अगर पीएम मोदी की सरकार इलेक्टोरल बॉन्ड कानून नहीं लाती और सुप्रीम कोर्ट ने इन चुनावी चंदों को सार्वजनिक करने का आदेश नहीं दिया होता तो देश को पता ही नहीं चलता कि किसने किस राजनीतिक दल को कितना चुनावी चंदा दिया है। विपक्षी दलों के नेता आज देश में भ्रम फैला रहे हैं।
If PM Modi's government had not brought




NBL, 16/04/2024, Lokeshwar Prasad Verma Raipur CG: If PM Modi's government had not brought the Electoral Bond Act and the Supreme Court had not ordered to make these electoral donations public, then the country would not have known who has given how much electoral donation to which political party. The leaders of the opposition parties are spreading confusion in the country today. पढ़े विस्तार से....
चुनावी बॉन्ड एक तरह का वचन पत्र है। इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकता है। यह बॉन्ड नागरिकों या कॉरपोरेट कंपनियों के लिए अपनी पसंद की किसी भी राजनीतिक पार्टी को दान देने का एक ज़रिया है।
भारत में वर्ष 2017 में इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत हुई थी, जिसे जनवरी 2018 में कानूनी तौर पर लागू किया गया। इसके तहत भारतीय स्टेट बैंक को राजनीतिक दलों को पैसा देने के लिए बॉन्ड जारी करने का अधिकार दिया गया। इससे पहले राजनीतिक दल वैध और अवैध दोनों तरह से चुनावी चंदा प्राप्त करते थे, जो राष्ट्रहित में सही नहीं था। आज देश के लोकतंत्र को पता चल रहा है कि किस संस्था ने किस राजनीतिक दल को कितना चुनावी चंदा दिया है और चुनावी चंदा देने वाले लोगों की नीयत राष्ट्रहित में है या उनकी नीयत खराब है, जो देश को जोड़ने की बजाय बांटने के लिए तो चंदा नहीं दे रहे हैं।
देश में पीएम मोदी द्वारा यह इलेक्टोरल बॉन्ड कानून लाना राष्ट्रहित में है और देश के लोकतंत्र के लिए सुरक्षित है, जिसकी गोपनीयता को देश के लोकतंत्र के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक करने का आदेश दिया है। चुनावी चंदे की गोपनीयता भंग होने के कारण विपक्षी दलों के नेताओं को पता चल गया कि भाजपा को चुनावी चंदे के माध्यम से कितनी बड़ी रकम मिली है, जबकि विपक्षी दलों को भी चुनावी चंदा मिला है, चाहे कम हो या ज्यादा, देश की लगभग हर राजनीतिक पार्टी को चुनावी चंदा मिला है। अगर विपक्षी दलों के नेताओं के अनुसार भाजपा ने अधिक चुनावी चंदा लेकर भ्रष्टाचार किया है, तो विपक्षी दलों ने चुनावी चंदा लेकर क्या किया है?
चुनावी चंदा पहले भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता था लेकिन आज यह चुनावी चंदा बैंक के माध्यम से दिया जाता है इसलिए आज यह भ्रष्टाचार की श्रेणी में नहीं आता है। राजनीतिक दलों को कम या ज्यादा चंदा मिल सकता है, अगर अब देश का कोई भी राजनीतिक दल बिना चुनावी बांड के अवैध तरीके से चंदा लेते पकड़ा जाता है तो उसके खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज हो सकता है जो भ्रष्टाचार की श्रेणी में आएगा लेकिन अब यह दान राशि बैंक के माध्यम से लिया जा रहा है और आज देश के लोकतंत्र को सार्वजनिक रूप से पता चल रही है जो पीएम नरेंद्र मोदी सरकार के चुनावी बांड अधिनियम और सुप्रीम कोर्ट के जनहित के फैसले से संभव हो पाया है।
