चंद्रयान ३ के विषय में जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा से...




चंद्रयान ३ के विषय में जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा से
डॉ सुमित्रा अग्रवाल
यूट्यूब वास्तु सुमित्रा
क्या है चंद्रयान -3, भारत के साथ दुनिया की नजरें क्यों जमीं चंद्रयान-3 पर
नया भारत डेस्क : चंद्रयान-3, चंद्रयान-2 का अनुवर्ती मिशन है, जो चंद्र सतह पर सुरक्षित लैंडिंग और रोविंग की एंड-टू-एंड क्षमता प्रदर्शित करता है। इसमें लैंडर और रोवर विन्यास शामिल हैं। इसे एलवीएम3 द्वारा एसडीएससी शार, श्रीहरिकोटा से प्रमोचित किया जाएगा। प्रणोदन मॉड्यूल 100 किमी चंद्र कक्षा तक लैंडर और रोवर विन्यास को ले जाएगा। प्रणोदन मॉड्यूल में चंद्र कक्षा से पृथ्वी के वर्णक्रमीय और ध्रुवीय मीट्रिक मापों का अध्ययन करने के लिए स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लैनेट अर्थ (एसएचएपीई) नीतभार है।
लैंडर नीतभार: तापीय चालकता और तापमान को मापने के लिए चंद्र सतह तापभौतिकीय प्रयोग (चेस्ट); लैंडिंग साइट के आसपास भूकंपीयता को मापने के लिए चंद्र भूकंपीय गतिविधि (आईएलएसए) के लिए साधनभूत; प्लाज्मा घनत्व और इसकी विविधताओं का अनुमान लगाने के लिए लैंगमुइर जांच (एलपी)। नासा से एक निष्क्रिय लेजर रिट्रोरिफ्लेक्टर ऐरे को चंद्र लेजर रेंजिंग अध्ययनों के लिए समायोजित किया गया है।
रोवर नीतभार: लैंडिंग साइट के आसपास मौलिक संरचना प्राप्त करने के लिए अल्फा कण एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (एपीएक्सएस) और लेजर प्रेरित ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (एलआईबीएस)।
चंद्रयान-3 में एक स्वदेशी लैंडर मॉड्यूल (एलएम), प्रोपल्शन मॉड्यूल (पीएम) और एक रोवर शामिल है, जिसका उद्देश्य अंतरग्रहीय मिशनों के लिए आवश्यक नई तकनीकों को विकसित और प्रदर्शित करना है। लैंडर के पास निर्दिष्ट चंद्र स्थल पर सॉफ्ट लैंड करने और रोवर को तैनात करने की क्षमता होगी जो इसकी गतिशीलता के दौरान चंद्र सतह के इन-सीटू रासायनिक विश्लेषण करेगा। लैंडर और रोवर के पास चंद्र सतह पर प्रयोग करने के लिए वैज्ञानिक नीतभार हैं। पीएम का मुख्य कार्य एलएम को लॉन्च व्हीकल इंजेक्शन से अंतिम चंद्र 100 किमी गोलाकार ध्रुवीय कक्षा तक ले जाना और एलएम को पीएम से अलग करना है। इसके अलावा, प्रणोदन मॉड्यूल में मूल्यवर्धन के रूप में एक वैज्ञानिक नीतभार भी है जिसे लैंडर मॉड्यूल के अलग होने के बाद संचालित किया जाएगा। चंद्रयान-3 के लिए चिन्हित किया गया लॉन्चर एलवीएम3 एम4 है जो एकीकृत मॉड्यूल को ~170x36500 किमी आकार के एलिप्टिक पार्किंग ऑर्बिट (ईपीओ) में स्थापित करेगा।
चंद्रयान-3 के मिशन के उद्देश्य हैं :
1. चंद्र सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग प्रदर्शित करना
2. रोवर को चंद्रमा पर भ्रमण का प्रदर्शन करना और
3. यथास्थित वैज्ञानिक प्रयोग करना
मिशन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए लैंडर में कई उन्नत प्रौद्योगिकियां मौजूद हंं जैसे,
1. अल्टीमीटर: लेजर और आरएफ आधारित अल्टीमीटर
2. वेलोसीमीटर : लेजर डॉपलर वेलोसीमीटर और लैंडर हॉरिजॉन्टल वेलोसिटी कैमरा
3. जड़त्वीय मापन: लेजर गायरो आधारित जड़त्वीय संदर्भ और एक्सेलेरोमीटर पैकेज
4. प्रणोदन प्रणाली: 800N थ्रॉटलेबल लिक्विड इंजन, 58N एटिट्यूड थ्रस्टर्स और थ्रॉटलेबल इंजन कंट्रोल इलेक्ट्रॉनिक्स
