ओडिशा राज्य के जगन्नाथ मंदिर जहां पर भारत के प्रधानमंत्री को भी नहीं मिली थी प्रवेश की अनुमति जाने मुख्य कारण.

The main reason for knowing the permission to enter the Jagannath temple

ओडिशा राज्य के जगन्नाथ मंदिर जहां पर भारत के प्रधानमंत्री को भी नहीं मिली थी प्रवेश की अनुमति जाने मुख्य कारण.
ओडिशा राज्य के जगन्नाथ मंदिर जहां पर भारत के प्रधानमंत्री को भी नहीं मिली थी प्रवेश की अनुमति जाने मुख्य कारण.

NBL, 08/08/2022, Lokeshwer Prasad Verma,. The main reason for knowing the permission to enter the Jagannath temple in the state of Odisha, where even the Prime Minister of India did not get permission.

ओडिशा राज्य के शहर पुरी में श्री जगन्नाथ मंदिर हिन्दुओं का प्रसिद्ध मंदिर है, यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के स्वामी होता है। पुरी नगर श्री कृष्ण यानी जगन्नाथपुरी की पावन नगरी कहलाती है, पढ़े विस्तार से... 

वैष्णव सम्प्रदाय का यह मंदिर हिंदुओं की चार धाम यात्रा में गिना जाता है। जगन्नाथ मंदिर का हर साल निकलने वाला रथ यात्रा उत्सव संसार में बहुप्रसिद्ध है। पुरी के इस मंदिर में तीन मुख्य देवता विराजमान हैं। भगवान जगन्नाथ के साथ उनके बड़े भाई बलभद्र व उनकी बहन सुभद्रा तीनों, तीन अलग-अलग भव्य और सुंदर आकर्षक रथों में विराजमान होकर नगर की यात्रा को निकलते हैं।आप भारत के किसी भी कोने में क्यों न रहते हों आपकी ये इच्छा जरूर रही होगी कि जिंदगी में एक बार जगन्नाथ मंदिर जरूर जाएं। भारत का हर हिन्दू ये चाहता है कि एक बार उसे भगवान जगन्नाथ के दर्शन का सौभाग्य जरूर प्राप्त हो। इस भव्य मंदिर की वास्तुकला के दर्शन लिए लोग दुनियाभर से आते हैं। लेकिन आपको इस बात का अंदाजा नहीं होगा कि वर्ष 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं दी गई थी। ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि इस मंदिर में प्रवेश की इजाजत सिर्फ और सिर्फ सनातन हिन्दुओं को ही मिलती है। इस मंदिर का प्रशासन सिर्फ हिन्दु, सिख, बौद्ध और जैन धर्म के लोगों को ही मंदिर में प्रवेश की अनुमति देता है। इसके अलावा दूसरे धर्म के लोगों और विदेशी लोगों के प्रवेश पर सदियों पुराना प्रतिबंध लगा हुआ है। इसलिए भारत की प्रधानमंत्री को भी इस मंदिर में अंदर प्रवेश करने की इजाजत नहीं दी गई। यानी भारत का प्रधानमंत्री भी अगर हिन्दू नहीं है तो वो इस मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकता है। जगन्नाथ मंदिर के पुजारियों के मुताबिकइंदिरा गांधी हिन्दू नहीं बल्कि पारसी हैं। इसलिए 1984 में उन्हें इस मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई थी। मंदिर के प्रबंधकों के अनुसार इंदिरा गांधी का विवाह एक पारसी फिरोज जहांगीर गांधी से हुआ था। इसलिए विवाह के बाद वो तकनीकी रूप से हिन्दू नहीं रहीं। इसी वजह से उन्हें जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश नहीं दिया गया। 

आपको बता दें कि इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा को गांधी सरनेम पंडित जवाहर लाल नेहरू से नहीं बल्कि फिरोज गांधी से मिला था। लेकिन इसके बाद भी फिरोज गांधी को कांग्रेस पार्टी की तरफ से वो सम्मान नहीं दिया गया जो इंदिरा गांधी, राजीव गांधी को मिला। फिरोज गांधी दुनिया में ऐसे एकलौते शख़्स थे जिसके ससुर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के पहले प्रधानमंत्री हो और बाद में उसकी पत्नी और उसका पुत्र भी इस देश का प्रधानमंत्री बना हों। लेकिन फिर भी उनके बारे में किसी को भी ज्यादा कुछ पता नहीं होगा। आपको यहां ये भी बता दें कि फिरोज इंदिरा की शादी के बाद महात्मा गांधी ने अपना सरनेम दिया था।

