विश्व के बहुत से मुस्लिम समुदाय के मुसलमान लोग सनातनी हिन्दू धर्म को पुनः अपना रहे है, ऐसा क्यो? पढ़े जरूर.

Muslim people of many Muslim communities of the world are re-adopting Sanatani Hindu religion, why so? Be sure to read.

विश्व के बहुत से मुस्लिम समुदाय के मुसलमान लोग सनातनी हिन्दू धर्म को पुनः अपना रहे है, ऐसा क्यो? पढ़े जरूर.
विश्व के बहुत से मुस्लिम समुदाय के मुसलमान लोग सनातनी हिन्दू धर्म को पुनः अपना रहे है, ऐसा क्यो? पढ़े जरूर.

NBL, 16/05/2022, Lokeshwer Prasad Verma.. Muslim people of many Muslim communities of the world are re-adopting Sanatani Hindu religion, why so?  Be sure to read. 

सबसे पहले मैं ये स्पष्ट कर दूँ की एक मुसलमान होने के नाते मैं इस्लाम के प्रवर्तक मुहम्मद साहब को मैं अपना पूर्वज समझता हूँ  और मेरे मन में उनके लिए बहुत सम्मान है, पढ़े विस्तार से... 

1400 साल पहले जब मुहम्मद साहब ने अरब में  इस्लाम की स्थापन की होगी तब वंहा की सामाजिक और भौगोलिक परस्थितियों  के हिसाब के इस्लाम उस समय का अच्छा मजहब होगा , उस समय अरब में जिस प्रकार का अन्याय , अत्याचार या और सामाजिक बुराईयाँ थी उसको देखते हुए इस्लाम को अरब का एक समाज सुधारक धर्म कहने से कोई गुरेज नहीं और मुहम्मद साहब की जितनी भी तारीफ की जाये कम होगी। 

पर चौदह सौ साल पहले अरब के लोगो की जो हालत थी उसे देखते हुए जो पाठ उन्होंने दिया , और जिस तरीके से दिया गया वह अरब और उस ज़माने के लिए बेसक सही हो परन्तु क्या  आज के समय और अरब के आलावा दुसरे देशो के लिए उपयुक्त हो सकता?

आज वैज्ञानिक युग में भी इसके अनुयायी घोर अन्धविश्वासी बने हुए हैं , धर्म के नाम पर समय , शक्ति, और सम्पति बर्बाद करने के बाद भी धर्म का कोई फायदा उनके जीवन में नज़र नहीं आ रहा । भारत में बड़ी-बड़ी मस्जिदे हैं , करोडो आदमी रोज पांच समय की नवाज़ पढ़ते हैं परन्तु न तो  बढ़ी है और न राष्ट्रीयता , न उदारता अब भी जरा जरा सी बात पर दुसरे धर्म के लोगो से दंगे आम बात है। 

बल्कि विकास की हर दिशा में कही न कही बाधा ही पड़ी है । भारत के टुकड़े टुकड़े होने के बाद भी स्तिथि में ज्यादा बदलाव नहीं हो पाया । इस देश के अधिकांश मुसलमान वंश  परम्परा से हिन्दू ही है , राम , कृष्ण ,बुद्ध, महावीर, वाल्मीकि , अशोक आदि उनके पूर्वज ही है , पर मुसलमान उन्हें पूर्वज नहीं मानते । 

हिन्दू धर्म में लाख बुराईयाँ हैं पर हिन्दू ये कहने का बहाना पा जाता है की इस देश में वो पैदा हुआ और परम्परा से जो धर्म चला आ रहा है वोही उसे मिला अब ये अच्छा है या बुरा है ये देखने का उसे अवसर नहीं मिला । पर मुसलमान के पास ये बहाना नहीं है क्यों की उसने एक बाहरी धर्म को अपनाया है , उसके मुसलमान बनने व बनाने के 4 कारण माने जा सकते हैं।

प्रश्न 1-मुगलों मुसलमानों के ज़माने में हिन्दुओं पर बहुत अत्याचार होते थे इसलिए वो मुसलमान बन गए? 

उत्तर- ऐसे मुसलमानों को आज मुसलमान बने रहने का कोई कारण नहीं , जिन अत्याचारों से डर कर वो मुसलमान बने थे वो कब के दूर हो गए, बल्कि अब तो मुसलमनो के अल्पमत में होने के कारण राजनैतिक और सामाजिक रूप से नुकसान ही है , इसलिए उन्हें एक दिन भी और मुसलमान बने रहने की जरुरत नहीं ।

प्रश्न 2- हिन्दू समाज के अत्याचारों या धर्म  आडम्बरो से पीड़ित हो कर मुसलमान बनना पड़ा हो, और सामाजिक जीवन की सुविधा के लिए मुसलमान बनना पड़ा हो? 

