मस्तूरी ब्लाक के ग्राम पंचायत पाली में धूमधाम से मनाया गया भोजली त्यौहार भोजली प्रतियोगिता का किया गया आयोजन सरपंच द्वारा बांटे गए इनाम पढ़े पूरी खबर




मस्तूरी ब्लॉक के ग्राम पंचायत पाली जो नदी किनारे बसा गांव है यहाँ प्रत्येक वर्ष भोजली त्यौहार बड़े ही धूम धाम से मनाई जाती है यहाँ इस अवसर पर प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है और प्रथम, द्वितीय,तृतीय,और कई आकर्षक पुरस्कार भी रखा जाता है जिसमे तीन अम्पायर भी होते है जो टोकरी की साइज भोजली की कलर रखने का तरीका इन सब पर अंक निर्धारित होती है और फिर उसी हिसाब से विजेता का चयन किया जाता है
गांव के राकेश कैवर्त ने बताया की
यहाँ भोजली त्यौहार के दिन मेला जैसा माहौल रहता है लोगो की भारी भीड़ इकठ्ठा होती है भोजली गीत पर पुरे गांव के लोग मादर की थाप पर जमकर थिरकते है और खूब रौनक होती है गांव में ! और विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम का भी आयोजन किया जाता है
वही सरपंच पुत्र योगेश ने बताया की
आमतौर पर पौधे का रंग हरा होता है पर भोजली का रंग सुनहरा होता है। कुछ भोजली में छींटे दिखते है जिन्हे लोग चंदन कहते है। भोजली गेंहू से निकला पौधा होता है, जिसे भोजली देवी का रूप मानते है।
भोजली का पर्व छत्तीसगढ़ में बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है। भोजली बोने के लिए सबसे पहले कुम्हार के घर से मिट्टी लाई जाती है जो कि कुम्हार द्वारा पकाए जाने वाले मटके व दीयो से बची राख होती है, इसे आम भाषा में 'खाद-मिट्टी' भी कहते हैं। इसके पश्चात टुकनी (टोकरी) और चुरकी लाई जाती है, जिसमे कुम्हार के घर से लाई गई खाद मिट्टी डाली जाती है। इसके बाद गांव के बैगा के घर से गेंहू लाया जाता है। इस गेंहू को सुबह भिगोकर शाम को टुकनी और चुरकी जिसमे मिट्टी डाली जाती है, उसमें डाला जाता है और ऊपर से फिर मिट्टी डाली जाती है।आस्था और सेवा से इन टोकरियों में पांच दिन में ही गेंहू के पौधे (भोजली) निकल जाते है। बैगा और गांव वाले भोजली के रूप में देवी देवताओं के पूजा व सेवा करते है और देवी-देवताओं से घर परिवार एवं गांव के सुरक्षा की कामना करते हैं। नौ दिन के सेवा के पश्चात भोजली देवी के विसर्जन के दिन पूरा गांव भोजली गीत (जैसे देवी गंगा देवी गंगा लहर तुरंगा हमरो भोजली दाई के भीजे आठों अंगा......) गाते हुए भोजली को पकड़कर नाचते हुए विसर्जन करने ले जाते है।