समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 'नई हवा है...नई सपा है..' के नारे के साथ पार्टी का प्रदेश में माहौल तो बनाया लेकिन सरकार बनाने के लक्ष्य से चूक गए।
Samajwadi Party President Akhilesh Yadav created an atmosphere of the party in the state with the slogan 'Nai Hawa Hai... Nai SP Hai...' but missed the target of forming the government.




NBL, 11/03/2022, Lokeshwer Prasad Verma,.. लखनऊ : समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 'नई हवा है...नई सपा है...' के नारे के साथ पार्टी का प्रदेश में माहौल तो बनाया लेकिन सरकार बनाने के लक्ष्य से चूक गए, पढ़े विस्तार से...।Lucknow:Samajwadi Party President Akhilesh Yadav created an atmosphere of the party in the state with the slogan 'Nai Hawa Hai... Nai SP Hai...' but missed the target of forming the government.
कई लोक लुभावन वादों के बावजूद सपा जनता का भरोसा जीत नहीं पाई। हालांकि वोट प्रतिशत के लिहाज से सपा का यह अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन है। वर्ष 2012 में जब उसकी पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी तब भी उसे 29.13 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि इस बार 31.5 प्रतिशत से अधिक मत मिले हैं।
पिछले चुनाव यानी 2017 से तुलना की जाए तो भी सपा को करीब 10 प्रतिशत अधिक वोट मिला है। उसकी सीटें भी करीब ढाई गुना अधिक आने की उम्मीद है, किंतु भाजपा के वोटों की आंधी ने उसके सरकार बनाने के सपने चकनाचूर कर दिए। सपा को एक बार फिर विपक्ष में ही बैठना पड़ेगा।
अखिलेश यादव ने सपा के मजबूत वोट बैंक यादव-मुस्लिम में दूसरे मतों को जोड़ने के लिए अति पिछड़ों व अनुसूचित जाति में सेंध लगाने के लिए तमाम प्रयास किए। इसके लिए पिछड़ी जातियों व दलित बिरादरी के कई नेताओं को अपने पाले में भी किया। साथ ही सपा अध्यक्ष ने देवी-देवताओं के मंदिरों में जाकर साफ्ट हिंदुत्व कार्ड भी खेला। हिंदू-मुस्लिम मतों का ध्रुवीकरण न हो जाए इसलिए टिकट वितरण में भी बहुत सावधानी बरती।
धर्म व जाति के खांचों में बंटी प्रदेश की राजनीति के चौसर में सपा ने अपने हिसाब से गोटियां सेट कीं। अखिलेश ने टिकट वितरण में सपा पर परिवारवाद का आरोप न लगे इसका भी ख्याल रखा। इसी का नतीजा है कि सपा ने अपने वोट बैंक में तो इजाफा कर लिया, लेकिन सरकार बनाने के लिए जरूरी संख्या नहीं जुटा पाई।
सपा ने अपने घोषणा पत्र में भी सभी वर्गों का ध्यान रखा। 300 यूनिट मुफ्त बिजली, पुरानी पेंशन बहाली जैसे वादों की खूब चर्चा भी हुई। बेरोजगारी, महंगाई और छुट्टा जानवरों की समस्याओं को उठाने के बावजूद अखिलेश आम जनता का भरोसा जीतने में कामयाब नहीं रहे। अखिलेश की चुनावी जनसभाओं और रैलियों में भी खूब भीड़ जुटी। उन्होंने भाजपा और सीएम योगी पर निशाना साधने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। अखिलेश ने पूरे आत्मविश्वास के साथ 300 से अधिक सीटें आने का कई बार दावा भी किया, किंतु भाजपा के चुनावी बिसात के आगे उनके दावे फुस्स हो गए।
रोजगार के वादे पर भी नहीं जीत पाए भरोसा : अखिलेश ने चुनाव में रोजगार के मुद्दे को जोरशोर से उठाया था। उन्हें उम्मीद थी कि इससे युवाओं का साथ मिलेगा। किंतु पार्टी के लिए यह दांव भी खाली रहा। माना जा रहा है कि अखिलेश की वर्ष 2012 से 2017 की सरकार में कई भर्तियां अदालतों में फंस गईं थीं, इसलिए युवाओं के एक बड़े तबके ने उन पर विश्वास नहीं किया।
कहां चूके अखिलेश यादव...
चुनाव के ऐन मौके पर दूसरी पार्टियों के पिछड़ी जाति के नेताओं को शामिल कराना। अपने नेताओं की अनदेखी कर बाहर से आए नेताओं को टिकट देना।
पार्टी के वरिष्ठ समाजवादी नेताओं को हाशिए पर रखना। संगठन की मजबूत समझ रखने वाले शिवपाल यादव का ठीक से इस्तेमाल न करना।
दागी व बाहुबली प्रत्याशियों को मैदान में उतारना।पार्टी के कार्यकर्ताओं से सीधा जुड़ाव न होना।सरकार जाने के बाद संगठन पर ध्यान न देना-पांच साल प्रदेश कार्यकारिणी व अन्य संगठनों का भंग रहना।चुनावी सभा में भारी पड़ा जिन्ना का नाम लेना।