स्वार्थ के वशिभूत होकर, परमार्थ को आज लोग भूल गए हैं, जो खुद की अहित करता है.

Due to selfishness, today people have

स्वार्थ के वशिभूत होकर, परमार्थ को आज लोग भूल गए हैं, जो खुद की अहित करता है.
स्वार्थ के वशिभूत होकर, परमार्थ को आज लोग भूल गए हैं, जो खुद की अहित करता है.

NBL, 01/12/2022, Lokeshwer Prasad Verma, Raipur CG: Due to selfishness, today people have forgotten the greatness, which harms themselves.

स्वार्थ अपना हित साधने की उग्र भावना है, स्वार्थ की भावना रखने वाला व्यक्ति भले ही किसी को धोखा देकर तत्काल में फायदा उठा ले मगर भविष्य कंटीला हो सकता है, पढ़े आगे विस्तार से... 

निस्वार्थ भाव से किया गया कार्य हमेशा प्रसन्नता लाता है जबकि स्वार्थ व्यक्ति को कमजोर बनाता है। जिसके अंदर स्वयं के लाभ की भावना नहीं होगी वह सभी का प्यारा होगा। सच्चे भाव से पूरी दुनिया आप की हो सकती है, लेकिन स्वार्थ के चलते आपकी दुनिया संकुचित भी हो जाती है। स्वार्थ सीमाओं से परे होता है स्वार्थ शब्द पर विचार करें तो स्व और अर्थ दो शब्दों से बना यह शब्द जीवन के उद्देश्यों को ही बदल देता है। स्व अर्थात अपने को अर्थ का तात्पर्य है हित कल्याण धन संपत्ति आदि से योजित कर लेना।स्वार्थ शब्द अपने आप में बुरा नहीं है परंतु दूसरे के हितों को हानि पहुंचा कर अपना हित सोचना सर्वथा अनुचित है स्वयं को जानने के लिए आवश्यक है कि मैं कौन हूं क्यों हूं। वह कौन है जो मुझ में है एक परमार्थहीन जीवन जीते भी मरने के समान है चाहे वह मन से हो या वाणी से हो या कर्म से हो पर हो ऐसे कि जैसे तुम्हें सदा जीना है और जियो ऐसे कि जैसे तुम्हें कल ही दुनिया से चले जाना है दूसरों की मदद किए बिना हम अपनी मदद नहीं कर सकते दूसरों को खुशहाली दिए बगैर हम खुशहाल नहीं रह सकते।

स्वार्थ कर देता है गुणों का पतन... 

इंसान जब अपने लाभ और हित के लिए कार्य करता है तो वह उसका स्वार्थ कहलाता है। स्व अर्थ अर्थात अपना लाभ जो कि स्वार्थ कहलाता है। स्वार्थ को समाज में अनुचित समझा जाता है। किसी को स्वार्थी कहना उसके लिए अपशब्द के समान होता है। जो इंसान स्वार्थ के नशे में अपराधिक कार्यों को अंजाम देते हैं वह कितने भी घातक हो सकते हैं ऐसे इंसानों के लिए रिश्ते व भावनाओं की कोई कीमत नहीं होती है। बुद्धिमान व्यक्ति ऐसे इंसानों से दूरी बनाकर रखने और उनसे सतर्क रहने में अपना भलाई मानते हैं। 

रिश्तों में अपनापन समझ कर किसी के स्वार्थ को सहन करना वास्तव में मूर्खता के अतिरिक्त कुछ नहीं है क्योंकि लुटने व बर्बाद होने के पश्चात सावधानी दिखाने का कोई लाभ नहीं होता है। इंसान के मन में जब स्वार्थ की वृद्धि होने लगे यदि उसी समय मन को शांत किया जाए तो सहजता से शांत किया जा सकता है अन्यथा इंसान का स्वार्थ पोषित होकर जीवन को विनाश के मार्ग पर ले जाता है एवं इंसान को परिणाम भुगतने के समय जब अहसास होता है तब तक बहुत देर हो जाती है। जीवन में यह समझना आवश्यक है कि स्वार्थ द्वारा भौतिक सुख तो जुटाए जा सकते हैं कितु सम्मान उस स्वार्थी व्यक्ति का धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है उसका सामाजिक पतन निश्चित होता है यदि सम्मान चाहिए तो स्वार्थ से दूर रहना आवश्यक है वरना यह आपका पतन कर देगा।

वास्तव में देखा जाए तो स्वार्थी व्यक्ति से बड़ा खतरनाक कोई हो नहीं सकता, कई बार ईमानदार व्यक्ति इनके चंगुल में फंसकर बहुत बड़ा नुकसान कर बैठता है, इसी के चलते विद्वानों की सलाह है कि स्वार्थी व्यक्ति से हमेशा दूरी बनाकर रखनी चाहिए, क्योंकि स्वार्थ के चक्कर में फंसकर वह अपना तो भविष्य चौपट ही रहा साथ ही आपके साथ इतना बड़ा धोखा कर सकता है कि जीवनभर पछताना पड़े।

स्वार्थी किस्म के लोगों के साथ न्याय नहीं हो पाता, क्योकि वह जीवन भर लोगों के साथ अन्याय ही तो किया है, इनके जीवन, जीवन भर केवल और केवल स्वार्थ सिद्दी मे ही तो बिताया है, इनके जीवन के इतिहास में परमार्थ शब्द का नामोनिशा नहीं होता है, तो इनको न्याय कैसे मिल सकता है, इनके दुर्दशा उस धोबी के कुत्ता ना घर का ना घाट का जैसे हो जाता है, और ये अकेला रह जाते हैं, यहाँ तक इनके परिवार, समाज भी इनके साथ नहीं होता, इतना बुरे लोग होते हैं ये स्वार्थी किस्म के लोग।