PM नरेंद्र मोदी एक जगह आदिवासी समाज के दिलों में भी जगह बना लिया हैं. कई आदिवासी परिवारों में पैदा होने वाले बच्चे का नाम ‘मोदी’, ‘नमो’ रखा जा रहा है, हर हर मोदी घर घर मोदी सच साबित हो रहे है, पढ़े जरूर.
PM Narendra Modi has also made a place in the hearts of tribal society..




NBL, 22/04/2022, Lokeshwer Prasad Verma,.
PM Narendra Modi has also made a place in the hearts of tribal society. Children born in many tribal families are being named 'Modi', 'Namo', Har Har Modi Ghar Ghar Modi is proving to be true, definitely read.
म.प्र श्योपुर: ग्लोबल वर्ल्ड लीडर्स की लिस्ट हो या टाइम मैगजीन के पन्ने या फिर ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, सभी जगह लोकप्रियता के शिखर पर बने रहने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आदिवासी समाज के दिलों में भी जगह बना रहे हैं, पढ़े विस्तार से..
मध्य प्रदेश में उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि कई आदिवासी परिवारों में पैदा होने वाले बच्चे का नाम ‘मोदी’, ‘नमो’ रखा जा रहा है. इतना ही नहीं, न सिर्फ बच्चों के नाम, बल्कि दुकानों तक में इस लोकप्रियता की धमक दिखाई पड़ती है. गांव की छोटी-छोटी दुकानों में 'मैं भी हूं चौकीदार' नाम वाले नमकीन और चिप्स के पैकेट बिक रहे हैं.
देश के विभिन्न राज्यों में होने वाले चुनावों के दौरान रैलियों, सभाओं में 'हर-हर मोदी, घर-घर मोदी' का नारा आपने सुना होगा, जो इन दिनों मध्य प्रदेश में साकार होता दिख रहा है. गांव-गरीब, आदिवासियों को मुफ्त अनाज, राशन आपके ग्राम-आपके द्वार, महिलाओं को स्वास्थ्य का ध्यान रखने के लिए उनके खाते में प्रतिमाह 1000 रुपए डालने, किसानों को हर महीने 2000 रुपए देने, उज्ज्वला योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी तमाम स्कीम और काम लोगों को प्रभावित कर रहे हैं. वह लोगों के दिलों में किस तरह जगह बनाते जा रहे हैं, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि आदिवासी समाज के कई गांवों में बच्चों के नाम नमो, नरेन्द्र मोदी या मोदी मिल जाएंगे.
दर्जनभर गांव की यही स्थिति है...
हाल ही में सहरिया आदिवासी बाहुल्य वाले श्योपुर जिले के श्योपुर, कराहल तहसील के दर्जन भर से ज्यादा गांवों में जाने का मौका मिला, जहां के बड़ेरा, बरदा बुजुर्ग, सैसईपुरा और लहरौनी जैसे गांवों में मोदी के नाम राशि वाले बच्चे खेलते मिले. बच्चों का ‘मोदी’ नाम रखे जाने से पता चला कि आदिवासी समाज में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता किस तेजी से बढ़ती जा रही है.
बरदाबुजुर्ग गांव में मिला नन्हा मोदी...
श्योपुर तहसील से महज 8-10 किलोमीटर दूर बरदा बुजुर्ग गांव में हमारी मुलाकात 4 साल के नन्हें मोदी से हुई. वह अपने नाना-नानी और मां के साथ इसी गांव में रहता है. वैसे जब वो पैदा हुआ था, तब उसका नाम धर्मराज था, लेकिन बाद में वह ‘मोदी’ के नाम से पुकारा जाने लगा. वजह पूछने पर उसके नाना खचरू सहरिया और नानी बिरजी हंसते हुए बोले कि मुफ्त अनाज तो हमें पहले से मिल रहा है, अब प्रधानमंत्री आवास योजना का मकान भी मिल गया, तो हमने खुश होकर बच्चे को मोदी कहकर पुकारा. जबसे यह बच्चा जीवन में आया है, तबसे खाने, रहने की दिक्कत खत्म हो गई. पहले तो कई-कई दिन काम नहीं मिलता था. कभी-कभी एक टाइम भूखे सोना पड़ता था. काम तो कम मिल रहा है, लेकिन भूखे पेट नहीं सोना पड़ता है. मुफ्त अनाज लगातार मिल रहा है.
