अलर्ट नई स्टडी में खुलासा :कोरोना से दिमाग को भी खतरा….कोरोना ने बंदरों के ब्रेन सेल्स को किया खत्म….यह इंसानों के लिए भी खतरनाक, मेमोरी लॉस का खतरा…पढ़िए साइड इफेक्ट्स से कैसे करे बचाव…..




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डेस्क :कोरोना संक्रमण से रिकवरी के बाद लोगों में मेमोरी लॉस, मूड स्विंग और दूसरे न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर हो रहे हैं। वैज्ञानिक इसका कारण कोरोना से दिमाग को होने वाले नुकसान को मान रहे हैं। अमेरिका के कैलिफोर्निया नेशनल प्रीमिटिव रिसर्च सेंटर ने एक नई स्टडी में इस बात की पुष्टि की है।
रिसर्चर्स ने बंदरों पर एक प्रयोग किया है। इसमें यह पाया गया कि कोरोना वायरस उनके ब्रेन सेल्स (दिमाग की कोशिकाओं) को खत्म कर देता है। ये समस्या इंसानों में भी देखने को मिल सकती है।
इससे पहले हुई कुछ रिसर्च में पाया गया है कि कोरोना से दिमाग में खून के थक्के जम सकते हैं और ब्लीडिंग भी हो सकती है। इससे स्ट्रोक आने की आशंका होती है। यह बीमारी मरीज के फेफड़ों को इतना खराब कर सकती है कि उसके दिमाग में ऑक्सीजन पहुंचने की गुंजाइश ही न बचे।
ग्रॉसमैन स्कूल ऑफ मेडिसिन की प्रोफेसर जेनिफर फ्रंटेरा कहती हैं कि कोरोना के बाद भी बहुत से लोग इसके साइड इफेक्ट्स से जूझ रहे हैं। उनकी एक रिसर्च के मुताबिक, अस्पताल में भर्ती होने वाले 13% से ज्यादा मरीजों में न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर हुए। 6 महीने बाद की फॉलो-अप स्टडी में भी उनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। इनमें ज्यादातर लोग बूढ़े और गंभीर बीमारियों से पीड़ित थे। फ्रंटेरा कहती हैं कि संक्रमण ऐसे ही फैलता रहा तो लोगों में समय से पहले ही अल्जाइमर होने का खतरा बढ़ जाएगा।
कोरोना के दिमागी साइड इफेक्ट्स का बचाव
विशेषज्ञ कहते हैं कि कोरोना से पीड़ित उन मरीजों के दिमाग को जल्दी स्कैन कर लेना चाहिए, जो पहले से ही गंभीर बीमारियों की चपेट में हैं। एक बार मानसिक बीमारी होने पर उससे रिकवर होना बहुत मुश्किल हो जाएगा। इसके अलावा, इस समय कोरोना से लड़ने का सबसे कारगर उपाय कोविड प्रोटोकॉल फॉलो करना और वैक्सीन लगवाना है।
कैसे हुई रिसर्च?
न्यूरोलॉजी प्रोफेसर जॉन मॉरिसन कहते हैं कि कोरोना वायरस के मूल रूप को समझने के लिए उसे बंदरों में इंजेक्ट किया गया था। रिसर्च में पता चला कि वायरस जानवर के फेफड़ों और टिशूज को संक्रमित करता है। उन्हें आशंका थी कि वायरस दिमाग को संक्रमित करने में भी सक्षम है। इसलिए उन्होंने अपनी रिसर्च की दिशा बदली।
वैज्ञानिकों की एक टीम के साथ मिलकर मॉरिसन ने संक्रमित बंदरों के दिमाग को स्टडी किया। रिजल्ट में पाया गया कि कोरोना बंदरों के ब्रेन सेल्स को संक्रमित कर नष्ट करता है। संक्रमण सबसे पहले नाक और फिर दिमाग तक पहुंचता है। धीरे-धीरे यह दिमाग के हर कोने में पहुंच जाता है।
मॉरिसन के अनुसार कोरोना इंसानों की तुलना में जानवरों में हल्के लक्षण पैदा करता है। रिसर्च में ये बात भी सामने आई कि कोरोना संक्रमण बूढ़े या डायबिटीज के शिकार बंदरों में ज्यादा फैला। वैज्ञानिकों का कहना है कि इंसानों में भी संक्रमण का यही पैटर्न देखने को मिलता है। इसी कारण कोरोना से रिकवरी के बाद भी मरीज लॉस ऑफ स्मेल, ब्रेन फॉग, मेमोरी लॉस और मूड में बदलाव का अनुभव करते हैं