उत्तर - ऐसे मुसलमनो को भी आज मुसलमान बने रहने का कोई कारण तब तक ही है जब तक हिन्दू समाज में छुआ-छूत बंद नहीं नहीं हो जाता या फिर उन्हें कोई और वैकल्पिक धर्म नहीं मिल जाता । बौध , जैन , सिख उनके वैकल्पिक धर्म हो सकते थे लेकिन किसी ने अपनाया नहीं इसलिए मुस्लिम धर्म समुदाय मे दलित पीड़ित शोषित भयभीत वंचित लोग चलें गए। 

प्रश्न 3- धन , सत्ता, पद, स्त्री आदि के मोह में फस कर मुसलमान होना पड़ा हो? 

समीक्षा - तो ऐसे मुसलमानों से यही कहूँगा की धन, सत्ता ,स्त्री आदि का प्रलोभन का समय निकल गया , तुम्हारे पूर्वज यदि इस प्रकार के मोह में फस कर मुसलमान बने थे तो वो उनका पतन था , तुम लोग क्यों अपने पूर्वजो के पतन के बोझ को उठाये फिर रहे हो। 

प्रश्न 4-इस्लाम सत्य और कल्याणकारी  लगा  हो उस समय काल मे और सनातनी हिन्दू धर्म को छोड़कर मुस्लिम बन गए? 

उत्तर - अगर कोई इस कारण मुस्लिम बना हो तो उसे इमानदार मुस्लिम कहा जा सकता है , पर उसे तब तक ही मुसलमान बने  रहने का हक है जब तक वह अपनी बुद्धि से इस्लाम को सत्य और कल्याणकारी  समझते हैं।उसके लिए उन्हें निम्न लिखित बिन्दुओं पर ईमानदारी से  सोचना चाहिए , और अगर इन बिन्दुओं के ठीक से उत्तर उनके पास नहीं है तो उन्हें मुसलमान बने रहने को कोई हक नहीं। 

इस्लाम ने अरब की  जनता को एक  करने में जो योगदान दिया उसे नाकारा नहीं जा सकता , जिस प्रकार अरब में मुहम्मद साहब के समय अरब के हालत थे उस समय को देखते हुए इस्लाम उस समय कल्याणकारी था इसमें कोई दो राय नहीं । पर क्या आज के ज़माने के लिए और दुसरे देशो के लिए ये  हो सकता है ...शायद नहीं । 

कुरान में खुद यह बात सपष्ट की है की इस्लाम अरब के लिए आया था , कुरान की सूरा शुरे की एक आयात में ये कहा गया है की " अरबी कुरान हम ने तुम्हारी तरफ नाजिल किया है ताकि तुम मक्के के रहने वालों को और जो लोग मक्के के आसपास बसते हैं उन को पाप से डराओ " सुरे यासीन की पांचवी आयात में कहा गया है की " तुम ऐसे लोगो को डराओ जिनके बाप दादा नहीं डरे ' इस प्रकार इस्लाम ईमानदारी से स्वीकार करता है की वह विश्व धर्म नहीं है, उसका सन्देश अरब  के लिए था ।

फिर भी मुसलमनो की प्रचंड प्रचार तथा  राज शक्ति के कारण यह एशिया और अफ्रीका में तेजी से फैला इसलिए स्वभाविक है की मुसलमानों को यह भ्रम हो जाये की ये विश्व धर्म है , जबकि कुरान   है की ये अरब का धर्म है ।

 कुरानअरबी की "केरा" धातु से बने हुए इस "कुरान"  का अर्थ होता है " घोषणा कर के या पुकार कर कहा गया " . यहूदियों के धर्म ग्रन्थ का भी यही अर्थ था . उन की इबरानी भाषा में उसे "कराह" कहते थे . उसी की नक़ल पर कुरान बनाया गया . इस्लाम पर यहूदी धर्म का प्रभाव भी काफी है . कुरान को तेईस साल लगे पूरे होने में, समय समय पर जो उद्दगार मुहम्मद साहब निकलते उन्हें लोग चमड़े पर , पत्तो पर , या पत्थर पर लिख लेते , कोई कोई याद कर लेता । 

