अब देश की राजनीति में एक नया विस्तार होना चाहिए, सभी राजनीतिक दल जो देश को अपराध रहित नेता दें, ताकि देश का विकास निरंतर आगे बढ़ता रहे।

Now there should be a new expansion in the politics of

अब देश की राजनीति में एक नया विस्तार होना चाहिए, सभी राजनीतिक दल जो देश को अपराध रहित नेता दें, ताकि देश का विकास निरंतर आगे बढ़ता रहे।
अब देश की राजनीति में एक नया विस्तार होना चाहिए, सभी राजनीतिक दल जो देश को अपराध रहित नेता दें, ताकि देश का विकास निरंतर आगे बढ़ता रहे।

NBL, 10/04/2023, Lokeshwer Prasad Verma Raipur CG: Now there should be a new expansion in the politics of the country, all the political parties who give crime free leaders to the country, so that the development of the country continues to move forward.

देश में कई प्रकार के अपराध करने वाले अपराधियों के लिए देश के राजनीतिक दल पार्टी एक पनाहगार है, जो देश के अनेक अपराधियों ने सफेद चोला पहनकर राजनीति कर रहे हैं, और अपने दबंगई से वह सब काम कर रहे हैं, जो वह खुले आम अपने अपराध की दुनिया में करते थे, क्योकि इन अपराधियों को अब प्रशासनिक प्रोटेक्सन मिला हुआ है,  इन जैसे अपराधियों के राजनीति में होने से देश का क्या भला होगा और देश कैसे तरक्की करेगा ? देश के हर एक राजनीतिक दलों के अंदर इन अपराधियों का एक अड्डा बना हुआ है,  इन राजनीतिक दलों के द्वारा इन अपराधियों को केंद्र व राज्य के कोई भी एक क्षेत्र में इनको एक पोस्ट व पद देकर इनको राजनितिक दलों के द्वारा रक्षित पोषित किया जा रहा है। धीरे धीरे इन अपराधियों को विधायक व सांसद तक का टिकट मिल जाता है, इन राजनीतिक दलों के द्वारा जो अपराधि देश समाज के लोगों के हाथ से रोजी रोटी,जमीन धन दौलत बहु बेटी के आबरू को छीन लेता था, वही अपराधि नेता बनकर रोजी रोटी देने की बात कर रहे हैं, क्या यह उचित न्याय इन अपराधिक नेता देश के लोगों को न्याय दे पायेगा ? जो खुद देश के न्याय व्यवस्था को लात मारकर सत्ता के पनाह में रहकर देश सेवा का ढोंग कर रहे हैं। मुँह में राम बगल में छुरी वाले दो मुहे सांप वाले  है इन अपराधिक नेता जिनके उपर भरोसा नहीं किया जा सकता है। आज सभी राजनीतिक दलों के सिस्टम में गड़बड़ी है, जिसको सुधारना अति आवश्यक है देश हित के लिए। डर भय मुक्त राजनीति भारत में होनी चाहिए तब देश उन्नति के पथ पर आगे बढ़ेगी। 

निर्वाचन आयोग को इस अपराधिक गतिविधि वाले राजनीतिक नेताओ की एक सूची बनाकर देश के हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट को देनी चाहिए, ताकि इन अपराधियों के उपर लगाम लगाई जा सके, और ऐसा अपराधियों को पनाह देने वाले राजनीतिक दलों के उपर भी कोर्ट को सख्ती बरतनी चाहिए और उनके उपर कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि देश में इन अपराधियों का राजनीति में दाखिल होना बन्द हो जाए, इसलिए इन अपराधियों को रोकना जरूरी है, अक्सर इन अपराधियों का जन्म कुंडली जो राजनीतिक दल सत्ता में काबिज है तब तक तो कोई इनके उपर कानूनी कार्रवाई नहीं होता है, जैसे ही इनके सत्ता गई तो इन अपराधियों के उपर गाज गिरने शुरू हो जाते हैं, जैसे आज आपको देखने को मिल रहा है उत्तर प्रदेश के अंदर सीएम योगी आदित्यनाथ इन आपराधिक बाहुबलियों को जेल का सफर करवा रहे हैं, और इनके अवैध संपत्ति को सरकार अपने प्रशासनिक तरीके से उनके उपर बुल्डोजर से तोड़वा रहे हैं और उस सम्पति को सरकार अपने कब्जे में ले रहा है। 

तो क्या मतलब निकला इन जैसे अपराधियों को अपने राजनीतिक दलों में जगह देने से, आखिर इन जैसे अपराधियों के काले कारनामे उझागर होने से आप राजनीतिक दलों की बदनामी हो रहा है, इनको पनाह देने का आरोप लग रहे हैं वर्तमान सरकार और आपके राज्य के रहवासी लोग जिसके वोट बल पर आप राजनीतिक नेताओ को सत्ता हासिल होता है, और इन जैसे आपराधिक बाहुबलियों को आप पनाह देकर अपना राजनीतिक नुकसान तो किया ही साथ में अपने राज्य के लोगों का भी नुकसान करवाया जो इन आपराधिक बाहुबलियों से तंग था आपके राज्य के जनता जिस जनता को आपके उपर भरोसा था उन्ही जनता के विश्वास के साथ आपने विश्वास घात कर रहे थे, इसलिए इन आपराधिक बदमाशो को राजनीति में जगह ही नहीं देना चाहिए। 

