Manipur Violence Explained: विपक्षी दलों का गठबंधन I.N.D.I.A मणिपुर हिंसा को लेकर देश में राजनीति कर रहा है, जरा देशवासियों इन विपक्षी दलों के गठबंधन के नेताओं से इतिहास की जानकारी पूछिए कि मणिपुर क्यों और कब से जल रहा है?

Manipur Violence Explained: The alliance of opposition parties I.N.D.I.A is doing politics

Manipur Violence Explained: विपक्षी दलों का गठबंधन I.N.D.I.A मणिपुर हिंसा को लेकर देश में राजनीति कर रहा है, जरा देशवासियों इन विपक्षी दलों के गठबंधन के नेताओं से इतिहास की जानकारी पूछिए कि मणिपुर क्यों और कब से जल रहा है?
Manipur Violence Explained: विपक्षी दलों का गठबंधन I.N.D.I.A मणिपुर हिंसा को लेकर देश में राजनीति कर रहा है, जरा देशवासियों इन विपक्षी दलों के गठबंधन के नेताओं से इतिहास की जानकारी पूछिए कि मणिपुर क्यों और कब से जल रहा है?

NBL, 28/07/2023, Lokeshwer Prasad Verma Raipur CG: Manipur Violence Explained: The alliance of opposition parties I.N.D.I.A is doing politics in the country regarding Manipur violence, countrymen just ask the leaders of the alliance of these opposition parties to know about the history that why and since when Manipur is burning?

देश के पूर्वोत्तर राज्यों में से एक मणिपुर राज्य है,करीब 200 समुदाय और जनजातियां, जिनका खानपान, रहन-सहन और बोली-भाषा बिल्कुल जुदा है। यह विविधता सबसे बड़ी ताकत है इस क्षेत्र की। लेकिन, यही विविधता आज कमजोरी भी बन गई है,जैसा कि मणिपुर में देखने को मिल रहा है, जहां दो मूल समुदायों "मैतई" और "कुकी" (Meitei and Kuki) के बीच झड़पें हो रही हैं जिसको लेकर विपक्षी दलों के गठबंधन I. N. D. I. A नेताओं ने आज देश में राजनीति कर रहे हैं और बीजेपी पीएम नरेंद्र मोदी सरकार को घेर रहे हैं लेकिन यही कांग्रेस व उनके गठबंधन नेताओं को मालूम है मणिपुर का हिंसा राजनीतिक नही है बल्कि सामाजिक है, दो समुदायों की उदंडता उपद्रता के कारण मणिपुर सदियों से हिंसा के आग में जल रहे हैं लेकिन विपक्षी दलों के गठबंधन नेताओं को राजनीति करने का नया अवसर मिल गया 2024 लोकसभा/विधानसभा चुनाव के लिए देश में क्योकि देश के ज्यादातर लोगों को मालूम ही नही है मणिपुर राज्य का इतिहास । 

इसलिए इन विपक्षी दलों के नेताओं के भाषण बाजी से देश के लोग गुमराह में पड़ गया है कि आखिर देश के पीएम नरेंद्र मोदी सरकार मणिपुर क्यों नहीं जा रहे हैं, बल्कि पूर्व की कांग्रेस देश के राजसत्ता में बैठे प्रधानमंत्री व गृह मंत्री मणिपुर हिंसा के बीच बचाव में कभी भी नही गया है तो यही कांग्रेस नेता राहुल गाँधी व उनके गठबंधन नेताओं ने मिलकर बार बार मणिपुर हिंसा को लेकर पीएम नरेंद्र मोदी सरकार के उपर आज देश में राजनीति क्यों कर रहे हैं जबकि मणिपुर पहले के अपेक्षा आज बहुत कम हिंसा हो रहे है और जान माल के नुकसान बहुत कम हो रहे हैं।

* इस बात को हम देशवासियो को बतायेंगे मणिपुर हिंसा  की सच्चाई व उनके पुरानी इतिहास....मणिपुर में पिछले करीब ढाई महीने से चले आ रहा हिंसा का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा. मणिपुर में हिंसा का पुराना इतिहास है, चलिए जानते हैं यहां बार-बार हिंसा क्यों भड़कती है? राज्य के अलग-अलग समाजों के बारे में भी समझते हैं। 

