धर्म और मर्यादा ये दोनों विश्व के प्राचीनतम और नवीनतम दो कानून हैं, यदि इनका पालन करना विश्व ने सीख लिया तो विश्व के हर देश से कानून की मोटी-मोटी पुस्तकें अपने आप समाप्त हो जाएंगी.
Dharma and Maryada are both the oldest and latest laws of the world,




NBL, 11/06/2022, Lokeshwer Prasad Verma,. Dharma and Maryada are both the oldest and latest laws of the world, if the world learns to follow them, then the thick books of law from every country of the world will automatically end.
धर्म और मर्यादा ये दोनों विश्व के प्राचीनतम और नवीनतम दो कानून हैं, यदि इनका पालन करना विश्व ने सीख लिया तो विश्व के हर देश से कानून की मोटी-मोटी पुस्तकें अपने आप समाप्त हो जाएंगी, पढ़े विस्तार से...
वेद ने ‘खिदमते खल्क’ को ही अपना धर्म माना है और ‘न है मालोजर की हवस मुझे’ इसे अपनी मर्यादा माना है। बड़ा सधा-सधाया और तपस्वी जीवन है वेद मार्ग पर चलने वालों का। जहां ये दो चीजें होती हैं-‘खिदमते खल्क’ और ‘न है मालोजर की हबस मुझे’ वहां शांति अपने आप आ जाती है और जहां शांति आ जाती है, वहां मोक्ष का मार्ग अपने आप ही प्रशस्त होने लगता है। इसीलिए हमारे ऋषियों मुनियों की साधना और तपस्या धर्म और मर्यादा की रक्षा के लिए होती थी।
हम अपनी जीवन यात्रा के विषय में सोचें। हम घर से चले-किसी यात्रा पर। मान लीजिये हमें-रायपुर से दिल्ली जाना और दिल्ली से कश्मीर , तो हमारे लिए आवश्यक नही कि हम एक ही बस से या एक ही ट्रेन से सीधे कश्मीर चले जाएं, कभी-कभी ऐसी भी स्थिति बनती है कि हमें मार्ग में कई बसें बदलनी पड़ जाती हैं।
पहली बस ने हमें सौ सवा सौ किलोमीटर की यात्रा तय कराई और हमें उतार दिया, फिर वहां से वह बस दांये या बांये चली गयी। उसके पश्चात फिर एक बस मिली पर वह भी अगले सौ किलोमीटर पर जाकर हमें उतार देती है और दांये या बांये चली जाती है। इसी प्रकार हम पूरे यात्रा मार्ग में 2-4 बसें या ट्रेने बदल लेते हैं, और अंत में अपने गंतव्य स्थल पर पहुंचते ही हम ईश्वर को धन्यवाद करते हैं। घर वालों को फोन करते हैं कि मैं अपने गंतव्य स्थल पर सकुशल पहुंच गया हूँ।
अब इसी प्रसंग को कुछ दूसरे ढंग से समझने का कष्ट करें। हमारा जीवन यात्रा का जो यह मार्ग है, इसमें भी हम चले जा रहे हैं-अपने गंतव्य की ओर। इस यात्रा मार्ग में कितने ही साथी हमारे साथ चलते हैं-पर कोई सौ कदम साथ चलता है और कोई हजार कदम साथ देता है। यह वैसे ही होता है जैसे रायपुर से दिल्ली व कश्मीर जाते समय हमें बसें छोड़ती जा रही थीं, और दांये या बांये मुड़ती जा रही थीं।
हमारा साथ और हाथ छोडऩे वाले हमारे मित्र या संबंधी अंतिम समय तक गंतव्य स्थल तक साथ नही चलते, जो चलते हैं वे यात्रा के प्रारंभिक बिंदु पर हमारे साथ नही थे, वे कहीं बीच से हमारे साथ लगे और हमारे साथ यात्रा करते-करते हमारे गंतव्यस्थल पर हमारे साथ पहुंच गये। पर कई बार ऐसा भी होता है कि जो देर तक साथ रहे उन्हें एक दिन हम स्वयं ही छोडक़र चल देते हैं। ऐसा ही खेल है – इस जीवन का।
कहने का अभिप्राय है कि जीवन में स्थायी कुछ भी नही है। सब कुछ परिवर्तनशील है। पर हम हैं कि जीवन के परिवर्तनों को स्वीकार नही करते हैं। जैसे जो मित्र या साथी हमारा साथ सौ कदम तक देता है और उसके पश्चात वह हमें छोड़ देता है तो हम उसके साथ छोडऩे का दुख मनाते हैं, उसके प्रति अपने मन में कष्ट की अनुभूति करते हैं कि वह मेरे साथ ऐसा कर गया या वैसा कर गया ?
जबकि हमें यह सोचना चाहिए कि वह जितनी देर साथ चला-उसके लिए उसका धन्यवाद। उसने जीवन की यात्रा को इतनी देर तक सरस बनाया-रसयुक्त बनाया-इसके लिए वह बधाई का पात्र है। वह हमारी यात्रा की पहली बस था-जिसने हमें सौ किलोमीटर की यात्रा तक पहुंचाया, अब आगे नई बस नये साथी मिलेंगे। समय आने पर सब दांये-बांये होते जाएंगे और एक दिन हम भी अपने यात्रा के गंतव्य तक पहुंच जाएंगे। हम इंसान को जीवन यही सोच कर जीना चाहिए हम स्थायी नहीं है, पर ईश्वर स्थायी है,जो हमें अपने कर्मों के अनुसार उस स्थान पर जगह देंगे जो हमने पूर्व कर्म में किये और यही सिस्टम लगातार चलते रहेंगे जो जो ईश्वर को जान लिया व तर गये, और जो ईश्वर के सत्ता को नहीं समझ पाये वह भटक गये यही आत्मा 84 लाख योंनियो मे भटकता रहता है। कितना बुद्धिमान बनकर आप धर्म और कर्म को उलझाते रहोग, उस ईश्वर के काल चक्र से आप कहा बच पाओगे, आपके चलाकी धरे के धरे पड़े रह जायेंगे।
सर्व धर्म मे मै हूँ आग, जल, वायु, आकाश व धरती और आपके धर्म के मुखिया।