अब गांव के सब बच्चे-बड़े-बूढ़े सभी इस बच्चे को ‘मोदीजी’ कहकर पुकारते हैं. कभी-कभी छेड़ते हुए कहते हैं कि देखो भाई 'मोदीजी' आ रहे हैं. कई बार बच्चे एक साथ बच्चे को देखकर नारा लगाते हुए मोदी.मोदी.मोदी. चिल्लाने लगते हैं. हमने बच्चे से पूछा कि मोदी कहकर बुलाने पर अच्छा लगता है या बुरा, वह हंसने लगा और शर्माते हुए बोला, अच्छा..
क्यों रखा बच्चे का नाम मोदी?..
ऐसा ही एक बच्चा हमें कराहल तहसील से गोरस के रास्ते पर बड़ेरा गांव में मिला. यह गांव कई समाज-जातियों के टोलों में बसा हुआ है, जहां एक ओर दबंग कहलाने वाले गुर्जर समाज के लोग रहते हैं, तो दूसरी तरफ एक टोला सहरिया आदिवासियों की झोपड़ियों का है. यहां भी एक मोदी सहरिया नाम का एक बच्चा मिला. ‘मोदी’ नाम रखने की वजह पूछने पर मां कजली बोली- हम बहुत कमजोर थे, शरीर का पोर-पोर (हर हिस्सा) दुखता था, कमजोरी बहुत रहती थी. सरकार से पोषण के लिए हर महीने 1000 रुपए खाते में आते हैं. खान-पान सुधरा है. बच्चा पेट में आने से पहले ही हमने सोच लिया था, कि बच्चा जी गया, तो ‘मोदी’ नाम रख देंगे, अस्पताल में इसके पैदा होने पर नर्स ने पूछा क्या नाम लिख दें, तो मैंने कहा मोदी सहरिया रख दो.
अब यह नन्हा मोदी दो साल का हो गया है. इसी तरह कूनो पालपुर जंगल क्षेत्र से लगे सैसई पुरा में भी एक बच्चे को जन्म के बाद 'नमो' नाम दिया गया. उसके पिता तेजाराम कहते हैं कि हमारा बच्चा अब किसी पहचान का मोहताज नहीं रहेगा. हो सकता है कि नरेन्द्र मोदी की तरह कुछ अलग बन जाए.
छोटी-छोटी दुकानों में- मैं हूं चौकीदार...
प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता का नजारा आप श्योपुर जिले के गांवों में भी देख सकते हैं, जहां झोपड़ियों में चल रही छोटी-छोटी दुकानों में पीएम मोदी के स्टाइलिश फोटो और 'मैं भी हूं चौकीदार' नाम वाले नमकीन और चिप्स के पैकेट लटकते मिल जाएंगे. पन्नियों में लिपटी रंग-बिरंगी बर्फ वाली ‘नमो आइसक्रीम’ मिल जाएगी. गांव में घूमेंगे तो कहीं तो कहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तस्वीरों के साथ 'राशन आपके ग्राम, आपके द्वार योजना' वाले वाहन दिख जाएंगे.
मोदी नाम के प्रोडक्ट की डिमांड..
राज्य सरकार अपनी किसी भी योजना की लांचिंग पीएम मोदी की फोटो के बगैर नहीं करती. पिछले महीने 12 मार्च को कराहल तहसील में प्रधानमंत्री आवास योजना के सहरिया स्पेशल प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई थी. बता दें कि 2011 की आबादी सूची में जिले के 22 हजार से ज्यादा आदिवासी परिवारों को प्रधानमंत्री आवास स्वीकृत किए गए थे, जिनमें से करीब 10 हजार सहरिया आदिवासी शामिल हैं, जिन्हें मकान मिलेंगे. इसके तहत ही कई आदिवासियों को आवासों के मालिकाना हक के प्रमाणपत्र दिए गए.
