Ageing Population: बढ़ती आबादी संसार की समस्या है या बुढ़ाती आबादी?

Aging Population: Is increasing population

Ageing Population: बढ़ती आबादी संसार की समस्या है या बुढ़ाती आबादी?
Ageing Population: बढ़ती आबादी संसार की समस्या है या बुढ़ाती आबादी?

NBL, 19/01/2023, Aging Population: Is increasing population the problem of the world or aging population?

Ageing Population: दो महीने पहले ही संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि विश्व की जनसंख्या आठ अरब हो गयी है। इस तथ्य ने सबको बेहद चिंतित कर दिया था। क्योंकि हमारे पारंपरिक विमर्श में बढ़ती आबादी को हमेशा एक समस्या के रूप में ही देखा गया है।

खासकर भारत जैसे देश में तो यह कुछ ज्यादा ही बड़ी चुनौती है, जो कुछ ही महीनों में दुनिया का सर्वाधिक आबादी वाला देश बनने की ओर अग्रसर है। लेकिन, संयुक्त राष्ट्र की ही एक और रिपोर्ट अब आयी है, जिसमें 'ग्रेयिंग पॉपुलेशन' को 'ग्रोइंग पॉपुलेशन' से बड़ी चुनौती बताया गया है। 'वर्ल्ड सोशल रिपोर्ट 2023 : लीविंग नो वन बिहाइंड' शीर्षक वाली इस रिपोर्ट को यूएन के 'डिपार्टमेंट ऑफ इकोनॉमिक एंड सोशल अफेयर्स' ने जारी किया है।

* बढ़ रहे हैं बुजुर्ग... 

रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में 65 साल या इससे अधिक आयु वाले लोगों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। 1980 में यह संख्या 26 करोड़ थी, 2021 में करीब तीन गुना बढ़ कर 76.1 करोड़ हो गयी। रिपोर्ट के मुताबिक 2030 में 65 पार वाले बुजुर्गों की आबादी एक अरब और 2050 में 1.6 अरब का आंकड़ा पार कर लेगी। इनमें भी करीब 46 करोड़ लोग अस्सी या इससे अधिक आयु वाले होंगे। बेशक आज पुरुषों की तुलना में महिलाओं का औसत कम नज़र आता हो, लेकिन दिलचस्प रूप से इस बुजुर्ग जनसंख्या में महिलाओं का दबदबा रहेगा। 2050 में 65 से 80 वर्ष आयु वाली आबादी में महिलाओं की 54% भागीदारी होगी और 80 से अधिक आयु वाली में 59% ।

आज उम्रदराज आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा यूरोप और उत्तरी अमेरिका में रहता है। लेकिन जनसंख्या वृद्धि के नये रुझान बताते हैं कि अगले तीन दशकों में पश्चिम एशिया, उत्तरी अफ्रीका और उप-सहारा क्षेत्रीय अफ्रीका, बुजुर्ग आबादी में वृद्धि की सर्वाधिक दर का सामना करने वाले हैं।

* जूझ रहे हैं कई देश इसी चुनौती से... 

बढ़ती जनसंख्या में बुजुर्गों की बढ़ती संख्या एक ऐसा वैश्विक रुझान है, जिसे रोका नहीं जा सकता। औसत आयु में वृद्धि और स्वास्थ्य सेवाओं में लगातार हो रहे सुधारों की वजह से मृत्युदर में कमी इसकी प्रमुख वजह है। लेकिन, इससे भी बड़ी वजह है प्रजनन दर में आने वाली गिरावट।

किसी भी देश की मौजूदा आबादी को यथावत रखने के लिए प्रजनन दर 2.1 प्रतिशत रहना आवश्यक है। दुनिया में सबसे ज्यादा बुजुर्ग देश माने जाने वाले जापान में प्रजनन दर महज 1.4 प्रतिशत है। 2040 तक यहां 35 फीसदी से ज्यादा लोग बूढ़े होंगे। ब्राजील में 1960 में प्रजनन दर 6.3 प्रतिशत थी, जो अब घटकर 1.7 प्रतिशत रह गयी है। ईरान की जनसंख्या वृद्धि दर भी घटकर एक प्रतिशत से कम रह गयी है। आशंका जतायी जा रही है कि 2050 तक यह भी दुनिया के सर्वाधिक बुजुर्ग देशों में शामिल हो जायेगा।

* भारत में भी घट रही है जन्म दर... 