देश के आम नागरिक या कॉरपोरेट कंपनियां राजनीतिक दलों को चुनावी चंदा क्यों देती हैं? क्योंकि इसमें ठेकेदारी करने वाले नागरिकों और कुछ कॉरपोरेट कंपनी का स्वार्थ छिपा होता है। ये लोग जो चंदा देते हैं, एक तरह से जुआ खेलते हैं कि अगर कोई राजनीतिक दल, जिसे हमने चंदा दिया है, देश या राज्य में सत्ता में आता है, तो उन्हें अपने चंदे के जरिए सत्ताधारी दल से लाभ मिलेगा और उन्हें मिलता भी है। लेकिन आज देश के सभी राजनीतिक दलों को चुनावी चंदा मिल रहा है जो उनके लिए सौभाग्य की बात है, भले ही वे इस चंदे का विरोध कर रहे हों। भाजपा को विपक्षी दलों से कहीं ज्यादा चंदा मिल रहा है, जबकि कांग्रेस के सभी सहयोगी दलों को मिलाकर देखें तो चुनावी चंदा 63 प्रतिशत आता है। जबकि आज भाजपा केंद्र और देश के कई राज्यों में सत्ता में है और अगर उसे कांग्रेस से ज्यादा चुनावी चंदा मिल रहा है, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। जो चुनाव जीत रहे हैं, उन्हें ज्यादा चंदा मिलेगा और जो चुनाव हार रहे हैं, उन्हें कम चंदा दिया जा रहा है। आज चुनाव हार रही कांग्रेस पार्टी को ज्यादा चंदा देने वालों का पैसा बर्बाद होगा, इसीलिए कांग्रेस को चुनावी चंदा कम मिल रहा है। कांग्रेस पार्टी को ममता दीदी की बंगाल पार्टी टीएमसी से भी कम चंदा मिल रहा है। इसीलिए कांग्रेस पार्टी चिढ़ी हुई है और देश में भ्रम फैला रही है। बीजेपी ज्यादा चुनावी चंदा लेकर देश में भ्रष्टाचार कर रही है और बीजेपी पीएम मोदी सरकार देश के लोकतंत्र को बेवकूफ बना रही है। कांग्रेस बीजेपी पर ये आरोप लगा रही है, जबकि ये पैसा चुनावी चंदा है और इसे कोई भी दे सकता है, आप भी अपनी पसंदीदा राजनीतिक पार्टी को दे सकते हैं।
आज देश के लोकतंत्र को पता चल गया है कि किस पार्टी को कितना चुनावी चंदा मिला है। पहले कांग्रेस के शासन में देश को पता नहीं था कि राजनीतिक दलों को इतनी बड़ी मात्रा में चुनावी चंदा दिया जाता है जो आज भाजपा पीएम मोदी सरकार में देश के लोकतंत्र को पता चल रहा है। अब यह कैसा भ्रष्टाचार है जो देश में विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा भ्रम फैलाया जा रहा है जो निराधार आरोप साबित हो सकते हैं। आप आसानी से अपने मोबाइल पर गूगल के जरिए इस चुनावी चंदे की जानकारी पता कर सकते हैं।
पीएम नरेंद्र मोदी सरकार का मुख्य उद्देश्य यह था कि राजनीतिक दलों को मिलने वाला चुनावी चंदा वैध बैंकों के माध्यम से ही प्राप्त हो ताकि सबसे पहले अवैध लेन-देन को रोका जा सके। उदाहरण के लिए अगर कोई संगठन जो देश को बांटना चाहता है, अवैध तरीकों से किसी को चंदा देता है तो वह उन राजनीतिक दलों के जरिए देश को तोड़ने का काम करवा सकता है। उनके सत्ता में आने के बाद कई ऐसे कारोबार किए जा सकते हैं जो देश के हित में नहीं थे। भले ही देश का लोकतंत्र पीएम नरेंद्र मोदी के कड़े फैसलों से वाकिफ न हो लेकिन जब पता चलता है तो काफी सराहनीय लगता है। पीएम मोदी सरकार के फैसले और चुनावी चंदे की अवैधता कोई मामूली बात नहीं है।
यह बहुत बड़ा मुद्दा था जो देश को कमजोर करने में अहम भूमिका निभा रहा था इसको रोकने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी सरकार देश में इलेक्टोरल बॉन्ड कानून लेकर आई और बीजेपी सरकार के जरिए गोपनीयता बनाए रखने का फैसला लिया गया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक करने का फैसला लिया और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को आदेश दिया कि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए पैसा लेने और देने वाले दोनों पार्टियों का डाटा चुनाव आयोग को दिया जाए, जिसे चुनाव आयोग देश के लोकतंत्र के लिए इस चुनावी चंदे के लेन-देन को सार्वजनिक करेगा, जिसे आज हम देश के नागरिक चुनावी चंदे के बारे में देख और समझ रहे हैं और अगर पीएम मोदी देश में इलेक्टोरल बॉन्ड नहीं लाते तो हम देश के नागरिकों को इसके बारे में पता भी नहीं चलता।
