कर्मों की सजा मिलती है लेकिन सन्त इसे कम, ज्यादा, मेट सकते हैं क्योंकि उनका स्थान ऊंचा, पावर ज्यादा होती है




भारत देश योग भूमि और विदेश भोग भूमि है
सही तरीके से ध्यान लगाने से किसी से कहीं भी मिल सकते हो
उज्जैन (म.प्र.)। गुरु का, प्रभु का अंतर में 24 घंटे दर्शन करवाने वाले जिससे बाहर फोटो लगाने की जरूरत नहीं रहती, भारत की पावन भूमि पर जन्म लेकर विदेश के समान भोग व्यवहार न करने और अपने मनुष्य जीवन के असली उद्देश्य की प्राप्ति का मार्ग बताने वाले, अपने भक्तों के पुराने पाप कर्मों की सजा को कम या पूरी तरह से मिटाने यानी माफी देने का अधिकार जो अवतारी शक्तियों के पास भी नहीं होता इतनी जबरदस्त ताकत वाले इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु त्रिकालदर्शी उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 3 सितम्बर 2022 दोपहर भरुच (गुजरात) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि फोटो क्यों लगाते हैं।
गुरु की फोटो क्यों लगाते हैं
गुरु महाराज तो चले गए इस दुनिया संसार से। प्रेमियों! फोटो तो इसलिए लगाना पड़ता है कि 'गुरु का ध्यान कर प्यारे, बिना इसके नहीं छुटना'। सन्तमत में गुरु ही सब कुछ होते हैं। गुरु का चेहरा भूल जाता है तो फोटो लगा लिया जाता है कि चेहरा याद आ जाएगा तो ध्यान लगाने में आसानी रहेगी। जब अंदर में गुरु मिलने लग जाते हैं, अंदर में गुरु का दर्शन होने लग जाता है तब फोटो भी लगाने की जरूरत नहीं पड़ती है। गुरु महाराज समरथ गुरु हैं।
भारत देश योग भूमि और विदेश भोग भूमि है
महाराज जी ने 8 अप्रैल 2020 सांय उज्जैन आश्रम में दिए गए संदेश में बताया कि यह भारत देश हमेशा से परोपकारी धार्मिक देश रहा है। यह योग भूमि है। बाकी देश योग भूमि नहीं कहे गए। भोग भूमि है वहां। वहां पर जो रहने खाने काम करने की विचार भावना और शैली है वह अलग है। विनाश को ही विकास मान रहे हैं। विनाश की कगार पर आदमी बढ़ता जा रहा है और कह रहा है विकास कर रहे हैं।
समर्थ सन्त कर्मों को कम ज्यादा या नष्ट करवा सकते हैं
महाराज जी ने 8 अप्रैल 2020 प्रातः उज्जैन आश्रम में दिए गए संदेश में बताया कि कर्मों की सजा मिलती है। लेकिन इसको कम और ज्यादा कौन कर सकता है? मेट (मिटा) कौन सकता है? जिसको पावर होता है, सन्तों को। आपको पिछले सतसंगो में सुनाया गया सन्तों का स्थान ऊंचा होता है। सन्तों की पावर ज्यादा होती है। वह कर्मों को काट, कटवा सकते हैं। कर्मों को खुद (पर) ले सकते हैं।इसलिए अमावस्या पूर्णिमा के दिन लोग सतसंगों में जाते थे। सतसंग का कार्यक्रम होता रहता था। गुरु महाराज भी सतसंग करते थे। पूर्णिमा के दिन बहुत से प्रेमी जाते थे। गुरु महाराज जब चले गए, मेरे लिए आदेश किया उन्होंने। जब पूरा काम मैं उनका करने लग गया तो जहां भी रहता हूं वहां पर लोग आते हैं पूर्णिमा के दिन।
सही तरीके से ध्यान लगाने से किसी से कहीं भी मिल सकते हो
कहां की आंख बंद करो और ध्यान लगाओ। उसमें इतना गुण है कि आप किसी से भी कहीं भी मिल सकते हो। नहीं भी मिल सकते हो, नहीं भी ध्यान अगर बना तो वो इच्छा यानि पूरी होने पर जैसे अनुभव होता है, ऐसे अनुभव हो जाएगा।