5. नौवहन, गाइडेंस एंड कंट्रोल (NGC): पावर्ड डिसेंट ट्रैजेक्टरी डिजाइन और सहयोगी सॉफ्टवेयर तत्व
6. खतरे का पता लगाना और बचाव : लैंडर खतरे का पता लगाना और बचाव कैमरा और प्रसंस्करण एल्गोरिथम
7. लैंडिंग लेग तंत्र
उपर्युक्त उन्नत तकनीकों को पृथ्वी की स्थिति में प्रदर्शित करने के लिए, कई लैंडर विशेष परीक्षणों की योजना बनाई गई है और सफलतापूर्वक संपन्न किए गए हैं।
1. एकीकृत शीत परीक्षण - परीक्षण प्लेटफॉर्म के रूप में हेलीकॉप्टर का उपयोग करके एकीकृत संवेदक और नौवहन प्रदर्शन परीक्षण का प्रदर्शन
2. एकीकृत हॉट परीक्षण - टॉवर क्रेन का परीक्षण प्लेटफॉर्म के रूप में उपयोग करके संवेदक, एक्चुएटर्स और एनजीसी के साथ बंद लूप प्रदर्शन परीक्षण का प्रदर्शन
3. लैंडर लेग मैकेनिज्म परफॉरमेंस परीक्षण एक लूनर सिमुलेंट परीक्षण बेड पर विभिन्न टच डाउन स्थितियों का अनुकरण करता है।
चंद्रयान 3 मिशन 23 अगस्त की शाम को चांद की सतह पर लैंड कराया जाएगा। हालांकि, इससे पहले विक्रम लैंडर के लिए अनुकूल स्थितियों को पहचाना जाएगा। इसरो के मुताबिक, लैंडिंग के लिए निर्धारित समय से ठीक 2 घंटे पहले यान को उतारने या न उतारने पर अंतिम निर्णय होगा। इसरो के वैज्ञानिक नीलेश एम देसाई के मुताबिक, अगर चंद्रयान 3 को 23 अगस्त को लैंड नहीं कराया जाता है, तो फिर इसे 27 अगस्त को भी चांद पर उतारा जा सकता है।
27 अगस्त के लिए भी तैयारियां पूरी
निदेशक एम देसाई ने कहा कि यान को 30 किमी की ऊंचाई से चंद्रमा पर उतारने की प्रक्रिया शुरू होगी। यह प्रक्रिया शुरू करने से 2 घंटे पहले सभी निर्देश लैंडिंग मॉड्यूल को भेजे जाएंगे। उन्होंने कहा कि इस समय उन्हें चंद्रयान 3 को 23 अगस्त को ही चंद्र सतह पर उतारने में कोई मुश्किल नजर नहीं आ रही है, इसलिए उसी तारीख पर यान को उतारने का प्रयास होगा। 27 अगस्त को लैंडिंग के लिए भी सभी सावधानियां बरती जा रही हैं। सभी प्रणालियां भी तैयार रखी गई हैं।
चांद अब दूर नहीं: चंद्रयान-3 की सफलता को लेकर वैज्ञानिक आश्वस्त
क्या है चंद्रयान – 3
भारत के चंद्रमा मिशन चंद्रयान-3 पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं। रूस के मिशन लूना-25 के असफल होने के बाद चंद्रयान-3 को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं लेकिन भारत के वैज्ञानिक मिशन की सफलता को लेकर आश्वस्त दिख रहे हैं। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स के पूर्व प्रोफेसर आरसी कपूर ने बताया है कि चंद्रयान-2 की गलतियों से सीख लेकर चंद्रयान-3 मिशन तैयार किया गया है और उन्हें पूरा भरोसा है कि चंद्रयान-3 मिशन का लैंडर चांद की सतह पर सफलतापूर्वक उतरेगा।
गलतियों से इसरो ने ली सीख
अंतरिक्ष विज्ञानी आरसी कपूर ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि इसरो ने चंद्रयान-2 की गलतियों से सीख ली है। उन्होंने कहा कि इस बार एल्गोरिदम को कार्यमुक्त रखा गया है और लैंडर के लैग मेकनिज्म को पहले के मुकाबले ज्यादा मजबूत बनाया गया है। आरसी कपूर ने बताया कि 'चंद्रयान-3 के लैंडर का डिजाइन इस तरह बनाया गया है कि यह लैंडिंग के समय 3 मीटर प्रति सेकेंड की स्पीड के साथ भी खड़ा हो सकता है। साथ ही पहले के मुकाबले इसके वजन में ढाई सौ ग्राम की बढ़ोतरी भी की गई है। इसमें अतिरिक्त ईंधन है, जिसके चलते लैंडर की चांद पर लैंडिंग में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए।'
बताया कैसे होगी लैंडिग की प्रक्रिया