अगर चुनावी चंदे का लेन-देन बंद हो गया तो सबसे बड़ा नुकसान छोटी क्षेत्रीय पार्टियों को होगा, क्योंकि इन चंदों के जरिए राजनीतिक पार्टियां अपनी पार्टियों को मजबूत करती हैं और अगर इनका चंदा बंद हो गया तो उनकी ऊंची उड़ान जो वो आज बीजेपी के साथ उड़ रही हैं, बंद हो जाएगी, जबकि आज बीजेपी देश में अपना आधार मजबूत कर चुकी है और आज बीजेपी विपक्षी पार्टियों को कमजोर नहीं कर रही है, बल्कि कांग्रेस अपने सहयोगी दलों को कमजोर करने में लगी हुई है। अगर इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चुनावी चंदा बंद हो गया तो इन विपक्षी क्षेत्रीय पार्टियों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा और राजनीतिक पार्टियों के नेताओं को चुनाव लड़ने के लिए अपने घर और संपत्ति बेचनी पड़ेगी। कांग्रेस के पास चुनाव लड़ने के लिए काफी संपत्ति है लेकिन क्षेत्रीय पार्टियों के पास इतनी संपत्ति नहीं है कि वो अपने दम पर चुनाव लड़ सकें।
आज वो देश में भ्रम पैदा कर रही हैं। बीजेपी ज्यादा चुनावी चंदा लेकर देश में भ्रष्टाचार कर रही है, जबकि आज बीजेपी इलेक्टोरल बॉन्ड बैंक के जरिए चंदा देने वाले लोगों से चुनावी चंदा ले रही है, जो कि कानूनी है। इसीलिए पीएम नरेंद्र मोदी कहते हैं कि जो लोग आज बीजेपी के चुनावी चंदे को लेकर भ्रम पैदा कर रहे हैं, उन्हें एक दिन इस बात का पछतावा होगा कि उन्होंने अपने पैर पर खुद ही कुल्हाड़ी मार ली है क्योंकि पीएम मोदी की सरकार पर कोई भरोसा नहीं कर सकता क्योंकि वो कड़े फैसले लेने में माहिर हैं और अगर चुनावी चंदे को रोकने के लिए नया कानून बना दिया तो क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की राजनीति खत्म हो जाएगी।
सदियों से इस चुनावी चंदे को कांग्रेस पार्टी ने दबाया और छुपाया जबकि देश में सबसे ज्यादा चंदा कांग्रेस पार्टी को मिलता था क्योंकि देश में लंबे समय तक कांग्रेस सत्ता में थी और इस चंदे का दुरुपयोग भी कांग्रेस पार्टी ने किया, इसे जनहित में इस्तेमाल करने की बजाय कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेताओं ने निजी इस्तेमाल में खर्च किया और आज कांग्रेस पार्टी और उसके सहयोगी दलों के नेताओं के इस चुनावी चंदे की सच्चाई भाजपा उजागर कर रही है।
जबकि सच्चाई आज सामने आ रही है कि चुनावी बांड आने से किस विपक्षी दल को कितना चुनावी चंदा मिला है, सुप्रीम कोर्ट के सर्वोच्च निर्णय से इस चुनावी चंदे को देश में सार्वजनिक किया जाना देश के लोकतंत्र को भी पता चल रहा है कि किस दल को कितना चुनावी चंदा मिला है और कांग्रेस की पोल खुल चुकी है उसे अपने सहयोगी दलों जो अपने आप को देश की बहुत महान पार्टी कहते हैं कांग्रेस उनके चुनावी चंदे से भी ज्यादा चुनावी चंदा मिला है जबकि चुनावी चंदा देने वाले लोग उन पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं यह कांग्रेस की बुरी हालत है देश में उसकी पहले वाली हैसियत अब नही रही और आज यह कांग्रेस के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं।