जिस अछूत भीम राव अंबेडकर से सदियों पहले नफरत की जाती थी, आज उन्हीं लोगों द्वारा राजनीतिक उद्देश्यों के लिए उनका इस्तेमाल किया जा रहा है, जो उनसे नफरत करते हैं, जबकि वही कांग्रेस पार्टी, जिसने अपने पिछले शासन के दौरान संविधान की धज्जियां उड़ाई थीं, आज संविधान बचाओ, लोकतंत्र बचाओ के नारे लगा रही है?
The untouchable Bhim Rao Ambedkar who




NBL, 01/07/2024, Lokeshwar Prasad Verma Raipur CG: The untouchable Bhim Rao Ambedkar who was hated centuries ago is today being used for political purposes by the same people who hate him, while the same Congress party, which had ripped apart the Constitution during its previous rule, is today raising slogans of Save Constitution, Save Democracy? पढ़े विस्तार से.....
जब विपक्षी दलों के ऊंची जाति के नेता दलित नेताओं की जगह भीमराव अंबेडकर और उनके द्वारा बनाए गए संविधान की कसमें और वादे कर रहे हैं, तो यह इन विपक्षी दलों के नेताओं की राजनीतिक बैसाखी बन गई है, जय भीम जय संविधान। जबकि यह सब हासिल करने के लिए खुद भीम राव अंबेडकर को कितनी कठिनाइयों को पार करना पड़ा, यह सिर्फ उस महापुरुष को ही पता है जो आज पूरे भारत को एक दीपक की तरह रोशन कर रहे हैं और न्याय दे रहे हैं। और देश के सत्ता के भूखे राजनीतिक नेता उनकी मेहनत का फायदा उठा रहे हैं। जिन नेताओं ने कभी दुख नहीं देखा, जिन नेताओं ने कभी मेहनत नहीं की, उन्हीं नेताओं ने भीम राव अंबेडकर और उनके संविधान का मजाक उड़ाया है जैसे कि यह एक कॉमिक्स बुक हो और इसे अपने हाथों में लेकर घूम रहे हैं। जबकि यह संविधान देश का गौरव है, यह देश की न्याय व्यवस्था का पवित्र ग्रंथ है। यह भीम राव अंबेडकर द्वारा अपनी मेहनत और अपने दुख भरे जीवन के खून की एक-एक बूंद से लिखा गया संविधान है। यह उनकी मेहनत का देश के लोकतंत्र का न्यायिक सार्थक रक्षक है। जिस संविधान के लिए उन्होंने देश के लोकतंत्र को मजबूत करने और मानव जाति को मानव जाति से जोड़ने के लिए बहुत कष्ट सहे, वह संविधान एक न्यायिक धार्मिक ग्रंथ है। भारत के लोकतंत्र को न्याय प्रदान करने वाला संविधान जीवनदायी अमृत के समान है और देश के राजनीतिक नेता इस पवित्र ग्रंथ का मजाक उड़ा रहे हैं, इसे हाथों में लेकर घूम रहे हैं और संविधान के एक भी अक्षर को जाने बिना ये सब गलत काम कर रहे हैं।
भीम राव अंबेडकर ने देश के लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपने खून पसीने से जिस संविधान को लिखा, उसका अपमान करने का इन नेताओं को कोई अधिकार नहीं है। देश की पवित्र न्यायिक पुस्तक संविधान को छूने का अधिकार केवल उन लोगों को है, जिन्होंने कोई अपराध नहीं किया है और कोई पाप नहीं किया है। इस संविधान की भव्यता को बनाए रखने के लिए देश के सर्वोच्च न्यायालय को यह प्रतिबंध लगाना चाहिए कि देश के संविधान की एक सीमा है और जो इसका अपमान करेगा, उसे सजा मिलेगी, तभी उस पर अंकुश लगेगा। भारत के तिरंगे झंडे का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जाता है, उसी तरह संविधान का अपमान भी बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि दोनों ही देश के मूल आधार हैं, दोनों का हमेशा सम्मान किया जाना चाहिए।
