मन के हारे हार है और मन के जीते जीत.
Losers of the mind are defeats and victories are won by the mind.




NBL, 27/05/2022, Lokeshwer Prasad Verma,.RAIPUR CG: Losers of the mind are defeats and victories are won by the mind.
प्रायः देखा जाता है कि कुछ व्यक्ति समुचित सहायता, प्रेरणा और अनुकूल वातावरण मिलने पर भी आगे नहीं बढ़ पाते। ऐसे व्यक्ति हृष्ट-पुष्ट होते हैं, अच्छा पहनते हैं और अच्छा खाते हैं, परंतु जीवन में कोई उपलब्धि नहीं कर पाते, पढ़े विस्तार से... वे संघर्षों से दूर भागते हैं और किसी भी भयानक परिस्थिति का सामना नहीं कर पाते। इसके विपरीत कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं, जो दुबले-पतले दिखाई पड़ते हैं, परंतु कठिन से कठिन परिस्थितियों का भी डटकर मुकाबला करते हैं। उन्हें कोई भी अपने पथ से विचलित नहीं कर पाता।
उनके साथ ऐसी कौन सी दैवीय शक्ति है, जो उन्हें निरंतर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। वे हंसते-हंसते अपने लक्ष्य तक पहुंचने का प्रयास करते हैं और अंततः वहां पहुंच जाते हैं। वह दैवीय शक्ति है उनका मन अर्थात मानसिक बल।
मनुष्य में प्रायः तीन प्रकार की शक्तियां विद्यमान रहती हैं। यहां हम शारीरिक तथा मानसिक शक्ति पर विचार करेंगे। शारीरिक शक्ति की दृष्टि से विश्व के सभी मनुष्य थोड़े बहुत अंतर के साथ समान होते हैं, परंतु मानसिक शक्ति या मनोबल की दृष्टि से उनमें काफी अंतर पाया जाता है।
शरीर तो एक यंत्र के समान है, उसमें कोई न कोई खराबी होते रहना स्वाभाविक है। वह सूख सकता है, जल सकता है, परंतु मन शरीर को शक्ति प्रदान करता है। यदि शरीर थक जाता है, तो मन उसे शक्ति देकर पुनः खड़ा कर देता है।
जब हम महापुरुषों का जीवन-चरित्र पढ़ते हैं, तो उनके द्वारा किए गए कल्पनातीत कार्यों को जानकर बहुत आश्चर्य होता है। हम यह सोचने को बाध्य हो जाते हैं कि वह कौन सी शक्ति थी, जिससे उन्होंने ऐसे कार्य कर दिखाए।
विचार करने पर ज्ञात होता है कि उन लोगों की मानसिक शक्ति प्रबल थी। उसी के बल पर उन्होंने असंभव कार्य को भी संभव बना दिया। दूसरे शब्दों में मानव मन के द्वारा ही सफलता प्राप्त करता है। इसीलिए कहा गया है
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।
परमात्म को पाइये, मन ही के परतीत॥
मानव अपने मन के विश्वास पर ही परमपुरुष परमात्मा को प्राप्त कर सकता है। यदि मनुष्य का मन हार जाता है अर्थात मन मर जाता है और उसकी हिम्मत टूट जाती है, तो शरीर भी निष्क्रिय हो जाता है। इसके विपरीत जब तक मन नहीं हारता, तब तक शरीर कितना भी अशक्त हो जाए—मनुष्य संघर्ष से मुंह नहीं मोड़ता। इसीलिए यह भी कहा गया है
हारिये न हिम्मत बिसारिये न नाम।
जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये॥
मनुष्य की मानसिक शक्ति वास्तव में उसकी इच्छा शक्ति है। जिस मनुष्य की इच्छा शक्ति जितनी प्रबल होगी, उसका मन उतना ही सुदृढ़ होगा। अपनी प्रबल इच्छा शक्ति के बल पर मानव मृत्यु के क्षणों को भी टाल सकता है।
बाणशैया पर लेटे भीष्म पितामह इसके सशक्त उदाहरण हैं। विघ्न और बाधाएं सभी के मार्ग में आती रहती हैं-चाहे व्यक्ति साधारण हो या महान। साधारण मनुष्य का मन विपत्तियों से घबराता है, जबकि महान एवं प्रतिभाशाली व्यक्ति का मन उस पर विजय के लिए प्रेरित करता है।
तात्पर्य यह है कि मन के हारने से मनुष्य जीती हुई बाजी हार जाता है तथा मन की जीत से हारी हुई बाजी भी जीत लेता है। यदि मनुष्य जीवन में सफलता प्राप्त करना चाहता है, तो उसे अपने को संयमशील बनाकर सकारात्मक भावनाओं का स्वामी होना चाहिए । मनुष्य को अपना मनोबल ऊंचा रखना चाहिए। मानसिक शक्ति के संचय में ही सफलता का अंकुर निहित है।