भूविस्थापितों को नियमित रोजगार की मांग : कुसमुंडा मुख्यालय के सामने मुंडन कराकर विरोध प्रदर्शन, किसान सभा ने कहा – जारी रहेगा आंदोलन

भूविस्थापितों को नियमित रोजगार की मांग : कुसमुंडा मुख्यालय के सामने मुंडन कराकर विरोध प्रदर्शन, किसान सभा ने कहा – जारी रहेगा आंदोलन
भूविस्थापितों को नियमित रोजगार की मांग : कुसमुंडा मुख्यालय के सामने मुंडन कराकर विरोध प्रदर्शन, किसान सभा ने कहा – जारी रहेगा आंदोलन

भूविस्थापितों को नियमित रोजगार की मांग : कुसमुंडा मुख्यालय के सामने मुंडन कराकर विरोध प्रदर्शन, किसान सभा ने कहा – जारी रहेगा आंदोलन

कोरबा। भूविस्थापित किसानों को भूमि अधिग्रहण के बदले रोजगार देने की मांग को लेकर आज कुसमुंडा एसईसीएल मुख्यालय के सामने बेरोजगारों ने अपना मुंडन कराकर विरोध प्रदर्शन किया और नए साल के पहले दिन ही अपने संघर्ष को और तेज करने का संकल्प लिया। इसी के साथ उनके अनिश्चितकालीन धरना के 427 दिन पूरे हो गए हैं। 

उल्लेखनीय है कि कुसमुंडा कोयला खदान विस्तार के लिए 1978 से 2004 तक जरहाजेल, बरपाली, दुरपा, खम्हरिया, मनगांव, बरमपुर, दुल्लापुर, जटराज, सोनपुरी, बरकुटा, गेवरा, भैसमा आदि गांवों में बड़े पैमाने पर हजारों किसानों की जमीन का अधिग्रहण किया गया था। उस समय एसईसीएल की नीति भूमि के बदले रोजगार देने की थी, लेकिन प्रभावित परिवारों को उसने रोजगार नहीं दिया। बाद में यह नीति बदलकर न्यूनतम दो एकड़ भूमि के अधिग्रहण पर एक रोजगार देने की बना दी गई।इससे अधिग्रहण से प्रभावित अधिकांश किसान रोजगार मिलने के हक से वंचित हो गए। एसईसीएल की इस नीति के खिलाफ और सबको रोजगार देने की मांग को लेकर छत्तीसगढ़ किसान सभा और रोजगार एकता संघ द्वारा मिल–जुलकर पिछले एक साल से आंदोलन किया जा रहा है। इस बीच 6 बार खदान बंद आंदोलन भी किया गया, जिसमें सोलह आंदोलनकारियों को जेल भी भेजा गया था। लेकिन दमन के आगे न झुकते हुए आंदोलन जारी है।

आंदोलनकारियों को संबोधित करते हुए छत्तीसगढ़ किसान सभा के जिला सचिव प्रशांत झा ने कहा कि पूरे देश मे आजादी के बाद से अब तक विकास परियोजना के नाम पर करोड़ों लोगों को विस्थापित किया गया है और अपने पुनर्वास और रोजगार के लिए वे आज भी भटक रहे हैं। यदि एसईसीएल ने उन्हें समय पर उन्हें उसी समय रोजगार दिया होता, तो आज यह आंदोलन नहीं होता। इसलिए पुरानी नीति से मुआवजा और नई नीति से रोजगार की एसईसीएल की पेशकश किसानों को स्वीकार नहीं है। झा ने आगे कहा कि विस्थापितों को सम्मानजनक जीवन और पुनर्वास प्रदान करना एसईसीएल और सरकार की जिम्मेदारी है। उन्होंने बताया कि कुसमुंडा में 427 दिनों से चल रहे आंदोलन के दबाव में ही कम जमीन, डबल अर्जन और रैखिक संबंध के मामले में एसईसीएल को नियमों में बदलाव करना पड़ा है और कुछ भूविस्थापितों को रोजगार मिलना शुरू हुआ है।अब प्रबंधन के खिलाफ अर्जन के बाद जन्म के मामले में विस्थापितों के पक्ष में फैसला देने के लिए संघर्ष तेज किया जाएगा। 

भूविस्थापित नेताओं रेशम यादव, दामोदर श्याम, रघु यादव और जय कौशिक भी सभा को संबोधित करते हुए कहा कि जमीन अधिग्रहण करके उनकी आजीविका का एकमात्र साधन खेती छीन गया है, इसके कारण विस्थापित किसानों की आर्थिक स्थिति भी काफी खराब है। एसईसीएल रोजगार देने के वायदे पर अमल नहीं कर रहा है। इसलिए जब पूरी दुनिया नए साल का जश्न मना रही है, तब कुसमुंडा के भू-विस्थापित किसान अपनी दयनीय स्थिति को दिखाने और भूविस्थापित किसानों को बर्बाद करने वाली नीतियों के खिलाफ मुंडन होकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। आज किसानों के पास केंद्र और राज्य सरकार तथा एसईसीएल की रोजगार विरोधी नीतियों के खिलाफ संघर्ष के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा है।

विरोध प्रदर्शन में प्रमुख रूप से मोहन यादव, नरेंद्र यादव, रामगोपाल, दीनानाथ, कलीराम, रविकांत, नारायण,  मुनिराम, लंबोदर, चंद्रशेखर, गणेश बिंझवार, बसंत, अनिल, हरि, नूतन,  हेम दास, विजय, गोरख, राधेश्याम, जय, अश्वनी, आनद, सुनील, छोटू, फणीन्द, हरियार, शिव, हेमलाल यादव के साथ बड़ी संख्या में भूविस्थापित उपस्थित थे।