West Bengal: वर्धमानेश्वर शिव मंदिर: ऊंचाई 6 फीट, वजन 13 टन शिव लिंग का पूजा अर्चना शिव भक्तो ने महाशिवरात्रि की.
West Bengal: Vardhamaneshwar Shiva Temple




NBL, 21/02/2023, Lokeshwer Prasad Verma, West Bengal: Vardhamaneshwar Shiva Temple: Height 6 feet, weight 13 tons Shiva devotees worshiped Shiva Linga on Mahashivaratri.
West Bengal: Vardhamaneshwar Shiva Temple: हर शिव मन्दिर की अपनी-अपनी कहानी है. इन्हीं में से पश्चिम बंगाल का एक शिव मन्दिर है वर्धमानेश्वर. इस ऐतिहासिक शिव मंदिर की अपनी अलग ही खासियत है. इस शिव मंदिर में मौजूद शिवलिंग की ऊंचाई लगभग छह फीट है. वजन 13 टन से अधिक है. यह पूरा शिवलिंग एक ही काले पत्थर से बना है जिसे कुशलता से तैयार किया गया है. इतना विशाल शिवलिंग राज्य में इकलौता है. यह देश में दुर्लभ है. महाशिवरात्रि पर इस शिवलिंग के दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ी थी. अपने विशाल आकार के कारण इस शिव को 'मोटा शिव' या 'पुराना शिव' भी कहा जाता है।
* शैव और शाक्त धर्म का आसन बर्दवान...
बर्दवान को शैव और शाक्त धर्म का आसन कहा जाता है. इस शहर में बर्दवान की अधिष्ठात्री देवी सर्वमंगला का मंदिर है. विभिन्न प्रसिद्ध काली मंदिर भी हैं. फिर इस शहर के बाहरी इलाके में शाही काल के दौरान स्थापित एक सौ आठ शिव मंदिर भी स्थापित हैं. तो ये है राज्य का सबसे बड़ा काले पत्थर का शिवलिंग. वह शिवलिंग 1600 से 1700 वर्ष से भी अधिक पुराना है. कहा जाता है कि एक समय कनिष्क स्वयं नियमित रूप से इस शिवलिंग की पूजा किया करते थे. इस मंदिर परिसर को महाशिवरात्रि के अवसर पर सजाया गया है. मेला भी लगा है. दुकानें लगी हैं. महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर यहां सुबह से देर रात तक बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का तांता लगा है. राज्य के प्रसिद्ध शिव मंदिरों में से एक बर्दवान के आलमगंज में वर्धमानेश्वर शिव मंदिर है. अपने विशाल आकार के कारण इस शिव को 'मोटा शिव' या 'पुराना शिव' भी कहा जाता है।
* महाशिवरात्रि पर भक्तों की उमड़ती है भीड़...
1972 में इस क्षेत्र में तालाब खोदने के लिए खुदाई की जा रही थी. तभी अचानक यह विशाल गौरीपट्ट वाला विशाल शिवलिंग धीरे-धीरे जमीन के नीचे से निकला. बाद में क्रेन की मदद से शिवलिंग को किनारे रख दिया गया. मंदिर के ठीक बगल में एक दूध का तालाब है. भक्त उस तालाब में स्नान करते हैं और पूजा करते हैं. शिवलिंग श्रावण के महीने में पाया गया था. इसलिए इस महीने में शिव का आविर्भाव दिवस मनाया जाता है. इस दिन हजारों भक्त गंगा से जल लेकर शिवलिंग पर जल डालते हैं. महाशिवरात्रि पर मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है. हालांकि यह कितना पुराना है, इसके बारे में कोई दस्तावेजी ठोस जानकारी नहीं है. कई लोगों के अनुसार, यह शिव लिंग कनिष्क के समय का है. अर्थात् लगभग 1600-1700 वर्ष पूर्व. कई लोगों का यह भी मानना है कि कनिष्क स्वयं नियमित रूप से इस काले शिवलिंग की पूजा करते थे. कहा जाता है कि बाद में इसे दामोदर नदी की बाढ़ में बहा दिया गया था. हालांकि, इतिहासकार इतने भारी शिवलिंग के नदी में तैरने की संभावना को लेकर असहमत हैं।