काशी ज्ञानवापी मस्जिद: 1936 के मामले के फैसले से मस्जिद पर मुसलमानों का दावा कमजोर हो सकता है और हिंदू पक्ष अब और मजबूत होगा.
Kashi Gyanvapi Masjid: The decision of the 1936 case may weaken the claim




NBL, 23/05/2022, Lokeshwer Prasad Verma,. Kashi Gyanvapi Masjid: The decision of the 1936 case may weaken the claim of the Muslims on the mosque and the Hindu side will become stronger now.
वाराणसी, 23 मई: ज्ञानवापी मस्जिद की सर्वे रिपोर्ट पर वाराणसी के जिला जज की अदालत में सुनवाई हो रही है। लेकिन, मामला सुप्रीम कोर्ट के पास भी लंबित है, जिसपर गर्मी की छुट्टियों के बाद जुलाई में फिर से सुनवाई शुरू होनी है, पढ़े विस्तार से...
सुप्रीम कोर्ट के सामने हिंदू पक्ष की ओर से कुछ ऐसी दलीलें दी गई हैं, जिससे इस मुकदमे का रुख ही मुड़ सकता है। इसमें अंग्रेजों के जमाने में ट्रायल कोर्ट में चले केस का हवाला दिया गया है, जिसे हिंदू पक्ष अपने हक में बता रहे हैं। आइए जानते हैं क्या है 1936 का वह मुकदमा और क्या इससे मुसलमानों का मस्जिद पर दावा कमजोर हो सकता है।
काशी में मां श्रृंगार गौरी की विधिवत पूजा को लेकर मुकदमा लड़ रहीं पांच हिंदू महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद की पूरी जमीन काशी विश्वनाथ मंदिर की है और इसके लिए वादियों की ओर से अंग्रेजों के जमाने के अदालत में हुई कार्रवाई का हवाला दिया गया है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक एक ब्रिटिश ट्रायल कोर्ट ने एक मुस्लिम शख्स की ओर से 1936 में दायर मुकदमे को खारिज कर दिया था, जिसमें उसने मस्जिद वाली जमीन को वक्फ की संपत्ति घोषित करने की मांग की थी।
काशी में मां श्रृंगार गौरी की विधिवत पूजा को लेकर मुकदमा लड़ रहीं पांच हिंदू महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद की पूरी जमीन काशी विश्वनाथ मंदिर की है और इसके लिए वादियों की ओर से अंग्रेजों के जमाने के अदालत में हुई कार्रवाई का हवाला दिया गया है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक एक ब्रिटिश ट्रायल कोर्ट ने एक मुस्लिम शख्स की ओर से 1936 में दायर मुकदमे को खारिज कर दिया था, जिसमें उसने मस्जिद वाली जमीन को वक्फ की संपत्ति घोषित करने की मांग की थी।
अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमिटी की ओर से मस्जिद का सर्वे रोकने की मांग वाली याचिका पर जवाबी हलफनामे में वादियों ने कहा है कि ब्रिटिश सरकार ने सही फैसला लिया था कि जमीन मंदिर की है, क्योंकि यह कभी भी वक्फ की संपत्ति नहीं रही। इसलिए मुसलमान इसके मस्जिद होने का दावा नहीं कर सकते। मंदिर पक्ष की ओर से कहा गया है, 'इतिहासकारों ने पुष्टि की है कि मुगल बादशाह औरंगजेब ने 9 अप्रैल, 1669 को आदि विश्वेश्वर (काशी विश्वनाथ) मंदिर को ध्वस्त करने का 'फरमान' जारी किया था। यह साबित करने के लिए कुछ भी नहीं है कि उस समय के शासक या बाद के किसी शासक ने उस भूमि पर वक्फ गठित करने या फिर उसे किसी मुसलमान या मुस्लिमों की संस्था को सौंपने का कोई हुक्म जारी किया हो। '
वादियों ने अपने वकील विष्णु शंकर जैन की ओर से अदालत से कहा है कि मंदिर की जमीन पर खड़ा ढांचा मस्जिद नहीं हो सकती। इसके मुताबिक, 'मस्जिद सिर्फ उसी जमीन पर बन सकती है जो वक्फ से जुड़ी हो। किसी भी मुस्लिम शासक या मुसलमानों की ओर से मंदिर की जमीन पर मस्जिद नहीं बनाई जा सकती।' जबकि, अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमिटी की ओर से वरिष्ठ वकील हुजेफा अहमदी ने 'शिवलिंग' मिलने वाले स्थान या वजू खाना तक मुसलमानों के जाने की अनुमति मांगते हुए दावा किया था कि मुसलमान कम से कम 500 साल से वजू कर रहे हैं और मस्जिद में नमाज पढ़ रहे हैं। इसलिए, उन्होंने सील की गई जगह (शिवलिंग वाले स्थान) को उनके लिए खोलने की अपील की थी।
जबकि, इस दावे के ठीक उलट हिंदू पक्ष की ओर से सर्वोच्च अदालत में कहा गया है कि 'मंदिर की जमीन पर मुसलमानों की ओर से खड़ा किया गया कोई भी ऊपरी ढांचा, सिर्फ ढांचा ही रहेगा और वह मस्जिद नहीं मानी जा सकती। क्योंकि, वाराणसी जिले और तहसील के मौजा शहर खास के प्लॉट नंबर 9130, 9131 और 9132 की पूरी भूमि पर मालिकाना हक भगवान आदि विश्वेश्वर का ही बना हुआ है। जमीन किसी मुसलमान, मुस्लिम संस्था या वक्फ बोर्ड की नहीं है।' अपने दावे में हलफनामे के साथ हिंदू पक्ष ने उस समय सरकार सेक्रेटरी ऑफ स्टेट की ओर से दिए गए बयान के हवाले से कहा है, 'भारत में मोहम्मडन शासन आने से काफी पहले से वहां मूर्तियां और मंदिर मौजूद हैं।'
ब्रिटिश सरकार की ओर से पैरा 11 में कहा गया था, 'यह प्रस्तुत किया जाता है कि गैर-मुसलमान अपने धार्मिक उद्देश्यों के लिए भूमि का उपयोग हक के तौर पर कर रहे हैं और उन्हें इस पर अधिकार मिल गया है।' वहीं इसके पैरा 12 में कहा गया है, 'जिस भूमि का सवाल है, उसे कभी भी 'वक्फ' की जमीन नहीं मानी गई।........... ' आगे कहा है गया है, 'उस समय के मुसलमान या खुद औरंगजेब उस जगह का मालिक नहीं था, जिसपर (भगवान)विश्वनाथ का पूराना मंदिर मौजूद था और जिसे औरंगजेब के द्वारा ध्वस्त कर दिया गया......'
अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमिटी की ओर से मस्जिद का सर्वे रोकने की मांग वाली याचिका पर जवाबी हलफनामे में वादियों ने कहा है कि ब्रिटिश सरकार ने सही फैसला लिया था कि जमीन मंदिर की है, क्योंकि यह कभी भी वक्फ की संपत्ति नहीं रही। इसलिए मुसलमान इसके मस्जिद होने का दावा नहीं कर सकते। मंदिर पक्ष की ओर से कहा गया है, 'इतिहासकारों ने पुष्टि की है कि मुगल बादशाह औरंगजेब ने 9 अप्रैल, 1669 को आदि विश्वेश्वर (काशी विश्वनाथ) मंदिर को ध्वस्त करने का 'फरमान' जारी किया था। यह साबित करने के लिए कुछ भी नहीं है कि उस समय के शासक या बाद के किसी शासक ने उस भूमि पर वक्फ गठित करने या फिर उसे किसी मुसलमान या मुस्लिमों की संस्था को सौंपने का कोई हुक्म जारी किया हो। '
वादियों ने अपने वकील विष्णु शंकर जैन की ओर से अदालत से कहा है कि मंदिर की जमीन पर खड़ा ढांचा मस्जिद नहीं हो सकती। इसके मुताबिक, 'मस्जिद सिर्फ उसी जमीन पर बन सकती है जो वक्फ से जुड़ी हो। किसी भी मुस्लिम शासक या मुसलमानों की ओर से मंदिर की जमीन पर मस्जिद नहीं बनाई जा सकती।' जबकि, अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमिटी की ओर से वरिष्ठ वकील हुजेफा अहमदी ने 'शिवलिंग' मिलने वाले स्थान या वजू खाना तक मुसलमानों के जाने की अनुमति मांगते हुए दावा किया था कि मुसलमान कम से कम 500 साल से वजू कर रहे हैं और मस्जिद में नमाज पढ़ रहे हैं। इसलिए, उन्होंने सील की गई जगह (शिवलिंग वाले स्थान) को उनके लिए खोलने की अपील की थी।
जबकि, इस दावे के ठीक उलट हिंदू पक्ष की ओर से सर्वोच्च अदालत में कहा गया है कि 'मंदिर की जमीन पर मुसलमानों की ओर से खड़ा किया गया कोई भी ऊपरी ढांचा, सिर्फ ढांचा ही रहेगा और वह मस्जिद नहीं मानी जा सकती। क्योंकि, वाराणसी जिले और तहसील के मौजा शहर खास के प्लॉट नंबर 9130, 9131 और 9132 की पूरी भूमि पर मालिकाना हक भगवान आदि विश्वेश्वर का ही बना हुआ है। जमीन किसी मुसलमान, मुस्लिम संस्था या वक्फ बोर्ड की नहीं है।' अपने दावे में हलफनामे के साथ हिंदू पक्ष ने उस समय सरकार सेक्रेटरी ऑफ स्टेट की ओर से दिए गए बयान के हवाले से कहा है, 'भारत में मोहम्मडन शासन आने से काफी पहले से वहां मूर्तियां और मंदिर मौजूद हैं।'
ब्रिटिश सरकार की ओर से पैरा 11 में कहा गया था, 'यह प्रस्तुत किया जाता है कि गैर-मुसलमान अपने धार्मिक उद्देश्यों के लिए भूमि का उपयोग हक के तौर पर कर रहे हैं और उन्हें इस पर अधिकार मिल गया है।' वहीं इसके पैरा 12 में कहा गया है, 'जिस भूमि का सवाल है, उसे कभी भी 'वक्फ' की जमीन नहीं मानी गई।........... ' आगे कहा है गया है, 'उस समय के मुसलमान या खुद औरंगजेब उस जगह का मालिक नहीं था, जिसपर (भगवान)विश्वनाथ का पूराना मंदिर मौजूद था और जिसे औरंगजेब के द्वारा ध्वस्त कर दिया गया......'
इसी आधार पर हिंदू पक्ष का दावा है कि 'देवता अपने अधिकारों को केवल इस वजह से नहीं खो देंगे कि विदेशी शासन के दौरान मंदिर को काफी क्षति पहुंची थी, क्योंकि संपत्ति पर देवता का अधिकार कभी नहीं खत्म होता है और पूजा करने वालों का देवता और उस स्थान की पूजा करने का अधिकार हिंदू कानून के तहत संरक्षित है।' उन्होंने अपने दावों के समर्थन में 1997 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले और काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर स्कंद के साथ-साथ शिव पुराणों के उल्लेखों का भी हवाला दिया है। सुप्रीम कोर्ट गर्मी की छुट्टियों के बाद जुलाई में इस मामले पर आगे की सुनवाई करेगा।