलेश्वर, महाराष्ट्र, नीलगिरी, दार्जिलिंग आदि जगहों पर व्यावसायिक खेती के तौर पर की जाती है। (Strawberry Farming)
स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए सरकार से कितना मिलता है अनुदान :
स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए बिहार सरकार की ओर से किसानों को सब्सिडी या अनुदान दिया जाता है। ये अनुदान बिहार राज्य बागवानी मिशन और कृषि विभाग की ओर से यंत्र खरीदने के लिए 40 से 50 प्रतिशत तक सब्सिडी का लाभ किसानों को प्रदान किया जाता है। जिसमे प्लास्टिक मल्चिंग और ड्रिप इरीगेशन फव्वारा सिंचाई आदि यंत्र की खरीद के लिए अनुदान दिया जाता है। इस संबंध में आप अपने जिले के उद्यानिकी अथवा कृषि विभाग से जानकारी ले सकते हैं। (Strawberry Farming)

स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए जलवायु और भूमि :
यह फसल शीतोष्ण जलवायु वाली फसल है जिसके लिए 20 से 30 डिग्री तापमान उपयुक्त रहता है। तापमान बढऩे पर पौधों में नुकसान होता है और उपज प्रभावित हो जाती है। अब बात करें इसकी खेती के लिए मिट्टी की तो इसकी खेती विभिन्न प्रकार की भूमि में की जा सकती है। लेकिन रेतीली-दोमट भूमि जिसमें जल निकास की अच्छी व्यवस्था हो, इसके लिए सबसे अच्छी रहती है। मिट्टी पीएच मान 5 से 6.5 तक मान के बीच होना चाहिए। इसके अलावा बलुई दोमट और लाल मिट्टी भी स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए अच्छी मानी जाती है, क्योंकि इस मिट्टी में स्ट्रॉबेरी की अधिक पैदावार और फल में मिठास आती है। (Strawberry Farming)
स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाने का उचित समय :
स्ट्राबेरी के पौधों की रोपाई 10 सितंबर से 10 अक्टूबर तक की जा सकती है। रोपाई के समय अधिक तापमान होने पर पौधों को कुछ समय बाद यानि 20 सितंबर तक रोपाई का काम शुरू किया जा सकता है। (Strawberry Farming)
स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए उन्नत किस्में :
भारत में स्ट्राबेरी की बहुत सी किस्में का उत्पादन किया जाता है जिसमें कमारोसा, चांडलर, ओफ्रा, फेस्टिवल ब्लैक मोर, स्वीड चार्ली, एलिस्ता और फेयर फॉक्स आदि किस्मों की खेती की जाती है। इन सभी किस्मों की बुवाई सितंबर से अक्टूबर महीने में की जा सकता है। (Strawberry Farming)
स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए कैसे करें बेड़ तैयार :
स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए सबसे पहले बेड़ तैयार करें। इसके लिए खेत में आवश्यक खाद उर्वरक देने के बाद बेड बनाने के लिए बेड़ की चौड़ाई 2.5- 3 फिट रखनी चाहिए। वहीं बेड से बेड की दूरी डेढ़ फिट रखी जाती है। बेड़ तैयार होने के बाद उस पर टपक सिंचाई की पाइप लाइन बिछा दें। पौधे लगाने के लिए प्लास्टिक मल्चिंग में 20 से 30 सेमी की दूरी पर छेद करें। (Strawberry Farming)
क्या है प्लास्टिक मल्चिंग विधि :
जब खेत में लगाए गए पौधों की जमीन को चारों तरफ से क्वालिटी प्लास्टिक फिल्म द्वारा अच्छी तरह ढक दिया जाता है, तो इस विधि को प्लास्टिक मल्चिंग कहा जाता है। इस तरह पौधों की सुरक्षा होती है और फसल उत्पादन भी बढ़ता है।
प्लास्टिक मल्चिंग विधि में पौधे लगाने का तरीका :
