मेरे महाकाल , शिवशंकर , भोलेनाथ कविता लिखा गया है




झारखंड।
मेरे महाकाल , शिवशंकर , भोलेनाथ
पानी हो या पत्थर ,
या फिर हो कंकड ।
सभी सहते हैं भोले ,
वो है मेरे शिव शंकर ।।
संकट आया जब एक नींव ,
त्राहिमाम करने लगे सभी जीव ।
विष से मृत्यु हुए थे सजीव ,
तभी बचाएं सबको मेरे भोले शिव ।।
जब धरती पर पड़ता है अकाल ,
मृत्यु के बाद बन जाते हैं कंकाल ।
पापियों का देवता है जो काल ,
उसके भी गुरु हैं मेरे महाकाल ।।
अपने से हार चढ़ाऊं मैं फूलों की गांथ ,
उनके चरणों में मैं झुकाऊं अपनी माथ ।
मेरे शीश पर जब वे रख देते हाथ ,
वो सब के तारणहार है मेरे भोले नाथ ।।
✍️writter:- sonu Krishnan (Jharkhand)