मणिपुर में 3 मई 2023 को दंगा भड़क उठा था, जो अब तक भी पूरी तरह से शांत नहीं हुआ है. नॉर्थ ईस्ट के इस पहाड़ी राज्य में 3 मई को ‘ट्राइबल सॉलिडेरिटी मार्च’ निकाला गया. मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल किए जाने की मांग के खिलाफ राज्य के 10 जिलों में यह मार्च निकाला गया. राज्यभर में भड़की हिंसा में करीब 150 लोगों की जान जा चुकी है. इसके अलावा हजारों लोग बेघर हो गए और संपत्ति के नुकसान का तो अभी तक ठीक से आंकलन भी नहीं लगाया गया है. आज भी बहुत से लोग राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि मणिपुर हिंसा की आग में झुलसा हैं, बल्कि मणिपुर में हिंसा का पुराना इतिहास रहा है. चलिए एक नजर डालते हैं मणिपुर में हिंसा के इतिहास पर और इसके प्रमुख कारणों को भी समझते हैं। 

* हालिया हिंसा का कारण... 

राज्य सरकार ने आरक्षित वनों से आदिवासियों को बेदखल करना शुरू किया. सरकार की इस पहल से इंफाल घाटी और आसपास के इलाकों में हिंसा भड़कने लगी. मणिपुर में हाल में भड़की हिंसा का प्रमुख कारण मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग रहा है. मैतेई समुदाय की यह मांग नई नहीं है, बल्कि 10 साल से अधिक समय से वह ये मांग कर रहे हैं. इस बार हिंसा तब भड़की जब मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के लिए चार हफ्ते के अंदर सिफारिश केंद्रीय आदिवासी मंत्रालय को भेजे. इस संबंध में याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि मैतेई समुदाय को 1949 में मणिपुर के भारत में शामिल होने से पहले अनुसूचित जनजाति का दर्जा हासिल था. उनका कहना है कि अपनी रिति-रिवाज, संस्कृति, जमीन और बोली को बचाए रखने के लिए उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा वापस मिलना चाहिए। 

मणिपुल हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद राज्यभर में प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया. राज्य के सभी 10 जिलों में छात्र संगठनों के आह्वान पर हजारों लोग ‘ट्राइबल सॉलिडेरिटी मार्च’ के नाम पर सड़कों पर उतर आए. इन प्रदर्शनों के जरिए मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने का विरोध किया गया। 

* मैतेई के अनुसूचित जनजाति के दर्जे के खिलाफ तर्क.. 

मणिपुर के कुकी और नागा आदिवासी, मैतेई को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने के खिलाफ हैं. इसके पीछे उनका तर्क है कि राज्य में उनकी जनसंख्या सबसे ज्यादा है और वह राजनीतिक रूप से काफी आगे होने के साथ ही शैक्षणिक दृष्टि से भी उनसे आगे हैं. उनका तर्क है कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलने से उनके लिए रोजगार के अवसर कम हो जाएंगे. इसके अलावा ऐसा होने से मैदानी इलाकों में रहने वाले मैतेई समाज को पहाड़ी इलाकों में बसने और आदिवासियों को उनकी जमीन से हटाने का अवसर मिल जाएगा. कुकी और नागा आदिवासियों का कहना है कि राज्य के 90 फीसद इलाके पर आदिवासी रहते हैं, लेकिन राज्य के बजट और विकास कार्यों का ज्यादातर हिस्सा मैतेई बहुल इंफाल घाटी में खर्च होते हैं । 

* राजनीति की चाल और ST Tag की मांग... 

मणिपुर में चाहे जिस भी पार्टी की सरकार बने, उसमें मैदानी इलाकों में रहने वाले मैतेई समाज का वर्चस्व रहा है. राज्य की कुल जनसंख्या में मैतेई समाज की भागीदारी भी 53 फीसद है. मैतेई समाज के ज्यादातर लोग इंफाल घाटी में ही रहते हैं. यही वजह है कि सरकार की किसी भी पहल को पहाड़ी इलाकों में रहने वाले आदिवासी अक्सर संदेश की निगाह से देखते हैं. पहाड़ी इलाकों में रहने वाले आदिवासी समाज में नागा और कुकी समुदाय प्रमुख हैं और राज्य की कुल जनसंख्या में इनकी संख्या 40 फीसद है. यह लोग घाटी के ऊपर पहाड़ी इलाकों में रहते हैं. राज्य की 60 सदस्यीय विधानसभा में 10 विधायक कुकी समाज से आते हैं. इनमें से भी 5 भाजपा विधायक हैं और 2 विधायक राज्य सरकार में शामिल कुकी पीपुल्स अलायंस के हैं । 

