CG:मुख्यमंत्री भुपेश बघेल आज सीता देवी मंदिर देवरबीजा जायेंगे... दक्षिण कोशलके सांस्कृतिक कला केंद्र..भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण रायपुर मंडल..भेंट मुलाकात देवरबीजा में आज...पढिए पूरा खबर

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संजू जैन:7000885784
बेमेतरा:बेमेतरा विधानसभा क्षेत्र के देवभूमि देवरबीजा में आज भेंट मुलाकात कार्यक्रम कुमारी देवी चौबे खेल मैदान में सबसे पहले बीजा रोड़ पर.हैलीपेड बना है वहां से सीधा मुख्यमंत्री जी सीता देवी मंदिर जायेंगे

बता दे की देवरबीजा 21 35' उत्तरी अक्षांश 81° 20 पूर्वी देशान्तर पर दुर्ग जिले की  बेमेतरा तहसील के अन्तर्गत दुर्ग-बेमेतरा राजमार्ग पर स्थित एक ग्राम है दुर्ग से  देवरबीजा की दूरी 58 किमी. तथा बेमेतरा से लगभग 20 किमी. है सीतादेवी मन्दिर  देवरबीजा गांव के उत्तर-पश्चिमी दिशा में एक विशाल सुरम्य सरोवर के पश्चिमी तट पर अवस्थित है। प्रस्तर निर्मित पूर्वाभिमुख यह मन्दिर भगवान शिव को समर्पित है। वर्तमान में मन्दिर का वर्गाकार गर्भगृह (6x6) भाग ही सुरक्षित है। जिसके ऊपर नागर शैली में | निर्मित शिखर दृश्यगत है।

 यह मन्दिर भू-विन्यास की दृष्टि से सप्तरथीय है। उर्ध्व विन्यास में यह मन्दिर | शिव मन्दिर गण्डई की भांति भूमिज शैली में निर्मित है, जिसका अधिष्ठान कई मोल्डिंगों में विभक्त है। अधिष्ठान की ऊपरी मोल्डिंग अलंकृत है, जिसमें विभिन्न मुद्रा में हाथियों का अलंकरण हैं, जिनमें प्रमुख है-वृक्ष खींचते हुऐ, युद्धरत एवं क्रीडायुक्त आदि 

अधिष्ठान ऊपर जंघा भाग है, जिसके निम्न भाग में चारों ओर विभिन्न प्रकार के दृश्यांकन मिलते हैं। इन दृश्यांकनों में सबसे महत्वपूर्ण हैं मन्दिर के दक्षिणी भाग के मुख्य रथ में उत्कीर्ण पुरूष एवं स्त्री आकृतियां । इस दृश्य में दो पुरूषों के मध्य एक स्त्री पीछे से हाथ पकड़े हुए नृत्य की मुद्रा में है। इस दृश्य को छत्तीसगढ़ में प्रचलित कर्मा लोक नृत्य की प्राचीनता से भी जोड़कर देखा जाता है। अन्य प्रमुख दृश्यों में पुरूष योद्धा शेर से युद्ध करते हुए, मालाधारी विद्याधर, नृत्य एवं संगीत के दृश्य, मिथुनांकन, स्थानक एवं आसीन देवता गण तदुपरान्त देवताओं में अष्टभुजी गणेश प्रतिमा प्रमुख है। जंघा भाग के ऊपरी बाह्य भित्ति में दो पंक्तियों में प्रतिमाएं हैं। दक्षिणी दिवाल के अन्तराल के निचले आले में नृत्यरत अष्टभुजी गणेश की प्रतिमा स्थापित है, जिनके हाथों में परशु, सर्प, पद्म, मोदक पात्र आदि हैं। जबकि इसी अन्तराल के ऊपरी आले में मुण्ड माला पहने चतुर्भुजी भैरव का अंकन है, जिनके हांथों में डमरू व कपाल स्पष्ट है। दक्षिणी दीवाल के निचले भद्ररथ के आले में चतुर्भुजी शिव अन्धकासुर का बध करते हुए दिखाये गये है, जबकि ऊपरी आले में चतुर्भुजी नटराज का अंकन है। जिनके दो हाथों में खटवांग एवं त्रिशूल तथा शेष दो भुजाएं नृत्य मुद्रा में है। प्रतिमा के नीचे दायीं ओर नंदी का अंकन है।