जहां तक बात जगन्नाथ मंदिर के प्रवेश की है तो इंदिरा गांधी के बाद गांधी परिवार का कोई भी सदस्य इस मंदिर में प्रवेश की हिम्मत जुटा नहीं पाया। आपको याद होगा जनेऊधारी राहुल गांधी ने अपनी हिन्दुत्ववादी छवि को दर्शाने के लिए चुनावी माहौल में कैलाश मानसरोवर की यात्रा की और भगवान केदारनाथ के भी दर्शन किए लेकिन जगन्नाथ के दर्शन करने से बचना ही मुनासिब समझा। 

जगन्नाथ मंदिर में गैर हिन्दुओं को प्रवेश क्यों नहीं मिलता?

जगन्नाथ मंदिर में शिलापट्ट में 5 भाषाओं पर लिखा है। 

यहां सिर्फ सनातन हिन्दुओं को ही प्रवेश की इजाजत है।

वर्ष 2005 में थाईलैंड की रानी को मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं दी गई थी। 

वो बौद्ध धर्म की थी, लेकिन विदेशी होने की वजह से उन्हें इस मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं मिली थी। 

सिर्फ भारत के बौद्ध धर्म के लोगों को ही जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश की इजाजत।

वर्ष 2006 में स्विजरलैंड की एक नागरिक ने जगन्नाथ मंदिर को 1 करोड़ 78 लाख रूपए दान में दिए थे।  

लेकिन ईसाई होने की वजह से उन्हें भी मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं दी गई।

वर्ष 1977 में इस्कॉन आंदोलन के संस्थापक भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद पुरी आए। उनके अनुयायियों को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई।

यानी पैसा हो या राजनीतिक शक्ति जगन्नाथ मंदिर में किसी का रसूख नहीं चलता। जगन्नाथ मंदिर को 20 बार विदेशी हमलावरों द्वारा लूटा गया। खासतौर पर मुस्लिम सुल्तानों और बादशाहों ने जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियों को नष्ट करने के लिए ओडिशा पर बार-बार हमले किए। लेकिन ये हमलावर जगन्नाथ मंदिर की तीन प्रमुख मूर्तियों भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र की मूर्तियों को नष्ट नहीं कर सके। क्योंकि मंदिर के पुजारियों ने बार-बार इन मूर्तियों को छुपा दिया। एक बार मूर्तियों को गुप्त रूप से ओडिशा से बाहर ले जाकर हैदराबाद में भी छुपा दिया गया था। हमलावर की वजह से भगवान को अपना मंदिर छोड़ना पड़े, इस बात पर आज के भारत में शायद कोई विश्वास न करे। आज भारत में एक संविधान है और सभी को अपने-अपने तरीके से पूजा और उपासना करने का पूरा अधिकार प्राप्त है। लेकिन पिछले एक हजार साल में बादशाहों और सुल्तानों के राज में हजारों मंदिरो को तोड़ा गया, राम जन्मभूमि, काशी विश्वनाथ और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि का विवाद भी इसी इतिहास से जुड़ा हुआ है। इन हमलावरों ने भारत के पश्चिमी समुद्री तट पर सोमनाथ मंदिर को 17 बार तोड़ा था। सोमनाथ के संघर्ष का इतिहास ज्यादातर लोगों को पता है लेकिन जगन्नाथ मंदिर पर हुए हमलों की जानकारी आज भी बहुत कम लोगों को है। हमने इन विषय पर रिसर्च किया और ओडिशा सरकार की आधिकारिक वेबसाइट पर जगन्नाथ मंदिर पर हुए हमलों और मूर्तियों को नष्ट किए जाने कि कोशिशों का पूरा उल्लेख किया गया है। इस वेबसाइट पर लिखे लेख के मुताबिक मंदिरों और मूर्तियों को नष्ट करने के लिए कम से कम 17 बार हमला हुआ। इन हमलों की वजह से ही गैर हिन्दू और विदेशियों के प्रवेश पर ये प्रतिबंध लगाया गया। 

मंदिर से जुड़े इतिहास का अध्ययन करने वालों का दावा है कि हमलों की वजह से 144 वर्षों तक भगवान जगन्नाथ को मंदिर से दूर रहना पड़ा, आपको जगन्नाथ मदिर पर हुए 17 हमलों की कहानी भी सुनाते हैं। 

