CG:हादसे के शिकार सरपंच के बच्चे 100 दिन बाद भी सड़क पर...मामला बेमेतरा के चरगवा पंचायत का... महाधरने से लौटते समय हो गई थी सरपंच और उनके पति की मौत..आज भी बच्चे मां -पिता को याद कर सिहर उठते है..एक साथ उठी पति-पत्नी की अर्थी, बच्चे हो गए बेसहारा...चाचा -दादा संभाल रहे हैं बच्चों को... बड़ी बेटी रखती है छोटे भाईयों का ख्याल..दादा ने अच्छी शिक्षा और नौकरी की मांग...पढिए पूरा खबर




संजू जैन:
बेमेतरा:कहते हैं कि भागती दौड़ती जिंदगी कब कहां थम जाए, कोई भरोसा नहीं है। आए दिन सड़क दुर्घटना में हंसती मुस्कराती जिंदगी चली जा रही है। इस दर्द में बेमेतरा के ग्राम पंचायत चरगवा के आश्रित ग्राम सारंगपुर के तीन बच्चे आंचल, दीपक और चैतू जी रहे हैं, जिनके माँ-बाप को सड़क हादसे ने छिन लिया था ...बता दें कि गत सितंबर महीने की 12 तारीख को सरपंच संघ द्वारा आयोजित महा धरना में शामिल होने बेमेतरा के चरगवा पंचायत से सरपंच धर्मीन निषाद अपने पति कौशल निषाद के साथ रायपुर पहुंची थी। महाधरने से वापस लौटते वक्त नवागढ़ - छिरहा मार्ग में रात तकरीबन साढ़े आठ बजे वे हादसे का शिकार हो गए। जिसमें दोनों की मौत हो गयी थी। इस दुर्घटना को 100 दिन पूरे हो चुके है लेकिन उनके बच्चों के लिए आज भी वो काली रात भुलाए नहीं भूल रहा है।
आंसुओं में डूबे मासूम बच्चे आंचल, दीपक और चैतू को माता-पिता की याद हर पल आती है। बच्चे कभी स्कूल में सिसक उठते हैं तो कभी घर के काेने में राेते हैं। कोई लाख समझाए, पर उनकी तड़प कम नहीं होती। अंत में वही एक दूसरे को समझाते हैं। उनको देखकर कई लोग तो सांत्वना देने का साहस भी खो देते हैं।हादसे के अगले दिन यानि 13 सितंबर को विधानसभा मुख्यालय नवागढ़ के राजीव गांधी चौक में दोनों के शव को रखकर प्रदर्शन किया गया और मृतक के स्वजनों को 50-50 लाख रुपये मुआवजा राशि की देने की मांग की गई थी। इस दौरान प्रदर्शनकारीयों के बढ़ते आक्रोश को देखते हुए शासन प्रशासन सक्रिय हुआ और तत्काल मौके पर पहुंचकर चार-चार लाख रुपये मुआवजा राशि देने का आश्वासन दिया गया। जिसके बाद प्रदर्शन खत्म करते हुए शव को अंतिम संस्कार के लिए उनके गृह ग्राम सारंगपुर रवाना किया गया था। आज घटना के 100 दिन बीत जाने के बावजूद मृतकों के स्वजनों को मुआवजा राशि नहीं मिला है। जिसके चलते वे आर्थिक तंगी से जूझ रहें है।
एक साथ उठी पति-पत्नी की अर्थी, बच्चे हो गए बेसहारा
पति-पत्नी की अर्थी एक साथ उठी थी। इनके तीनों बच्चे बेसहारा हो गए। हालांकि इनकी जिम्मेदारी चाचा किशन निषाद व दादा बालाराम निषाद देख रहे हैं, पर ममता के आंचल व पिता के संरक्षण की कमी तो नहीं पूरी कर सकते...। वहीं इनके घर की माली हालत भी ठीक नहीं है। ऐसे में बच्चों के पढ़ाई पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। धर्मीन निषाद पंचायत की सरपंच थी और उनके पति कौशल निषाद मजदूरी करता था। उनके परिवार के आय का मुख्य साधन कृषि और मजदूरी ही था। इसी से अपना गुजारा करने के साथ बच्चों की पढ़ाई करवाता था।
बड़ी बेटी रखती है छोटे भाई-बहन का ख्याल
माता-पिता के एक साथ इस दुनिया से चले जाने से बड़ी बेटी आंचल पर 15 वर्ष की अवस्था में 13 साल के छोटे भाई दीपक और आठ साल के चैतू की जिम्मेदारी आ गई। आंचल दसवीं कक्षा में पढ़ती है। दीपक 9वीं और चैतू तीसरी कक्षा में है। बच्चों के दादा व चाचा कृषि और मजदूरी करते है। जिससे किसी तरह घर का खर्चा चल पाता है। नईदुनिया ने पुचकारा तो बच्चे अपना दुख-दर्द बताते हुए रो पड़े।
बच्चों को अच्छी शिक्षा और नौकरी देने की मांग
चरगवा सरपंच धर्मीन निषाद के ससुर एवं कौशल निषाद के पिता बालाराम निषाद ने नईदुनिया के जरिये शासन प्रशासन से उनके नाती और नतनिन को अच्छी शिक्षा के लिए स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट विद्यालय में दाखिले की मांग की है। इसके साथ ही उनके भविष्य को सुरक्षित करते हुए शासकीय नौकरी देने की मांग की।