आज दलित समाज के मार्गदर्शक छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र शाहूजी महाराज आरक्षण की जनक हैं, और भीम राव अम्बेडकर जी को उच्च शिक्षा की ओर ले जाने वाले महा पुरूष हैं, जो आज दलित समाज के प्रेरणा स्रोत भीमराव अंबेडकर, संत कबीर, संत शिरोमणि रविदास, सावित्रीबाई फुले, ज्योतिबा फुले, पेरियार, गाडगे बाबा, जगजीवन राम और संत शिरोमणि गुरु घासीदास बाबा और नेता काशीराम जी हैं, जिन्होंने दलित समाज में जागरूकता लाकर उनकी जीवनशैली को बदला और शिक्षित होने पर जोर दिया और उच्च पदों पर पहुंचने का मार्ग दिखाने में इन महापुरुषों ने अहम भूमिका निभाई, तभी आज इन दलित समाज के लोग अपने अधिकारों के लिए आवाज उठा पाए, अन्यथा आज भी ये देश के उच्च जाति के राजनीतिक दलों के नेताओं के सामने गुलाम हैं और यही हाल इन दलित समाज के नेताओं का है, जो वर्तमान समय में सत्ता के सुख के लिए इन उच्च जाति के लोगों की चापलूसी करते हैं।
जबकि दलित समाज भी स्वतंत्र भारत के इस देश का नागरिक है, उन्हें भी अपने अधिकारों की बात करने और अपने देश में अपने दलित समाज से नेता बनने और अपने दलित समाज के लोगों को उत्थान की ओर ले जाने की स्वतंत्रता है। यह उनका अपना होना चाहिए किसी सवर्ण समाज के नेता का नहीं, यह बदलाव का समय है अन्यथा जय भीम जय संविधान के खोखले नारे लगाकर सवर्ण समाज के नेता दलित समाज को ठगते रहेंगे और आप उनका वोट बैंक बनकर जीवन भर उनके गुलाम बनते रहेंगे। आपके महान पूर्वजों ने आपको जगाकर आपको जगाने का जो कार्य किया उसे निरंतर जारी रखिए, नए भारत में नया इतिहास बनाइए, यही शिक्षा आपकी पूजा है, शिक्षित बनिए आपकी पूजा होगी जैसे आज सवर्ण समाज के लोग आपके दलित पुत्र डॉ भीम राव अंबेडकर जी और उनके संविधान की पूजा कर रहे हैं, भारत में धोखेबाज नेताओं की अभी भी कमी नहीं है आप दलितों, आदिवासी समाज के लोगों इस छल कपट राजनीति करने वालों से दूर रहिए।
दलित समाज के बहुत से लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए हैं और वो भी भीम राव अंबेडकर जी का अनुसरण करके लेकिन दलित समाज शायद ही भीम राव अंबेडकर जी के मूल उद्देश्यों का पालन कर रहा है वो है शिक्षा को महत्व देना और अपने बल पर मुकाम हासिल करना, सत्य अहिंसा परमो धर्म के बल पर देश में डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक और राजनीतिक नेता और अन्य बड़े पदों पर तेजी से आगे बढ़ना और हमारे मार्गदर्शक बाबा भीम राव अंबेडकर जी जैसा शक्तिशाली व्यक्ति बनना।
बस उनकी फोटो लगा देना, मूर्ति बना देना और चौराहे पर लगा देना और बोल देना जय भीम और इसी भीम के बल पर देश की सभी पार्टियों के नेता संविधान हाथ में लेकर शपथ ले रहे हैं और कह रहे हैं कि इसके बल पर वो देश के लोकतंत्र को मजबूत करेंगे और आज इन सवर्ण नेताओं का यह पाला बदलना कोई छोटी बात नहीं है बहुत बड़ी बात है जय भीम कहना संविधान की प्रति हाथ में लेकर कसम खाना यह भी इन नेताओं का देश की जनता को गुमराह करने का नया फार्मूला है, इस जाल में फंस चुके हैं देश के दलित पिछड़े समाज के लोग जो यह सोच रहे हैं कि आज हमारे दलित पिछड़े समाज की पूजा भीम राव अंबेडकर के संविधान के माध्यम से हो रही है यह पूजा नहीं है यह इन नेताओं का नाटक है जो आपके वोट के माध्यम से सत्ता का सुख प्राप्त करते हैं।
