प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट ने एक राष्ट्र एक चुनाव को मंजूरी दे दी, लेकिन विपक्ष ने इसे व्यावहारिक विफलता बताया। जबकि यह उनका छिपा हुआ डर है।
cabinet approved One Nation One Election,




NBL, 19/09/2024, Lokeshwar Prasad Verma Raipur CG: Prime Minister Narendra Modi's cabinet approved One Nation One Election, but the opposition called it a practical failure. Whereas this is their hidden fear. पढ़े विस्तार से.....
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिका अर्जुन खड़के ने वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर बड़ा बयान देते हुए कहा कि वन नेशन वन इलेक्शन जमीनी स्तर पर व्यावहारिक नहीं है, इसमें कई बाधाएं हैं, बीजेपी बेवजह देश में वन नेशन वन इलेक्शन का मुद्दा ला रही है और बीजेपी देश के लोकतंत्र का ध्यान देश के दूसरे मुद्दों से भटकाती है और ऐसा वो अक्सर चुनावों के दौरान करती है, ऐसा ही कुछ इन विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने कश्मीर 370 को लेकर भी कहा था आज ताजा 2024 विधानसभा चुनावों में कश्मीर में जमीनी स्तर पर जो देखने को मिल रहा है वो अद्भुत है, वहां के लोग अपने घरों से निकलकर वोट डाल रहे हैं जो।
पिछले चुनावों के वोट प्रतिशत से कहीं ज्यादा है, ये चमत्कार 370 हटने की वजह से हुआ है और ये उन निवासियों का बयान है जो 370 के दायरे में थे, 370 हटने से यहां की सुरक्षा बढ़ गई है और हम निडर होकर मतदान केंद्र पर पहुंच रहे हैं और अपना वोट डाल रहे हैं. जहां यहां आतंकी हमले का डर रहता था वो डर अब नहीं रहा. यह पीएम नरेंद्र मोदी सरकार का कठोर निर्णय है, आज हम देश के लोकतंत्र के लिए एक अच्छा परिणाम देखने को मिल रहा हैं। भले ही वहां के लोकतंत्रवादी किसी भी पार्टी को वोट दें, यह उनका निजी मामला है। 370 का डर जिसके तले लोग जी रहे थे, वह खत्म हो गया है। यह बीजेपी पीएम नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी जीत है। देश के हित के लिए उन्हें जो भी जीत या हार का सामना करना पड़े, वह उन्हें मंजूर है। कम से कम जम्मू कश्मीर के लोकतंत्रवादी चैन की सांस तो ले रहे हैं और इसका श्रेय बीजेपी पीएम नरेंद्र मोदी सरकार और उनके कैबिनेट मंत्रियों को जाता है।
कुछ विपक्षी दलों के नेताओं का डरना जायज है। एक राष्ट्र एक चुनाव से भाजपा केंद्र की सत्ता में आएगी और देश के कई राज्यों में राज करेगी। जिस तरह से भाजपा अपने सहयोगियों के साथ केंद्र में बैठकर देश पर राज कर रही है, उससे विपक्षी दलों के नेताओं का डरना स्वाभाविक है। अगर केंद्र सरकार के बढ़ते दबदबे और पीएम मोदी द्वारा लिए गए फैसलों और राज्यों के विधानसभा चुनावों का मुद्दा केंद्र सरकार के मुद्दे से जुड़ गया तो ऐसा लगता है कि विपक्षी दलों की आधी राजनीति खतरे में पड़ जाएगी। क्योंकि जिस तरह से पीएम नरेंद्र मोदी के कारण देश का लोकतंत्र भाजपा पर भरोसा कर रहा है, देश में भाजपा के प्रति दीवानगी बढ़ रही है, वह दीवानगी इतनी नहीं बढ़नी चाहिए कि विपक्षी दलों के नेताओं के पास देश के लोकतंत्र को गुमराह करने के लिए कोई मुद्दा ही न बचे।
