‘वो समय दूर नहीं जब एक पार्टी कहेगी कि हम आपके घर आकर आपके लिए खाना पकाएंगे, और दूसरी कहेगी, हम न सिर्फ पकाएंगे, बल्कि खिलाएंगे भी।’कर्ज माफी के कारण देश के अन्य बुनियादी जरूरत ठप्प.
'The time is not far when one party will say that we




NBL, 02/09/2022, Lokeshwer Prasad Verma. 'The time is not far when one party will say that we will come to your house and cook food for you, and the other will say, we will not only cook, but will also feed.' Due to the loan waiver, other basic needs of the country came to a standstill.
फ्री कल्चर: बड़े पैमाने में व्यापारीयो के कर्ज माफी और इंडस्ट्री को भारी छुट से देश के अन्य उन्नति को भारी नुकसान, देश के लोगों को फ्री में सब कुछ लेने का आदत, पढ़े विस्तार से...
सुप्रीम कोर्ट में फ्रीबीज़ याचिका खबरों में है। इसमें कही गई बातों के कुछ नमूने पेश हैं : ‘फ्रीबीज़ से हम इतने आलसी हो जाएंगे कि कुछ भी नहीं करना चाहेंगे’; ‘वो समय दूर नहीं जब एक पार्टी कहेगी कि हम आपके घर आकर आपके लिए खाना पकाएंगे, और दूसरी कहेगी, हम न सिर्फ पकाएंगे, बल्कि खिलाएंगे भी।’
याचिका के अनुसार, चुनाव से पहले पार्टियों के घोषणा पत्र में किए वादों से वोटर को गुमराह किया जाता है, जिससे चुनावी परिणाम निर्धारित होते हैं। इन फ्रीबीज़ से राजकोष खर्च हो जाता है और राज्य अपने मूल कार्य नहीं कर पाता। याचिका पढ़कर साफ हो जाता है कि पार्टी या वोटर नहींं, बल्कि याचिकाकर्ता या कोर्ट द्वारा नियुक्त एक्सपर्ट कमेटी तय करेंगे कि राजनीतिक प्राथमिकताएं क्या होनी चाहिए।
याचिका में अतार्किक फ्रीबीज़ के उदाहरण दिए गए हैं, लेकिन यह व्यक्तिगत नजरिए और समझ की बात है कि आप किसे फ्रीबी मानते हैं। जहां एक गरीब व्यक्ति के लिए सस्ता राशन भूख और जीने के हक का सवाल है, वहीं याचिकाकर्ता के लिए यह ‘रेवड़ी’ बराबर है। मेरे नजरिए में तो स्टैच्यू ऑफ यूनिटी, बुलेट ट्रेन, सेंट्रल विस्टा फ्रीबीज़ हैं तो आप मेरी मानेंगे या याचिकाकर्ता की? लोकतंत्र में चुनाव और चर्चा-बहस द्वारा ही उत्तर मिल सकता है।
वास्तव में याचिका भ्रामक है। उसे कहीं नि:शुल्क बिजली से आपत्ति है, तो कहीं कहा गया है कि बिजली ‘फंडामेंटल’ हक है फिर भी सरकार इस पर काम नहीं कर रही। याचिकाकर्ता को निजी सेवाओं को सार्वजनिक रूप से प्रदान करने पर भी आपत्ति है। 2014 से अर्थशास्त्रियों ने इस प्रचलन को न्यू वेलफेयरिज्म कहा है।
उदाहरण के लिए, सीवर-लाइन (सार्वजनिक सेवा) पर खर्च करने के बजाय सरकार का जोर शौचालय (निजी वस्तु) बनाने पर रहा है, हालांकि रिसर्च के अनुसार सीवर लाइन से स्वास्थ्य लाभ होता है और देश के 23% शहरी घरों में ही यह सुविधा उपलब्ध है। फिर भी निजी शौचालय को फ्रीबीज़ नहीं कह सकते क्योंकि उनसे भी कई लाभ हैं।
एक गरीब व्यक्ति के लिए सस्ता राशन भूख और जीने के हक का सवाल है, वहीं याचिकाकर्ता के लिए यह ‘रेवड़ी’ बराबर है। यदि राजनीतिक पार्टियां अजीबोगरीब वादे करती हैं तो इनका लोकतंत्र में उपाय क्या हो?
याचिका में गलत तथ्य हैं (याचिका बिजली को मौलिक अधिकार बताती है!) और परस्पर विरोधी बयान भी हैं। एक तरफ कहा है कि सरकार को शिक्षा-स्वास्थ्य पर जोर देना चाहिए, दूसरी ओर जिन पार्टियों ने नि:शुल्क इलाज का वादा किया, उन पर निशाना साधा गया है। याचिका में यह दावा भी है कि घोषणा पत्र के वादे, वादे ही रह जाते हैं, केवल फ्रीबीज़ पर ही अमल होता है। लेकिन यूपीए ने 2004 के घोषणा पत्र में सूचना का अधिकार और रोजगार गारंटी कानून का वादा किया था और दाेनों को लाने में सफल रही।
याचिकाकर्ता को फिक्र है कि फ्रीबीज़ पर खर्च के कारण राज्य की वित्तीय स्थिति बिगड़ रही है। लेकिन सरकार के वैनिटी प्रोजेक्ट्स भी फिजूलखर्चों की श्रेणी में आते हैं। बड़े व्यापारियों की कर्जमाफी, इंडस्ट्री को दी जाने वाली छूट पर भी सवाल उठाया जा सकता था। लेकिन गरीबों की ओर जाने वाले लाभ पर ही सवाल उठाया गया। राजस्व को बढ़ाने के तरीकों- जैसे प्रॉपर्टी टैक्स, वेल्थ टैक्स आदि पर भी याचिका चुप है।
यदि राजनीतिक पार्टियां अजीबोगरीब वादे करती हैं तो इनका लोकतंत्र में उपाय क्या हो? याचिकाकर्ता की प्रार्थना है कि चुनाव आयोग ऐसी पार्टियों को चुनाव न लड़ने दे! शुक्र है कि कोर्ट ने कह दिया कि यह अलोकतांत्रिक है। चुनाव आयोग ने भी कोर्ट को उसके ही 2013 के फैसले की याद दिलाते हुए कहा है कि घोषणा पत्र में किए गए वादों को रिश्वत नहीं माना जा सकता।
उन्हाेंने इस मुद्दे को परिभाषित करने के लिए किसी ‘एक्सपर्ट’ कमेटी में शामिल होने से भी समझदारी से ना कर दी है। 2013 में जब यह मामला किसी अन्य याचिकाकर्ता ने उठाया था, तब कोर्ट ने चुनाव आयोग को कहा था कि वह पार्टियों के लिए दिशानिर्देश जारी करे। जब नौ साल पहले इस मुद्दे पर कोर्ट अपना कीमती समय खर्च कर चुकी है तो फिर से इस पर समय क्यों जाया कर रही है?