इंफाल घाटी बहुत ही उपजाऊ है, लेकिन यहां राज्य की सिर्फ 10 फीसद भूमि है, जबकि 90 प्रतिशत भूमि पहाड़ी है. राज्य में अलगाववाद का भी इतिहास रहा है और इन पहाड़ी इलाकों में अलगाववादियों के छिपने के लिए अच्छी खासी जगह मौजूद है. मणिपुर के कई जंगलों और पहाड़ी इलाकों को रिजर्व फॉरेस्ट और प्रोटेक्टिड फॉरेस्ट घोषित कर दिया गया. इस साल फरवरी में जब सरकार ने इन इलाकों को आदिवासियों से खाली कराना शुरू किया तो इससे आदिवासी भड़क गए. ऐसा इसलिए क्योंकि वह पीढ़ियों से इन इलाकों में रहते आ रहे थे. न सिर्फ कुकी समाज, जिस पर इसका सीधा असर पड़ रहा था, बल्कि अन्य आदिवासी भी इस कार्रवाई से नाराज हो गए. उनकी नाराजगी इस बात को लेकर भी थी कि सरकार उन्हें उनकी पैतृक भूमि से निकालकर सम्मानजक तौर पर किसी अच्छी जगह नहीं बसा रही थी। 

* इसी साल मार्च में भी हुई हिंसा... 

इसी साल मार्च में उस समय हिंसा भड़क गई थी, जब प्रदर्शनकारी कांगपोक्पी (Kangpokpi) जिले के थॉमस ग्राउंड में एक बड़ी रैली कर रहे थे. इस रैली में रिजर्व फॉरेस्ट, संरक्षित वन क्षेत्र और वाइल्डलाइफ सेंक्चुरी के नाम पर आदिवासी जमीन को कब्जाने के विरुद्ध आवाज उठायी जा रही थी. इस रैली में हुई हिंसा में पांच लोग घायल हो गए थे. इसके बाद सरकार ने ट्राइपाटिट सस्पेंसन ऑफ ऑपरेशन (SoO) बातचीत से कदम पीछे खींच लिए. दरअसल SoO एग्रीमेंट दो कुकी अलगाववादी संगठन कुकी नेशनल आर्मी और जोमी रेवोल्यूशनरी आर्मी के साथ केंद्र और राज्य सरकार का सीजफायर एग्रीमेंट था, जो 22 अगस्त 2008 को हुआ और यह एक दशक से ज्यादा लम्बे समय से चला आ रहा था । 

* नशे की खेती... 

एग्रीमेंट से हटने के साथ ही राज्य कैबिनेट ने एक बार फिर दोहराया कि सरकार वन संसाधनों की रक्षा और पोस्ता (नशे) की खेती को खत्म करने के लिए उठाए जाने वाले अपने कदमों से कोई समझौता नहीं करेगी. ग्रामीणों को संरक्षित वन क्षेत्रों से निकाले जाने पर गुस्सा अंदर ही अंदर उबल रहा था. इस बीच 11 अप्रैल को ग्रामीण इलाके में अवैध तरीके से बने तीन चर्च को गिरा दिया गया. चर्च की बिल्डिंग गिराए जाने की घटना ने आग में घी का काम किया । 

* कुकी कहां से आए.... 

एक एतिहासिक तथ्य यह भी है कि नागा और मैतेई मणिपुर में शुरुआत से ही रहते आए हैं. अगर आप ऐतिहासिक रिकॉर्ड देखेंगे या लिखित दस्तावेजों को खंगालेंगे तो पाएंगे कि उनमें कुकी का कहीं जिक्र नहीं है. कुकी समाज का इतिहास ईसा से 500 साल पुराना है. ऐतिहासिक तौर पर नया कुकी समाज 19वीं सदी की शुरुआत में मणिपुर में आकर बसा. यह लोग मिजो और चिन पहाड़ी इलाकों से यहां आकर बसे. अंग्रेजों ने कुकी समाज को नागा बहुल इलाकों में बसाया ताकि वह नागा आदिवासियों पर नियंत्रण रख सकें । 

* मणिपुर में हिंसा का इतिहास.... 

