NBL 2022: जानिए, ब्रह्मांड की 13 बातें.. ब्रह्मांड में सबसे बड़ा क्या? इसे पढ़े जरूर.

NBL 2022: Know, 13 things of the universe.. What is the biggest in the universe? Do read it.

NBL 2022: जानिए, ब्रह्मांड की 13 बातें.. ब्रह्मांड में सबसे बड़ा क्या? इसे पढ़े जरूर.
NBL 2022: जानिए, ब्रह्मांड की 13 बातें.. ब्रह्मांड में सबसे बड़ा क्या? इसे पढ़े जरूर.

NBL, 27/04/2022, Lokeshwer Prasad Verma,. Raipur CG: Know, 13 things of the universe.. What is the biggest in the universe?  Do read it.

ब्रह्मचर्य से बढ़कर कुछ नहीं। ब्रह्मचर्य से शक्ति, सेहत और समृद्धि मिलती है, लेकिन ब्रह्मचर्य से बढ़कर भी कुछ है, पढ़े विस्तार से.. 

अन्न ही ब्रह्म : अन्न ही ब्रह्मचर्य से बढ़कर है। अन्न और धरती पर पाई जाने वाली सभी वनस्पतियों की हमारे ऋषि-मुनि प्रार्थना करते थे। अन्न हमें ओज और ब्रह्मचर्य प्रदान करता है। अन्न हमारे लिए अमूल्य पदार्थ है। अन्न के बगैर व्यक्ति शक्तिहीन हो जाता है। अन्न हमें तभी शक्ति प्रदान करता है जबकि हम उपवास का पालन करते हैं। अन्न से ही हमारा शरीर बनता है और अन्न से ही यह शरीर बिगड़ भी सकता है अत: अन्न का भक्षण धार्मिक रीति अनुसार करना चाहिए।

धरती मां : पृथ्वी अन्न से भी बड़ी है। वह हमारी माता है। हमारी दो प्रकार की माताएं होती हैं। एक तो भौतिक माता जो हमारी जननी है और दूसरी पृथ्वी माता है (जो हमें गर्भाशय से मृत्युपर्यंत पालती है)।

पुराणों अनुसार हम हमारी भौतिक माता के गर्भ से निकलकर धरती माता के गर्भाशय में प्रविष्ट हो जाते हैं। यह माता हमारा लालन-पालन करती है। यह धरती हमें विभिन्न वनस्पतियां देकर हमारा पोषण करती है। उसे वेद-पुराण में धेनु कहते हैं (कामधेनु एक ऐसी गाय है, जो ऋषि वशिष्ठ से संबंधित थी और संपूर्ण कामना पूर्ण कर देती थी)।

यह धरती हमारा ही नहीं, बल्कि समस्त जीव-जंतु, पेड़-पौधे, जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर आदि सभी जीवों को समान रूप से पालती है और उन्हें संपूर्ण उम्र तक जिंदा बनाए रखने का प्रयास करती है, लेकिन मानव अपनी इस माता पर तरह-तरह के अत्याचार करता रहता है।

जल से धरती की उत्पत्ति हुई : सचमुच ऐसा ही हुआ। जलता हुआ जल कहीं जमकर बर्फ बना तो कहीं भयानक अग्नि के कारण काला कार्बन होकर धरती बनता गया। कहना चाहिए कि ज्वालामुखी बनकर ठंडा होते गया। अब आप देख भी सकते हैं कि धरती आज भी भीतर से जल रही है और हजारों किलोमीटर तक बर्फ भी जमी है। धरती पर 75 प्रतिशत जल ही तो है। कोई कैसे सोच सकता है कि जल भी जलता होगा या वायु भी जलती होगी?

