देश में बुनियादी शिक्षा के मुख्य लक्ष्यों और सिद्धांतों की स्पष्टता और उद्देश्य, देश के बच्चों में अच्छी शिक्षा से देश प्रगति के पथ पर दो कदम आगे बढ़ेगा।
Clarity and purpose of the main goals and principles




NBL, 31/01/2023, Lokeshwer Prasad Verma, Raipur CG: Clarity and purpose of the main goals and principles of basic education in the country, good education among the children of the country will take the country two steps forward on the path of progress.
आज विश्व के कोई भी देश अगर उन्नति कर रहे हैं और आर्थिक विकास के साथ साथ उनका देश शाररिक व मानसिक व आध्यात्मिकता से सबल है, तो आप जान ले उस देश की बुनियादी शिक्षा मजबूत है, तब वह देश उन्नति कर अपने देश को हर प्रकार से मजबूत बना रहे हैं, बाहरी बेतुके लोगों से व देश के गंदे राजनीतक नेताओं के बेतुके ब्यान बाजी के उलझनों से कोसों दूर होकर व अपने शिक्षा के बल पर नया इतिहास रच सकते है, और यह सब अपने खुद के विकास व देश के विकास के लिए बेहद जरुरी है। हमारे भारत देश का शिक्षा व इनके उद्देश्य व सिद्धांत कैसा होना चाहिए, इस पर नजर जरूर डाले, पढ़े आगे विस्तार से...
* बुनियादी शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य निम्न प्रकार हैं...
* नैतिकता में वृद्धि- आज के समाज में नैतिकता का ह्यस दिन-प्रतिदिन हो रहा है। बुनियादी शिक्षा का एक प्रमुख उद्देश्य बालकों में नैतिकता की भावना का विकास करना व उसमें वृद्धि करना है। चरित्र निर्माण का प्रयास करने की भावना का किसी आयु वर्ग से कोई सम्बन्ध नहीं है। यह भावना स्वयमेव हमारे अन्दर आनी चाहिए। छात्रों को अपने चरित्र पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
* आर्थिक उद्देश्य- बुनियादी शिक्षा का प्रथम उद्देश्य बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के किसी न किसी व्यवसाय में दक्ष बनाना है। बालकों के द्वारा निर्मित की गई वस्तुयें विक्रय करके धनोपार्जन कर सकते हैं। इस सम्बन्ध में गाँधी जी ने कहा था कि प्रत्येक बालक व बालिका को विद्यालय छोड़ने के बाद किसी व्यवसाय में लगाकर उसे आत्म-निर्भर बनाना चाहिए।
* साँस्कृतिक भावना के प्रसार का उद्देश्य- वर्तमान शिक्षा प्रणाली में बालकों को अपनी संस्कृति व मूल्यों को भूलाकर पाश्चात्य सभ्यता व संस्कृति का पाठ पढ़ाया जा रहा है। इस कारण से आज के बच्चे अपनी संस्कृति से परिचित नहीं हैं। बुनियादी शिक्षा में मातृभाषा व राष्ट्रभाषा के प्रयोग से सरल शब्दों में अपनी संस्कृति के गौरव को अध्यापक, छात्रों को समझाते हैं। अत: इस प्रकार हम देखते हैं कि बुनियादी शिक्षा से बालक अपनी संस्कृति व मूल्यों की ओर आकर्षित हो सकते हैं।
* नागरिकता का उद्देश्य- बुनियादी शिक्षा बालकों को एक अच्छा नागरिक बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बुनियादी शिक्षा से बालकों को कर्त्तव्य-पालन, परस्पर-सहयोग, सदाचार, राष्ट्रभक्ति, श्रम का महत्त्व आदि गुणों से परिचय होता है। इस शिक्षा से लोकतन्त्रीय प्रणाली में अपने कर्तव्यों व दायित्वों को पूर्ण करने तथा उनका सही ढंग से पालन करने की सीख देती है।
* शारीरिक, मानसिक, अध्यात्मिक विकास- वर्तमान शिक्षा प्रणाली केवल बालक के मानसिक विकास पर बल देती है जबकि बुनियादी शिक्षा का उद्देश्य बालक की मानसिक उन्नति के साथ-साथ शारीरिक व आध्यात्मिक उन्नति करना भी है।
* बुनियादी शिक्षा में सर्वोदय समाज की स्थापना पर बल...