नागा आदिवासी समूह और कुकी का भी अपना खूनी इतिहास रहा है. दोनों समुदायों के बीच पूर्व में काफी हिंसक झड़पें होती रही हैं. कुकी आमतौर पर छोटे-छोटे गांव बसाते हैं और बड़ी जमीन पर खेती का कार्य करते हैं. इस समाज में चीफ से बड़े बेटे को ही गांव से जुड़े सभी अधिकार मिलते हैं. यही कारण है कि चीफ के अन्य बेटे किसी दूसरी जगह जाकर अपना अलग गांव बसा लेते हैं. इस तरह से अपने क्षेत्र को बढ़ाते रहने की प्रवृत्ति की वजह से भी कुकी समाज की नागा आदिवासियों के साथ झड़पें होती रहती हैं. ऐसी ही एक झड़प साल 2020 में कोरोना वायरस की वजह से लॉकडाउन लगने से ठीक पहले हुई थी । 

* नागा और कुकी समाज की दुश्मनी.... 

नागा और कुकी समाज की दुश्मनी देश की आजादी से पहले से चली आ रही है. 1990 के दशक में दोनों आदिवासी समाजों के बीच जमीन को लेकर कई हिंसक झड़पें हुईं. कुकी समाज के लोगों का आरोप था कि उनके 350 गांवों को उजाड़ दिया गया. इस दौरान उनके हजार से ज्यादा लोगों की हत्या की गई और 10 हजार से ज्यादा लोगों को अपने घर व जमीन छोड़कर जाना पड़ा. कुकी आदिवासी समाज है, जो म्यांमार और बांग्लादेश में चटगांव के आसपास के पहाड़ी इलाकों के अलावा पूरे नॉर्थ-ईस्ट इंडिया में फैले हुए हैं. 13 सितंबर 1993 की बात है, जब नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (इसाक-मुइवाह) (NSCN-IM) के उग्रवादियों ने कुकी आदिवासी समाज के करीब 115 लोगों की हत्या कर दी थी. यह हत्याकांड मणिपुर के पहाड़ी इलाके में हुआ था. हालांकि, NSCN-IM ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था । 

आज जो राजनीति देश में कर रहे है विपक्षी दलों के गठबंधन I. N. D. I.A मणिपुर हिंसा को लेकर जबकि सबसे ज्यादा देश में सत्ता चलाने वाले पूर्व की कांग्रेस सरकार मणिपुर हिंसा को लेकर कभी भी समझोता नही करवा पाए बल्कि मणिपुर में और ज्यादा आक्रामक हिंसा हुई उनके कार्यकाल में जो आज बीजेपी के कार्यकाल में थोड़ा कम हुई है और मणिपुर शांति वार्ता केंद्र सरकार की जारी है और वहाँ के मतई व कुकी समुदायों के वरिष्ठ नेताओं से लगातार बात हो रही है और मणिपुर हिंसा में घी का काम करने के लिए देश में विपक्षी दलों के नेताओं ने राजनीति कर रहे हैं वह बिल्कुल निराधार है। 

और इस बात को देश वासियों को गंभीरता से समझने की जरूरत है। राजनीति करने वाले का राजनीति मणिपुर में चलने वाला नहीं है वहाँ मतैई और कुकी समुदायों के शांति वार्ता से ही मणिपुर में शांति बहाली होगी, और वहाँ के महिलाओ के साथ किये गए दुष्कर्म के जाँच के लिए केंद्रीय जांच ऐजेंसि CBI को सौप दिया गया है और मणिपुर हिंसा केस को मणिपुर हाईकोर्ट से ट्रांसफर कर असम हाईकोर्ट कर दिया है और मणिपुर हिंसा और महिलाओ के साथ हुए दुष्कर्म को लेकर सुप्रीम कोर्ट के द्वारा मांगे गए केंद्र सरकार व मणिपुर सरकार अपने हलफनामे समिट कर दिया है तो विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा राजनीति करना बिल्कुल भी सही नही है बल्कि दोनों पक्षों को मिलकर मणिपुर हिंसा के विषय पर शांति वार्ता करनी चाहिए संसद सदन में।