Bombay High Court: कोर्ट ने कहा है कि मां-बाप के ज़िदा रहने तक कोई भी बेटा प्रॉपर्टी पर हक़ नहीं जमा सकता।
Bombay High Court: Court has said that no son can claim the property till the time the parents are alive.




NBL,. 19/03/2022, Lokeshwer Prasad Verma,.. मुंबई. बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने परिवारिक संपत्ति को लेकर एक अहम टिप्पणी की है. हाई कोर्ट ने कहा है कि मां-बाप के ज़िदा रहने तक कोई भी बेटा प्रॉपर्टी पर हक़ नहीं जमा सकता, पढ़े विस्तार से...।
दरअसल एक बेटे ने हाई कोर्ट में अर्जी दी थी कि उनकी मां को दो फ्लैट बेचने से रोका जाए. इस शख्स के पिता पिछले कई सालों से हॉस्पिटल में भर्ती है और वेजिटेटिव स्टेट में हैं. यानी मेडिकल टर्म की भाषा में वो एक तरह से कोमा में हैं. ऐसे हालात में हाईकोर्ट ने पिछले साल उनकी मां को परिवार चलाने के लिए कानूनी अधिकार दिए थे. यानी वो चाहे तो अपने पति के इलाज के लिए कोई भी प्रॉपर्टी बेच सकती हैं।
अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक न्यायमूर्ति गौतम पटेल और न्यायमूर्ति माधव जामदार ने उस शख्स से कहा, ‘तुम्हारे पिता जीवित हैं. तुम्हारी मां भी जिंदा है. ऐसे में आपको अपने पिता की संपत्ति में कोई दिलचस्पी नहीं होनी चाहिए.वह इसे बेच सकता है. उसे आपकी अनुमति की आवश्यकता नहीं है।
क्या हुआ है पिता को?..
बता दें कि पिछले साल अक्टूबर में मुंबई के जेजे अस्पताल ने हाईकोर्ट को अपनी रिपोर्ट में कहा था कि पिता को साल 2011 से डिमेंशिया है. उन्हें न्यूमोनाइटिस और बेड सोर हैं. उन्हें नाक से ऑक्सीजन दी जाती है. साथ ही ट्यूब के जरिए खाना खिलाया जाता है. उनकी आंखें किसी आम इंसान की तरह घूमती है लेकिन वो आई कॉनटैक्ट बनाए नहीं रख सकते हैं. लिहाजा वो कोई निर्णय नहीं ले सकते हैं।
कोर्ट ने लगाई फटकार..
बेटे के वकील ने कहा कि वो कई सालों से अपने पिता का वास्तविक अभिभावक है. इस पर जस्टिस पटेल ने कहा, ‘आपको (बेटा) खुद को कानूनी अभिभावक नियुक्त करने के लिए आना चाहिए था. आप उसे एक बार डॉक्टर के पास ले गए? आपने उनके मेडिकल बिल का भुगतान किया?’
बेटा नहीं भरता था हॉस्पिटल का बिल...
न्यायाधीशों ने अपने 16 मार्च के आदेश में उल्लेख किया कि याचिकाकर्ताओं ने बड़ी संख्या में दस्तावेजों को संलग्न किया है जिसमें मां द्वारा भुगतान किए गए खर्च और बिलों को दर्शाया गया है. उनके द्वारा अपने तर्क के समर्थन में एक भी कागज का उल्लेख नहीं किया गया है. हाई कोर्ट ने कहा कि किसी भी समुदाय या धर्म के लिए उत्तराधिकार कानून की किसी भी अवधारणा में, बेटे को इन फ्लैटों में से किसी में भी कोई अधिकार नहीं हो सकती है.।
खारिज की मांग...
न्यायाधीशों ने बेटे के हस्तक्षेप के आवेदन को ये कहते हुए खारिज कर दिया कि उन्हें उस आदेश के लिए उसकी सहमति की आवश्यकता नहीं है जो वे करना चाहते हैं. उन्होंने उनके इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि उनकी मां के पास विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम के तहत समिति को ट्रांसफर करने के लिए एक वैकल्पिक उपाय है।
अगर पिता जी की संपत्ति की कागजात जबरन रखता है उनके वारिस व उनको नही देते हैं तो उनके ऊपर कठोर कार्यवाही की प्रावधान है।