हिंदू धर्म में नदियों की पूजा इसीलिए की जाती है। जल नहीं होता तो जीवन भी नहीं होता। जल के देवता वरुण और इंद्र की वेदों में स्तुतियां मिल जाएंगी। जल को सबसे महत्वपूर्ण तत्व माना जाता है। जल उतना ही जाग्रत और बोध करने वाला तत्व है जितना कि मानव सोच-समझ सकता है। जीवों को उत्पन्न करने वाली धरती कैसे निर्जीव मानी जा सकती है और धरती को उत्पन्न करने वाला जल कैसे सिर्फ एक पदार्थ माना जा सकता है।

अग्नि से जल की उत्पत्ति : ब्रह्मांड में विराट अग्नि के गोले देखे जा सकते हैं, धरती भी अग्नि का एक गोला थी। अग्नि से ही जल तत्व की उत्पत्ति हुई। अं‍तरिक्ष में आज भी ऐसे समुद्र घुम रहे हैं जिनके पास अपनी कोई धरती नहीं है लेकिन जिनके भीतर धरती बनने की प्रक्रिया चल रही है और जो कभी अग्नि के समुद्र थे।

जल से बड़ा यह अग्नि तत्व है, जो कि सारे ब्रह्माण्ड को चला रहा है जिसने सारे संसार में चेतना का प्रसार कर रखा है। अग्नि तत्व के कारण वर्षा होती है जिससे हर प्रकार का अन्न पैदा होता है। जब यह समुद्र पर कार्य करती है तो वाष्प बनती है जिससे बादल बनते हैं, जो वर्षा का कारण होते हैं। वर्षा से वनस्पति जगत उत्पन्न होता है।

प्रत्येक व्यक्ति के भीतर अग्नि तत्व होता है। अग्नि से ही बल मिलता है इसीलिए हिंदू धर्म में अग्नि की पूजा होती है, प्रार्थना होती है और यज्ञ किए जाते हैं। घर-घर दीपक इसीलिए जलाए जाते हैं कि हमें अग्नि का महत्व ज्ञात रहे। अग्निदेव साक्षात हमारे बीच रहते हैं।

अग्नि से बढ़कर है वायु : धरती के 75 प्रतिशत भाग में जल है व 100 प्रतिशत वायु है। वायु हर जगह है। समुद्र के भीतर भी और धरती से सैकड़ों किलोमीटर ऊपर भी। वायु की सत्ता सबसे बड़ी है। वायु के बगैर व्यक्ति एक क्षण भी जिंदा नहीं रह सकता। यही हमारे प्राण हैं।

वायु में ही अग्नि और जल तत्व छुपे हुए रूप में रहते हैं। वायु ठंडी होकर जल बन जाती है व गर्म होकर अग्नि का रूप धारण कर लेती है। वायु का वायु से घर्षण होने से अग्नि की उत्पत्ति हुई। अग्नि की उत्पत्ति ब्रह्मांड की सबसे बड़ी घटना थी। वायु जब तेज गति से चलती है तो धरती जैसे ग्रहों को उड़ाने की ताकत रखती है। वायु धरती पर भी है और धरती के बाहर अंतरिक्ष में भी प्रत्येक ग्रह पर वायु है और प्रत्येक ग्रह की वायु भिन्न-भिन्न है। वेदों में 8 तरह की वायु का वर्णन मिलता है।
आप सोचिए कि सूर्य से धरती तक जो सौर्य तूफान आता है वह किसकी शक्ति से यहां तक आता है? संपूर्ण ब्रह्मांड में वायु का साम्राज्य है, लेकिन हमारी धरती की वायु और अंतरिक्ष की वायु में फर्क है।
वायु को ब्रह्मांड का प्राण और आयु कहा जाता है। शरीर और हमारे बीच वायु का सेतु है। शरीर से वायु के निकल जाने को ही प्राण निकलना कहते हैं।

आकाश तत्व : बहुत से दार्शनिक आकाश को अनुमान ही मानते हैं। आकाश से वायु की उत्पत्ति हुई। आकाश एक अनुमान है। दिखाई देता है लेकिन पकड़ में नहीं आता। धरती के एक सूत ऊपर से, ऊपर जहां तक नजर जाती है उसे आकाश ही माना जाता है।
आकाश अर्थात वायुमंडल का घेरा- स्काई। खाली स्थान अर्थात स्पेस। जब हम खाली स्थान की बात करते हैं तो वहां अणु का एक कण भी नहीं होना चाहिए, तभी तो उसे खाली स्थान कहेंगे। है ना? हमारे आकाश-अंतरिक्ष में तो हजारों अणु-परमाणु घूम रहे हैं।