प्लास्टिक मल्चिंग विधि के तहत स्ट्रॉबेरी के पौधे लागते समय पौधे से पौधे की दूरी 45 सेमी रखनी चाहिए। वहीं बेड से बेड की दूरी 1.5 रखें। इस तरह प्रति एकड़ खेत में करीब 17 से 20 हजार पौधे लगाए जा सकते हैं। प्लास्टिक मल्चिंग विधि के तहत स्ट्रॉबेरी का उत्पादन करने पर प्राकृतिक आपदा का प्रकोप कम होता है, फसल सुरक्षित रहती है। (Strawberry Farming)
स्ट्रॉबेरी के लिए खाद और उर्वरक प्रयोग :
स्ट्रॉबेरी का पौधा काफी नाजुक होता है। इसलिए इसे समय-समय खाद और उर्वरक देना आवश्यक होता है जिसका प्रयोग आपको खेत की मिट्टी की परीक्षण रिपोर्ट को देखकर करना चाहिए। हालांकि साधारण रेतीली भूमि में 10 से 15 टन सड़ी गोबर की खाद प्रति एकड़ की दर से भूमि तैयारी के समय बिखेर कर मिट्टी में मिला दी जाती है। (Strawberry Farming)
स्ट्रॉबेरी की सिंचाई :
इस पौधे के लिए उत्तम गुणवत्ता (नमक रहित) का पानी सिंचाई के लिए प्रयोग में लिया जाना चाहिए। पौधों को लगाने के तरंत बाद सिंचाई करनी चाहिए। यदि टपक सिंचाई पद्धिति का उपयोग किया जाए तो पानी की बचत के साथ ही पौधे निर्धारित मात्र में पानी मिल सकेगा। (Strawberry Farming)
स्ट्रॉबेरी की फसल को पाले से को बचाना है जरूरी :
यदि आप स्ट्रॉबेरी की खेती पॉली हाउस में कर रहे हैं तो पाले का इस पर कोई असर नहीं होगा। यदि आप इसकी खती खुले खेत में कर रहे तो इसे पाले से बचाना बेहद जरूरी है, क्योंकि पाला इसकी फसल को खराब कर सकता है। पाले से स्ट्रॉबेरी की फसल बचाने के लिए आप प्लास्टिक लो टनल का उपयोग कर सकते हैं। इसमें आप पारदर्शी प्लास्टिक का उपयोग करें जो 100 से 200 माइक्रोन की हो। इससे टनल का रूप देकर पौधों के ऊपर ढंक दें। इससे आपकी स्ट्रॉबेरी की फसल पाले से सुरक्षित रहेगी। (Strawberry Farming)
स्ट्रॉबेरी की तुड़ाई :
जब फल का रंग 70 प्रतिशत पक हो जाए तो इसे तोड़ लेना चाहिए। यदि बाजार दूरी पर है तब थोड़ा सख्त अवस्था में ही तोड़ लेना चाहिए। इसकी तुड़ाई अलग-अलग दिनों में करें। तुड़ाई के समय स्ट्रॉबेरी के फल को नहीं पकड़े, ऊपर से डंडी पकड़ें जिससे फल को नुकसान नहीं पहुंचेगा और फल की तुड़ाई का काम भी आसान होगा। (Strawberry Farming)
एक एकड़ जमीन में लगते हैं 27-28 हजार पौधे :
एक एकड़ में 27 से 28 हजार पौधे लगते हैं। इसमें कुछ पौधे खराब भी हो जाते हैं। रोजाना हल्की सिंचाई और खाद की जरूरत होती है। प्रति एकड़ करीब 90 से 100 क्विंटल उत्पादन होता है। जैविक विधि से खेती करने पर स्ट्राबेरी फल अधिक दिनों तक सुरक्षित रहता है। साथ ही पौधे भी अधिक दिनों तक बेहतर रहते हैं। सितंबर-अक्टूबर में पौधे लगाए जाते हैं। दिसंबर से अप्रैल तक उत्पादन होता है। (Strawberry Farming)
कैसे करें स्ट्राबेरी की पैकिंग :
स्ट्रॉबेरी का फल बहुत ही नाजुक होता है। इसलिए इसकी पैकिंग का काम काफी सावधानी से किया जाना चाहिए। इसकी पैकिंग प्लास्टिक की प्लेटों में करनी चाहिए। इसे हवादार जगह पर रखना चाहिए जहां तापमान पांच डिग्री हो। वहीं इस बात का ध्यान रखें कि एक दिन बाद तापमान जीरो डिग्री होना चाहिए। इसके लिए कोल्ड स्टोरेज का उपयोग किया जा सकता है।
स्ट्रॉबेरी से कितनी हो सकती है कमाई या लाभ :