मुहम्मद साहब के देहांत पर खलीफा अबुबक्र ने इस सब सामग्री को संग्रह किया , सुरों में बनता और मुहम्मद साहब की विधवा पत्नी हिफसा जी के पास रखवा दिया . चुकी ऐसे संग्रह औरो के पास भी थे इसलिए जब उस्मान खलीफा हुए तब उन्होंने कुरान सब कापियां इक्कठी करवाके हिफसा वाली प्रति को छोड़ कर बाकि सब जला  दिया ...बाद में इसी की प्रति पूरी दुनियां में फैली । 

1-कहा जाता है की आयते जब  थी तब अल्लाह ही मुहम्मद साहब के मुंह से बोलता था . इसलिए उस की भाषा इस प्रकार है " मुहम्मद तुम यह कहो" " वो कहो" आदि . भाषा की रचना से लगता है की कुरान की भाषा मुहम्मद साहब की भाषा नहीं बल्कि अल्लाह की भाषा है

परन्तु यह बात कुरान की आयातों से गलत साबित होती है जैसे- अल्लाह के नाम से जो निहायत रहम वाला मेहरबान है ( कुरान 1:1) ये अल्लाह, हम तेरी इबादत करते हैं और तुझी से मदद मांगते हैं ( कुरान 1:5) और कई आयते हैं जिससे पता चलता है की कुरान के सब शब्द मुहम्मद साहब के ही हैं। 

अन्यथा अल्लाह अपना मुंह से "ए अल्लाह" कर के नाम पुकारेगा .उस समय लोग जाहिल और भोले थे उन्हें वश में करने के लिए अल्लाह की छाप  आवश्यक थी .जिससे लोग मुहम्मद साहब के शब्दों को अल्लाह के शब्द लगे । 

क़ुरान का बहुत सा स्थान लड़ाई झगड़ो के वर्णनों से , लड़ाई से घबराने वालो को डाँटने,  करने वालो को धमकाने से भरा पड़ा है , कोई मुहम्मद साहब का मजाक उडाता था , कोई तर्कवितर्क करता तो इन सब का उत्तर देने के लिए उन्हें आयातों  अल्लाह के मुंह से दिलवाना पड़ता था ।

जनता के संतोष के लिए उस समय आवश्यक था  पर आज इन सब बातो का क्या उपयोग? 2- मुहम्मद साहब के 23 वर्ष के पैगम्बरी जीवन में कुरान की आयातों का कई बार बदली गयी , किब्ला  बदलने के बारे में , रोजो की अनिवार्यता के बारे में , इस पर यदि कोई विरोधी आक्षेप करते थे तब फिर अल्लाह की ओर से सुरे बकर की 106 वी आयात उतारी गयी " हम कोई आयत मंसूब कर दें या जहाँ जहन से उतार दें तो उस से बेहतर या वैसी ही नाजिल कर देते हैं " आयतों का   ही है पर जिस प्रकार कई बार आयते बदली गयी क्या उससे ये लगता है की अल्लाह ऐसी  कर सकता है?

1-मुसलमानों के ज़माने में हिन्दुओं पर बहुत अत्याचार होते थे इसलिए वो मुसलमान बन गए उत्तर- ऐसे मुसलमानों को आज मुसलमान बने रहने का कोई कारण नहीं , जिन अत्याचारों से डर कर वो मुसलमान बने थे वो कब के दूर हो गए, बल्कि अब तो मुसलमनो के अल्पमत में होने के कारण राजनैतिक और सामाजिक रूप से नुकसान ही है , इसलिए उन्हें एक दिन भी और मुसलमान बने रहने की जरुरत नहीं ।

2- हिन्दू समाज के अत्याचारों से पीड़ित हो कर मुसलमान बनाना पड़ा हो , और सामाजिक जीवन की सुविधा के लिए मुसलमान बनाना पड़ा हो । उत्तर - ऐसे मुसलमनो को भी आज मुसलमान बने रहने का कोई कारण तब तक ही है जब तक हिन्दू समाज में छुआ-छूत बंद नहीं नहीं हो जाता या फिर उन्हें कोई और वैकल्पिक धर्म नहीं मिल जाता । बौध , जैन , सिख उनके वैकल्पिक धर्म हो सकते हैं ।

3- धन , सत्ता, पद, स्त्री आदि के मोह में फस कर मुसलमान होना पड़ा हो । समीक्षा - तो ऐसे मुसलमानों से यही कहूँगा की धन, सत्ता ,स्त्री आदि का प्रलोभन का समय निकल गया , तुम्हारे पूर्वज यदि इस प्रकार के मोह में फस कर मुस्लिम बने थे तो वो उनका पतन था , तुम लोग क्यों अपने पूर्वजो के पतन के बोझ को उठाये फिर रहे हो ?