अपराध से कुछ नहीं मिलता, न ही राजनीति से, किंतु आज हमारी संसदीय व्यवस्था का राजनीति के अपराधीकरण ने अपहरण कर लिया है, जहां पर हजारों अपराधी से राजनेता बने नेता अपनी बुलेट प्रूफ जैकेट और सांसद तथा विधायक के टैग दिखाते हैं और कहते हैं अब किसका दम है कि मुझे एनकाऊंटर में मारे। अपराधी से नेता बने नए बाहुबलियों का और जो जीता वो सिकंदर का स्वागत है। किंतु अब ऐसा नहीं होगा। यदि उच्चतम न्यायालय की चली तो इन बुराइयों पर रोक लगेगी। 

राजनीति के अपराधीकरण पर कटु टिप्पणी करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि यह लोकतंत्र के लिए दीमक बन गया है और उम्मीदवारों को निर्देश दिया है कि वे निर्वाचन आयोग को अपने आपराधिक अतीत और उनके विरुद्ध आपराधिक मामलों के बारे में मोटे अक्षरों में सूचित करें और पार्टियों को भी इस बारे में सूचित करें तथा पार्टियां इन उम्मीदवारों के बारे में इन सूचनाओं को जनता की जानकारी के लिए अपनी वैबसाइट पर डालें। उम्मीदवारों तथा पार्टी दोनों को उम्मीदवारों के आपराधिक रिकार्ड के बारे में समाचार पत्रों और टी.वी. चैनलों पर नामांकन पत्र दाखिल करने के बाद कम से कम 3 बार व्यापक प्रचार-प्रसार करना होगा।

तथापि पांच न्यायाधीशों की खंडपीठ ने गंभीर अपराधों के मामले में मुकद्दमों का सामना करने वाले उम्मीदवारों को चुनाव लडऩे के अयोग्य घोषित करने से इंकार कर दिया तथा संसद से आग्रह किया कि वह जघन्य और गंभीर अपराधों जैसे बलात्कार, हत्या, अपहरण का सामना कर रहे नेताओं को चुनाव लडऩे से रोकने के लिए कठोर कानून बनाए तथा पार्टियां संसदीय और विधानसभा चुनावों में टिकट देने से इंकार करें। इस निर्णय से पार्टियां आपराधिक तत्वों के बारे में जानकारी देने के लिए बाध्य होंगी और यह केवल विधायकों तक सीमित नहीं है अपितु पार्टियों पर भी लागू होगा। किंतु यह कहना आसान है, करना मुश्किल है क्योंकि हर कीमत पर चुनाव जीतना एक नई राजनीतिक नैतिकता बन गई है। चुनाव आयुक्त के शब्दों में ‘‘विजेता कोई पाप नहीं कर सकता है। 

अपराधी के सांसद या विधायक चुने जाने के बाद उसके सारे अपराध माफ हो जाते हैं। इस सबका दोष पार्टियों का है। पाॢटयां प्रतिद्वंद्वियों के बारे में तुरंत निर्वाचन आयोग को शिकायत करती हैं किंतु वे राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिए कानून लाने से घबराती हैं और इसका कारण यह है कि कुर्सी तथा उसके साथ जुड़ा पैसा ऐसी दासी है जिससे प्यार किया जाता है, जिसका बलात्कार किया जाता है और जिसे हर कीमत पर जीता जाता है।’’ आज ऐसे वातावरण में जहां पर धन, बल और बाहुबल सर्वोच्च शक्ति बन गए हों, कोई भी पार्टी या उसके नेता देश को आगे बढ़ाने के बारे में बात नहीं करते हैं, न ही वे चरित्र, सत्यनिष्ठा, ईमानदारी आदि के आधार पर सही उम्मीदवारों का चयन करते हैं। 

जीतने की सम्भावना को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है। आज सत्ता संख्या का खेल बन गई है इसलिए पार्टियां माफिया डॉनों को टिकट देती हैं जो अपने बाहुबल से वोट प्राप्त करते हैं। आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार पार्टियों के लिए फायदेमंद होते हैं क्योंकि उनकी जेब भरी हुई होती है, वे चुनाव लडऩे के लिए पैसा देते हैं तथा पार्टियां उन्हें कानून से संरक्षण और समाज में सम्मान दिलाती हैं। हमारे राजनीतिक अपराधियों को आज विजयी सांडों तथा सफेदी की चमकान की तरह पेश किया जाता है, जिसके चलते राज्य माफिया डॉनों, उनकी सेनाओं का अखाड़ा बन जाता है। कोई इस बारे में नहीं सोचता कि वे समाज और राष्ट्र के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गए हैं। 

