गीता उपदेश मानव जाति के लिए सूर्य के समान है जो अज्ञान रूपी अंधकार से मुक्ति दिलाता है। मानवजाति के लिए गीता के 15 उपदेशों की उपयोगिता पढ़े जरूर.
The teaching of the Gita is like the sun for mankind,




NBL, 17/05/2022, Lokeshwer Prasad Verma,. The teaching of the Gita is like the sun for mankind, which delivers freedom from the darkness of ignorance. Must read the usefulness of 15 teachings of Gita for mankind.
गीता उपदेश मानव जाति के लिए सूर्य के समान है जो अज्ञान रूपी अंधकार से मुक्ति दिलाता है। मानवजाति के लिए गीता के उपदेशों की उपयोगिता और सार्थकता सदा बनी रहेगी, पढ़े विस्तार से...
ये Geeta Updesh वो परम सत्य हैं, जिसे अपनाकर हर व्यक्ति दुख-क्लेश मुक्त होकर सफल-सुखद जीवन जी सकता है। इस लेख में गीता की 15 ऐसी बातें बताई गयी हैं, जिसके ज्ञान की हर व्यक्ति को जरूरत पड़ती है। मनुष्य का संघर्ष जितना बाहरी होता है, उतना ही आंतरिक भी चलता रहता है। सोच और कर्म का संतुलन ही सफल जीवन का मंत्र है। सही-गलत और उचित निर्णय की दुविधा में फंसे व्यक्ति को गीता के इन उपदेश से मानसिक संबल और धैर्य मिलता है।
1) विश्वास की ताकत...
तुम अपने विश्वासों की उपज हो। तुम जिस चीज में विश्वास करते हो, तुम वही बन जाते हो। जो स्वयं पर विश्वास करते हुए लक्ष्य की ओर बढ़ते रहते हैं, उन्हे सफलता जरूर मिलती है। अगर व्यक्ति अपने लक्ष्य के लिए कर्म में पूरे मन से लग जाता है और उसे कर्म करने से खुशी मिलती है तो सफलता उससे दूर नहीं।
2) मृत्यु से भय व्यर्थ है...
हर व्यक्ति के मन में मृत्यु का भय होता है। इस संसार का जब से निर्माण हुआ है, तब से जन्म-मृत्यु का चक्र चलता आ रहा है। यह प्रकृति का नियम है। इस सत्य को स्वीकार करके भयमुक्त होकर आज में जीना चाहिए। किसी को भी आने वाले पल के बारे में कुछ नहीं पता होता लेकिन इस संशय में भयभीत रहने से जीवन नहीं जिया जा सकता।
3) कर्म सबसे ऊपर आता है....
श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि व्यक्ति कर्म करने के लिए ही पैदा हुआ है और बिना कर्म किये कोई नहीं रह सकता। फल की चिंता करना व्यर्थ है क्योंकि इससे मनुष्य का मन काम से भटकने लगता है। किसी कर्म से सफलता नहीं मिलती तो क्या हुआ, असफलता भी ज्ञान के द्वार खोलती है।
अगर बिना फल की चिंता किये कर्म करते रहोगे तो सफलता और मन की शांति जीवन भर तुम्हारा साथ नहीं छोड़ेगी। जो कर्मफल से विरक्त होकर कर्म करता जाता है, उसका आध्यात्मिक ज्ञान बढ़ता जाता है।
4) हमेशा स्वार्थी होना गलत है....
जो व्यक्ति हमेशा स्वार्थ प्रेरित होकर फल की चिंता करते हुए कर्म करते हैं और सिर्फ फल ही उन्हे कर्म करने को प्रेरित करता है, ऐसे लोग दुखी और बेचैन रहते हैं क्योंकि उनका दिमाग हमेशा इसी उलझन में फंसा रहता है कि उन्हे क्या फल मिलेगा। स्वार्थी व्यक्ति सुखी नहीं रह पाता और ऐसे व्यक्ति से कोई भी संबंध नहीं बनाना चाहता। इसलिए स्वार्थ से ऊपर उठें और दूसरों का हित भी सोचें।
5) क्रोध से सबका नुकसान होता है....