जिससे लोग मुहम्मद साहब के शब्दों को अल्लाह के शब्द लगे । क़ुरान का बहुत सा स्थान लड़ाई झगड़ो के वर्णनों से , लड़ाई से घबराने वालो को डाँटने, व नहीं करने वालो को धमकाने से भरा पड़ा है , कोई मुहम्मद साहब का मजाक उडाता था , कोई तर्कवितर्क करता तो इन सब का उत्तर देने के लिए उन्हें आयातों अल्लाह के मुंह से दिलवाना पड़ता था ।

जनता के संतोष के लिए उस समय आवश्यक था पर आज इन सब बातो का क्या उपयोग?

2- मुहम्मद साहब के 23 वर्ष के पैगम्बरी जीवन में कुरान की आयातों का कई बार बदली गयी , किब्ला बदलने के बारे में , रोजो की अनिवार्यता के बारे में , इस पर यदि कोई विरोधी आक्षेप करते थे तब फिर अल्लाह की ओर से सुरे बकर की 10

अल्लाह... 

1-सुरे जारियत में 56 वि आयत है की " हम ने जिन्नों और आदमियों को इसलिए पैदा किया की हमारी इबादत करे ।

क्या अल्लाह इबादत का इतना भूखा है की इस के लिए उसने यह संसार बना डाला ? जिन्न , जन्नत , दोजख बना डाला ? क्या अल्लाह को चापलूसी पसंद है ?

जब इबादत करने के लिए ही अल्लाह ने दुनिया बनायीं तब जो कर देते हैं उन्हें क्या है की वे ईमानदारी से रहे ? सच बोले , सदाचारी बने? इस प्रकार ये सब बाते मामूली हो जाती हैं असल मुद्दा केवल इबादत बन जाता है ।

2- सुरे फातिर की 8 वीं आयत में लिखा है " अल्लाह जिसे चाहे गुमराह करता है और जिसे चाहे मोहब्बत करता है जिसे चाहे वह सीधा करता है " इस तरह की कई आयते है ...जिसका ये मतलब होता है की यदि आदमी दुराचार करता है तो वो अल्लाह की मर्जी से। ये सब मनगढ़त बाते है खुदा अपने चाहने वाले लोगो को गलत रास्ता कभी नहीं दिखा सकता। 

बुद्धि विरोध. . 

जब लोग तर्क वितर्क करते थे और कहने पर विश्वाश न करते थे तब उन्हें डांटा जाता था की अमुक समय में लोग बहुत तर्क वितर्क करते थे इसलिए अल्लाह ने उन्हें मार दिया . सुरे माइदह की 102 वि आयत में कहा गया है की मुसलमानों बहुत बाते मत पुछा  करो ।

इसका एक कारण ये हो सकता है की उस समय अरब की जनता बहुत जाहिल थी ज्यादा तर्क - वितर्क करने में संदेह पैदा होने का खतरा था , चुकी मुहम्मद साहब खुद अनपढ़ थे और ज्यादा तर्क नहीं कर सकते थे इस लिए जो क्रांति वो  चाहते थे उसके भटकने का डर था ,

इसलिए उस समय को देखते हुए ये ठीक था ...पर आज के युग में अन्धविश्वास से  नहीं चल सकता । 

2- सुरे अआरफ (35) में कहा गया है की जो हमारी आयातों को झुठलाये  और उन से अकड़  कर बैठेंगे वो दोज़खी होंगे या दोज़ख में  हमेशा रहेंगे " इस तरह धमकियों और बद्दुओं से क्या आदमी विवेकी बन सकता है ? 

3-मात्र 6 दिन में दुनिया बना देना , पहाड़ को इसलिए बनाना क्यों की धरती हिले नहीं , धरती चादर के सामान है ।

चमत्कार. .. 

धर्मो की तरह इस्लाम में भी चमत्कार,  मुहम्मद साहब ने कई चमत्कार दिखाए हैं पर एक प्रमुख चमत्कार है चाँद के टुकड़े करना , क्या कोई बुद्धिमान व्यक्ति इस पर यकीं कर सकता है?

क़ुरबानी. .. 