अब बात करें इसकी खेती से किसाना उत्पादन मिल सकता है तो बता दें कि इसका उत्पादन पौधे की उत्पादन क्षमता, वातावरण, खाद और भूमि की फलद्रुपता पर निर्भर करती है। स्ट्रॉबेरी को खेत में लगाए जाने के करीब डेढ़ महीने बाद फल लगना शुरू हो जाता है। इसलिए अगले चार महीनों तक बंपर फलों का उत्पादन किया जा सकता है। यदि एक एकड़ खेत में 22 हजार स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाए जाएं तो प्रतिदिन 5 से 6 किलोग्राम फल प्राप्त किए जा सकते हैं। यदि एक एकड़ में इसके पौधे लगाए जाएं तो तो प्रत्येक पौधे से 500 से 700 ग्राम उपज प्राप्त की जा सकती है। आमतौर पर एक एकड़ में स्ट्रॉबेरी की फसल में करीब 2-3 लाख रुपए की लागत आती है। पैदावार होने के बाद खर्च निकालकर 5-6 लाख का मुनाफा हो जाता है। इस तरह एक सीजन में 80 से 100 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है जिससे करीब 6 लाख से 12 लाख रुपए की कमाई की जा सकती है। वहीं इसकी खेती यदि पांच एकड़ में की जाए तो इससे करीब 35 से 60 लाख रुपए की कमाई की जा सकती है। इस तरह स्ट्रॉबेरी की खेती किसानों के लिए अच्छी कमाई करने वाली लाभकारी खेती साबित हो सकती है। (Strawberry Farming)
स्ट्रॉबेरी की खेती में ध्यान रखने वाली खास बातें :
- साधारणत: स्ट्रॉबेरी की बुवाई सितंबर और अक्टूबर में की जाती है. लेकिन ठंडी जगहों पर इसे फरवरी और मार्च में भी बोया जा सकता है. वहीं पॉली हाउस में या संरक्षित विधि से खेती करने वाले किसान अन्य महीनों में भी बुवाई कर सकते हैं.
- स्ट्रॉबेरी की बुवाई से पहले की तैयारी बहुत जरूरी है. खेत की मिट्टी पर विशेष काम करना पड़ा है. इसके लिए आप उद्यानिकी विभाग या कृषि विभाग से संपर्क कर जानकारी प्राप्त सकते हैं.
- स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए बेड जमीन से 15 सेंटीमीटर ऊंचा बनाया जाता है. इन्हीं क्यारियों पर स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाए जाते हैं.
- पौधे से पौधे की दूरी और कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर रखनी चाहिए यानि 1 कतार में इसके करीब 30 पौधे लगाए जा सकते हैं.
- रोपाई के बाद इस बात का ध्यान रखें कि पौधों पर फूल आने पर मल्चिंग जरूर करें. मल्चिंग काले रंग की 50 माइक्रोन मोटाई वाली पॉलीथीन से करनी चाहिए. इससे खरपतवार पर नियंत्रण होता है और फल सडऩे से बच जाते हैं. मल्चिंग करने से पैदावार बढ़ोतरी होती है और मिट्टी में नमी ज्यादा समय तक बनी रहती है.
- पहाड़ी इलाकों में बरसात होने पर स्ट्रॉबेरी के पौधों को पॉलीथीन से ढकने की सलाह दी जाती है. इससे फलों के गलने की समस्या नहीं होती है.
- स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाने के बाद सिंचाई के लिए ड्रिप या स्प्रिकंलर का प्रयोग करना चाहिए. इससे पानी की बचत होती है और उत्पादन में भी बढ़ोतरी होती है.
- स्ट्रॉबेरी से अच्छी पैदावार हासिल करने के लिए खाद बहुत जरूरी है. आप मिट्टी और स्ट्रॉबेरी की किस्म के आधार पर खाद दे सकते हैं. इसके लिए कृषि वैज्ञानिक से सलाह जरूर ले लेनी चाहिए.
- स्ट्रॉबेरी के फल की तुड़ाई करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए, जब फल का रंग आधे से अधिक लाल हो जाए तब ही इसकी तुड़ाई कर लेनी चाहिए. इसके लिए मार्केट की दूरी का ध्यान भी रखना चाहिए. इसके लिए आप अलग-अलग दिन इसकी तुड़ाई कर सकते हैं. (Strawberry Farming)
Sandeep Kumar