घटती जन्मदर की इस विश्वव्यापी समस्या से भारत भी अप्रभावित नहीं रहा है। 2011 में हमारे देश में प्रजनन दर 2.4 थी, जो 2019 में 2.1 पर आ गयी। इस गिरावट के दुष्परिणाम देखने में आसन्न नजर आने लगे हैं। अभी बेशक भारत को दुनिया का सबसे ज्यादा युवा (15 से 29 आयु वर्ग) जनसंख्या वाला देश माना जाता है, लेकिन भविष्य की तस्वीर काफी अलग रहने वाली है।

मिनिस्ट्री ऑफ स्टेटिस्टिक्स एंड प्रोग्राम इम्प्लीमेंटेशन' की यूथ इन इंडिया 2022' इस खतरे की ओर इशारा कर रही है। रिपोर्ट के अनुसार अभी भारत में युवाओं की जनसंख्या 27.3%, है। 2036 तक यह घटकर 22.76 प्रतिशत रह जायेगी। वहीं बुजुर्ग आबादी, जो अभी 10.1 प्रतिशत है, 2036 में बढ़कर 14.9% हो जायेगी। इसकी सबसे बड़ी वजह यही है कि एक ओर प्रजनन दर घट रही है, वहीं मृत्यु दर भी लगातार गिर रही है। 2011 में यह 7.1 थी, जबकि 2014 में 6.0 रह गयी।

* नियंत्रण नहीं संतुलन की जरूरत... 

इस बात से कौन इंकार करेगा कि बढ़ती आबादी दुनिया ही नहीं बल्कि इस ग्रह के लिए भी एक बहुत बड़ी समस्या है। पृथ्वी के बारे में कहा जाता है कि यह अपनी क्षमता से कई गुना ज्यादा बोझ उठा रही है। हम प्राकृतिक संसाधनों का एक वर्ष में जितना उपभोग करते हैं, उन्हें फिर से उत्पन्न करने में पृथ्वी को डेढ़ वर्ष लगता है। जैसे- जैसे आबादी बढ़ती जायेगी, यह बोझ भी बढ़ता जायेगा। लेकिन, यह भी सच है कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए हमारी ओर से जो उपाय किये गये हैं, वे या तो बेनतीजा साबित हुए हैं, या फिर हमारी उम्मीदों से एकदम अलग नतीजे देने वाले। दुनिया की बुजुर्ग होती आबादी एक ऐसा ही अनपेक्षित परिणाम है।

ऐसे कई देशों का उदाहरण हमारे सामने है, जो पहले जनसंख्या नियंत्रण को लेकर पागल हो रहे थे, अब आबादी बढ़ाने के लिए परेशान हैं और अपने नागरिकों को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए तरह-तरह के लुभावने ऑफर दे रहे हैं। भारत इनसे सबक लेकर अपनी जनसंख्या नियंत्रण नीति में सुधार कर सकता है, ताकि उसे इस तरह के हालातों का सामना न करना पड़े।

दरअसल इस समय विश्व को जनसंख्या नियंत्रण से अधिक जनसंख्या और संसाधनों के बीच संतुलन की आवश्यकता है। उपभोगवादी संस्कृति को प्रोत्साहित करने की बजाय अगर न्यूनतम वाद (मिनिमलिज्म) को अपनाया जाये तो स्थिति में काफी सुधार आ सकता है। तब यही संसाधन हमारे लिए पर्याप्त होंगे और इन पर कब्जे की लड़ाईयां भी बंद हो जायेंगी। और फिर हमें जनसंख्या नियंत्रण को लेकर आक्रामक नीतियों की आवश्यकता भी नहीं होगी।