आज देश में कुछ राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ साथ धार्मिक संस्थानों में भी अलगाववादी सोच व समर्थन से देश को हो सकता है बड़ी नुकसान.

Today, the separatist thinking and support

आज देश में कुछ राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ साथ धार्मिक संस्थानों में भी अलगाववादी सोच व समर्थन से देश को हो सकता है बड़ी नुकसान.
आज देश में कुछ राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ साथ धार्मिक संस्थानों में भी अलगाववादी सोच व समर्थन से देश को हो सकता है बड़ी नुकसान.

NBL, 11/06/2023, Lokeshwer Prasad Verma Raipur CG: Today, the separatist thinking and support of the leaders of some political parties as well as religious institutions in the country can cause a great loss to the country.

भारत देश बहुत विशाल देश है, और भारत में विभिन्न प्रकार के राजनीतिक दलों के साथ साथ विभिन्न प्रकार के धर्मो का निवास स्थान है, इन्ही सभी के कारण भारत को महान कहा जाता है,  अनेकता में एकता भारत की विशेषता यह शब्द का बड़ा ही प्रभाव है देश में हिंदू, मुस्लिम सिक्ख ईसाई आपस में है हम सब भाई भाई, और यही हमारे एकता के बलो के ताकत को देखकर मुगल और अंग्रेज शासन भारत छोड़ भाग लेने में ही अपनी भलाई समझा और आज हम सभी भारतीय नागरिक पूरी तरह से स्वतंत्र है, लेकिन आज हम आप सभी धर्मो के लोगों की शांति भंग करने के लिए देश में कुछ राजनीतिक दल व देश के कुछ धार्मिक संस्थाने अलगाव वादी सोच के साथ देश में तोड़ फोड़ की राजनीति व धार्मिक उन्माद फैला रहे हैं। और सदियों पहले देश में गद्दार थे और देश के साथ गद्दारी की उन्ही को ये अलगाव वादि लोग अपना हीरो बताकर व इनके समर्थन कर देश में अशांति फैला रहे हैं। 

अलगाववाद

अलगाववाद को राजनीतिक विघटन के एक उदाहरण के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें एक या एक से अधिक उप-व्यवस्थाओं में राजनीतिक अभिनेता अपनी वफादारी, अपेक्षाओं और राजनीतिक गतिविधियों को एक न्यायिक केंद्र से वापस ले लेते हैं और उन्हें अपने स्वयं के केंद्र पर केंद्रित करते हैं। 

क्षेत्रवाद सांप्रदायिकता भारत में धर्मनिरपेक्षता भारत में सामंतवाद

* भारत में अलगाववाद

अलगाववाद जातीय पहचान के विकास की ओर जाता है, जिसे विभाजनकारी और राष्ट्रीय एकीकरण के लिए हानिकारक माना जाता है। 

देश के विभिन्न हिस्सों से भारत की अलगाववादी ताकतों ने या तो भारतीय संघ (जैसे झारखंड) के भीतर एक अलग राज्य की मांग के रूप में या भारतीय संघ के बाहर एक संप्रभु राज्य की मांग के रूप में मांग किया जा रहा था खालिस्तानी अलगाव वादि सोच वाले लोग। 

अलगाववाद के लिए एक एकजुट अल्पसंख्यक समूह की आवश्यकता होती है जो एक अच्छी तरह से परिभाषित भौगोलिक क्षेत्र पर हावी हो और केंद्र सरकार के खिलाफ शिकायत की एक मजबूत भावना रखता हो।

अलगाववादी दावा क्रोध, से चोट और अपमान की तीव्र भावनाओं के साथ होता है जो अक्सर विद्रोहों और क्रांतियों की आग को हवा देता है। 

भारत में कई लोकप्रिय अलगाववादी आंदोलन हुए हैं, जिनमें नक्सल-माओवादी उग्रवाद, खालिस्तान आंदोलन, असम अलगाववादी आंदोलन, कार्बी अलगाववाद आदि शामिल हैं। 

