Reservation in Promotion: सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण पर आ गया सुप्रीम कोर्ट का फैसला.... जानिए सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण पर क्या सुनाया फैसला....

Reservation in Promotion: सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण पर आ गया सुप्रीम कोर्ट का फैसला.... जानिए सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण पर क्या सुनाया फैसला....

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नई दिल्ली। प्रमोशन में आरक्षण का पैमाने तय करने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है। आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को प्रमोशन में आरक्षण के मानकों में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। SC ने कहा, सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले के फैसलों में जो आरक्षण के पैमाने तय किए हैं। उनमें हम छेड़छाड़ नहीं कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा, समय समय पर सरकार को यह रिव्यू करना चाहिए कि प्रमोशन में आरक्षण के दौरान दलितों को उचित प्रतिनिधित्व मिला है या नहीं। जस्टिस नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने कहा, पहले के फैसलों में तय आरक्षण के प्रावधानों और पैमानों को हल्के नहीं किए जाएंगे। 

कोर्ट ने कहा, केंद्र और राज्य अपनी अपनी सेवाओं में एससी एसटी के लिए आरक्षण के अनुपात में समुचित प्रतिनिधित्व को लेकर तय समय अवधि पर रिव्यू जरूर करेंगे। प्रमोशन में आरक्षण से पहले उच्च पदों पर प्रतिनिधित्व के आंकड़े जुटाना जरूरी है। अक्टूबर 2021 में फैसला रखा था सुरक्षित सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अधिकारियों- कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण को लेकर दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2021 में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इससे पहले केंद्र ने सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि यह जीवन की सच्चाई है कि आजादी के करीब 75 साल बाद भी SC-ST के लोगों को अगड़ी जातियों के समान योग्यता के स्तर पर नहीं लाया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक निश्चित अवधि के बाद  प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के आकलन के अलावा मात्रात्मक डेटा का संग्रह अनिवार्य है। ये समीक्षा अवधि केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जानी चाहिए । प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता को निर्धारित करने के लिए अदालत कोई मानदंड निर्धारित नहीं कर सकती। राज्य अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधित्व के संबंध में मात्रात्मक डेटा एकत्र करने के लिए बाध्य है। कैडर आधारित रिक्तियों के आधार पर आरक्षण पर डेटा एकत्र किया जाना चाहिए।  राज्यों को आरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से समीक्षा करनी चाहिए। केंद्र सरकार समीक्षा की अवधि निर्धारित करेगी। नागराज मामले में फैसले का संभावित प्रभाव  होगा। कैडर की बजाए समूहों के आधार पर डेटा इकट्ठा करना फैसले का उल्लंघन होता है। सरकारी आरक्षण नीतियों की वैधता के मुख्य मुद्दे पर 24 फरवरी से सुनवाई होगी। कोर्ट ने कहा कि हमने 6 प्वाइंट पर इस मुद्दे को बांटा है और उत्तर दिया है। एक जरनैल सिंह और नागराज के प्रकाश में मानदंड है।  हमने माना है कि हम प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता को निर्धारित करने के लिए कोई मानदंड निर्धारित नहीं कर सकते हैं। राज्य SC- ST  प्रतिनिधित्व के संबंध में मात्रात्मक डेटा एकत्र करने के लिए बाध्य हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पदों में आरक्षण के लिए मात्रात्मक आंकड़ों के संग्रह के लिए कैडर आधार  होना चाहिए। हमने अनुसूचित जाति और जनजाति के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता का निर्धारण करने के लिए मानदंड का आकलन करने के लिए इसे राज्य पर छोड़ दिया है। 26 अक्तूबर 2021 को  जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस  बीआर गवई की बेंच ने मामले में अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) बलबीर सिंह और विभिन्न राज्यों के लिए उपस्थित अन्य वरिष्ठ वकीलों सहित सभी पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। केंद्र ने पहले पीठ से कहा था कि यह जीवन का एक तथ्य है कि लगभग 75 वर्षों के बाद भी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को अगड़ी जातियों के समान योग्यता के स्तर पर नहीं लाया गया है। वेणुगोपाल ने प्रस्तुत किया था कि एससी और एसटी से संबंधित लोगों के लिए समूह ए श्रेणी की नौकरियों में उच्च पद प्राप्त करना अधिक कठिन है।  समय आ गया है जब शीर्ष अदालत को रिक्तियों को भरने के लिए एससी, एसटी और अन्य पिछड़ा वर्ग ( OBC) के लिए कुछ ठोस आधार देना चाहिए ।