दलित समाज में एक नया नेता चंद्रशेखर उर्फ रावण आजाद पार्टी पैदा हो गया है उत्तर प्रदेश में जो इन दलित समुदायों के उत्थान की बात करता है और बार-बार बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर जी के संविधान की दुहाई देता है। लेकिन राजनीति की भूख उनके दलित नेतृत्व को नहीं ले डूबनी चाहिए क्योंकि उत्तर प्रदेश की दलित बहन बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती जी को इस दलित समाज के लोगों ने 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य जिसमें 80 सीटें हैं वहां से एक भी सांसद नहीं दिया और अपने दलित बेटे, दलितों के मसीहा, भारत के संविधान निर्माता भीम राव अंबेडकर के दलित भाइयों बहनों ने उत्तर प्रदेश की दलित बेटी सुश्री बहन मायावती जी के साथ विश्वासघात किया और दलित समाज ने अपने साथ अन्याय किया और पूरे दिल से उन्हीं तीन ऊंची जाति के लोगों को अपनी पार्टी से टिकट दिया जो इस अछूत भीम राव अंबेडकर के नाम पर मगरमच्छ के आंसू बहा रहे होते हैं और जय भीम जय संविधान के नारे लगा रहे हैं और देश के दलित समाज को गुमराह करके उनके वोट बटोर रहे हैं और सत्ता का सुख भोगने का ख्वाब देख रहे हैं।
दलित समाज की यह कैसी शिक्षा है कि आज भी यह उत्थान की बजाय पतन की ओर अग्रसर है जो अपने चंद लोगों को अपने बल पर सत्ता के गलियारों तक पहुंचा रहे हैं और यह शोषित दलित समाज उन लोगों को अपना नेता मान रहा है जो सदियों से इस दलित समाज को पीड़ा पहुंचाते आ रहे हैं। इसमें बहन मायावती जैसी दलित बेटी का भी दोष है जिन्होंने अपनी पार्टी में सवर्ण समाज के तीन लोगों को जगह दी। सत्ता की भूख इतनी ज्यादा होती है कि व्यक्ति अपना मूल उद्देश्य भूल जाता है और वही आज बहन मायावती कर रही हैं, अपने दलित समाज के लोगों को नजरअंदाज कर रही हैं और इसका परिणाम हार के रूप में सामने आया है।
कांग्रेस नेता उन्होंने अभी लोकसभा चुनाव के वक्त अपने भाषणों में कहा है कि देश की अदालतों में दलित समुदाय के लोग जज नहीं हैं, भारत के सभी मंत्रालयों में दलित समुदाय से कोई अधिकारी नहीं है, यहां तक कि देश के न्यूज चैनल भी दलित समुदाय से नहीं हैं, उन्होंने इतनी बड़ी बातें कही हैं, जबकि 1947 से भारत में सत्ता किसकी थी, वो कांग्रेस की ही थी, जिसका काम दलित समुदाय के लोगों को आगे लाना या बढ़ावा देना था, वो कांग्रेस ही थी जिसने अपने शासन काल में भीम राव अंबेडकर जी के साथ भेदभाव किया, दलित समुदाय आज तक केवल कांग्रेस का वोट बैंक ही बना हुआ है और आज भी ये दलित समुदाय ज्यादातर कांग्रेस के गठबंधन दलों के साथ है, तो फिर कांग्रेस के सवर्ण नेता राहुल गांधी आज दलित समुदाय के नेता क्यों बन रहे हैं।