* भारत में अलगाववाद के प्रकार

अलगाववाद कई प्रकार का हो सकता है। भारतीय परिदृश्य में, 6 अलग-अलग प्रकार के अलगाववाद की पहचान की गई है, अर्थात्, 

* भाषाई-सांस्कृतिक अलगाववाद, 

* आर्थिक शिकायतों के आधार पर क्षेत्रीय अलगाववाद, 

* राजनीतिक शिकायतों के आधार पर क्षेत्रीय अलगाववाद, 

* आदिवासी अलगाववाद, 

* अल्प संख्यक अलगाववाद

* मिट्टी के पुत्र अलगाववाद।

सामान्य तौर पर, अलगाववाद दो प्रकार के होते हैं, जैसे बाहरी अलगाववाद और आंतरिक अलगाववाद। 

दोनों शब्द संबंधों के विच्छेद या संविदात्मक संबंधों को समाप्त करने का उल्लेख करते हैं। 

निर्णय लेने के कुछ क्षेत्रों में प्रांतीय या राज्यों के अधिकारों या बढ़ी हुई स्थानीय स्वायत्तता की मांगों में अलगाववाद व्यक्त किया जा सकता है। 

अलगाववाद एक स्वतंत्र, संप्रभु स्थिति के दावे के आधार पर एक सदस्य इकाई द्वारा एक केंद्रीय राजनीतिक प्राधिकरण से औपचारिक निकासी की मांग का जिक्र करते हुए एक संकीर्ण, अधिक विशिष्ट शब्द है। 

राजनीतिक एकीकरण/विघटन सिद्धांत के संदर्भ में अलगाववाद और अलगाववाद को समझना न केवल अलगाव के विश्लेषण की सुविधा प्रदान करता है, बल्कि उस प्रक्रिया को भी स्पष्ट करता है जिससे न्यायिक केंद्र अलगाववाद का विरोध करने और राज्य की अखंडता को बनाए रखने या बढ़ाने का प्रयास करता है। 

* अलगाववाद का वैश्विक परिदृश्य 

अलगाववाद अक्सर दुनिया की प्रमुख शक्तियों के बीच गंभीर दरार पैदा करता है। 

अलगाववाद पर अंतर्राष्ट्रीय कानून अस्पष्ट है, जिससे अलगाववादी आंदोलनों के लिए एक असंगत और गैर-समान वैश्विक प्रतिक्रिया होती है।

आज भारत में अलगाव वादियों की सोच कुछ अलग ही है कोई नाथू राम गोडसे के विचार धारा को सही मान लिया जा रहा है तो कोई क्रूर मुगल बादशाह औरंगजेब के विचार धारा में चल रहे हैं जो दोनों देशहित के लिए सही नही था भारत में बोलने की आजादी का सही लाभ ये अलगाव वादियों द्वारा भरपूर दुरूपयोग किया जा रहा है। 

भारत में ऐसा कानून क्यों नहीं बना है जो अपने देश के अंदर गद्दार थे और देश के साथ गद्दारी की उन लोगों के बारे में देश के अंदर बात करते हैं, जो संपूर्ण राष्ट्र के तीन तिहाई लोगो की समर्थन नहीं है, तो एक तिहाई लोगो के अलगाव वादी सोच या इनके द्वारा किये गए आंदोलन को समर्थन क्यों दिया जाता है, जो देश हित में नही है ना ही इन गद्दारों के विषय में बात करने से देश का भला होगा तो इन अलगाव वादियों के लिए देश में कठोर दण्ड क्यों नहीं है जबकि तीन तिहाई देश के लोग शांति के साथ जीना चाहते है, तो एक तिहाई अलगाव वादी अशांति फैलाने वाले लोगों के लिए देश में कानून क्यों नहीं????