आज भारत में सामाजिक व धार्मिक समरसता और भाईचारा बढ़ाने के लिए सहिष्णुता की अवधारणा का होना आवश्यक है, इससे देश का मान बढ़ेगा।

Today, to increase social and religious harmony and brotherhood in India,..

आज भारत में सामाजिक व धार्मिक समरसता और भाईचारा बढ़ाने के लिए सहिष्णुता की अवधारणा का होना आवश्यक है, इससे देश का मान बढ़ेगा।
आज भारत में सामाजिक व धार्मिक समरसता और भाईचारा बढ़ाने के लिए सहिष्णुता की अवधारणा का होना आवश्यक है, इससे देश का मान बढ़ेगा।

NBL, 10/04/2022, Lokeshwer Prasad Verma, Raipur CG: Today, to increase social and religious harmony and brotherhood in India, it is necessary to have the concept of tolerance, this will increase the value of the country.

पिछले कुछ वर्षों से भारत में टॉलरेंस और इनटॉलेरेंस का विषय चर्चा में रहा हैं. आज के लेख में हम जानेगे कि सहिष्णुता क्या है अर्थ मीनिंग परिभाषा तथा इसके महत्व को संक्षिप्त में समझने की कोशिश करेगे.
 सहिष्णुता का शाब्दिक अर्थ सहन करना होता है अपने से भिन्न व्यवहारों और मतों को भी सहन करने की योग्यता सहिष्णुता है. सहिष्णुता में सहअस्तित्व का भाव विद्यमान होता हैं. सकारात्मक अर्थ में सहिष्णुता काआशय है उन विचारों, मतों या धर्मों आदि के अस्तित्व को भी स्वीकार करना तथा उनका सम्मान करना चाहे उसके विचार/मत/धर्म आपसे भिन्न हो.

नकारात्मक अर्थ में सहिष्णुता का अर्थ केवल विरोधियों को सहन करने की क्षमता से हैं. वर्तमान में इसका सकारात्मक अर्थ प्रयोग में आता है जिसका आशय है अपने विरोधियों के विचारों का सम्मान करना. उन्हें सुनने ओर समझने की ताकत रखना ओर यदि उनका पक्ष तार्किक और सही है तो उसे स्वीकार करना.

सामाजिक समरसता और भाईचारे को बढ़ाने के लिए सहिष्णुता की अवधारणा का होना आवश्यक हैं. बुद्ध के पंचशील सिद्धांतों और नेहरू की पंचशील में सहिष्णुता की अवधारणा को ही प्रस्तुत किया गया हैं. सहिष्णुता का महत्वपूर्ण आधार लोकतांत्रिक दृष्टिकोण हैं.

लोकतंत्र में विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं एवं उनकी मान्यताओं के मध्य विवाद होता है. लेकिन इन व्यवहारों के शांतिपूर्ण ढंग से समाधान की बात लोकतंत्र करता है. अगर सामाजिक धार्मिक सन्दर्भ में भी विवादों और समस्याओं का लोकतांत्रिक ढंग से हल निकाला जाए तो फिर सामाजिक वैमनस्यता, लिंगभेद, जाति भेद, धार्मिक कट्टरता और साम्प्रदायिकता का हल खोजा जा सकता हैं इसके लिए सहिष्णुता का होना आवश्यक हैं.

 मध्यकाल तक सहिष्णुता का क्षेत्र धर्म तक सीमित था. अतः धार्मिक संघर्ष से बचने के लिए धार्मिक सहिष्णुता केंद्र में थी. सहिष्णुता का प्रमुख सन्दर्भ धार्मिक सहिष्णुता से हैं विशेषकर भारत के सन्दर्भ में जहाँ अनेक धर्मों का अस्तित्व है वहां इसकी विशेष आवश्यकता हैं.

सहिष्णुता का प्रमुख संदर्भ धार्मिक सहिष्णुता से हैं. विशेषकर भारत के सन्दर्भ में जहाँ अनेकधर्मों का अस्तित्व है वहां इसकी विशेष आवश्यकता हैं. भारत की पंथनिरपेक्षता की अवधारणा में विभिन्न धर्म, विचार और संस्कृतियों के प्रति सहिष्णुता के स्थान पर धार्मिक संदर्भ में सर्वध समभाव की अवधारणा को प्रसारित किया जिसमें विभिन्न धर्मों के सहअस्तित्व के साथ साथ सहभागिता का भाव विद्यमा हैं.

 सहिष्णुता के लाभ.. 

 विरोधी विचारों को सुनने की ताकत हो तो समाज और राजनीति दोनों ही लोकतांत्रिक बनते हैं.

कई बार दूसरों को सुनने के धैर्य के कारण दूसरों से मौलिक विचार मिल जाते हैं जो व्यक्ति की दिशा बदल सकते हैं.

सहिष्णुता से कुल मिलाकर नैतिक प्रगति होती है. अगर मैं दूसरों के प्रति सहिष्णु व्यवहार करता हूँ तो धीरे धीरे दूसरों को भी प्रेरणा मिलती है कि औरों के प्रति सहिष्णु व्यवहार करें. इससे चिंतन और अभिव्यक्त की क्षमता विकसित होती हैं.

20 वीं शताब्दी में आतंकवाद और जनसंहार जैसी जितनी भी घटनाएं घटित हुई हैं उसका कारण असहिष्णुता ही हैं. यदि सभी में सहिष्णुता की मात्रा अधिक होती है तो उन्हें रोका जा सकता हैं.

भूमंडलीकरण के साथ साथ सभी समाजों में विषमरूपता और विविधता में वृद्धि हो रही है, लगभग सभी समाजों में धर्म, नस्ल समूह और राष्ट्रीयताओं के समूह साथ साथ रहते हैं. इसलिए इसमें शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के लिए सहिष्णुता आवश्यक हैं.

भारत अनेक प्रकार के समाज और अनेक प्रकार के धर्मों से अच्छादित है, जैसे बाग बगीचों मे नाना प्रकार के फल व फूल रहते हैं और जिसको जैसा चाहिए वैसे फल व फूल का उपयोग करते हैं, लेकिन फल व फूल आपस मे नही लड़ते- झगड़ते, लेकिन हम मनुष्य बुद्धिमान होते हुए भी आपस मे लड़ते व झगड़ते है, की मेरा धर्म ऐसा है मेरा धर्म मे ये लिखा है लेकिन सर्व धर्मो के लोगों के लिए ईश्वर ने क्यो अलग से धर्म के अनुसार फल व फूल नही बनाये तो कौन सा धर्म की बात करते हो, और आपस मे क्यो लड़ते झगड़ते हो क्यो विवाद खड़े करते हो,सहिष्णुता क्यो नहीं बनाये रखते क्यो किसी के भड़कावे व बहकावे मे आ जाते हो।