आज भी विकास से कोसो दूर है....जहा न सड़क न बिजली...अगर बीमार हुए तो दवाओं का नही दुवाओ का सहारा...केशे बदलेगी इस गांव की तस्वीर...जवाबदारों से मिला अस्वाशन..सवाल वही क्या आश्वासन जमीन में होगा तब्दील...

Even today it is far away from development..where there is no road, no electricity..if you fall ill, you do not take medicines, you take help of medicines..how will the picture of this village change? Will turn into land...

आज भी विकास से कोसो दूर है....जहा न सड़क न बिजली...अगर बीमार हुए तो दवाओं का नही दुवाओ का सहारा...केशे बदलेगी इस गांव की तस्वीर...जवाबदारों से मिला अस्वाशन..सवाल वही क्या आश्वासन जमीन में होगा तब्दील...
आज भी विकास से कोसो दूर है....जहा न सड़क न बिजली...अगर बीमार हुए तो दवाओं का नही दुवाओ का सहारा...केशे बदलेगी इस गांव की तस्वीर...जवाबदारों से मिला अस्वाशन..सवाल वही क्या आश्वासन जमीन में होगा तब्दील...

छत्तीसगढ़ धमतरी जिले से तकरीबन 110 किलोमीटर दूर में बसे दर्जनों गांवों विकास से कोसों दूर है.यहां ना तो बिजली है न ही सड़क और पुल पुलिया है.इसके आलावा मूलभूत सुविधाएं मयस्कर है.बता दें कि इलाके के दर्जन गांव सीता नदी टाइगर रिजर्व में बसा हुआ है.जिनमें सें चमेदा,मासुलखाई,करका,रिसगांव,गाताबहार,मदागिरी संदबाहरा,बोइर गांव,बरपदर,आमबहार यह गांव घोर नक्सली प्रभावित क्षेत्र के अंतर्गत आता है.इन गांवों में शिक्षा की व्यवस्था का बुरा हाल है और स्वास्थ्य सुविधाओं की भी कमी....

ग्रामीणों का कहना है कि यदि किसी का स्वास्थ्य खराब हो जाए तो उसको चारपाई से या साइकिल से बिठाकर ब्लॉक मुख्यालय नगरी ले जाते है.बिजली की बात की जाए तो सौर ऊर्जा से थोड़ा बहुत ही बिजली ग्रामीणों को नसीब होता है.कुछ गांवों में जाने के लिए कच्चे पगडंडी रास्ते से नदी नाला पार करके जाना पड़ता है.बीहड़ जंगल में होने के कारण यहां प्रशासनिक अमला बहुत ही कम पहुंचते है.जिससे इन ग्रामीणों को अपना समस्या का समाधान करने में बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है....

इलाके के ग्रामीण कई बार शासन प्रशासन से पुल पुलिया बिजली मूलभूत सुविधाओं के बारे में गुहार लगा चुके हैं लेकिन आश्वासन के अलावा उनको कुछ नहीं मिलता.ग्रामीणों का कहना है कि जब हमारा देश आजाद नहीं हुआ था तब भी यही स्थिति थी जो आज है. कुछ गांव में स्कूल तो है लेकिन कुछ स्कूल को बंद करवा दिया है...भीषण गर्मी के समय में यहां पानी की बहुत ज्यादा समस्या होती है.यहां के बच्चे बड़े स्कूल में पढ़ाई करने के लिए बीहड़ जंगलों के रास्ते से पैदल चल कर स्कूल आते हैं....बारिश के दिनों में इन बच्चों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है कभी कीचड़ में गिर जाते हैं तो कभी नदी नालों को पार करने का खतरा बना रहता है.कभी-कभी ग्रामीणों को अधिक बारिश होने पर कई दिनों तक आवागमन का साधन बंद होने के कारण वही टापू में तब्दील हो जाता है

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