जबकि उनकी कांग्रेस ने ही उनके साथ भेदभाव किया था, जबकि उनके ही सवर्ण समुदाय के लोगों ने दलित समुदाय पर बहुत अत्याचार किए थे, इतिहास गवाह है, भीम राव अंबेडकर जी को स्कूल में बैठने तक नहीं दिया जाता था। हां, आज उन्होंने एक लाख रुपए देने की बात कही। 2024 के लोकसभा चुनाव में हम कांग्रेस गठबंधन चुनाव जीत रहे हैं और भाजपा चुनाव हार रही है और हम वादा करते हैं कि सत्ता में आते ही हम हर महीने 8500 रुपए और हर साल एक लाख रुपए देंगे किस्त में। उन्होंने भ्रम पैदा किया दलित, आदिवासी और मुस्लिम समुदाय के लोगों के अंदर और उनके साथ धोखा हुआ है। जो धोखा करता है, वह खुद धोखा खाता है। आखिरकार यह कांग्रेस और उसके सहयोगी साथी सत्ता हासिल नहीं कर पाए क्योंकि भगवान सब कुछ देखता है। अगर देश में दलितों और आदिवासियों के साथ ऐसा ही अन्याय होता रहा तो इन राजनीतिक दलों का पतन निश्चित है। धोखा करने वालों को भगवान खुद सजा देते हैं।
आज वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन दलितों को सम्मान दिया है और उनके पैर धोए हैं। स्वच्छ भारत अभियान के तहत उन्हें पहली प्राथमिकता दी है। दलितों के प्रति पीएम मोदी के इस प्रेम को देखकर विपक्षी दलों के नेता नाराज हो गए हैं। अगर दलित समुदाय में बीजेपी के प्रति सहानुभूति पैदा होती है तो विपक्षी दलों का वोट प्रतिशत कम हो जाएगा क्योंकि देश में इन दलितों के प्रति सम्मान तेजी से बढ़ रहा है और सामाजिक भेदभाव कम हो रहा है। भारत के सभी देशभक्त हिंदुओं में एकता की लहर जागृत हो रही है। पीएम मोदी ने इंसान को इंसानियत के प्रति प्रेम से जोड़ने का प्रयास किया। यही प्रयास संविधान निर्माता बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर जी ने भी किया था, जिनका इस दलित समुदाय ने खुलकर समर्थन नहीं किया था। और इनके जगह कांग्रेस को साथ दिया था और आज भी दे रहे हैं।
अगर उन्होंने उनका साथ दिया होता तो आज दलित समुदाय की तस्वीर कुछ और होती। भीम राव अंबेडकर ने हर वह प्रयास किया जिससे उनकी जीवनशैली में तेजी से सुधार आता। जब कोई महान व्यक्ति अपने निजी हितों का त्याग करके अपने लोगों के लिए आवाज उठाता है तो उस समय उस समाज के लोग उस पर ध्यान नहीं देते हैं और समय आने पर उस महापुरुष की बातों को समझते हैं। यही स्थिति आज देश के दलित समुदाय की है और आज उनकी आंखें खुल रही हैं।
आज भारत के मुस्लिम समुदाय के कई राजनीतिक नेता देश के दलित, पिछड़े वर्ग और आदिवासी समुदाय पर कब्जा करके अपनी राजनीतिक ताकत बढ़ाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं ताकि देश में मुसलमानों की राजनीतिक पकड़ मजबूत हो। भारत में राजनीति में शामिल कई मुस्लिम नेता भारत माता की जय नहीं कहते हैं, बल्कि ये नेता दलित समुदाय के डॉ. भीम राव अंबेडकर और उनके संविधान की जय-जयकार करते हैं ताकि दलित समुदाय के कई लोग हमारे पक्ष में आएं और हमें अपना वोट दें और हमें सत्ता के गलियारों तक ले जाएं। देश में राजनीति में शामिल मुसलमान आबादी बढ़ाना चाहते हैं, यही उनकी सबसे बड़ी चाल है।
