जन्म, ज्ञान, धर्म, दया, दान और फिर मृत्यु के बाद आत्मा का परमात्मा से मिलन का सुख फिर हम मनुष्य कैसे बने?
After birth, knowledge, religion, kindness, charity




NBL, 11/04/2023, Lokeshwer Prasad Verma Raipur CG: After birth, knowledge, religion, kindness, charity and then after death, the happiness of meeting the soul with God, then how did we become humans?
जीवन का सबसे बड़ा और अटल सत्य है मृत्यु। कोई चाहे कितना ही ताकतवर क्यों ना हो, खुद को शक्तिशाली क्यों ना मानता हो, सच यही है कि जन्म लेने के साथ ही उसकी मौत का समय भी तय हो जाता है। मौत का डर इंसान को भयभीत तो करता है लेकिन हकीकत यही है कि मृत्यु का अनुभव व्यक्ति को जीवन की सच्चाई बता जाता है।
हम मनुष्य इस धरती पर जन्म लेते हैं, तो तीन रूप में पैदा लेते है पहला स्त्री दूसरा पुरुष और तीसरा किन्नर स्त्री और पुरुष के रज वीर्य के निषेचन क्रिया से हम तीनों मनुष्य का जन्म होता है, फिर जन्म के बाद हमारे माता पिता व परिवार के माध्यम से हमारे परवरिश होती है, और फिर हमें ज्ञान देते है, ये माँ है ये पिता जी है और परिवार समाज के हर रिश्ता से हमको अवगत कराया जाता है वैसा ही दैनिक उपयोगी वस्तु को भी लेकर ज्ञान दिया जाता है ये आग है इसे मत छुना जल जाओगे वैसे कई वस्तुओ का ज्ञान हमें बचपन से ही दिया जाता है, और हम जानकारी लेते हुए आगे बढ़ते है, फिर आता है, पाठशाला जहाँ गुरुजनों से हमें अक्षर ज्ञान मिलता है, फिर ज्ञान का विकास निरंतर हमारे जीवन चक्र के साथ आगे बढ़ते रहते है, और हम मनुष्य वह सब कुछ बनते हैं, जो आपको देश दुनिया में दिखता है, धरती से लेकर आसमान तक मनुष्य ज्ञान का विस्तार है, जिस भी जगह आप देखो वहाँ मनुष्य का ही बोल बाला है। अटकना भटकना सब हम मनुष्य के पास ज्ञान है।
ज्ञान के पाठशाला के बाद हम मनुष्य के जीवन में आ जाता है, धर्म हम मनुष्य अनेको प्रकार के धर्म के मानने वाले लोग होते है, जिस धर्म से आप पैदा लिए या अपने जीवन चक्र में धर्म परिवर्तन किये वही आपका धर्म बन जाता है, फिर धर्म के ज्ञान के अनुसार आप अपने धर्म को निभाते हैं, और अपने धर्म के रीति रिवाजों में चलते हैं, अकारण जीव हत्या भी करते हैं, धर्म के नाम पर आप मनुष्य, धर्म के ही अनुसार कईयो मनुष्यो को एक साथ बैठाकर सात्त्विक भोजन भी करवाते हैं और बहुत प्रकार से अपने धर्म के वातावरण के अनुसार आप मनुष्य चलते हैं, जिसका बखान करना मतलब समुद्र के गहराई मापने जैसा है।
आप अपने धर्म ज्ञान से एक और ज्ञान प्राप्त करते हैं, दया जिसका सम्बंध आपके स्वयम के धर्म ज्ञान जीवन पर आधारित है हम मनुष्य के जीवन में ये दया व दयालु पन से कई प्रकार के दिन हीन मनुष्यों का जीवन चक्र चल रहा है, जो मनुष्य दया रखते हैं अन्य जीवों के प्रति उनके उदार मन बहुत विशाल होते हैं, वैसे मनुष्य देव के समान है, जिसके हृदय में दया का भाव है, दया उस माँ के समान है जो हमें अपने ममता के छाँव मे हमारे जीवन को रक्षित पोषित करती है, अपने खुद के सुध को त्यागकर हम बच्चों के उपर माँ सुधि रखते हैं, वैसे ही दयालु मनुष्य दिन हिन मनुष्यों के उपर सुधि रखते है, और यह दया का भाव जाती धर्म देखकर नहीं करना चाहिए जो भेदभाव पैदा कर अपने दया के पुण्य से विमुख हो जाओ और आपके दयालु पन का मातात्व खत्म हो जाए इसलिए दया में हम मनुष्य का भाव सम भाव होना चाहिए।
