माता ब्रह्मचारिणी (भाग १) : माता ब्रह्मचारिणी की कथा और उनका वर्णन विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में मिलता है, आइए जानते है डॉ सुमित्रा अग्रवाल से...

माता ब्रह्मचारिणी (भाग १) : माता ब्रह्मचारिणी की कथा और उनका वर्णन विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में मिलता है, आइए जानते है डॉ सुमित्रा अग्रवाल से...
माता ब्रह्मचारिणी (भाग १) : माता ब्रह्मचारिणी की कथा और उनका वर्णन विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में मिलता है, आइए जानते है डॉ सुमित्रा अग्रवाल से...

माता ब्रह्मचारिणी (भाग १)

डॉ सुमित्रा अग्रवाल (कोलकाता)
सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री 
यूट्यूब वास्तु सुमित्रा 

कोलकाता : माता ब्रह्मचारिणी की कथा और उनका वर्णन विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में मिलता है, विशेषकर शिव पुराण, दुर्गा सप्तशती, और स्कंद पुराण में। माता ब्रह्मचारिणी, देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों में से दूसरा स्वरूप हैं, और नवरात्रि के दूसरे दिन उनकी पूजा की जाती है। उनका नाम "ब्रह्मचारिणी" इसलिए पड़ा क्योंकि उन्होंने कठिन तपस्या (ब्रह्मचर्य) के माध्यम से भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया था।

धार्मिक ग्रंथों में माता ब्रह्मचारिणी का उल्लेख :

1. शिव पुराण :

शिव पुराण में माता ब्रह्मचारिणी का उल्लेख देवी पार्वती के रूप में किया गया है, जिन्होंने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी।

इस पुराण के अनुसार, जब पार्वती ने नारद मुनि से भगवान शिव को पति रूप में पाने का सुझाव सुना, तो उन्होंने कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए कई वर्षों तक तपस्या की। इस तपस्या के कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना गया।

उनकी तपस्या इतनी कठोर थी कि वे हजारों वर्षों तक केवल फल और जड़ी-बूटियों पर जीवित रहीं, और फिर अंत में भगवान शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया।

2. स्कंद पुराण :

स्कंद पुराण में भी माता ब्रह्मचारिणी की तपस्या का विस्तृत वर्णन मिलता है। यहाँ यह बताया गया है कि किस प्रकार माता ब्रह्मचारिणी ने अपने जीवन के वर्षों को कठोर तपस्या और साधना में समर्पित किया।

स्कंद पुराण के अनुसार, माता ब्रह्मचारिणी ने कई हज़ार वर्षों तक बिना भोजन और जल के भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए तपस्या की। इस दौरान वे कठिन परिस्थितियों का सामना करती रहीं और उनकी इस साधना को देखकर देवता भी आश्चर्यचकित हो गए।

3. मार्कण्डेय पुराण (दुर्गा सप्तशती का हिस्सा) :

मार्कण्डेय पुराण, जिसे दुर्गा सप्तशती के रूप में भी जाना जाता है, में माता ब्रह्मचारिणी का संक्षिप्त उल्लेख मिलता है। यहाँ उनके तपस्विनी रूप और उनकी भक्ति का वर्णन किया गया है।
उनके ब्रह्मचर्य और तप का महत्व नवरात्रि के दूसरे दिन की पूजा में विशेष रूप से बताया गया है।

माता ब्रह्मचारिणी का स्वरूप :

माता ब्रह्मचारिणी का रूप अत्यंत सरल और शांत है। वे सफेद वस्त्र धारण करती हैं और उनके एक हाथ में जपमाला और दूसरे हाथ में कमंडल होता है। यह उनके तप, संयम और साधना का प्रतीक है।

उनका यह स्वरूप भक्ति, प्रेम, और आत्मनियंत्रण का प्रतीक है। उनके जपमाला और कमंडल से उनकी साधना और तपस्या की महिमा का बोध होता है।

माता ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व :

माता ब्रह्मचारिणी की पूजा से भक्तों को धैर्य, आत्मविश्वास और शक्ति मिलती है। उनके आशीर्वाद से व्यक्ति को तप और संयम का बल प्राप्त होता है, जिससे जीवन के कठिनाइयों का सामना करना आसान हो जाता है।

उनकी पूजा से भक्त की साधना और तप का मार्ग प्रशस्त होता है, और उसे इच्छाओं की पूर्ति के लिए आंतरिक शक्ति और धैर्य प्राप्त होता है।