जगन्नाथ मंदिर को नष्ट करने के लिए पहला हमला सन् 1340 में बंगाल के सुल्तान इलियास शाह ने किया था, उस वक्त ओडिशा, उत्कल प्रदेश के नाम से प्रसिद्ध था। उत्कल साम्राज्य के नरेश नरसिंह देव तृतीय ने सुल्तान इलियास शाह से युद्ध किया। बंगाल के सुल्तान इलियास शाह के सैनिकों ने मंदिर परिसर में बहुत खून बहाया और निर्दोष लोगों को मारा, लेकिन राजा नरसिंह देव, जगन्नाथ की मूर्तियों को बचाने में सफल रहे, क्योंकि उनके आदेश पर मूर्तियों को छुपा दिया गया था।

दूसरा हमला

इसके बाद वर्ष 1360 में दिल्ली के सुल्तान फिरोज शाह तुगलक ने जगन्नाथ मंदिर पर दूसरा हमला किया।

तीसरा हमला

वर्ष 1509 में बंगाल के सुल्तान अलाउद्दीन हुसैन शाह के कमांडर इस्माइल गाजी ने किया। हमले की खबर मिलते ही पुजारियों ने मूर्तियों को मंदिर से दूर, बंगाल की खाड़ी में मौजूद चिल्का लेक नामक द्वीप में छुपा दिया था।

चौथा हमला

वर्ष 1568 में जगन्नाथ मंदिर पर सबसे बड़ा हमला किया गया। ये हमला काला पहाड़ नाम के एक अफगान हमलावर ने किया था। हमले से पहले ही एक बार फिर मूर्तियों को चिल्का लेक नामक द्वीप में छुपा दिया गया था। लेकिन फिर भी हमलावरों ने मंदिर की कुछ मूर्तियों को जलाकर नष्ट कर दिया था। इस हमले में जगन्नाथ मंदिर की वास्तुकला को काफी नुकसान पहुंचा।

पांचवां हमला

इसके बाद वर्ष 1592 में जगन्नाथ मंदिर पर पांचवां हमला हुआ। ये हमला ओडिशा के सुल्तान ईशा के बेटे उस्मान और कुथू खान के बेटे सुलेमान ने किया। लोगों को बेरहमी से मारा गया, मूर्तियों को अपवित्र किया गया और मंदिर की संपदा को लूट लिया गया।

छठा हमला

वर्ष 1601 में बंगाल के नवाब इस्लाम खान के कमांडर मिर्जा खुर्रम ने जगन्नाथ पर छठवां हमला किया। मंदिर के पुजारियों ने मूर्तियों को भार्गवी नदी के रास्ते नाव के द्वारा पुरी के पास एक गांव कपिलेश्वर में छुपा दिया। 

सातवां हमला

जगन्नाथ मंदिर पर सातवां हमला ओडिशा के सूबेदार हाशिम खान ने किया लेकिन हमले से पहले मूर्तियों को खुर्दा के गोपाल मंदिर में छुपा दिया गया।

आठवां हमला

मंदिर पर आठवां हमला हाशिम खान की सेना में काम करने वाले एक हिंदू जागीरदार ने किया। उस वक्त मंदिर में मूर्तियां मौजूद नहीं थी। मंदिर का धन लूट लिया गया

नौवां हमला

मंदिर पर नौवां हमला वर्ष 1611 में मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में शामिल राजा टोडरमल के बेटे राजा कल्याणमल ने किया था। इस बार भी पुजारियों ने मूर्तियों को बंगाल की खाड़ी में मौजूद एक द्वीप में छुपा दिया था। 

ऐसा ही जगन्नाथ मंदिर को बीस बार विदेशी मुगल मुस्लिम बादशाहों ने लूटने व मंदिर को क्षति पहुँचाने का प्रयास किया लेकिन स्वामी जगन्नाथ अपनी रक्षा स्वयं की और उनके भक्तों ने भी जमकर मुकाबला की इन लुटेरो से और आज अडिग स्थिर अपने स्थान पर खड़ी है स्वामी जगन्नाथ महाप्रभु और अपने भक्तो को दर्शन भी दे रही है, और आर्शिवाद भी , सनातन धर्म संस्कृति को मिटाना इतना आसान नहीं है, जिसके गवाह स्वयं प्रभु जगन्नाथ मंदिर है, मिटाने वाले सब मिट गए, इसलिए जगन्नाथ मंदिर में गैर हिंदू प्रवेश नहीं कर सकते भले ही बाहर से आप दर्शन पा सकते हैं।