* आज का समाज दो वर्गों में विभक्त है। एक वर्ग धनी तथा दूसरा वर्ग निर्धन व्यक्तियों का है। आज के समाज में धनी और धनी होता जा रहा है तथा गरीब व्यक्ति और गरीब हो रहा है। गाँधी जी की प्रबल इच्छा थी कि समाज में आयी यह विकृति दूर हो तथा सर्वोदयी समाज की स्थापना हो। इस समाज में धन के स्थान पर श्रम का महत्त्व हो तथा आपस में प्रेम, स्नेह, भाई-चारे की भावना हो व घृणा, नफरत, शोषण, स्वार्थ की भावना को त्यागा जाए। इस भावना का विकास करना बुनियादी शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य है।
* सह-सम्बन्ध की शिक्षण विधि- इस शिक्षा में हस्तशिल्प के माध्यम से बालकों को विभिन्न विषयों की शिक्षा प्रदान की जाती है।
* कार्य सम्बन्धी स्वतन्त्रता- इस शिक्षा में शिक्षक तथा बालक दोनों को अपना कार्य करने की पूर्णस्वतन्त्रता होती है तथा शिक्षक को किसी निर्धारित कार्य को पूरा करने की बाध्यता नहीं होती है। बालकों को ज्ञान प्रदान करने के लिए शिक्षक किसी भी विधि का प्रयोग कर सकते हैं। इस सम्बन्ध में उन्हें पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त होती है।
* बुनियादी बेसिक शिक्षा के मूल सिद्धान्त | वर्धा शिक्षा योजना के मूल सिद्धान्त | बुनियादी शिक्षा के मूल सिद्धान्त.
* बुनियादी शिक्षा के प्रमुख सिद्धान्त निम्न हैं...
(1) सबको शिक्षा- बुनियादी शिक्षा का प्रथम व मूल सिद्धान्त सभी लोगों को शिक्षा प्रदान करना है। अज्ञानता व अशिक्षा को मिटाकर शिक्षा व ज्ञान का प्रकाश फैलाना इस शिक्षा का प्रथम कर्त्तव्य है।
(2) आत्म-निर्भरता- बुनियादी शिक्षा में व्यावसायिक शिक्षा का समावेश करके ये प्रयास किया गया है कि बालकों को शिक्षा के साथ-साथ कोई हस्त-शिल्प सिखाकर उन्हें आत्म-निर्भर बनाया जाए। इस प्रकार इस शिक्षा से बालकों को स्वावलम्बी बनने की प्रेरणा भी प्रदान की जाती है।
(3) निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा- बुनियादी शिक्षा का एक प्रमुख लक्ष्य सभी बालकों को नि:शुल्क व अनिवार्य रूप से शिक्षा की व्यवस्था करना है। इस सम्बन्ध में हमारे संविधान में लिखा है कि-“जब तक सभी बच्चे 14 वर्ष की अवस्था को पूर्ण नहीं कर लेंगे, तब तक राज्य उनको निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का कार्य करेगा।”
(4) समाज का विकास- बुनियादी शिक्षा का प्रमुख सिद्धान्त एक ऐसे समाज का विकास करना है जिसमें स्वार्थ, शोषण, नफरत, घृणा के स्थान पर प्रेम, अहिंसा, स्नेह, सहयोग तथा अहिंसा की भावना हो। इस प्रकार के समाज का निर्माण बुनियादी शिक्षा के माध्यम से ही हो सकता है।
(5) मातृभाषा का विकास- किसी विद्वान ने कहा है कि यदि किसी देश की संस्कृति का तथा समाज का विनाश करना है तो उसकी मातृभाषा का विनाश कर देना चाहिए। इसी बात से शिक्षा लेते हुये बुनियादी शिक्षा में अंग्रेजी को कोई स्थान नहीं दिया गया है तथा मातृभाषा को ही प्रमुखता दी गई है।
(6) श्रम का महत्त्व- बुनियादी शिक्षा में श्रम का स्थान महत्त्वपूर्ण है तथा हस्त-शिल्प से शारीरिक श्रम भी होता है व आय के साधन में भी वृद्धि होती है। पीएम मोदी ने कहा था कि बालक के शरीर के अंगों का विवेकपूर्ण प्रयोग उसके मस्तिष्क को विकसित करने की सर्वोत्तम व शीघ्रतम विधि है।
आज देश के पीएम नरेंद्र मोदी देश के परीक्षार्थियों के साथ बात कर उनके मनोबल को बढ़ा रहे हैं, और उनके साथ अपना पन शेयर कर उन बच्चों का मानसिक बोझ को हल्का कर रहे हैं, यह भी शिक्षा नीति व देश के बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए अच्छा पहल है सरकार की। जो स्वतंत्र रूप से देश के बच्चों के साथ सबका साथ सबका विकास व सबका विश्वास के साथ खुल कर बात कर रहे हैं, पीएम नरेंद्र मोदी देश के मुखिया होने के नाते अपने देश परिवार को एक सूत्र में पिरोकर चल रहे हैं, सर्व धर्म समाज के बच्चों के साथ अपना पन दिखाना व उनके परीक्षा के बोझ को हल्का करना ये भी देश के उन्नति के लिए जरूरी है।