करम पर्व को लेकर पूरे सरगुजा में उत्सवी माहौल, अन्न-धन व सुख-शांति की आशीष देंगे करम राजा।




नया भारत ✍️ सितेश सिरदार (कुंवरपुर)
करम महापर्व प्राकृतिक पूजक आदिवासियों के साथ साथ मूलवासियों का महान पर्व है। भादो महीने की उजाला पक्ष की एकादशी को यह पर्व पूरे राज्य में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
करम महापर्व प्रकृति पूजक आदिवासियों व मूलवासियों का महान पर्व है।
आदिवासी के साथ-साथ मूलवासियों का समाज के करम त्योहार को लेकर सरगुजा समेत पूरे राज्य में उत्सवी माहौल है। इसे लेकर सरगुजा के हर अखड़ा में तैयारी लगभग पूरी हो गई है। शाम ढलने के बाद करम राजा की पूजा की जाएगी। हालांकि कोरोना संक्रमण को देखते हुए इस बार करम पर्व बड़ी सादगी एवम धूम धाम से मनाया जाएगा। करम महापर्व प्रकृति पूजक आदिवासियों का महान पर्व है। इस त्यौहार के माध्यम से आदिवासियों की संस्कृति परंपरा को जीवित रखते हैं।
करम त्यौहार गांव घर का त्यौहार है। पिछले वर्ष की भांति इस वर्ष भी कोविड-19 का पालन करते हुए सादगी धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ करम त्यौहार मनाया जाएगा। करम या करमा पर्व सरगूजा के आदिवासियों और मूलवासियों का लोकपर्व है। यह पर्व फसलों और वृक्षों की पूजा का पर्व है। यहां की संस्कृति और लोक नृत्य कला का आनंद करम पर्व में भरपूर देखने को मिलता है। आदिवासियों की पारंपरिक परिधान पहने लड़कियां जगह-जगह लोक नृत्य करती नजर आएंगी।
भादो महीने की उजाला पक्ष की एकादशी को यह पर्व पूरे राज्य में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। जबकि इस पर्व की तैयारी महीनों पहले शुरू हो जाती है और पूजा पाठ एकादशी के पहले सात दिनों तक चलती है। सरगुजा छत्तीसगढ़ में करम कृषि और प्रकृति से जुड़ा पर्व है। इसे सरगुजा(लखनपुर )सहित आसपास के सभी समुदाय हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। नई फसल आने की खुशी में लोग करम नृत्य करते हैं। इस पर्व को भाई-बहन के अगाध प्यार के रूप में भी जाना जाता है। बहनें भाइयों की रक्षा का संकल्प लेती हैं।
सात दिन पहले ही शुरू हो जाती है करम पूजा
एकादशी से सात दिन पहले ही करम पूजा शुरू हो जाती है। करम पर्व मनाने के लिए सात दिन पहले युवतियां अपने गांव में नदी या तालाब जाती हैं, जहां बांस की टोकरी में मिट्टी डालकर उसमें धान, गेंहू, चना, मटर, मकई, जौ, बाजरा, उड़द आदि के बीज बोती हैं। उसके बाद निरंतर सात दिनों तक सुबह-शाम टोकरियों को बीच में रखकर सभी सहेलियां एक-दूसरे का हाथ पकड़कर व उसके चारों ओर परिक्रमा करते हुए गीत गाते हुए नाचती हैं। इसे जावाडाली जगाना कहा जाता है।
टोकरियों में बोए गए बीज को अंकुरित करने के लिए करम त्योहार के एकादशी तक हल्दी मिले जल के छींटों से सुबह शाम नियमित रूप से सींचा जाता है। सात दिनों में जब बीज अंकुरित हो जाते हैं तो एकादशी के दिन करम पूजा में उस जावा डलिया को शामिल किया जाता है।
अखड़ा में पहान से सुनते करम कथा
करम पर्व पर सभी लोग अखड़ा में पहान से करमा कथा सुनते हैं। फिर अखड़ा में युवक-युवतियों द्वारा पारंपरिक रूप से करम गीत और नृत्य प्रस्तुत किए जाते हैं। करम कथा और करम गीत में कई अलग-अलग कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन सभी में कर्म प्रधानता और प्रकृति संरक्षण का संदेश दिया गया है।
पूजा के बाद खेत में गाड़ते हैं करम डाली
पूजा के बाद करम डाली को खेत में गाड़ दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इससे फसल सुरक्षित रहता है और पैदावार अधिक होती है। करम त्यौहार कृषि और प्रकृति से जुड़ा है। इसमें परिवार की सुख समृद्धि के साथ फसलों की अधिक पैदावार के लिए प्रकृति से अराधना की जाती है।