दक्षिण-पश्चिम कर्ण रथ के आले में चतुर्भुजी ब्रम्हा, स्रुव, पुस्तक, कमण्डल एवं एक हाथ बरद मुद्रा में किये हुए उर्त्तीण हैं। जहाँ पश्चिमी दिवाल के निचले भद्र आलें में दोनों हाथों में कमल पुष्प धारण किये हुए स्थानक मुद्रा में सूर्य की प्रतिमा स्थापित है। वहीं ऊपरी आलें में छः भुजी हरिहरहिरण्यगर्भ प्रतिमा स्थापित है, जिनके दायें हाथों में पद्म, शंख, त्रिशूल तथा बायें हाथों में खट्वांग, चक्र व पद्म सुशोभित है, वे किरीट मुकुट, कुंडल, हार, यज्ञोपवीत एवं मेखला धारण किये हुए हैं। उत्तर-पश्चिम कर्णरथ के आलें में चतुर्भुजी स्थानक शिव की प्रतिमा है। जिनके हाथों में त्रिशूल, डमरू, सर्प एवं खटवांग प्रदर्शित है जंघा भाग की बाह्य भित्ति में उत्तरी दिशा के निचले भद्र आलें में जहाँ चतुर्भुजी महिषासुर मर्दिनी त्रिशूल, खड्ग, खेटक लिए महिष का बध करते हुए अंकित है. वही ऊपरी भद्र आले में चतुर्भुजी वैष्णवी पद्मासन मुद्रा में शंख, चक्र, पद्म एवं गदा लिए हुए आसीन है, जो कुडल, हार, केयूर, मेखला आदि आभूषणों से अलंकृत है। उत्तरी दिवाल के अन्तराल भाग के निचले आलें में चतुर्भुजी कौमारी ललितासन में बैठी हुई है, जिनके एक हाथ में कुक्कुट है तथा दूसरा हाथ घुटने पर रखा है, शेष दो हाथ भग्न है। प्रतिमा के निचले भाग में वैष्णवी एवं ब्रम्हाणी की संयुक्त प्रतिमा स्थापित है, जो कि गदा, चक्र, श्रुवा व कलश धारण किये हुए है। मूर्ति शिल्प, सीता देवी मंदिर, देवरबीजा मन्दिर की बाहरी दिवाल में उपयुक्त आलों में स्थापित देव प्रतिमाओं के अलावा शेष अन्य भागों में भी अनेक देव प्रतिमाएं स्थापित है, जिनमें सरस्वती, नवग्रह, नृत्य गणेश, गजलक्ष्मी, ब्रम्हा एवं शिव प्रमुख हैं। बाह्य भित्ति की अन्य प्रतिमाओं में नृत्यरत अप्सरा, नृत्य पुरूष, मृदंग वादक, मिथुन-युगल, मालाधारी विद्याधर, गंधर्व, पुरूष उपासक व अंजलिमुद्रा में उपासक की प्रतिमाओं को यथोचित स्थान प्राप्त है। एक पुरूष प्रतिमा को दोनों हाथों में गदा लिए कई स्थानों पर उकेरा गया है। यहाँ अंकित गौर के सींग को धारण किए ढोलवादक आज भी बस्तर की आदिम संस्कृति का समुचित प्रतिनिधित्व करते है।

 मन्दिर का प्रवेश द्वार त्रिशाखाओं में विभक्त है, जिसमें बायीं ओर यमुना तथा दाहिनी ओर गंगा को स्थान दिया गया है। द्वार ललाट बिम्ब पर गणेश शोभायमान है। प्रवेश द्वार की तृतीय शाखा के ऊपरी भाग में विभिन्न मानव आकृतियों का अंकन हैं। जबकि शिरदल में नवग्रह का अंकन मिलता है। यह मन्दिर बारहवीं शताब्दी ई. में निर्मित है, तथा दक्षिण कोशल में स्थित कलचुरि मन्दिर स्थापत्य का प्रमुख उदाहरण है।

 सीतादेवी मन्दिर के समीप ही उत्तर मध्यकालीन प्रस्तर निर्मित सती-स्तम्भ है। जिस पर विभिन्न प्रकार के अलंकरण मिलते है।