क्रोध या गुस्सा करना व्यक्ति के दिमाग में उथल-पुथल पैदा कर देता है। आवेश में विवेकहीन होकर कई बार व्यक्ति अपना ही नुकसान कर बैठता है, या फिर अपनी ही मानसिक शांति को भंग करके खुद को कष्ट देता है। क्रोध की अग्नि में बुद्धि और तर्क नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति बिना विचार किए बस अपने अहम (Ego) की तुष्टि करने वाले काम करता है। गुस्सा व्यक्ति की विचार शक्ति को पंगु बना देता है और भ्रम पैदा करता है।
6) मन पर कंट्रोल जरूरी क्यों है....
मन का स्वभाव है कि ये आसानी से भटक जाता है। अगर जीवन को सफलता की दिशा में ले जाना है तो मन को काबू करना बहुत जरूरी है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि बार-बार प्रयास करने से धीरे-धीरे चंचल मन को वश में किया जा सकता है। मन को वश में करने से दिमाग की शक्ति केंद्रित होती है जिससे कार्यों में सफलता मिलने लगती है। अगर मन को वश में नहीं करोगे तो ये आपका सबसे बड़ा शत्रु बन जाता है।
7) भगवानों में कोई छोटा-बड़ा नहीं....
इस संसार में ईश्वर कई रूपों में जाना जाता है। इनमें से कोई भी रूप बड़ा-छोटा नहीं है, परमात्मा का हर रूप समान है। जैसे हर नदी अंत में सागर में जाकर मिलती है, वैसे ही हर धर्म, मत और संप्रदाय की धारायें परमात्मा रूपी समुद्र में समा जाती हैं। यह संसार परमपिता का ही स्वरूप है, वो हर कण में विद्यमान है।
8) कर्तव्य पालन जरूरी है ...
भगवान श्रीकृष्ण उपदेश देते हैं कि हर व्यक्ति को अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए। यही धर्म है। अगर अपने कर्तव्य का पालन नहीं किया जाता है तो मन में अशान्ति और दुख प्राप्त होता है। अपनी पसंद-नापसंद, मोह-बैर को किनारे रखकर अपना कर्तव्य करो। किसी अन्य व्यक्ति का कर्म आपको कितना भी आकर्षित करे, उसके प्रलोभन में न आयें। कष्ट में रहते हुए भी अपना कर्म करना दूसरे की नकल करने से श्रेष्ठ है।
अपने कर्म और कर्तव्य का पालन ही जीवन का सही मार्ग है क्योंकि कर्म करना अकर्मण्यता से हमेशा बेहतर है। कर्तव्य में दोष देखकर पीछे न हटें क्योंकि हर कर्म में कोई न कोई छोटा-बड़ा दोष हो सकता है जैसे अग्नि के साथ धुआँ भी होता है। सदैव कर्म करो, कर्म करने से पहले विचार करो लेकिन बहुत ज्यादा विश्लेषण मत करो। अधिक विश्लेषण संशय और अकर्मण्यता पैदा करता है।
9) ध्यान करने से परमात्मा को अनुभव किया जा सकता है...
श्रीकृष्ण कहते हैं कि शारीरिक कर्म से ज्ञान का मार्ग उच्च है और ज्ञान मार्ग से भी ऊपर ध्यान मार्ग है। ध्यान मार्ग पर बढ़ने से ईश्वर को अनुभव किया जा सकता है। जो व्यक्ति मन और इंद्रियों को शांत करके, पूर्ण विश्वास से अपना ध्यान भगवान में लगाता है, उसे ईश्वर का ज्ञान और अस्तित्व अवश्य अनुभव होता है।
जो हर जगह, हर जीव-मनुष्य में ईश्वर को देखता है, सबके हित में लगा रहता है, उसपर परमपिता अवश्य कृपा करते हैं। ज्ञान मार्ग हो या भक्ति मार्ग, समर्पण-प्रेम-विश्वास ही आपको ईश्वर के प्रकाश की ओर ले जाता है। भगवान की पूजा बहुत से लोग करते हैं लेकिन उनको शांति क्यों नहीं मिलती। क्योंकि भगवान आपके मन में निवास करता है, उसे पता है कि आपका भाव क्या है।
10) अधिक शक करने वाला कभी खुश नहीं रह सकता...