इस्लाम धर्म में क़ुरबानी एक धर्म क्रिया का मुख्य  है, कुरान में कुर्बानियों का जगह जगह जिक्र है , गाय,बकरा आदि की कुर्बानी है सो तो है ही , पर ऊँटो  के भी बलिदान का जिक्र है ।

ऊँटो के कतार के कतार खड़ी कर के उन्हें काट कर खा जाने का विधान है । सुरे हज्ज की 33 वीं आयत " मुसलमानों! हम ने तुम्हारे लिए क़ुरबानी के ऊँटो को काबिल अदब चीजो में करार दिया है।

इसलिए तुम ऊँटो की क़तर बांध उन पर बिस्मिल्लाह ( अल्लाह हु अकबर) पढ़ा करो ,  जब वह जिबह होकर किसी करवट के बल गिरे तब उस का मांस तुम भी खाओ और दुसरो को भी खिलाओ " अरब में खेती तथा यात्रा का आधार ऊंट ही थे और अब भी हैं ऐसे उपयोगी जानवर को भी धर्म के नाम पर कतार की कतार खड़ी कर के मार  देने का विधान क्या विवेक पूर्ण है ?

इतना ही नहीं कुरान में मनुष्यों के बलिदान की भी तारीफ की है . सुरे खाफ्फत में 99 -102 आयातों में तारीफ के साथ इब्राहीम के अपने  इस्माइल की क़ुरबानी का वर्णन है . अल्लाह क़ुरबानी से खुश हुआ, ऐसा खुदा कभी चाहेगा की बेजुबान जीवों की कुर्बानी से मै खुश हूँ ऐसा खुदा कतई नहीं चाहेगा। 

सामाजिक द्वेष. .. 

सुरे निसाअ  आयत 141 " मुसलमानों ! मुसलमान को छोड़ कर किसी काफ़िर को दोस्त न बनाओ " मुहम्मद साहब का पैगम्बरी जीवन लड़ाई का जीवन है ऐसे में मौको पर दुश्मन से सतर्क रहना जरुरी था , पर मुश्किल तो यह है की  ऐसी चेतावनिया धर्म शास्त्र का अंग बन गए । 

स्थायी रूप से सामाजिक निति बना दी गयी इसका फल यह हुआ की आम तौर पर मुसलमान गैर मुसलमान को दोस्त समझने में हिचकता है । 1400 साल का राजनैतिक , सामाजिक इतिहास ऐसी दुर्घटनाओ से भरा पड़ा जंहा इस्लाम दुसरे धर्मो के साथ संतुलन नहीं बना पाया . इस मानवता के युग में ऐसे धर्म से क्या सत्यप्रेरना मिलेगी? सब मनुष्यों का कैसे सहयोग होगा ? कैसे विश्व शांति की ओर आगे बढ़ेगी. 

मूर्ति पूजा. . 

इस्लाम में मूर्ति पूजा का इतना विरोध है की उस की आयते पेश करना जरुरी नहीं , मक्का के मंदिर की मूर्तियों के नाम पर जिस प्रकार अरब के टुकडे हो गए थे उसे देखते हुए उन्हें हटा देना और मूर्तिपूजा का विरोध करना  ही उचित था । यों तो जिस काले पत्थर को सभी अरब वाले मानते थे उसे नहीं हटाया गया । सभी हाजी उस पत्थर का सम्मान करते हैं , मर्वास्फा की पहाड़ियों पर मूर्तियाँ थी , इसलिए कुछ कट्टर मुसलमानों उन पहाड़ियों पर जाने से ऐतराज किया था . पर मुहम्मद साहब ने उन के ऐतराज को गलत बताया , इस से यह तो साफ़ हो जाता है की विरोध मूर्ति या  मूर्ति पूजा का नहीं बल्कि मूर्ति पूजा के कारन अरब के जो टुकड़े हो गए थे उसका था । 

पर बाद में मूर्ति पूजा के विरोध में विधान बना दिया जिससे मानव जाती का बड़ा नुकसान हुआ खास कर भारत को बड़ा नुकसान हुआ मुसलमान लोग मूर्ति तोड़ने वाले बन गए ,

भारत में मुस्लिम सामंतो का प्रवेश ही मूर्ति तोड़ने से शुरू हुआ। उसके बाद तो इससे ऐसा कट्टरता और धार्मिक द्वेष पैदा हुआ की मेल मिलाप के सारे रास्ते बंद हो गए । यही कारण था की भारत जो सभी धर्मो को अपने में समन्वय कर सकता था , पर इस्लाम का समन्वय नहीं कर सका ...और इस देश के टुकड़े हो गए ।