अगर देश के लोकतंत्र में राष्ट्र सर्वोच्च होने की भावना आ गई तो इससे विपक्षी दलों के लिए खतरा पैदा हो सकता है, बशर्ते भाजपा को अपनी छवि साफ-सुथरी रखनी होगी, क्योंकि देश में भाजपा की हिंदू एकता की शुरुआत हो चुकी है। अगर हिंदू एकता मजबूत हो गई तो केंद्र और राज्य में भाजपा एकतरफा शासन करेगी। विपक्षी दलों के नेता नहीं चाहते कि भारत में सभी चुनाव एक राष्ट्र एक चुनाव के माध्यम से एक साथ हों और इससे भाजपा और उसके गठबंधन को फायदा होगा और हम विपक्षी दलों को नुकसान होगा। विपक्षी दलों के नेता देश के लोकतंत्र के साथ जो लुभावने वादे करते हैं, वे पूरी तरह से नष्ट हो जाएंगे और इस एक राष्ट्र एक चुनाव के माध्यम से देश के सभी हिंदू एकजुट हो जाएंगे।
पीएम नरेंद्र मोदी ने कई ऐसे कड़े फैसले लिए जिनका विपक्षी दलों के नेताओं ने कड़ा विरोध किया लेकिन पीएम मोदी सरकार डरी नहीं बल्कि बहादुरी से लड़ी और अभी भी लड़ रही है जिसके अच्छे परिणाम देश के लोकतंत्र में देखने को मिल रहे हैं। एक अच्छे राजनेता की खूबी यही होती है कि वह अपने पीछे अच्छे परिणाम छोड़कर जाए जिससे आने वाले समय में इतिहास बने कि हमारे देश को वाकई ऐसा पीएम नरेंद्र मोदी मिला जिसने देश हित में अच्छे फैसले लिए और देश को नई दिशा दी। इस अच्छे दूरदर्शी नेता के अच्छे परिणामों का फल नई पीढ़ी को मिल रहा है और कांग्रेस ने देश में जो गलत बीज बोए हैं उनमें से कई कांटेदार हैं जो देश के लोकतंत्र को नुकसान पहुंचा रहे हैं जिनमें से एक है वक्फ बोर्ड और दूसरा है कश्मीर की 370, कांग्रेस ने कई ऐसे बीज बोए थे जो देश हित में सही नहीं थे।
भारत में वन नेशन वन इलेक्शन के तहत 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए हैं।
1968-69 के बीच कुछ विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण यह व्यवस्था बंद कर दी गई थी। वन नेशन वन इलेक्शन व्यवस्था का समर्थन करते हुए चुनाव आयोग की वार्षिक रिपोर्ट, 1983 में भी एक साथ चुनाव कराने का विचार प्रस्तुत किया गया था।
वर्ष 1999 में विधि आयोग ने अपनी 170वीं रिपोर्ट में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का समर्थन किया था।
वर्ष 2018 में विधि आयोग ने एक साथ चुनाव कराने के कार्यान्वयन का समर्थन करते हुए एक मसौदा रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें वन नेशन वन इलेक्शन के लिए चुनावी कानूनों में बदलाव की सिफारिश की गई।
इसमें एक साथ चुनाव कराने से संबंधित कानूनी और संवैधानिक बाधाओं और समाधानों की जांच की गई।
विधि आयोग ने सुझाव दिया कि एक साथ चुनाव केवल संविधान में उपयुक्त संशोधन करने के बाद ही कराए जा सकते हैं और कम से कम 50% राज्यों को इन संवैधानिक संशोधनों का अनुसमर्थन करना होगा।
* वन नेशन वन इलेक्शन का पक्ष लेने वाले का तर्क....