जबकि मुगल मुसलमानों की वजह से ही दलित समाज की रचना हुई है, दलित समुदायों को दिया गया चमार शब्द मुगल मुस्लिम बादशाहों द्वारा दिया गया शब्द है, चमार को मानव समाज में नीची नजर से देखा जाता था और हिंदुओं की तीन ऊंची जातियों में उनके क्रूर शासन के दौरान मतभेद पैदा किए गए थे, जबकि हिंदू धार्मिक ग्रंथों में कहीं भी चमार शब्द का उल्लेख नहीं है, जबकि यही चमार उस काल में कट्टर हिंदू चवर वंशीय क्षत्रिय राजपूत हुआ करते थे, जो इतिहास में दर्ज है और जिन्होंने मुगलों का जीना दूभर कर दिया था और उस काल में जिन्हें आज हम चमार दलित कहते हैं, वे उस प्राचीन काल में हिंदू सनातन धर्म के सच्चे रक्षक थे, सच्चे सैनिक थे, सनातनी चवर वंशीय क्षत्रिय मुगलों द्वारा खाए गए गोमांस के अवशेषों को अपने हाथों से उठाने को तैयार हो गए, लेकिन मुस्लिम धर्म स्वीकार नहीं किया, मुसलमान नहीं बने।
इसी गुस्से के कारण मुगल बादशाहों ने सनातनी चवर वंशीय क्षत्रियों को चमार की उपाधि दी और सनातनी हिंदू धर्म की चारों जातियों में छुआछूत की भावना पैदा की, जबकि सनातन धर्म कर्म के अनुसार है वेदों और पुराणों में चारों वर्णों के दोषों का उल्लेख करते हुए नीच शब्द कहाँ जो चारों वर्णों के लोगों के लिए समान लागू होती हैं आज भारत के चारों सनातनी हिंदू धर्म के लोगों को एकता की आवश्यकता है, ताकि भारत की मजबूती और अखंडता को बल मिल सके और ऐसे मुगल मानसिकता वाले मुसलमानों की कूटनीति को भारत में नष्ट किया जा सके, जो भारत के बजाय अन्य देशों का गुणगान करते हैं, जिसे भारत के सभी सनातनी हिंदुओं को समझने की आवश्यकता है।
* कांग्रेस के पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की बर्बरता 1975 का emergency यानी की आपातकाल का काला अध्याय जो संविधान को कुचल कर रख दिया गया था, इसे कहते हैं लोकतंत्र की हत्या जिसे आज कांग्रेस नेता व उनके सहगोगी दलों के नेताओं को याद करनी चाहिए जो आज अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए जय भीम जय संविधान की नारे लगाने के लिए मजबूर है ,आपके जय भीम जय संविधान बोलना देश के लोकतंत्र के लिए छलावा है....
देश के उस काल को उस दौर के पत्रकार अंधाकाल कहते हैं। जानकार बताते हैं कि आपातकाल की घोषणा की 20 सूत्री कार्यक्रम की आड़ में की गई थी लेकिन उस दौरान देश में राजनेताओं से लेकर आम जनता के साथ, महिलाओं के साथ और मीडिया के साथ जो व्यवहार किया गया वह न केवल निंदनीय है बल्कि अक्षम्य भी है।
जाने-माने समाजवादी चिंतक सुरेंद्र मोहन ने अपने एक लेख में लिखा था कि आपातकाल कि घोषणा केवल मौजूदा सरकार, इंदिरा गांधी के निजी फायदों और सत्ता को बचाने के लिए लिया गया फैसला था। इमरजेंसी यानी आपातकाल की घोषणा के बाद 1975 में बहुत चालाकी के साथ चुनाव संबंधी नियम-कानूनों को संशोधित किया गया।
इंदिरा गांधी की अपील को सुप्रीम कोर्ट में स्वीकार करवाया गया ताकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा उनके रायबरेली संसदीय क्षेत्र से चुनाव रद्द किए जाने के फैसले को उलट दिया जाए। आपातकाल की घोषणा के दौरान इंदिरा गांधी और उनके चमचों ने मंत्रिमंडल तक से सलाह नहीं ली। कैबिनेट की मीटिंग 26 की सुबह तड़के बुलाई गई जिसमें कैबिनेट के गिनेचुने मंत्री ही शामिल हो सके। यही नहीं उनमें से जब कुछ मंत्रियों ने इसका विरोध किया तो उन्हें मंत्रालय से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
* क्या क्या हुआ उस दौरान...