अंतरिक्ष : अंतरिक्ष अग्नि, वायु और आकाश से महान है। हम जो भी शब्द उच्चारण करते हैं वे इस अंतरिक्ष में विचरण करते रहते हैं। आकाश में वायु साक्षात है लेकिन अंतरिक्ष में वायु सूक्ष्म रूप है। अंतरिक्ष ही सभी का आधार है। सभी ग्रह-नक्षत्र अंतरिक्ष के बल पर ही स्थिर और चलायमान हैं।
अंतरिक्ष को खाली स्थान माना जाता है यानी स्पेस। खाली स्थान को अवकाश कहते हैं। अवकाश था तभी आकाश की उत्पत्ति हुई अर्थात अवकाश से आकाश बना। अवकाश अर्थात अनंत अंधकार। अनंत अं‍तरिक्ष। अंधकार के विपरीत प्रकाश होता है, लेकिन यहां जिस अंधकार की बात कही जा रही है उसे समझना थोड़ा कठिन जरूर है। यही अद्वैतवादी सिद्धांत है।
अंतरिक्ष को सबसे महान माना गया है। ऊपर देखो और ऊपर से ही कुछ मांगो। नीचे मूर्ति या मंदिर में प्रार्थना करने वाले क्या यह जानते हैं कि वैदिक ऋषि ऊपर वाले की ही प्रार्थना करते थे। ध्यान लगाकर वे अपने भीतर के अंतरिक्ष को खोजते थे।
अंतरिक्ष से सब कुछ प्राप्त किया जाता जाता है और अपनी बुद्धि के अनुसार इनको ग्रहण किया जाता है। मेधा बुद्धि का संबंध अंतरिक्ष से होता है। अंतरिक्ष हमारी बुद्धि को बढ़ाने वाला है। यह हमारे भीतर जीवन को प्रबल करता है। इसी से वायु को गति मिलती है। इसी में अग्नि भी विद्यमान रहती है।

अंतरिक्ष से बढ़कर है प्राण : यह प्राण ही है जिसके अवतरण से धरती और अन्य जगत में हलचल हुई और द्रुत गति से आकार-प्रकार का युग प्रारंभ हुआ। ब्रह्मांड और प्रकृति भिन्न-भिन्न रूप धारण करती गई। प्राण को ही जीवन कहते हैं। प्राण के निकल जाने पर प्राणी मृत अर्थात जड़ माना जाता है। यह प्राणिक शक्ति ही संपूर्ण ब्रह्मांड की आयु और वायु है अर्थात प्राणवायु ही आयु है, स्वास्थ्य है।
पत्थर, पौधे, पशु और मानव, ग्रह-नक्षत्र के प्राण में जाग्रति और सक्रियता का अंतर है। देव, मनुष्य, पशु आदि सभी प्राण के कारण चेष्टावान हैं।

मन की सत्ता : मानव का मन वायु, ध्वनि और प्रकाश की गति से भी तेज है। यह क्षणभर में ब्रह्मांड के किसी भी कोने में जा सकता है। वेद-पुराणों में मन की शक्ति को सबसे बड़ी शक्ति माना गया है। मन के भी कई प्रकार हैं। हमारा और आपका मन मिलकर समूहगत मन का निर्माण होता है। इसी तरह धरती का भी मन है और वायु का भी। किसी में मन सुप्त है तो किसी में जाग्रत।
जिस तरह हमारे शरीर का आधार है हमारे प्राण और प्राण का आधार है मन, उसी तरह सभी जीव-जंतु आदि का आधार भी है मन। मानसिक शक्ति में इतनी ताकत होती है कि वह तूफानों को रोक दे, आग को बुझा दे और जल को सूखा दे। हमारे ऋषि-मुनियों में यह शक्ति थी।
सृष्‍टि के जन्म और विकास में मन एक महत्वपूर्ण घटना थी। मन के गुण, भाव और विचारों के प्रत्यक्षों से हैं। मन 5 इंद्रियों के क्रिया-कलापों से उपजी प्रतिक्रिया मात्र नहीं है- इस तरह के मन को सिर्फ ऐंद्रिक मन ही कहा जाता है, जो प्राणों के अधीन है, लेकिन मन इससे भी बढ़कर है।
मनुष्यों, तुम मन की मनमानी के प्रति जाग्रत रहो वेदों में यही श्रेष्ठ उपाय बताया गया है।

