Shardiya Navratri Special : CG के इस मंदिर में ज्योत जलाने से पूरी होती है हर मनोकामना, 1400 साल पुराना है इतिहास, नवरात्र पर आशीर्वाद लेने दूर-दूर से पहुंचते हैं श्रद्धालु.....
मां दुर्गा की आराधना का पवित्र पर्व शारदीय नवरात्र रविवार से शुरू हो गया है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में शारदीय नवरात्रि पर्व के अवसर पर, पुरानी बस्ती स्थित मां महामाया मंदिर में मां भगवती की विशेष पूजा की जाती है। इस पर्व को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है और कई भक्त इस अवसर पर मां के दर्शन के लिए यहां आते हैं।




रायपुर। मां दुर्गा की आराधना का पवित्र पर्व शारदीय नवरात्र रविवार से शुरू हो गया है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में शारदीय नवरात्रि पर्व के अवसर पर, पुरानी बस्ती स्थित मां महामाया मंदिर में मां भगवती की विशेष पूजा की जाती है। इस पर्व को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है और कई भक्त इस अवसर पर मां के दर्शन के लिए यहां आते हैं, उनकी श्रद्धा और आस्था मां महामाया में प्रकट होती है। मां महामाया मंदिर के पंडित मनोज शुक्ला ने बताया कि यह मंदिर छत्तीसगढ़ के प्रमुख सिद्ध पीठों में से एक है।
यहां की भगवती महामाया का आलोकिक माहौल और आदर्श भक्तों की आस्था से भरा होता है। मां महामाया के मंदिर में मनोकामना पूरी करने की योजना बनाने वाले भक्त यहां पहुंचते हैं, और मां के सामने मनोकामना ज्योति प्रज्वलित करके अपनी इच्छाओं को पूरा करवाने का प्रयास करते हैं। कहा जाता है कि मनोकामना ज्योति को जलाने से मां महामाया भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। जानकारी के अनुसार इसका इतिहास 1400 साल पुराना है।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के महामाया मंदिर के साथ चमत्कारों की कई बातें जुड़ी हुई है। मंदिर का निर्माण छत्तीसगढ़ के हैहयवंशी राजाओं के साम्राज्य में हुआ था। मां महामाया देवी हैहयवंशी राजवंश की कुल देवी हैं। कहा जाता है कि एक बार राजा मोरध्वज अपनी रानी कुमुद्धती देवी के साथ राज्य भ्रमण पर निकले। शाम होने पर राजा अपनी सेना के साथ खारून नदी के तट पर रूक गए। जब रानी अपनी दासियों के साथ स्नान करने नदी पहुंची तो उन्होने देखा कि एक पत्थर का टिला पानी में तैर रही है। तीन विशालकाय सांप फन काढ़े उस टिले की रक्षा कर रहे थे। ये देखकर रानी और दासियां डर गई और चिल्लाते हुए पड़ाव में लौट आईं।
जब राजा मोरध्वज को ये बात पता चली तो उन्होने अपने राज ज्योतिषों से विचार करवाया। ज्योतिषों ने उन्हे बताया कि ये कि ये कोई टिला नहीं बल्कि देवी की मूर्ति है। राजा ने पूरे विधि विधान से पूजा-पाठ कर मूर्ति को बाहर निकाला। जब मूर्ति नदी से बाहर निकली तो लोग ये देखकर आश्चर्य हो गए कि ये कोई साधारण मूर्ति नहीं बल्कि सिंह पर खड़ी हुई मां भगवती की मूर्ति है। मंदिर को लेकर यह भी कहा जाता है कि स्वयं मां महामाया ने ही राजा से कहा कि मुझे कंधे पर उठाकर मंदिर तक ले जाया जाए और मंदिर में मेरी स्थापना कराई जाए।
राजा ने अपने पंडितों, आचार्यों व ज्योतिषियों से विचार विमर्श किया। सभी ने सलाह दी कि भगवती माँ महामाया की प्राण-प्रतिष्ठा की जाए तभी जानकारी मिली कि पुरानी बस्ती क्षेत्र में एक नये मंदिर का निर्माण किया गया है। राजा ने उसी मंदिर को तैयार करवाकर महामाया शक्तिपीठ की प्राण प्रतिष्ठा करवाई। मंदिर प्रांगण में स्थित कुंड का भी अपना इतिहास है। ऐसी मान्यता है कि कई साल पहले इस कुंड की जगह पर ही मंदिर के पुजारी के ऊपर बिजली गिर गई थी। लेकिन, पुजारी को कुछ नहीं हुआ। लोग इसे मां महामाया की कृपा मानते है।