एक देश एक चुनाव से चुनाव लागत कम होगी। अलग-अलग समय पर चुनाव कराने से सरकार को समय, श्रम और वित्त के मामले में बहुत अधिक लागत आती है।
लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने से मतदान प्रतिशत भी बढ़ेगा।
अलग-अलग समय पर चुनाव कराने के लिए लगभग पूरे साल सुरक्षा बलों की तैनाती की आवश्यकता होती है। यदि सभी चुनाव एक साथ कराए जाएं, तो सुरक्षा बलों को अन्य आंतरिक सुरक्षा उद्देश्यों के लिए बेहतर तरीके से तैनात किया जा सकता है।
बार-बार होने वाले चुनावों से जाति, धर्म और सांप्रदायिक मुद्दे पूरे देश में चर्चा में रहते हैं, जो सामाजिक व्यवस्था के लिए नकारात्मक पहलू है।
अलग-अलग समय पर चुनाव कराने से राजनीतिक वर्ग को दीर्घकालिक कार्यक्रमों और नीतियों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय तत्काल चुनावी लाभ के बारे में सोचने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
नियमित अंतराल पर होने वाले चुनाव व चुनाव प्रक्रिया में शिक्षकों सहित बड़ी संख्या में लोक सेवकों की भागीदारी के कारण आवश्यक सेवाओं की आपूर्ति में बाधा डालते हैं।
एक देश एक चुनाव से चुनाव में होने वाला खर्च भी कम होगा, जिससे छोटे दलों को चुनाव प्रचार के दौरान बड़े दलों के बराबर अवसर मिलेंगे।
आदर्श आचार संहिता सरकार को चुनाव आयोग की मंजूरी के बिना नई योजनाओं की घोषणा करने, नई नियुक्तियां करने, स्थानांतरण और पोस्टिंग करने से रोकती है, जिससे सरकार के सामान्य कामकाज में बाधा आती है।
सभी चुनाव एक साथ पूरे होने से आदर्श आचार संहिता लागू होने की अवधि कम हो जाएगी।
* वन नेशन वन इलेक्शन का विरोध करने वाले विपक्ष का तर्क... एक साथ चुनावों के कारण, राष्ट्रीय मुद्दे राज्य के मुद्दों पर हावी हो सकते है। यही विपक्षी दलों के नेताओ का सबसे बड़ा डर है।
एक साथ सभी चुनाव, का विरोध करने वाले दलों के बीच चिंता का प्राथमिक कारण संवैधानिक गड़बड़ियां और संघ विरोधी परिणाम है।
विपक्षी दलों के अनुसार, इस तरह के विचार-विमर्श से, भारतीय राजनीतिक व्यवस्था की संघीय प्रकृति पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
राष्ट्रीय चुनावों में राष्ट्रीय हितों के मुद्दे प्राथमिकता में होते है, जबकि राज्य चुनाव स्थानीय मुद्दों से संबंधित होते है।
नियमित चुनावों के कारण, सरकार लोगों की इच्छा को सुनने के लिए बाध्य होती है, सभी चुनावों के एक साथ सम्पन्न होने के कारण सरकार की जनता के प्रति जवावदेही में कमी आएगी।
सरकार को वापस बुलाए जाने के डर के बिना, एक निश्चित कार्यकाल का प्रावधान निरंकुश प्रवृत्तियों को जन्म दे सकता है।
लोकतंत्र में एक साथ सभी चुनाव कराना बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य होगा, पहली बार तो लोकसभा और संबंधित राज्यों की विधानसभाओं के कार्यकाल को संशोधित करके सभी चुनाव, एक साथ सम्पन्न कराए जा सकते है, लेकिन ऐसी स्थिति को लंबे समय तक बनाए रखना चुनौतीपूर्ण होगा, क्योंकि, जैसे ही कोई सरकार अपनी विधानसभा में विश्वास खो देती है, यह व्यवस्था फिर से अस्त-व्यस्त हो जाएगी।
वर्तमान व्यवस्था को इसलिए चुना गया, ताकि नियमित चुनाव कराकर लोकतंत्र की इच्छा को कायम रखा जा सके, और लोग मतदान के अधिकार के माध्यम से अपनी इच्छाओं की अभिव्यक्ति कर सकें।
एक देश एक चुनाव के लिए चुनाव प्रणाली को संशोधित करने का अर्थ, लोगों की लोकतांत्रिक इच्छा को व्यक्त करने की शक्ति के साथ छेड़छाड़ करना होगा।