रोटी, कपड़ा और मकान व धर्म के बिना मानव का जीवन कष्ट पूर्ण ? रोटी, कपड़ा और मकान व धर्म मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकता है.
Without bread, clothes and house and religion, human life is full of suffering?




NBL, 25/07/2022, Lokeshwer Prasad Verma,. Without bread, clothes and house and religion, human life is full of suffering? Bread, clothes and house and religion are the primary needs of man.
मनुष्य के लिए रोटी, कपड़ा, मकान व धर्म सबसे बड़ा आधार है, जिस इंसान के पास यह चार चीज उपलब्ध है, वह इंसान इस दुनिया में सबसे बड़ा सुखी इंसान के श्रेणि मे आता है, पढ़े विस्तार से...
यह रोटी, कपड़ा, मकान व धर्म को सहेज कर रखने के लिए आपके आचरण में शुद्ध कर्म, शुद्ध सेहत शाकाहारी भोजन व साफ सुथरी वस्त्र और आपके मकान भी साफ सुथरी व स्वक्छ होनी चाहिए और जिस भी धर्म को आप मानते हैं उस धर्म के प्रति प्रेम व दूसरे अन्य लोगों के धर्म के प्रति सम्मान व आदर करना चाहिए, और संपूर्ण विश्व धर्म को अपने धर्म का ही अंग व ईश्वर का एकीकरण अंग मानना चाहिए, बिना भेद भाव से तो आपके जीवन मे वाद विवाद का विषय आपके जीवन काल में कभी भी नहीं आ सकता। यही मूल सत्य है।
इस जगत मे जितने भी शाकाहारी जीव है, वह सभी प्राणी जल (पानी) को मुह लगा कर पीते हैं, और इस जगत में जितने भी जीव मांसाहारी है, वह सभी जीव जीभ के माध्यम से पानी पीते हैं, पर हम मनुष्य मुह लगाकर जल पीते है, यानी की हम मनुष्य शुद्ध शाकाहारी प्राणी है, लेकिन मनुष्य सदियों से जानवर की तरह जीवन जी रहे हैं, और हम मनुष्य शाकाहारी प्राणी होने के बावजूद मांसाहारी बन गए हैं, इस कारण से हम मनुष्य का आचरण भी उस हिंसक जानवर की तरह हिंसक हो गई है। और हमारे धर्म के अनुसार हमारे आचरण बिल्कुल भी अलग होते जा रही है।
अब इस जगत मे विषय उच्च विचार, विकार के रूप में तब्दील हो गया है, और यह भी इस संपूर्ण विश्व के लिए कोई प्रदूषण से कम नहीं है, एक इंसान दूसरे इंसान व एक धर्म के मानने वाले दूसरे धर्म के लोगों के बीच वाद विवाद व लड़ाई व झगड़े व हिंसक समाज के रूप मे सामने आकर उलझ रहे हैं। और इस विवाद को धर्म का नाम दे रहे हैं, जबकि कोई भी धर्म मे यह कभी नहीं कहा है की एक इंसान दूसरे इंसान के साथ विवाद करो और लड़ो मरो करके जबकि चुप बराबर सुख नहीं जो किसी भी धर्म के प्रति सद्भावना नहीं रखता और उस धर्म का अवहेलना करता है, और उस धर्म के आस्था के साथ खिलवाड करता है, तो उसका दंड खुद ईश्वर उनको देता है, और दंड देने का अधिकार उस परम सत्ता के मालिक को ही है, हम मनुष्य केवल धर्म अनुयायी है, उस ईश्वर के बताएं अच्छे रास्ते में चलने वाले और हम अपने जीवन में उतार कर सही सुखी जीवन जिये यही ईश्वर चाहते हैं। इसलिए आप इंसान बनो ना की जानवर।