शुरू में साधना में थोड़ा त्याग करना पड़ता है, दोनों चीज एक साथ नहीं हो सकती कि शरीर और आत्मा को एक साथ सुख मिले




शुरू में साधना में थोड़ा त्याग करना पड़ता है, दोनों चीज एक साथ नहीं हो सकती कि शरीर और आत्मा को एक साथ सुख मिले
सतगुरु की बताई तन मन धन की सेवा करने से कर्म कटते, भजन में मन लगता है
त्याग में ही सुख है
उज्जैन (म.प्र.)। शारीरिक मानसिक आर्थिक सामाजिक समस्याओं तकलीफों को सतसंग सेवा साधना से दूर करके आराम दिलाने वाले, आत्मा से परमात्मा की सच्ची पूजा का तरीका बताने वाले, दुनिया और परमार्थ दोनों कमाने का उपाय बताने वाले, इस समय के युगपुरुष, दुःखहर्ता, त्रिकालदर्शी, परम दयालु, पूरे समरथ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त महाराज ने 8 दिसंबर 2022 प्रातः बावल आश्रम रेवाड़ी (हरियाणा) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित सन्देश में बताया कि आलस्य आदमी के लिए बहुत बड़ा अभिशाप है। आलस्य में कुछ काम नहीं हो पाता है। भक्ति और गृहस्थी दोनों काम नहीं हो पाता है। आलस्य में ही समय निकल जाता है। मान लो खेत की सिंचाई, बुवाई समय से करनी है, आज नहीं कल करेंगे तो बस उसी में समय निकल जाता है। जब बुवाई देर से होती है, सिंचाई नहीं हो पाती और पैदावार कम हो जाती है। दुकान में आलस्य में नहीं जा पा रहे, ग्राहक आये टूट गए तो कहां से आमदनी होगी और बढ़ेगी? भजन भाव भक्ति सेवा में भी आलस्य नहीं करना चाहिए। तन-मन-धन की सेवा से भजन में मन लगता है, कर्म कटते हैं। कर्मों का बहुत ही कठिन विधान बना दिया गया है जिससे आज तक कोई बच नहीं पाया। कर्मो की सजा सबको मिली। कर्म ही आड़े आते हैं भजन भाव भक्ति में। तो यह कर्म सेवा से, भजन से, संतसग से कटेंगे। यह मन जो कामी क्रोधी लालची हो गया है, यह सतसंग से बदलता है इसलिए सतसंग बराबर सुनते रहना चाहिए और जगह-जगह पर सतसंग का कार्यक्रम आयोजित करते रहना चाहिए। सतसंग से बहुत लाभ होता है, इससे जान तक लोगों की बच गई।
खडे-खड़े भी ध्यान लग जाता है
महाराज ने नव वर्ष कार्यक्रम में 31 दिसंबर 2020 प्रातः उज्जैन आश्रम में बताया कि जैसे ही ध्यान इधर से हटाया और उधर लगाया, सट से जीवात्मा शब्द को पकड़ लेती है और निकल जाती है। शरीर गिरता भी नहीं है और शरीर निर्जीव भी नहीं होता है। बैठे-बैठे खड़े-खड़े ध्यान लग जाता है और (जीवात्मा शरीर से) निकल जाती है। यह संबंध (जीवात्मा और शरीर का) बराबर बना रहता है। आदमी चलते-चलते ध्यान उधर लगाया और जीवात्मा निकल गई तब शरीर आगे चलेगा तो नहीं, रुक जाएगा लेकिन संबंध बना रहेगा और रुक गई, वहां (उपरी लोकों का) आनंद लेने लग जाएगी तब गिर जाता है। आना-जाना अगर हुआ जैसे बल्ब में करंट आता-जाता है तब भी रोशनी रहती है। तनिक देर के लिए भी जला तो भी रोशनी रहती है और ज्यादा देर के लिए करंट कट जाता है तब बल्ब नहीं जलता है। तो देर नहीं लगती है। कहा गया है पल में प्रलय होत है। पल किसको कहते हैं? समय के सबसे छोटे माप को पल कहते हैं। तो पलभर में लय हो जाओ। किसमें? जो शब्द बराबर उतर रहा है, उसमें। शब्द अगर बंद हो जाए तो संसार खत्म हो जाए। देवी-देवता भी शब्द के न रहने पर सिमट जाते हैं। तो शब्द ही सब कुछ है। उसी शब्द को सुनने का नाम है भजन।
प्रेमियों ! शरीर को थोड़ा कष्ट दो ताकि आपकी आत्मा को स्थाई सुख मिल सके, सेवा और साधना में आलसपन मत करो
(कुछ पाने के लिए) कुछ त्याग तो करना पड़ता है। दोनों चीज नहीं हो सकती है कि इस शरीर को भी सुख मिले और आत्मा को भी सुख मिले। दोनों काम एक साथ नहीं हो सकता है। शुरू में थोड़ा कष्ट देना पड़ता है। बहुत से लोग अभी भी सो रहे होंगे, कहते हैं कि हम पुराने सत्संगी हैं, नाम दानी भी है, गुरु महाराज की दया हमारे ऊपर खूब हुई है लेकिन अभी पड़े सो रहे होंगे। किसके लिए? शरीर के सुख के लिए। आप देखो ठंडी में उठकर के यहां पर आए, ध्यान भजन कर रहे हो, शरीर को कष्ट थोड़ा देना पड़ता है लेकिन आत्मा को सुख मिल जाता है। आत्मा फिर नरक चौरासी में नहीं जाती है। फिर तो यह अपने वतन अपने मालिक के पास पहुंच जाती है। तो प्रेमियों! आपको इन बातों को पकड़ना चाहिए और पकड़कर के अमल भी करना चाहिए। क्योंकि हर सतसंग में कुछ न कुछ बात मतलब की मिल जाती है तो उसको ग्रहण कर लेना चाहिए। यह कोई महाभारत रामकथा सत्यनारायण की कथा तो है नहीं जो लोग सुनाते हैं। यह उससे एक अलग चीज है। कथा, प्रवचन अलग होता है और सतसंग अलग। तो सतसंग जल जब कोई पावे मैलाई सब कट कट जावे। जिस भोग में फंसे हुए हो, यहा गंदगी मैलाई है। जहां मैलाई वहां सफेदी सच्छता नहीं रहती है। जहां अंधेरा वहां उजाला नहीं प्रकट हो सकता है। दोनों चीजें एक साथ नहीं रह सकती है। रज यानी सूरज और रजनी यानी रात। रात और दिन दोनों एक साथ नहीं हो सकते हैं। शरीर को थोड़ा कष्ट दो और अपना असली काम बनाओ, जिससे जीवात्मा नरक चौरासी में जाने से बच जाए, दुबारा इस दुनिया संसार में फिर न आना पड़े, एक ही जन्म में अपने मालिक वतन के पास पहुंच जाओ। यह हमेशा आप अपना लक्ष्य प्रेमियों बना लो।