मां अन्नपूर्णा की गीत गाकर रोपाई कर रहे हैं महिलाएं। सावन,भादों के पानी झिकुर मारे तोर, बिना रहे में कुंवारे।

मां अन्नपूर्णा की गीत गाकर रोपाई कर रहे हैं महिलाएं। सावन,भादों के पानी झिकुर मारे तोर, बिना रहे में कुंवारे।

लखनपुर//सितेश सिरदार✍️

 

आदिवासी बहुल उत्तरी छत्तीसगढ़ में मानसून की फुहारों के साथ खेतों में धान रोपाई के दौरान मां अन्न्पूर्णा की स्तुति गान की अनूठी परंपरा है। इसे स्तुति में कहा जाता है- हे देवी मैं जो धान की रोपाई कर रहीं हूं उससे इतनी उपज हो कि पूरा घर धन-धान्य से भर जाए। यहां की आदिवासी महिलाएं सामूहिक रूप से धान की रोपाई के दौरान एक साथ गीत गाती हैं। इन महिलाओं के गीत को खेत के किनारे खड़ा किसान मांदल (आदिवासी परंपरा का एक प्रकार का ढोल) की थाप से साथ देता है तो लोग झूम उठते हैं। ग्रामीण महिलाएं बताती हैं मनोरंजन के साथ किसी भी काम को करना आसान हो जाता है। रोपाई के समय शरीर का आधा हिस्सा झुकाना पड़ता है। काफी मेहनत लगती है लेकिन, सामूहिक गीत के साथ रोपाई से ध्यान हट जाता है और थकान महसूस नहीं होती। गीत के बोल भी शुभकारी होते हैं।

 

जैसे

 

पहिल पंवारा काला गांव देवी शारद॥पहिल पंवारा काला गांव॥तोला करो सुमरंव॥।

 

इस गीत से रोपा लगाने की शुरुआत होती है। यह देवी की स्तुति है। इसके बाद आपस में गीतों के माध्यम से सवाल जवाब भी महिलाएं करती हैं।

 

भादों के पानी झिकुर मारे तोर बिना रहें मैं कुवांरे॥।

 

मैना राँये झांयें करे॥।पाकल पिपरी कईसन लागे॥मैना राँये झांयें करे॥।

 

इन गीतों के साथ अंताक्षरी की तर्ज पर महिलाएं सवाल जवाब भी करती हैं।महिलाओं को कहना होता है कि कीचड़ में धान की रोपाई करना आसान नहीं होता। काफी थकान लगती है। सिर झुका कर लगातार काम करना पड़ता है। ऐसे में इस ओर से ध्यान भटकाने गीत अच्छा माध्यम है। गीत गाते रहने से थकान नहीं लगती है।

 

करमा, डोमकेच गीत में झूम उठते हैं ग्रामीण-

 

धान की रोपाई एक ऐसा उत्सव किसानों के लिए होता है कि खेतों में सुंदरता तो आती ही है धान की रोपाई देखने से सुकून भी मिलता है। इस दौरान महिलाएं ज्यादातर करमा और डोमकेच गीत गाती हैं, तब मांदल लेकर ग्रामीण थाप भी देते हैं। खेतों में कई बार जमकर नाच-गाना होता है। लोग खेतों में ही झूम उठते हैं।

 

नई पीढ़ी की महिलाएं दूर हो रहीं परंपरा से-

 

वषोर् पुरानी इस परंपरा को देखने का अवसर अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में मिल रहा है किंतु नई पीढ़ी की महिलाएं इस परंपरा से दूर होती जा रही हैं। पुरानी पीढ़ी की महिलाएं रोपाई में गाए जाने वाले गीतों का खूब मजे लेकर झूमते हुए गातीं हैं पर नई पीढ़ी की महिलाएं अब साथ भी नहीं दे पातीं।

 

क्या कहते हैं सरगुजिहा गीतकार विजय सिंह-

 

सरगुजा संभाग के मशहूर सरगुजिया गीतकार विजय सिंह का कहना है कि यह परंपरा कभी खत्म नहीं होगी भले ही महिलाएं शहरीकरण को अपना लें। उन्होंने कहा कि अन्नपूर्णा देवी को सुमिरन करने के साथ धन धान्य से परिपूर्ण करने का आह्वान करतीं हैं। ज्यादातर पारंपरिक करमा और डोमकेच गीतों को महिलाएं गाती हैं। निश्चित रूप से खेतों में मेहनत करने वाली महिलाओं को रोपाई के दौरान गीत गाने से थकान नहीं लगती। गीतों के कई अर्थ होते हैं। सरगुजिहा परंपरा में खेतों में गीत गाया जाना शुभ माना जाता है।