कोई भी अपनी रूचि के अनुसार मूर्ति का उपयोग करता है तो उसे बुरा नहीं समझना चाहिए , बुरा तो बेईमानी, झूठ, विश्वासघात, अन्याय, अपराध , हत्या आदि में है । मूर्ति पूजा एक बेकार की क्रिया हो सकती है।

क्या अल्लाह इतना ना समझ हो सकता है की किसी को मूर्ति पूजा करता देख नाराज हो जाये? मूर्तियों का विरोध का सबसे बड़ा बुरा प्रभाव मूर्ति कला पर पड़ा , सच्चा गरीब मुसलमान मूर्तिकला से बेरोजगार सा हो गया, जो उनके परिवार की भरन पोषण का जरिया बनता।

इस लेख का मतलब ये है की मुस्लिम भाई व बहन जो की  दो या दस पीढ़ी पहले सनातनी हिन्दू थे वो ईमानदारी से गौर करे की आखिर वो अब क्यों मुस्लिम हैं? 

इंडोनेशिया के संस्थापक और पहले राष्ट्रपति सुकर्णो की पुत्री सुकमावती ने 26 अक्टूबर 2021 को जैसे ही इस्लाम छोड़ हिन्दू धर्म अपनाया, भारत में इंडोनेशिया सुर्खियाँ बटोरने लगा। इंडोनेशिया में हिंदुओं की संख्या 2% से भी कम है और यहाँ के 17 हजार से अधिक द्वीप समूहों में बाली एकमात्र द्वीप है, जहाँ हिन्दू बहुसंख्यक हैं। बावजूद, जिस प्रकार से लोग हिन्दू धर्म में लौट रहे हैं, यह किसी आश्चर्य से कम नहीं।

इंडोनेशिया के हिन्दुओं के पास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) जैसा कोई सामाजिक संगठन नहीं है। उनके पास भाजपा जैसा कोई राजनीतिक संगठन भी नहीं है। उनके पास ना कोई मठ है, ना कोई मठाधीश। ना कोई अम्बानी है ना अडानी। फिर भी ऐसा लग रहा है मानों विश्व का सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाला देश अब हिन्दू बन जाने को लालायित है।

सत्तर के दशक में सुलावेसी द्वीप के तोराजा लोगों ने हिन्दू धर्म में लौटने के अवसर को सबसे पहले पहचाना था। 1977 में सुमात्रा के कारो एवं बाटाक और 1980 में कालीमंतन के गाजू एवं दायक भी हिन्दू की छत्रछाया में लौट आए। इसके बाद अनेक स्थानीय जिवात्मवादी एवं जनजातीय धर्मों ने भी अपने अस्तित्व की रक्षा एवं इस्लाम और ईसाइयत के दबावों से बचने के लिए स्वयं को हिन्दू घोषित किया। साथ ही सन 1965 की उथल-पुथल के समय स्वयं को मुस्लिम घोषित करने वालों लाखों जनजातीय लोग भी अब हिन्दू धर्म में लौट रहे हैं।

जावा में शिक्षा प्राप्त करनेवाली सुदेवी 1990 में जज बनीं थीं। उनका पालन-पोषण मुस्लिम के रूप में हुआ था, किन्तु उन्होंने भी बाद में हिन्दू धर्म अपना लिया। रवि कुमार ने अपनी पुस्तक ‘इंडोनेशिया में हिंदू पुनरुत्थान’ को दस लाख से अधिक इंडोनेशियाई मुस्लिमों के हिन्दू धर्म में लौटने की कहानी बताई है। इस पुस्तक में उन्होंने उल्लेख किया है कि ‘सन 1999 की एक रिपोर्ट में नेशनल इंडोनेशियन ब्यूरो ऑफ़ स्टेटिस्टिक्स ने माना था कि गत दो दशकों में लगभग 1 लाख जावा निवासी आधिकारिक तौर पर इस्लाम से हिन्दू धर्म में वापस लौट गए हैं।’

2017 में जावा की राजकुमारी कांजेंग महेंद्राणी ने भी हिन्दू धर्म अपना लिया था। हाल के वर्षों में सुकर्णों के परिवार से संबंध रखने वाले अनेक लोगों ने हिन्दू धर्म अपनाया है, जिनमें सबसे ताजा नाम ‘सुकमावती’ का है। इंडोनेशिया में ‘सुकमावती’ का जिस प्रकार का कद है, इससे यह भी अंदाजा लगाया जा रहा है कि आगे उनके अनेक अनुयायी भी उनके पीछे हिन्दू धर्म में लौट आएँगे।

तो प्रश्न है इंडोनेशियाई मुसलमान हिन्दू धर्म क्यों अपना रहे हैं?