श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं कि संशय (शक) करने वाले का विनाश हो जाता है, इसलिए संदेह करने से बचें। अधिक संदेह करने से मन की शांति भंग हो जाती और व्यक्ति भ्रमित होकर अपने संबंधों को नष्ट कर डालता है। जिसे शक करने की आदत पड़ जाती है, उसे इस लोक या परलोक में भी शांति नहीं मिलती। सत्य की खोज ठीक है लेकिन बिना सच जाने, कल्पनावश होकर संदेह करने का अंत दुख-क्लेश-पश्चाताप के रूप में होता है।
11) अति करने से बचें ...
जीवन में संतुलन बहुत जरूरी है। किसी भी चीज की अति करना अच्छा नहीं है। जैसे सुख आने पर प्रमाद करना और दुख आने पर निराशा में डूबे रहना, दोनों ही गलत है। असंतुलन जीवन की गति और दिशा को बाधित करता है, जिससे अनावश्यक कष्ट और दुखों का जन्म होता है। जिसके मन, विचार और कर्म में संतुलन है, उसे ज्ञान मिल जाता है और ज्ञान से ही सदा के लिए शांति, संतुष्टि मिलती है।
12) सही कर्म से ज्ञान और मुक्ति संभव है...
गीता के उपदेशों में कर्मयोग का सिद्धांत कहता है कि संसार से विरक्त होना ही मुक्ति का उपाय नहीं है। संसार में रहकर एक गृहस्थ अपने कर्मों का पालन करते हुए, कर्मफल से विरक्त होकर मुक्ति प्राप्त कर सकता है। सही विचार और उचित कर्म भी आसक्ति को खत्म करने में सक्षम है। अच्छे कर्म कभी व्यर्थ नहीं जाते, चाहे ये दुनिया हो या परलोक।
13) ज्ञान और कर्म एक हैं ...
एक अज्ञानी कर्म और ज्ञान को अलग-अलग समझता है लेकिन एक ज्ञानी जानता है कि दोनों एक ही हैं। लोग ज्ञान की बातें तो करते हैं लेकिन उसका पालन नहीं करते। बिना पालन किये ज्ञान कोरा रह जाता है, ज्ञान का अनुभव नहीं होता। गीता कहती है कि ज्ञान पढ़ने की नहीं बल्कि अनुभव करने की वस्तु है और अनुभव बिना कर्म किये नहीं मिलता।
14) इच्छा दुखों का मूल है....
इस संसार में जितनी भी चीजें सांसारिक सुख की श्रेणी में आती हैं, उनकी एक शुरुआत और अंत जरूर होता है। इन सांसारिक सुखों का अंत दुख, कष्ट और दुर्गति के रूप में होता है। इच्छाओं का अंत नहीं है, एक पूरी होती है तो दूसरी नई इच्छा आ जाती है। हर इच्छा से प्रेरित होकर कर्म करना गलत है क्योंकि ऐसे तो अनुचित कार्य भी होंगे। इच्छाओं से विचलित न हो, उन्हे एक विरक्त दर्शक बनकर देखो और वे चली जायेंगी।
15) भगवान ही सबसे बड़ा सहारा है. ..
परमपिता ही एकमात्र हमारे आधार है और अपने हैं। इस संसार में कोई भी अकेला नहीं है। ईश्वर में विश्वास रखते हुए जो मनुष्य कर्मपथ पर बढ़ता जाता है वो सदा शांति, सुख और मुक्ति पाता है। भूत और भविष्य की चिंता करना व्यर्थ है, वर्तमान ही सत्य है। जो भी पूर्ण समर्पण से ईश्वर की शरण में आता है, परमात्मा उसका कल्याण अवश्य करते हैं।