तर्क वितर्क और कुतर्क में कैसे अंतर करें? पढ़े विस्तार से..




NBL,. 21/02/2022, Lokeshwer Prasad Verma,.. मेरा मानना है कि तर्क करने का उद्देश्य तटस्थ रह कर अंतिम निष्कर्ष तक पंहुचना है, अपनी बात को सत्य साबित करना नहीं। जाने पढ़े विस्तार से..।
इसके लिए मैं दो चरणों में जांच करता हूं।
पहला, मैं विपरीत पक्ष को समझने के लिए खुद को उसके स्थिति में रखने की कोशिश करता हूं, इससे उनकी बातों का जो सार तत्व होता है वह स्पष्ट हो जाता है और उसके समर्थन में जो बेकार के तर्क दिए जा रहे हैं, वह खुल के सामने आ जाता है।
दूसरा, मैं खुद को वाद विवाद में सहभागी के बजाय एक मूक दर्शक के रूप में रखता हूं । इससे पूरे स्तिथि को समझने में मदद मिलती है और खुद के तर्कों का आंकलन सामने वाले की तुलना में निष्पक्ष रूप से करने में आसानी होती है इसके साथ ही अपने पक्ष के समर्थन के लिए सोचे गए जो गैर असरदार तर्क होते हैं वह सामने आ जाता है।
इसके अलावा अन्य कई बातों पर भी ध्यान जाता है जैसे विपरीत पक्ष वाला जब बार बार एक ही बात पर ज़ोर दे रहा हो तब संभवतः उसके पास कोई अन्य तर्क सामग्री नहीं बची है, जब वह विवाद के दौरान गुस्सा हो रहा हो तब भी यह बात शर्तिया स्पष्ट है।
यदि वह एक ही बात को दोहरा रहा है और शांत बना है, तब यह तय कीजिए कि क्या वह आपकी बात सुनने के लिए बौधिक स्थान दे रहा है अगर नहीं तब तय है कि वह "शिथिल आक्रामक" की श्रेणी में है। मतलब कि आप कितना भी तर्क वितर्क कर लें वह अंदर से आपके वक्तव्य में उस तथ्य को ढूंढने में व्यस्त है जिसका ज़िक्र मैंने दूसरे चरण में किया है अर्थात् आपके समर्थन में कहे गए गैर असरदार तर्क। प्रतिपक्ष का उद्देश्य समान सहमति तक पंहुचना नहीं है बल्कि बिना आक्रामक दिखे अपनी बात मनवाना है।
कुतर्क की पहचान करना और भी आसान है।इसका उद्देश्य सामने वाले को गलत साबित करना है, खुद को सही साबित करना उद्देश्य नहीं है (दोनों बात एक सी लगती है किन्तु वादी और प्रतिवादी कि ऊर्जा क्या प्राप्त करने में खर्च हो रही है, इससे दोनों के बीच का भेद पता चल जाता है।)। वितर्क में तो आपके विचारों को स्थान देने की क्षीण संभावना भी है किन्तु जब उद्देश्य ही सामने वाले को गलत साबित करना है तब फिर हर तरह के तर्क और अनर्गल बातों को उदाहरस्वरूप रखा जा सकता है।
यहां यह जानना भी जरूरी है कि तर्क के लिए आपके पास विषयवस्तु की विस्तृत जानकारी होनी चाहिए अन्यथा सामने वाले की बातों को ज्ञान के अभाव में हम अतार्किक समझने की भूल कर सकते हैं।
मैं समझता हूं तर्क सामान्य सहमति की ओर ले जाता है, वितर्क में खुद को सही साबित करना ही उद्देश्य होता है और कुतर्क का उद्देश्य दूसरे को गलत साबित करना होता है।
अगर उद्देश्य विजय प्राप्त करना है, फिर आप कम बोलें , सामने वाले की गलतियां पकड़ने पर ध्यान दें, जब ऐसा हो जाए फिर अपनी बात रखें। हालांकि मैं इसको उचित नहीं मानता।
तर्क : जब हम कुछ दिए गए तथ्यों के आधार पर कोई निष्कर्ष निकालते हैं तो उसे तर्क कहते हैं।
बुद्धि: जब हम अपने दिमाग का उपयोग कर के किसी समस्या का हल निकालते हैं जिसमे रचनात्मकता, तर्क, समझ, भावनात्मक ज्ञान, निराकार सोच सब शामिल हो तो उसे बुद्धि कहते हैं। बुद्धि दो तरह की होती है।[1]
ठोस बुद्धि : जो ज्ञान हमें पढ़कर और अनुभव से आता है उसे ठोस बुध्दि कहते हैं। बढ़ती उम्र के हिसाब से ठोस बुद्धि अक्सर बढती है
तरल बुद्धि : हमारी नई समस्याओं को हल करने की वह क्षमता जो हमको बिना किसी पिछले निर्देश या जानकारी बगैर आती है उसे तरल बुद्धि कहते हैं। हमारी यह तर्कसंगत क्षमता, हमने जो पहले सीखा है या अनुभव किया है, उससे सम्बंधित ना होकर भी हममे होती है।
सरल उदाहरण : हम आपको एक बहुत सरल उदाहरण देकर समझाते हैं। मान लीजिये की आपको लखनऊ और दिल्ली के बीच एक रोड बनाना है। तर्क के हिसाब से आप कम खर्च पर रोड बनायेंगें जो की लगभग सीधी लकीर की तरह होगी और हर बड़े शहर के बीच से रोड गुजरेगा। क्योंकि तर्क के अनुसार टेढ़ा मेढ़ा रोड क्यों बनाना जिसमे ज्यादे पैसे खर्च हों। अगर आप तर्क से रोड बनायेंगें तो नीचे की तरह बनायेगें।
अगर बुद्धि से इसी रोड को बनाएं तो : अगर आपने तर्क की जगह अपने दिमाग का इस्तेमाल किया तो आप सोचेंगें क्यों ना रोड को थोड़ा टेढ़ा करके बनाते हैं ताकि यह आगरा होता हुआ जाए। थोड़े ज्यादा पैसे लगेंगें लेकिन आने जाने वालों को बहुत सुविधाजनक होगा।दिल्ली से लोग आगरा जायेंगें तब भी इसी रोड का इस्तेमाल करेंगें। जो लोग लखनऊ से ताजमहल घूमना चाहें वो लोग भी। इसमें तर्क नहीं है लेकिन यही रोड उत्तम होगा जो थोड़े से और पैसों में काफी सुविधाजनक हो सकता है। यही फर्क है तर्क और बुद्धि में उदाहरण के साथ !