फिर दया ज्ञान के बाद आता है, दान जिसके बल पर पूरा संसार टिके हुए है, जैसे विश्व के कोई भी एक देश में आकाल पड़ गया है और वहाँ के हर जीव मनुष्य परेशान है और वहाँ राशन खाने पीने वस्तु के नही है, उन लोगों को जरूरत है उस वक्त हम सभी भारतीय अपने घरों से एक एक मुट्ठी अनाज या उनके जरूरत के सामानों को भारत सरकार के माध्यम से भेज देवे उनके देश तो हमारे द्वारा दिया गया दान से कितने जीव मनुष्य का जीवन को बचाया जा सकता है, ऐसे ही दान का भाव देश के अंदर अन्य राज्यों के मनुष्यों के हित में करना चाहिए, आर्थिक सम्पनता लाने के लिए एक राज्य दूसरे राज्य की मदद करनी चाहिए क्योकि वह राज्य के लोग भी तो भारत वासी है और वह राज्य भारत का एक अंग है। जैसे हम अपने दान अपने धर्म के लिए, व अपने समाज के लोगों के लिए देते है वैसे ही हम सभी भारतीय एक दूसरे धर्म के साथ जुड़कर सभी मनुष्यों के हित में थोड़े ही रूप में दान करे तो भारत के हर धर्म हर वर्ग मनुष्य समाज सम्पन्न व सुखी हो जायेंगे इतना बड़ा होता है दान का प्रभाव, और इस दान का पुण्य उस दानी को मिलेगा जिसने मानव धर्म समाज की लाज बचाने के लिए अपने मेहनत से कमाए हुए धन को दान दिया।
फिर जीवन का अंत मृत्यु जिसका संचालन करता है आत्मा और आत्मा का संचालन करता है परमात्मा जिस परमात्मा को अनेक रूपों में हम मनुष्य पूजते है, जबकि सबका एक ही स्वरूप है, जन्म ,ज्ञान, धर्म, दया, दान और फिर मृत्यु के बाद आत्मा का परमात्मा से मिलन इसक बाद और एक होता है सुख जो हम सभी मनुष्य चाहते हैं, उस धर्म के परम अखंड शक्ति ब्रम्हांड नायक परमात्मा का वरद हस्त हम पर बना रहे और हमारे घर परिवार और हम स्वयं पर आपका आर्शिवाद सदा बना रहे ऐसा भाव अंतिम जीवन चरण तक हम सभी मनुष्य उस ईश्वर से मांगते रहते है।
लेकिन आप मनुष्य उस ईश्वर को क्या दे रहे हो, द्वेष दंभ, दम्भ पाखंड, अन्याय अनीति लोभ लालच अधर्म, लड़ाई झगड़े अशांति और साथ में जीव हत्या अपने जिव्हा के स्वाद के लिए और कई प्रकार के विकार है आप मनुष्यों के अंदर जिसका ज्ञान आप मनुष्य को है, कही धर्म के नाम पर कही वेष भूषा के नाम पर कही जाति धर्म के नाम पर लड़ मर झगड़ रहे हो, क्या यही हम मनुष्यों का धर्म है, एक मानव दूसरे मानव के खून के प्यासे है जो बेदम हत्या कर रहे हैं, बहु बेटी के इज्जत के साथ खिलवाड हो रहा है, मनुष्य इतना नीचे गिरते जा रहे है रिश्ते को रिश्ता नहीं छोड़ रहे है, दहेज प्रथा, समाज के अंधे व्यापारी बन कर रह गए है जो अपने ही मनुष्य संतान के खरीदी बिक्री में लगा हुआ है।
इन सबसे उपर है दया ममता दान मानवीय सदव्यवहार, और इन सबके स्वामी जो मनुष्य के अंदर है, वही मनुष्य सच्चा इंसान है, उन्ही मनुष्य के अंदर सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया का भाव छिपा है, उनके लिए सभी धर्म मनुष्य समान है बिना भेदभाव के और उनका एक ही धर्म मानव जन कल्याण धर्म और राष्ट्र धर्म सर्वोपरि है। और ऐसे ही भाव रखने वाले इंसान के कारण आज धरती के अंदर धर्म टिकी हुई है। और यही मनुष्य उस परमात्मा का परम भक्त है उनके सच्चे संतान है देव तुल्य।
अपनी मृत्यु और अपनों की मृत्यु डरावनी लगती है!