योजनाएं जो आदिवासी इलाकों में मोदी को बना रही लोकप्रिय
– राशन आपके द्वार- कई ग्रामीण क्षेत्रों में अब आदिवासियों को राशन लेने के लिए लाइन में नहीं लगना पड़ रहा. 89 आदिवासी ब्लाक में राशन पहुंचाने वाले जनजातीय युवाओं को 26 हजार रुपए महीने दिए जा रहे हैं.
– बैगा, भारिया की तरह सहरिया जनजाति भी केन्द्र सरकार की संरक्षित जनजातियों की सूची में है. विशेष पोषण आहार योजना के तहत इन परिवारों की महिला मुखिया के खाते में 1000 रुपए की राशि हर महीने जमा कराई जा रही है.
– हर गांव में जल-जीवन मिशन योजना के तहत नल लगाए जा रहे.
– कोरोना काल से ही प्रति परिवार 35 किलो मुफ्त गेहूं, चावल मिल रहा.
– आदिवासी परिवारों के घरों में उज्ज्वला योजना के तहत गैस चूल्हा पहुंचाया जा चुका है.
– खुले में झोपड़ियां बनाकर रहने वाले आदिवासी परिवारों प्रधानमंत्री आवास योजना के मकान दिए जा रहे हैं.
– युवाओं को रोजगार, ट्रेनिंग, नौकरी में भर्ती में प्राथमिकता के काम आदिवासियों को लुभा रहे हैं.
चुनाव पर नजर, आदिवासी वर्ग पर फोकस. .
मध्यप्रदेश में अगले साल 2023 में विधानसभा चुनाव और उसके एक वर्ष बाद 2024 में देश में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं. आदिवासी समाज परंपरागत रूप से कांग्रेस का वोट बैंक माना जाता रहा है. वक्त के साथ सपा, बसपा, देश के अन्य क्षेत्रीय दलों, समाज के नेताओं के उभरने से यह वोट बैंक कांग्रेस से छिटक गया है. भाजपा चाहती है कि अगर इस वर्ग को साध लिया जाए, तो चुनावी फतह की मंजिल को और स्पष्ट रूप से करीब लाया और पाया जा सकता है. केन्द्र की सत्ता पर दूसरी बार काबिज होने के बाद भाजपा शासित राज्यों में विशेष रूप से आदिवासी वर्ग पर ध्यान दिया जा रहा है. आदिवासी इलाकों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कई काम तो पहले से कर ही रही है, राज्य सरकार भी इसे प्राथमिकता दे रही है.
बता दें कि पिछले साल नवंबर 2021 में भोपाल के जंबूरी मैदान पर जनजातीय गौरव दिवस मनाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनजातीय समुदाय से जुड़ी तमाम योजनाओं का शुभारंभ किया था. साथ ही जनजातीय समुदाय को उनका सबसे बड़ा हितैषी होने का अहसास कराने की कोशिश की थी. उन्होंने अपने भाषण में कई बार यह कहा कि जनजातीय समाज की कला, संस्कृति, स्वतंत्रता आंदोलन में उनके बलिदान, राष्ट्र निर्माण में योगदान का सम्मान करने वाली एकमात्र पार्टी भाजपा है, बाकी सब दलों ने हमेशा आदिवासी हितों को अनदेखा किया है, शोषण किया है.
राजनैतिक विश्लेषकों का क्या कहना है. ..
मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार राजेश पांडेय यह मानते हैं कि कोरोना काल में भले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ कुछ गिरा हो, लेकिन वह देश-दुनिया के तमाम नेताओं से पॉपुलैरिटी के मामले में काफी ऊपर हैं. आदिवासी समाज पर फोकस इस समय भाजपा और पीएम मोदी की 2024 के लोकसभा चुनाव की रणनीति का खास हिस्सा है, क्योंकि मोदी बिना रणनीति के किसी पर भी फोकस नहीं करते.