हैरानी की बात यह है कि आज लोकसभा के 541 सांसदों में से 34 प्रतिशत अर्थात 186 सांसदों पर गम्भीर आपराधिक मामले चल रहे हैं, जिनमें से नौ पर हत्या, 13 पर हत्या का प्रयास, अपहरण, महिलाओं के विरुद्ध अपराध जैसे मामले हैं। 2004 के बाद इनकी संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। 2009 से 2014 के बीच लोकसभा के 545 सांसदों में से 162 अर्थात 30 प्रतिशत सांसदों पर ऐसे मामले चल रहे थे, जबकि इनकी संख्या 2004-2009 के बीच 24 प्रतिशत अर्थात 128 थी। यही नहीं, 30 प्रतिशत से अधिक विधायकों, सांसदों ने अपने विरुद्ध आपराधिक मामलों की घोषणा की है जिनमें से 688 के विरुद्ध गंभीर आरोप हैं। राज्यों में स्थिति और भी भयावह है। झारखंड में 74 विधायकों में से 55 विधायकों अर्थात 74 प्रतिशत के विरुद्ध आपराधिक मामले लंबित हैं। बिहार में 58 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश में 47 प्रतिशत विधायकों के विरुद्ध आपराधिक मामले लंबित हैं। 

पार्टियों की स्थिति और भी खराब है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के 82 प्रतिशत, राजद के 64 प्रतिशत, सपा के 48 प्रतिशत, भाजपा के 31 प्रतिशत और कांग्रेस के 21 प्रतिशत सांसदों, विधायकों के विरुद्ध आपराधिक मामले लंबित हैं। कल के माफिया डॉन आज हमारे सांसद हैं। अब कानून उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। वे स्वयं में काननू और सर्वशक्तिमान हैं। स्थिति ऐसी हो गई है कि आज हमारे निर्वाचित जनसेवक जनता, लोकतांत्रिक मूल्यों और सुशासन की कीमत पर अपने अंडरवल्र्ड आकाओं की धुन पर नाचते हैं। मािफया डॉन जेल से भी चुनाव जीत जाते हैं। कुछ सांसद जेल में भी अपना दरबार चलाते हैं, उन्हें वहां सारी सुविधाएं मिलती हैं। वे वहीं से अपने मोबाइल पर अपने चमचों को निर्देश देते हैं। कुछ लोग गिरफ्तारी से बचने के लिए अग्रिम जमानत ले लेते हैं और कुछ गिरफ्तारी से बचने के लिए लापता हो जाते हैं और बाद में आत्मसमर्पण करते हैं। 

यह बात समझ में नहीं आती है कि लालू के जेल में रहते हुए भी राजद विजयी हुआ जबकि उसकी हार होनी चाहिए थी। कुछ लोग अपराध के राजनीतिकरण के इस दौर को हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया का विकासात्मक चरण मान सकते हैं, किंतु प्रश्न यह उठता है कि अपराधी किसकी तरफ हैं उनकी तरफ या हमारी तरफ । अपराधियों और पाॢटयों की सांठ-गांठ के बीच पारस्परिक लाभ के चलते हमारे नेतागण इस बारे में किसी भी तरह का कानून लाने से बचते हैं और वे नहीं चाहते हैं कि राजनीति को अपराधीकरण, भ्रष्टाचार और विश्वसनीयता के संकट से बचाया जाए। हमारे सांसद और विधायक अधिकतर मुद्दों पर दलीय आधार पर बंट जाते हैं, किंतु इस मामले में कदम उठाने के बारे में वे एकजुट हो जाते हैं। फिर इस समस्या का समाधान क्या है? अब हम केवल इसे राजनीतिक कलियुग कहकर छोड़ नहीं सकते। भारत आज एक नैतिक चौराहे पर है विशेषकर इसलिए भी कि हमारे राजनेताओं ने निम्न नैतिकता और उच्च प्रलोभन की कला में महारत हासिल कर ली है। 

उच्चतम न्यायालय ने भारत के राजनीतिक दलों का पर्दाफाश किया है। भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करने के लिए अयोग्य घोषित करने से पूर्व और कितने हत्या के आरोपों की आवश्यकता होगी? क्या देश में ईमानदार और सक्षम नेता नहीं हैं? क्या कोई देश लज्जा और नैतिकता की भावना के बिना रह सकता है? और यदि हां तो कब तक? समय आ गया है कि हमारे राजनेता अपनी प्राथमिकताओं के बारे में पुनर्विचार करें और राजनीति में अपराधियों और माफिया डॉनों के प्रवेश को रोकने के लिए कानून लाएं। क्या हमारे नेता स्वच्छ राजनीति की रक्षा करने के लिए आगे आएंगे? कोई भी देश छोटे आदमियों की लंबी परछाई देश पर पडऩे की अनुमति नहीं दे सकता क्योंकि देश को सबसे महंगा अपराधी राजनेता पड़ता है।