अंतरिक्ष विज्ञानी ने बताया कि लैंडिंग से 15-20 मिनट पहले लैंडर स्वायत मोड पर होगा और उस दौरान इसे नियंत्रित नहीं किया जा सकेगा। यह समय अहम होगा। उन्होंने फिर जोर देकर कहा कि लैंडर को हर उस तकनीक से लैस किया गया है, जिससे लैंडर चांद की सतह पर सफलतापूर्वक लैंड कर सकेगा। बता दें कि चंद्रयान-3 मिशन का लैंडर विक्रम प्री लैंडिंग ऑर्बिट में चक्कर लगा रहा है और यह 23 अगस्त 2023 को शाम करीब 6.04 बजे चांद की सतह पर लैंड कर सकता है।
यहां देख सकते हैं लाइव एक्शन
बता दें कि चंद्रयान-3 मिशन की लैंडिंग के लाइव एक्शन को इसरो की आधिकारिक वेबसाइट, इसरो को यूट्यूब चैनल, फेसबुक और डीडी नेशनल टीवी पर 23 अगस्त को शाम 5.27 बजे से देखा जा सकेगा। भारत अगर चंद्रयान-3 मिशन की चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने में सफल हो जाता है तो ऐसा करने वाला भारत दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। भारत पहले अमेरिका, रूस और चीन यह कारनामा कर चुके हैं।
दक्षिणी ध्रुव पर ही क्यों उतर रहा चंद्रयान-3, अंतरिक्ष एजेंसियों की दिलचस्पी का क्या है कारण ?
चंद्रयान-3 मिशन का लैंडर मॉड्यूल चांद की सतह से महज 25 से 150 किलोमीटर की दूरी पर चक्कर लगा रहा है। इसरो के मुताबिक, चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर का चंद्रयान-3 के लैंडर मॉड्यूल से संपर्क हो गया है। अब 23 अगस्त का इंतजार है, जब चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग के साथ ही भारत इतिहास रच देगा और ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। इतना ही नहीं चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सफल लैंडिंग कराने वाला भारत पहला देश बन सकता है।
इस बीच लोगों के मन में कुछ सवाल उठ रहे हैं कि आखिर दक्षिणी ध्रुव पर ही क्यों उतर रहा चंद्रयान-3? चंद्रमा के दक्षिणी और उत्तरी ध्रुवों के तापमान में अंतर क्या है? चंद्र मिशनों के लिए दक्षिणी ध्रुव ही पसंदीदा क्यों? यहां मिशन के बढ़ने की और भी वजहें हैं क्या? समझते हैं...
दक्षिणी ध्रुव पर ही क्यों उतर रहा चंद्रयान-3 ?
पिछले कुछ समय से चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्र मिशनों को उतारना दुनियाभर के अंतरिक्ष एजेंसियों की दिलचस्पी बनी है। इसकी बड़ी वजह जमे हुए बर्फ की संभावित उपस्थिति मानी जाती है। वैज्ञानिकों की मानें तो इसका उपयोग चंद्रमा पर स्थायी निवास के दौरान जीवनदायी सामग्री की आपूर्ति के लिए किया जा सकता है।
भारत का लक्ष्य चंद्रमा के अधिक दक्षिण में उतरने का है जोकि भूमध्य रेखा से 69 डिग्री दक्षिण में होगा। इस जगह को वास्तव में ध्रुवीय नहीं माना जाता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम कुछ नया नहीं सीखेंगे। रोशनी की उपलब्धता, संचार और नेविगेट करने में आसान इलाके सहित कई तकनीकी कारणों से भी इस लैंडिंग को अनुकूल माना जाता है।
चंद्र अन्वेषण विशेषज्ञ क्लाइव नील के मुताबिक यह न तो कोई ध्रुवीय स्थान है, बल्कि उच्च अक्षांश स्थान है। हमने वास्तव में पहले ऐसे दक्षिणी उच्च अक्षांश स्थानों का दौरा नहीं किया है, इसलिए जिज्ञासा और विज्ञान के दृष्टिकोण से ये लैंडर चंद्रमा पर नए स्थानों से डेटा देगा। चंद्रयान-3 मिशन का मुख्य लक्ष्य चंद्रमा पर भविष्य में सॉफ्ट लैंडिंग के लिए प्रौद्योगिकी का परीक्षण और प्रदर्शन करना है।
क्या पानी की खोज भी इसकी बड़ी वजह ?
अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को इस ध्रुव पर खोज के लिए प्रोत्साहित करने वाला अहम कारण पानी है। दरअस,ल ध्रुवीय क्रेटर की जमीन में तापमान ठंडा होता है क्योंकि ध्रुवीय क्षेत्रों में चंद्रमा की सतह पर सूर्य की रोशनी के कम कोण के चलते यहां स्थायी रूप से छाया रहते है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि चंद्रमा की सतह को गर्म करने में मदद करने के लिए चंद्रमा के पास कोई वातावरण भी नहीं है। यह चंद्रमा की धुरी (पृथ्वी का 23.5 डिग्री है) के 1.54-डिग्री कोण बनाता है। यदि कोई अंतरिक्ष यात्री दक्षिणी ध्रुव के पास खड़ा होता है, तो सूर्य की रोशनी हमेशा क्षितिज पर सतह के बगल में पड़ती दिखाई देती है। इस प्रकार सूर्य का प्रकाश गहरे गड्ढों के किनारों पर ही पड़ता है और उनके गहरे आंतरिक भाग में छाया रही आती है। ये क्रेटर सौर मंडल में -248 सेल्सियस तक के सबसे कम तापमान वाले हैं। इन तापमानों पर पानी का बर्फ स्थिर होता है और ऐसा माना जाता है कि इनमें से कुछ गड्ढों में उपयोगी बर्फ जमा है।
चंद्रमा पर एक रात पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर क्यों ?
चंद्रमा को पृथ्वी की एक परिक्रमा करने में लगभग 28 दिन लगते हैं। जैसे ही चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है, वह अपनी धुरी के चारों ओर एक पूरा चक्कर भी लगाता है। इसके कारण चंद्रमा का एक ही पक्ष हमेशा पृथ्वी की ओर रहता है। इसका यह भी अर्थ है कि प्रत्येक चंद्र दिवस पृथ्वी के 14 दिनों तक रहता है। इसी प्रकार, चंद्रमा पर एक रात पृथ्वी के 14 दिनों की होती है।
चंद्र मिशनों के लिए दक्षिणी ध्रुव ही पसंदीदा क्यों ?
कुछ अंतरिक्ष विशेषज्ञों का मानना है कि दक्षिणी ध्रुव पर पानी की बर्फ अधिक है, जो एक कीमती संसाधन है। 1990 के दशक में कई चंद्र मिशन दक्षिणी ध्रुव पर केंद्रित थे और इससे दक्षिणी ध्रुव को भविष्य के मिशनों के लिए पसंदीदा लैंडिंग साइट के रूप में मजबूत करने में मदद मिली।
अंतरिक्ष विशेषज्ञों का कहना है कि चंद्रमा के ध्रुव बहुत समान हैं। दोनों में ऊंचे भू-भाग और ऊबड़-खाबड़ जगहें हैं, जिनमें बड़े क्षतिग्रस्त क्रेटर और छोटे ताजे क्रेटर हैं। क्रेटर उन गड्ढों को कहा जाता है जो विस्फोट या ज्वालामुखी के फटने के कारण बनते हैं। ध्रुवों के बीच का अंतर बहुत छोटा है। चंद्र ध्रुवों पर ऐसे स्थान हैं जिन पर सदैव धूप रहती है।
चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव तुलनात्मक रूप से कम ठंडा है। इस इलाके में अंधेरा भी कम रहता है। उदाहरण के लिए शेकलटन क्रेटर के पास क्षेत्र हैं जहां लंबे समय तक सूर्य का प्रकाश रहता है। हमारे गृह पृथ्वी के हिसाब से यहां 200 से अधिक दिनों तक चमक बरकार रहती है। लगातार सूर्य की रोशनी चंद्रमा मिशनों के लिए एक वरदान की तरह होती है। इस सूर्य की रोशनी से खोजकर्ताओं को चंद्र की सतह को रोशन करने और उसके उपकरणों को ऊर्जा देने में मदद मिलती है। चंद्रयान-3 का लैंडर भी सूरज की रोशनी से ही ऊर्जा लेकर काम करेगा।
