इस बात को पकड़ लो तो किसी से मांगने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी - सन्त बाबा उमाकान्त




इस बात को पकड़ लो तो किसी से मांगने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी - सन्त बाबा उमाकान्त
जब से यह प्रचार, प्रेमियों का शुरू हुआ, जगह-जगह पानी बरसने लगा
केवल ला पढ़े हैं, दा नहीं पढ़े हैं
जयपुर (राजस्थान) : अपने प्रेमियों से गुरु के मिशन का प्रचार करवा कर, उनकी नीयत दुरुस्त कर प्रकृति से फायदा लाभ दिलाने वाले, स्वार्थपरता को छोड़ने की सीख देने वाले, बरकत कमाने का तरीका बताने वाले, कम संसाधनों में में ज्यादा काम करने का उपाय बताने वाले, वक़्त के पूरे समरथ सन्त सतगुरु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त ने 2 जुलाई 2023 प्रातः जयपुर (राजस्थान) में अदभुत गुरु पूर्णिमा कार्यक्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि आज से 30-35 साल पहले जैसलमेर गया था। वहां एक सतसंगी से पूछा क्या काम करते हो। बोला मजदूरी। पूछा खेती नहीं करते हो?, कितना खेत है? बोला डेढ़ सौ बीघा। डेढ सौ बीघा खेती है और तुम मजदूरी करते हो? तब दूसरा आदमी बोला, यहां कुछ होता ही नहीं है, फसल ही नहीं होती। पानी थोड़ा बरसता था। अब देखो जब से यह प्रेमियों का प्रचार शुरू हुआ, जगह-जगह पानी बरसने लग गया। कल हमारे डिंडीगुल (तमिलनाडु) से लोग से आए थे। डिंडीगुल में बारिश होती ही नहीं है। पूछा तो वो बोले पांच आदमी आने वाले थे, बारिश में फंस गए, नहीं आ पाए, उनकी रेल छूट गई। हमने कहा बारिश? बोला बारिश, बहुत बारिश हो रही है। तो नीयत से ही बरकत होती है। नीयत अगर दुरुस्त हो जाती है तो बरकत होने लगती है।
हनुमान भक्त का प्रसंग
बाबा ने 26 दिसंबर 2017 सांय उज्जैन आश्रम में बताया कि एक आदमी खजूर के पेड़ पर चढ़ गया। खजूर बहुत मीठा लगा, खूब खाया। जब उतरने का हुआ, नीचे देखा तो डर गया। कहा, अब कैसे उतर पाएंगे? तो हनुमान जी का पुजारी था, मानता था तो कहा हे हनुमान जी! नीचे उतर जाऊं तो सौ लड्डू चढ़ाऊंगा। आधी दूर उतर आया तो देखा आधी दूर तो चले आए अब सौ क्या चढ़ाना, पचास ही चढ़ाएंगे। जब थोड़ी देर और उतर आया तब कहता है अब तो थोड़ी ही दूर रह गया, अब तो हनुमान जी बस पच्चीस चढ़ाऊंगा। फिर धीरे-धीरे उतरा तो बोला अब तो दस चढाऊंगा और जब नीचे जमीन पर पैर रखा तब कहा माफ करना हनुमान जी, अब न चढूंगा, न चढाऊंगा। कहने का मतलब कि स्वार्थी नहीं होना चाहिए।
केवल ला पढ़े हैं दा नहीं पढ़े हैं
महाराज ने 18 फरवरी 2023 प्रातः प्रयागराज में बताया कि कहते हैं केवल ला पढ़े हैं, दा नहीं पढ़े हैं। लाओ, लाओ, लाओ, बस यही पढ़े हुए हैं। देना जानते ही नहीं है। अरे देओगे नहीं तो पाओगे क्या? अगर कुछ दिया नहीं जाता है तो बरकत खत्म हो जाती है। अगर शरीर से सेवा नहीं किया जाता है तो शरीर रोगी हो जाता है। अगर कुछ मेहनत की कमाई खर्च नहीं की जाती है तो समझो बरकत बंद हो जाती है। इसीलिए तो पहले लोग दसवां अंश, गुरु का निकालते थे, अच्छे काम में लगाते थे। खेत में अनाज पैदा होते ही वहीं से संकल्प बना लेते थे कि इतना मठ, मंदिर में देंगे, इतना तीर्थ स्थानों पर जाएंगे खर्च करेंगे, भंडारा करेंगे, खिलाएंगे, गुरु के आश्रम पर देगे। ऐसे संकल्प लोग पहले बना लेते थे।
इस बात को पकड़ लो तो किसी से मांगने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी
महाराज ने 30 नवंबर 2020 प्रातः उज्जैन आश्रम में बताया कि यह माताएं, बच्चियां जो भोजन बनाती है, और जहां बच्चे खुद बनाते हैं जैसे कहीं बाहर नौकरी करते हैं, सबको कहा गया कि जब भोजन बनाने के लिए चलो तो थोड़ा सा उसमें से चुटकी निकाल कर के रख दो और रोज रखते जाओगे, इकट्ठा हो जाएगा तो यह भंडारे तो उसी से चलते रहेंगे, किसी से मांगने की जरूरत नहीं पड़ेगी। आप जितने भी प्रेमी हो, अगर इस बात को पकड़ लो तो रोटी सब खाते हो। कुत्ते, गाय के लिए बहुत से लोग रोटी अभी भी निकालते हैं, आप वह भी निकालते रहोगे और आप खा भी लोगे और आपकी चुटकी भी उसमें से निकल जाएगी। इतनी बरकत हो जाएगी। आप करके देख लो। जितना आटा चावल आप निकालती हो, बनाने के लिए, खाने के लिए, उसी में से आप चुटकी निकाल दो और कुत्ता बिल्ली गाय बंदर जो भी, उसको खिला दो तो भी उसमें ज्यादा आपको और नहीं लेना पड़ेगा। जैसे एक किलो आटा बनाते हो तो एक किलो में सब पूरा परिवार खा जाएगा, आप भी खा जाओगे और इनका भी हो जायेगा। तो भंडारे तो उसी से चलते रहेंगे।