मन से बढ़कर बुद्धि : मन के अलावा और भी सूक्ष्म चीज होती है जिसे बुद्धि कहते हैं, जो गहराई से सब कुछ समझती और अच्छा-बुरा जानने का प्रयास करती है, इसे ही 'सत्यज्ञानमय' कहा गया है। प्रत्येक जीव-जंतु में बुद्धि होती है। बुद्धि से ही हम अपने होने की स्थिति का ज्ञान करते हैं। बुद्धि से ही धरती जान जाती है कि मैं असंतुलित हो रही हूं तो मुझे संतुलन कायम करने के लिए क्या करना चाहिए। यह बुद्धि ही सही और गलत मार्ग बताती है।
कहते हैं कि फलां-फलां की बुद्धि भ्रष्ट हो गई है या विनाश काले विपरीत बुद्धि...। जब मनुष्य को अपने अज्ञान में पड़े रहने का ज्ञान होता है, तब शुरू होता है मन पर नियंत्रण। मन को नियंत्रित कर उसे बुद्धि-संकल्प में स्थित करने वाला ही विवेकी कहलाता है। विवेकी में तर्क और विचार की सुस्पष्टता होती है। किंतु जो बुद्धि का भी अतिक्रमण कर जाता है उसे अंतर्दृष्टि संपन्न मानस कहते हैं अर्थात जिसका साक्षीत्व गहराने लगा। इसे ही ज्ञानीजन संबोधि का लक्षण कहते हैं, जो विचार से परे निर्विचार में स्‍थित है।

बुद्धि से बढ़कर आत्मा : ईश्वर और जगत के मध्य की कड़ी आत्मा। इस आत्मा के होने के कारण ही सब कुछ हो गया। इसकी उपस्थिति के कारण ब्रह्मांडों की उत्पत्ति हुई और सभी कुछ फैलता गया। वेद कहते हैं ज्ञानी नहीं आत्मवान बनो। अत: अब तक हमने जाना ब्रह्मचर्य, अन्न, धरती, जल, अग्नि, वायु, आकाश, अंतरिक्ष, प्राण, मन, बुद्धि और आत्मा के क्रम को। हमने वेद-पुराणों के क्रम का सरलीकरण करके बताया, हालांक‍ि इन क्रम के बीच भी अन्य कई तत्व मौजूद है।

गीता अनुसार यह क्रम इस प्रकार है :

ब्रह्मांड का मूलक्रम- अनंत-महत्-अंधकार-आकाश-वायु-अग्नि-जल-पृथ्वी। अनंत जिसे आत्मा कहते हैं। पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार यह प्रकृति के 8 तत्व हैं।

अंत में जानिए आत्मा से बढ़कर क्या...

ब्रह्म ही सत्य है :
।।ॐ।। ।।यो भूतं च भव्‍य च सर्व यश्‍चाधि‍ति‍ष्‍ठति‍।
स्‍वर्यस्‍य च केवलं तस्‍मै ज्‍येष्‍ठाय ब्रह्मणे नम:।।-अथर्ववेद 10-8-1
भावार्थ : जो भूत, भवि‍ष्‍य और सब में व्‍यापक है, जो दि‍व्‍यलोक का भी अधि‍ष्‍ठाता है, उस ब्रह्म (परमेश्वर) को प्रणाम है।

हिंदू धर्म की लगभग सभी विचारधाराएँ (चर्वाक को छोड़कर) यही मानती हैं कि कोई एक परम शक्ति है जिसे ईश्वर कहा जाता है। वेद, उपनिषद, पुराण और गीता में उस एक ईश्वर को 'ब्रह्म' कहा गया है।
ब्रह्म शब्द बृह धातु से बना है जिसका अर्थ बढ़ना, फैलना, व्यास या विस्तृत होना। ब्रह्म परम तत्व है। वह जगत्कारण है। ब्रह्म वह तत्व है जिससे सारा विश्व उत्पन्न होता है, जिसमें वह अंत में लीन हो जाता है और जिसमें वह जीवित रहता है।