बाकी तो मौत को enjoy ही करता है इंसान ...
मौत के स्वाद का
चटखारे लेता मनुष्य ...
थोड़ा कड़वा लिखा है पर मन का लिखा है,
मौत से प्यार नहीं , मौत तो हमारा स्वाद है, बकरे का,
गाय का,भेंस का,ऊँट का,सुअर,हिरण का, तीतर का,मुर्गे का, हलाल का,बिना हलाल का, ताजा बकरे का, भुना हुआ, छोटी मछली, बड़ी मछली, हल्की आंच पर सिका हुआ। न जाने कितने बल्कि अनगिनत स्वाद हैं मौत के।
क्योंकि मौत किसी और की, और स्वाद हमारा....
स्वाद से कारोबार बन गई मौत।
मुर्गी पालन, मछली पालन, बकरी पालन, पोल्ट्री फार्म्स।
नाम "पालन" और मक़सद "हत्या"❗
स्लाटर हाउस तक खोल दिये। वो भी ऑफिशियल।
गली गली में खुले नान वेज रेस्टॉरेंट, मौत का कारोबार नहीं तो और क्या हैं ? मौत से प्यार और उसका कारोबार इसलिए क्योंकि मौत हमारी नही है।
जो हमारी तरह बोल नही सकते, अभिव्यक्त नही कर सकते, अपनी सुरक्षा स्वयं करने में समर्थ हैं,
उनकी असहायता को हमने अपना बल कैसे मान लिया ? कैसे मान लिया कि उनमें भावनाएं नहीं होतीं ? या उनकी आहें नहीं निकलतीं ?
डाइनिंग टेबल पर हड्डियां नोचते बाप बच्चों को सीख दे रहा है वाह यह कैसा धर्म निभा रहा है बाप मृत्यु के उपर, खुद की मौत को धर्म से जोड़ दो ताकि आपके संतान सेवा करे आपके जीव जीवन का और जो अन्य पशु जीव जंतुओ का मौत हम मनुष्यों के द्वारा किया जा रहा है वह सब हम मनुष्यों के लिए आनन्द की जरिया है। जबकि सभी पशु जीव जंतु उस परमात्मा के साथ जुड़े हैं, जैसे हम मनुष्य जुड़े हैं वैसे, लेकिन आप मनुष्य का जीव जीव है और उस बेजुबाँ पशु पक्षी जीव जंतु का जीव जीव नहीं है, और आप धर्म के नाम पर मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा, व गिरजाघर जा रहे है, की हम मनुष्य की रक्षा करे प्रभु करके लेकिन उनका रक्षा कौन करेगा जो बोल नहीं सकता इसलिए उस परमात्मा भी आप मनुष्यों को आपस में लड़ा कर तमाशा देखती है वाह बुद्धि जीवी मनुष्य होके कितना मुर्ख हो जो एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के साथ लड़ झगड़ रहे हो धर्म मजहब के नाम पर लड़ो मरो क्योकि तुम मनुष्य लोग बेजुबां पशु पक्षी को मारते हो वैसा तुम लोग भी मरो करके हँसता है परमात्मा।