25 जून की रात को आपातकाल की घोषणा की गई और आधी रात से ही सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी के आदेश दिए गए। उस दौरान बिहार में जेपी आंदोलन की मुहिम चल चुकी थी जो देशभर में पहुंच रही थी। उस रात जेपी दिल्ली में थे और 26 की सुबह वह पटना के लिए रवाना होने वाले थे कि उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
आपातकाल के दौरान कांग्रेस की सरकार ने सबसे ज्यादा विपक्ष के राजनेताओं को जेल में ठूंसा। यही नहीं कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य चंद्रशेखर और संसदीय दल के सचिव रामधन को भी गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि इन नेताओं ने इमरजेंसी का पुरजोर विरोध किया। उस काल के पत्रकारों का कहना है कि आपातकाल के एक हफ्ते के भीतर देशभर से करीब 15 हजार लोगों को जेल पहुंचा दिया गया। परिवार वालों को अपने नेता रिश्तेदार की भनक तक नहीं लग रही थी कि वे कहां हैं।
क्या अफसर और क्या अफसरशाही, मीडिया, कानून तक इमरजेंसी के दायरे में था। जेपी आंदोलन में आंदोलन की पत्रिका चला रहे वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार कहते हैं बहुत मुश्किल दौर था। महीनों हम एक जगह से दूसरी जगह छुपते फिरते रहे थे। हर दिन पत्रिका की सामग्री के साथ हम छुपते रहते थे। सारा काम अंडर ग्राउंड होता था। सामग्री एकत्रित करने से लेकर पत्रिका को छापने और आम जन तक पहुंचाने का चोरी छुपे किया जा रहा था।
राजनेता जिन्हें जेल में रखा गया उनके साथ बदसलूकी के कई किस्से हैं। किसी को इतना मारा गया कि हड्डियां तोड़ दी गईं। बंगलूरू में जॉर्ड फर्नांडिस के भाई लारेंस को तो इतना पीटा गया कि वह सालों सीधे खड़े नहीं हो पाए। इस दौरान दो क्रातिकारियों किश्तैया गौड़ और भूमैया को फांसी दे दी गई।
* संविधान और कानून की धज्जियां उड़ाई गईं इमरजेंसी 1975
इमरजेंसी इंदिरा गांधी और संजय गांधी की तानाशाही का ही नतीजा थी। देश में अव्यवस्था के नाम पर संविधान और कानून में अपने हिसाब से बदलाव किए गए। आपातकाल के पहले हफ्ते में ही संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 22 को समाप्त किया गया। ऐसा कर सरकार ने कानून की नजर में सबकी बराबरी, जीवन और संपत्ति की सुरक्षा की गारंटी और गिरफ्तारी के 24 घंटे के अंदर अदालत के सामने पेश करने के अधिकारों पर रोक लगा दी। अभिव्यक्ति, प्रकाशन करने, संघ बनाने और सभा करने की आजादी को छीनने के लिए जनवरी 1976 में अनुच्छेद 19 को निलंबित किया गया। राष्ट्रीय सुरक्षा काननू (रासुका) तो पहले से ही लागू था जिसमें कई बदलाव किए गए।
वैसे आपातकाल की कहानी तो इलाहाबाद कोर्ट के उस फैसले के बाद लिखी गई थी जब राजनारायण के पक्ष में फैसला देते हुए 1971 के चुनाव को रद्द कर दियाथा। इंदिरा राजनारायण के इसी मुकदमे के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को अपने पक्ष में करने और सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम फैसले का निबटारा करने के लिए कानून बनाया गया।
संविधान को संशोधित करके कोशिश की गई कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति और लोकसभा अध्यक्ष पर जीवन भर किसी अपराध को लेकर कोई मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। इस संशोधन को राज्यसभा ने पारित भी कर दिया लेकिन इसे लोकसभा में पेश नहीं किया गया। सबसे कठोर संविधान का 42वां संशोधन था, इसके जरिए संविधान के मूल ढांचे को कमजोर करने, उसकी संघीय विशेषताओं को नुकसान पहुंचाने और सरकार के तीनों अंगों के संतुलन को बिगाड़ने का प्रयास किया गया।