सुकमावती के हिन्दू धर्म अपनाने के बाद भारतीय मीडिया ने मुख्य रूप से सबदापालन की उस भविष्यवाणी को याद किया जब सन 1478 में उन्होंने मजापहित साम्राज्य के अंतिम शासक ब्रविजय पँचम को इस्लाम कबूलने पर श्राप दिया था कि ‘500 वर्ष बाद प्राकृतिक आपदाओं के दौर में वे पुनः लौटेंगे और हिन्दू धर्म को पुनर्स्थापित करेंगे।’

यह बात सत्य है कि जिस प्रकार से 2004 में आई हिन्द महासागर की सुनामी में 2 लाख से अधिक इंडोनेशियाई नागरिकों की मृत्यु हो गई थी, फिर 2006 में हिन्द महासागर में आए भूकंप के कारण 5 हजार से अधिक लोगों ने जान गँवाई थी, फिर जावा में भूकंप, आदि घटनाओं के कारण वहाँ के निवासी सबदापालन की भविष्यवाणी को बड़ी गंभीरता से ले रहे हैं और ऐसी विपदाओं से बचने के लिए अपने पैतृक हिन्दू धर्म में लौट रहे हैं।

किन्तु सबदापालन के श्राप और भविष्यवाणी के अलावा कुछ अन्य गंभीर कारण भी हैं जिन्हें अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। यहाँ जो सबसे पहला कारण सामने आता है, वह है इंडोनेशियाई लोगों में वास्तविक इतिहास का बोध एवं अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान। जाने-माने प्रोफ़ेसर शंकर शरण जी ने एक समय कहा था कि ‘भारतीय मुसलमानों के सामने यदि उनका वास्तविक इतिहास रख दिया जाए तो दूसरे ही क्षण वे सभी इस्लाम का त्याग कर देंगे।’

यद्यपि स्वतंत्रता के 70 वर्ष बाद भी हिन्दू बहुल भारतीय राज्य यह करने में सक्षम नहीं हो पाया है किन्तु मुस्लिम बहुल इंडोनेशिया ने यह कर दिखाया है। यहाँ मजपहित साम्राज्य एवं अन्य हिन्दू साम्राज्यों की उपलब्धियों पर बहुत बल दिया जाता है। ‘गजह मद’ जैसे हिन्दू सेनापति यहाँ के नेशनल हीरो हैं। यहाँ के मुस्लिमों को ज्ञात है कि उनके पूर्वज तुर्क या अफ़ग़ानिस्तान से आए लुटेरे नहीं अपितु सर्वधर्म समभाव रखने वाले हिंदू थे। इसलिए अपने इतिहास के मूल धर्म में जाना और अपने पूर्वजों के धर्म को अपनाना यहाँ गौरव का विषय बन गया है।

दूसरा बड़ा कारण है, यहाँ की संस्कृति में रामायण और महाभारत का प्रभाव। सुकर्णो के समय में पाकिस्तान के एक प्रतिनिधिमंडल को इंडोनेशिया में रामलीला देखने का मौका मिला। प्रतिनिधिमंडल में गए लोग इससे हैरान थे कि एक इस्लामी गणतंत्र में रामलीला का मंचन कैसे हो रहा है। यह सवाल उन्होंने सुकर्णो से भी किया। सुकर्णो ने तुरंत जवाब दिया कि ‘इस्लाम हमारा मजहब है और रामायण हमारी संस्कृति।’

यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं कि इंडोनेशिया के मुस्लिम रामायण और महाभारत अनेक भारतीयों से भी अधिक जानते हैं। यहाँ के लोगों की मानसिकता के साथ-साथ रग-रग में इन दो महाकाव्यों के पात्र बसे हुए हैं। यहाँ घर-घर में रामायण और महाभारत का पाठ होता है। यहाँ रामायण एवं महाभारत के चरित्रों के आधार पर नाम रखना बहुत ही आम बात है। यहाँ इन चरित्रों का उपयोग स्कूली शिक्षा के लिए भी होता है। साथ ही यहाँ वर्ष भर रामायण एवं महाभारत पर कार्यक्रम होते रहते हैं। इंडोनेशिया की रामलीला विश्वभर में प्रसिद्ध है।