इसके अलावा दक्षिणी ध्रुव पर बढ़ती अंतरिक्ष गतिविधियों की अहम वजह 'ऐटकेन बेसिन' है। दक्षिणी ध्रुव दक्षिणी ध्रुव-ऐटकेन बेसिन में स्थित है, जो एक विशाल गड्ढा है। यह दक्षिणी ध्रुव को भौगोलिक रूप से दिलचस्प जगह बनाता है। बर्फ खोजने के लिए उत्तरी ध्रुव की तुलना में दक्षिणी ध्रुव भी अधिक आशाजनक स्थान है।
विशेषज्ञ बताते हैं कि चंद्रमा पर भविष्य के मिशनों के लिए बर्फ संसाधन एक अहम विचार हैं। चंद्रमा के दोनों ध्रुवों पर पानी की बर्फ का पता चला है। दक्षिणी ध्रुव में स्थायी छाया और ठंडे तापमान वाला क्षेत्र अधिक है, इसलिए ऐसा माना जाता है कि वहां पानी की बर्फ अधिक है।
...दक्षिणी ध्रुव में ऐसे बढ़ने लगे चंद्र मिशन
1970 और 1980 के दशक में जॉन वेस्टफॉल के नेतृत्व में शौकिया खगोलविदों के एक समूह ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के आसपास के क्षेत्र का नक्शा बनाया था। 1960 के दशक में अपोलो मिशन के दौरान इस क्षेत्र का खराब मानचित्रण किया गया था और इसे 'लूना इन्कॉग्निटा' (अज्ञात चंद्रमा) उपनाम दिया गया था। वेस्टफॉल और उनकी टीम के काम ने दक्षिणी ध्रुव के बारे में नई जानकारियां दीं और जिनकी वजह से आज यह क्षेत्र खोज के लिए अधिक आकर्षक जगह बन चुका है।
नासा ने चंद्रमा पर बर्फ की तलाश के लिए लूनर क्रेटर ऑब्जर्वेशन एंड सेंसिंग सैटेलाइट (LCROSS) नामक मिशन लॉन्च करने का निर्णय लिया। एजेंसी ने दोनों ध्रुवों पर लैंडिंग स्थलों पर विचार किया, लेकिन लॉन्च में कई बार देरी हुई, इसलिए वे दक्षिणी ध्रुव पर कैबियस क्रेटर पर उतरे। इसने चंद्रमा पर बर्फ की खोज के लिए भविष्य के मिशनों के लिए दक्षिणी ध्रुव को एक अहम जगह बताने वाली धारणाओं को और मजबूत किया।
अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को इस ध्रुव पर खोज के लिए प्रोत्साहित करने वाला अहम कारण पानी है। दरअस,ल ध्रुवीय क्रेटर की जमीन में तापमान ठंडा होता है क्योंकि ध्रुवीय क्षेत्रों में चंद्रमा की सतह पर सूर्य की रोशनी के कम कोण के चलते यहां स्थायी रूप से छाया रहते है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि चंद्रमा की सतह को गर्म करने में मदद करने के लिए चंद्रमा के पास कोई वातावरण भी नहीं है। यह चंद्रमा की धुरी (पृथ्वी का 23.5 डिग्री है) के 1.54-डिग्री कोण बनाता है। यदि कोई अंतरिक्ष यात्री दक्षिणी ध्रुव के पास खड़ा होता है, तो सूर्य की रोशनी हमेशा क्षितिज पर सतह के बगल में पड़ती दिखाई देती है। इस प्रकार सूर्य का प्रकाश गहरे गड्ढों के किनारों पर ही पड़ता है और उनके गहरे आंतरिक भाग में छाया रही आती है। ये क्रेटर सौर मंडल में -248 सेल्सियस तक के सबसे कम तापमान वाले हैं। इन तापमानों पर पानी का बर्फ स्थिर होता है और ऐसा माना जाता है कि इनमें से कुछ गड्ढों में उपयोगी बर्फ जमा है।