रासुका में 29 जून, 1975 में ऐसे संशोधन किए गए जो किसी भी लिहाज से सही नहीं कहे जा सकते हैं। इस संविधान के संशोधन के बाद नजरबंदी की सजा काट रहे बंदियों को इसका कारण जानने का अधिकार खत्म कर दिया गया। इसे एक साल से अधिक समय तक बंदी बनाए रखने का प्रावधान बनाया गया। वहीं आपातकाल के तीसरे हफ्ते में 16 जुलाई, 1975 को इसमें बदलाव करके नजरबंदियों को कोर्ट में अपील करने के अधिकार भी छीन लिया गया। 10 अक्टूबर, 1975 के संशोधन के बाद नजरबंदी के कारणों की जानकारी कोर्ट या किसी को भी देने को अपराध बना दिया गया।
* समाचार एजेंसियों पर लगाम लगाया गया इमरजेंसी 1975 मीडिया पर लगाए प्रतिबंध
आपातकाल के दौरान मीडिया को पंगु बनाने की पूरी कोशिश की गई। बहादुर शाह जफर मार्ग स्थित मीडिया हाउस की बिजली सप्लाई रोकी गई। अखबारों पर सेंसर लगा दिया गया। क्या छपेगा और क्या नहीं इसका नियंत्रण सरकार अपने हाथों में चाहती थी और इसपर नया कानून तक बनाया गया।। समाचार एजेंसियों पर लगाम लगाया गया।
देशभर में पत्रकारों, मीडिया संस्थानों के मालिकों और संपादकों पर अत्याचार किया गया यही नहीं कई संपादकों को जेल की हवा तक खिलाई गई। इस दौरान पूरी कोशिश रही कि आम जनता तक नेताओं की गिरफ्तारी की खबरें न पहुंचे लेकिन सारी कोशिशें असफल रहीं। तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री आई के गुजराल के विरोध के बाद उन्हें पद से हाथ धोना पढ़ा और विद्याचरण शुक्ल को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई।
सिनेमा भी इससे अछूता नहीं रहा। आपातकाल के दौरान अमृत नाहटा की फिल्म ‘किस्सा कुर्सी का’ को जबरदस्ती बर्बाद करने की कोशिश हुई। किशोर कुमार को काली सूची में डाल दिया गया। ऑल इंडिया रेडियो पर उनके गाए गीतों को बजाने की मनाही हो गई। फिल्म ‘आंधी’ पर पाबंदी लगा दी गई। इस फिल्म को इंदिरा के जीवन की कहानी प्रभावित फिल्म बताया जाता है।
* महज आर्थिक आपातकाल कहकर भ्रम फैलाया गया
आपातकाल के दौरान मजदूरों और गरीबों का भी शोषण किया गया। सिर्फ पश्चिम बंगाल में करीब 16 हजार मजदूरों को जेल में बंद किया गया। देश में आर्थिक आपातकाल का भ्रम फैलाकर आम जनता से लेकर सरकारी महकमों में काम कर रहे लोगों के अधिकारों का दमन किया गया।
* चुनचुन कर लोगों की जबरन नसबंदी कराई गई 1975 emergency ... अदालत पर भी रहा आपातकाल का असर....
आपातकाल के दौरान जिस जज और वकील ने सरकार की अनसुनी की सभी को खामियाजा भुगतना पड़ा। नजरबंदी मुकदमों के तहत जिन जजों ने सरकार पर उंगली उठाई उनका तबादला किया गया। लेकिन जज भी अपने अधिकार और कानून को जानते थे वह अड़े रहे और सरकार के प्रयासों को असफल करने में सफल रहे।
इस दौरान चुनचुन कर लोगों की नसबंदी कराई गई। दिल्ली साफ सुथरी बनाने के लिए गरीब झुग्गी में रह रहे लोगों के घरों पर बुल्डोजर चलाया गया और लोगों को रातों रात शहर से दूर भेजा गया। इन सबके बीच इंदिरा ने जहां 20 सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की वहीं आम जनता ने उनके जीवन के आतंक को इंदिरा के जीवन का आतंक बनाया और 1977 में हुए चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हारी। 21 महीने तक देश को झकझोर देने वाली इस घटना ने नए आयाम तय किए। 43 साल बाद भी आज उस दिन को काले अध्याय के रूप में ही देखा जाता है।
अब तो जागो देश के लोकतंत्र