रामायण एवं महाभारत के इस प्रभाव के कारण इंडोनेशियाई मुस्लिम हिन्दू धर्म के प्रति आकर्षित हो रहे हैं। साथ ही आज इंडोनेशिया के मुस्लिम मुसलमान कुरान भी पढ़ रहे हैं एवं दूसरी ओर रामायण और महाभारत भी। हिंदी के प्रसिद्द विद्वान फादर कामिल बुल्के ने 1982 में अपने एक लेख में लिखा था, “35 वर्ष पहले मेरे एक मित्र ने जावा के किसी गाँव में एक मुस्लिम शिक्षक को रामायण पढ़ते देखकर पूछा कि आप रामायण क्यों पढ़ते हैं? तो उन्हें उत्तर मिला कि मैं और अच्छा मनुष्य बनने के लिए रामायण पढ़ता हूँ।”

तीसरा, यहाँ जिस प्रकार से खुदाई के दौरान हिन्दू मंदिर मिल रहे हैं, इससे जनता में हिन्दू धर्म के प्रति एक कौतूहल एवं जिज्ञासा उत्पन्न हो रही है। भारत में हिंदुओं को अपना एक राम मंदिर बनाने के लिए मुस्लिम समुदाय से एक लंबा संघर्ष करना पड़ा, किन्तु इसके विपरीत इंडोनेशिया के मुस्लिमों ने हिन्दू एवं बौद्ध मंदिरों को वहाँ की धरती में से खोज निकाले हैं और उन्हें फिर से खड़ा करके पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं।

जावा में 15 बड़े हिन्दू मंदिर खोजे गए हैं, जिनमें परबनन शिव मंदिर और बोरोबुदुर बौद्ध विहार मुख्य हैं। अकेले बाली द्वीप में 20,000 से अधिक मंदिर हैं जो अपने आप में बहुत बड़ी बात है। इसके अतिरिक्त जकार्ता और अन्य द्वीपों में भी ऐसे बहुत से मंदिर खोजे गए हैं जिस कारण इंडोनेशिया के मुस्लिम लगातार हिन्दू धर्म से अपना जुड़ाव अनुभव कर पा रहे हैं और यही अनुभव उन्हें हिन्दू धर्म में लौटने की प्रेरणा दे रहा है।

चौथा और सबसे महत्वपूर्ण कारण जिस पर बहुत कम लोगों का ध्यान जाता है वह है इंडोनेशिया में भी बढ़ रही इस्लामिक कट्टरता। इस बात में कोई दो राय नहीं कि इंडोनेशिया के मुस्लिम सुल्तान हिन्दुओं को बलपूर्वक मुस्लिम बनाने में सफल रहे, किन्तु यहाँ चूँकि मुस्लिम शासकों की सत्ता बहुत कम समय तक ही रही इसलिए नए-नए मुस्लिमों का उस हद तक इस्लामीकरण नहीं हो पाया जितना भारत में हुआ। यही कारण है कि उपासना पद्धति और कुछ छोटे-मोटे रिवाज बदलने के बावजूद यहाँ के लोग हिन्दू संस्कृति में ही बने हुए हैं।

किन्तु अब जैसे-जैसे समय जा रहा है यहाँ भी कट्टरवादी ताकतें सक्रिय हो रही हैं। नतीजन यहाँ भी हिन्दू -मुस्लिम के बीच तनाव और आतंकवाद पग पसारने लगा है। 2002 में बाली द्वीप में अब तक के सबसे घातक आतंकी हमले में 240 लोगों की मौत हो गई थी। 2005 में एकबार फिर श्रृंखलाबद्ध आत्मघाती धमाकों में 26 लोगों की मौत हो गई और 100 से अधिक घायल हो गए।

बाली बम धमाकों के दोषी अब्दुल अजीज ने स्वीकार किया था कि बाली द्वीप को हिन्दू बहुल होने के कारण ही हमलों के लिए चुना गया था। 2012 में सुमात्रा द्वीप के हिन्दुओं पर स्थानीय मुस्लिमों ने हमला किया, जिसमें 14 की मौत हो गई थी और 1000 से अधिक हिन्दू बेघर हो गए थे। इस प्रकार की इस्लामिक कट्टरता के चलते यहाँ के लोगों को भी अब वास्तविक कारण समझ आ रहा है। इंडोनेशिया में मज़बूत हो रही वहाबी विचारधारा के कारण यहाँ के लोगों का इस्लाम से विश्वास उठता जा रहा है और वे सनातनी हिन्दू धर्म की ओर लौट रहे हैं।