न्यूरोसिस यानी खो जाना दुख-भरी खयाली दुनिया में यह रोग जेनेटीक हो जाते हैं, जो अपने ही नश्ल के लिए घातक है।




NBL, 27/02/2022, Lokeshwer Prasad Verma,.. न्यूरोसिस या न्यूरोटिक डिसॉर्डर रोग में रोगी में ऊपरी तौर पर कोई विशेष लक्षण नजर नहीं आते, लेकिन उससे बातचीत या लंबे संवाद के बाद उसके व्यक्तित्व में मौजूद विशिष्ट लक्षणों की झलक देखने को जरूर मिलती है। ऐसे व्यक्ति अपनी ही दुनिया में रहते हैं और अधिकतर रोजमर्रा के जीवन से पलायन करने की फिराक में रहते हैं। ऐसे रोगियों का उपचार मनोवैज्ञानिक विधि से ही संभव होता है। हालांकि उपचार लंबा होता है, लेकिन हरेक रोगी के आधार पर उचित समय तक होना चाहिए, पढ़े विस्तार से...।
बता रही हैं, मीनाक्षी। मनस्ताप (न्यूरोसिस या न्यूरोटिक डिसॉर्डर) एक मानसिक रोग है। वैसे तो यह एक सामान्य रोग है, परन्तु ध्यान न देने पर यह मनोविक्षिप्तता का रूप भी ले सकता है। मनस्ताप रोग से पीड़ित व्यक्ति अपने बाह्य वातावरण का उचित मूल्यांकन नहीं कर पाता है। मनस्तापी व्यक्ति का संबंध हमेशा वास्तविकता से नहीं रहता है, लेकिन ऐसा रोगी दुख, चिंता और तीव्र अंतद्वंद्वों के कारण अपनी योग्यता के अनुरूप कार्य करने में असमर्थ होता है। इन्हें यदि मनोचिकित्सक के पास ले जाया जाए तो ये ठीक हो सकते हैं।
क्या है मनस्ताप. ..
मनस्ताप मानसिक रोग का एक साधारण रूप है जिसमें व्यक्ति में संवेगात्मक, ज्ञानात्मक (मानसिक उलझन वगैरह) और क्रियाजनित यानी रोजमर्रा के कामकाज संबंधी विकृतियां उत्पन्न हो जाती हैं, जो व्यक्ति को आंशिक रूप से असमर्थ बना देती हैं। मनस्ताप वह मानसिक रोग है जिसमें व्यक्ति की स्नेह सुरक्षा और आत्मसम्मान जैसी जरूरी आवश्यकताओं की शर्ते पूरी नहीं हो पाती। रोगी ऐसा अनुभव करता है कि उसे कोई प्रेम नहीं करता, चिंताएं उसे घेरे रहती हैं तथा उसे लगता है कि वह अपराधी और दु:खी व्यक्ति है। इससे बचने के लिए वह सुरक्षात्मक प्रयासों का प्रयोग करता है। मनस्ताप का रोग पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को अधिक होता है। यह रोग प्राय: प्रारम्भिक प्रौढ़ावस्था में अधिक होता है। पढ़े-लिखे तथा उच्च महत्वाकांक्षी व्यक्ति भी इसकी चपेट में आते हैं।
लक्षण. .
जहां तक इसके लक्षणों की बात है तो इस संबंध में हम इन लक्षणों से न्यूरोटिक डिसॉर्डर को पहचान सकते हैं। ऐसे व्यक्ति के व्यक्तित्व में रोष आ जाता है। उसमें परिपक्वता तथा कठिनाइयों को सहन करने की शक्ति में कमी देखी जाती है।
वह रोजाना की साधारण परेशानियों से घबराने लगता है।
एसे रोगी अकेले में रहना पसंद करते हैं। आत्मकेन्द्रित हो जाते हैं और जीवन में संशय पाल लेते हैं। हमेशा दूसरों से मदद की अपेक्षा करते हैं। हताश और निराशावादी हो जाते हैं।
इन लक्षणों के कारण व्यक्ति में चिन्ता की भावना बलवती हो जाती है। वह अपने को समाज के लिए अनुपयोगी समझने लगता है। वह शंका और हीनता की भावना से ग्रसित रहकर अपना अस्तित्व धीरे-धीरे खोने लगता है। वह हमेशा अपनी ही भावनाओं, आशाओं और महत्वाकांक्षाओं के विषय में सोचता रहता है। ऐसे व्यक्ति हमेशा तनाव की स्थिति में रहते हैं, थोड़ा भी गुस्सा या अपमान सहन नहीं कर सकते। मनस्ताप रोगी निराशावादी और अपनी परिस्थितियों में संतुष्ट रहता है। इस रोग से ग्रसित व्यक्ति को लगता है कि कहीं कोई गड़बड़ है या कुछ खो गया है। इन कठिनाइयों के स्नोत को वह समझ नहीं पाता। वह जीवन की समस्याओं को दूर करने के बजाय पलायन करना चाहता है।
इन आधार पर हम देखें तो पाएंगे कि मनस्ताप के रोगी में अनेक विशिष्ट प्रकार के मानसिक तथा शारीरिक लक्षण पाए जाते हैं। मनोवैज्ञानिक स्तर पर चिन्ता आशंका के साथ ही अत्याधिक मात्र में पसीना आना, थकान, तनाव, अपच, मांसपेशियों में ऐंठन, दिल की धड़कन में वृद्धि, सिर दर्द, नींद की कमी आदि अनेक शारीरिक कष्ट इससे उत्पन्न होते हैं।
क्या कहता है विज्ञान
मनस्ताप के लिए काफी हद तक जैविक
कारक उत्तरदायी हैं। मनस्ताप के रोगी माता-पिता अपने बच्चों के विकास पर उचित ध्यान नहीं दे पाते। अत: उनके बच्चों में भी इस रोग के होने की संभावना अधिक रहती है। यह भी देखा गया है कि यदि कोई मनोविक्षिप्तता का रोगी है तो उसकी अगली पीढ़ी पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।