CG- MD पर होगी FIR बिग न्यूज: MD समेत 7 अधिकारियों और चार ठेकेदारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का आदेश.... अदालत ने दिए अफसरों-ठेकेदारों पर कार्रवाई के आदेश.... ये है गंभीर आरोप.... पढ़िए मामला.....




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अंबिकपुर 6 दिसंबर 2021। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने तत्कालीन एमडी, सात अधिकारियों और चार ठेकेदारों के खिलाफ अपराध दर्ज करने का आदेश दिया है। अंबिकापुर शहर में 11 किलोमीटर के अधूरे रिंग रोड से भ्रष्टाचार का हाइवे निकला है। अंबिकापुर में 10 किलोमीटर के रिंग रोड के लिए छत्तीसगढ़ सड़क विकास निगम ने 70 करोड़ का टेंडर किया और उसे 94 करोड़ का भुगतान कर डाला। उपर से रिवाइज के नाम पर चार करोड़ और। जिस कंट्रेक्टर को काम दिया गया, उसे कंक्रीट की सड़क बनाने का अनुभव भी नहीं था। उसने पेटी कंट्रेक्टर को काम सौंप दिया। अंबिकापुर के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत ने इसे भ्रष्टाचार का मामला मानते हुए अफसरों और ठेकेदारों पर FIR दर्ज करने का आदेश दिया है।
जिन अफसरों पर आरोप है उनमें छत्तीसगढ़ राज्य सड़क विकास निगम के तत्कालीन प्रबंध संचालक अनिल राय (IFS) का नाम प्रमुख रूप से शामिल है। डी.के. सोनी ने अपने परिवाद में CSRDC के प्रबंध संचालक अनिल राय, महाप्रबंधक जी.एस. सोलंकी, परियोजना प्रबंधक मानसिंह ध्रुव, वित्त प्रबंधक सचिन शर्मा, आहरण एवं संवितरण अधिकारी निशेस भट्ट, उप परियोजना प्रबंधक रश्मि वैश्य और सहायक परियोजना प्रबंधक अभिषेक विश्वकर्मा को प्रतिवादी बनाया था। उनके साथ टीम लीडर सुनील कुमार पांडेय, ठेकेदार सुशील अग्रवाल, आरसी टेस्टिंग दिल्ली के प्रबंधक राहुल सोनी और शंकर अग्रवाल को भी प्रतिवादी बनाया गया था।
अब इन्हीं के खिलाफ FIR होगी। अदालत में परिवाद दाखिल करने वाले अंबिकापुर के अधिवक्ता डी.के. सोनी ने बताया, लोक निर्माण विभाग ने 2017 में 10.8 किमी लंबे रिंग रोड के उन्नयन और सुदृढ़ीकरण की प्रशासकीय स्वीकृति जारी की थी। इसके लिये 9757.49 लाख रुपए मंजूर हुये। राज्य सड़क विकास निगम ने रायपुर की श्री किशन एंड कंपनी को काम सौंपा। इसके लिए एक वर्ष का समय निर्धारित किया गया। इस कंपनी ने भी सूरजपुर की एक फर्म जगदंबा कंस्ट्रक्शन को पेटी कांट्रेक्टर बना दिया।
उसके बाद गड़बड़ियों का खेल शुरू हुआ। सड़क के लिये बने ड्राइंग-डिजाइन और मानको की अनदेखी की गई। 2018 तक तैयार हो जाने वाली सड़क 2020 तक अधूरी थी। 4 अक्टूबर 2019 तक कुल 94 करोड़ 08 लाख 56हजार 752 रुपए का भुगतान हो चुका था। जबकि कंस्ट्रक्शन कंपनी को केवल 70 करोड़ 60 लाख 06 हजार 250रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति थी। आरोप है कि अधिकारियों की मिलीभगत से ठेकेदार को 23 करोड़ 48 लाख 50 हजार 502रुपए का अधिक भुगतान किया गया।